13 फ़रवरी 2014

रेडियो, आई रियली मिस यू.. ..आज विश्व रेडियो दिवस है....

आज रेडियो को बहुत लोग मिस कर रहे होगें.....मैं भी कर रहा हूं....विविध भारती पे भूले बिसरे गीत...,पटना रेडियो का मुखिया जी का चौपाल....., साढ़े सात बजे प्रदेशिक समाचार सुनने के लिए गांव के दालान पर बुजुर्गो की बैठकी और फिर समाचारों पर बहस....मां का रेडियो पर लोकगीत कार्यक्रम में शारदा सिन्हा जैसे कलाकारों से कजरी, चौता का सुनना......और फिर बीबीसी हिन्दी पर समाचार सुनने वाले गांव के बौद्विक और जागरूक लोगों में शामील होना....सबकुछ बहुत मिस कर रहा हूँ। और बिनाका गीत माला... ओह ओह अमीन शयानी की दिलकश आवाज....रियली मिस....यार..और क्रिकेट की कॉमेंट्री...आज कहाँ वाह बात ...

और मिस कर रहा हूँ घर की खिड़की पर रेडियो बजा कर अपनी प्रेमिका तक अपने दिल की बात को पहूंचाना। जाने क्यों रेडियो से मेरा अपनापा था और वह मेरे दिल की बात समझ कर ही बजा करती। जब प्रेम के ईजहार का मन होता तो गीत बजता....‘‘हमे तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते, मगर जी नहीं सकता तुम्हारे बिना....’’।

और रोमांटिक मूड में  ‘‘कजरा मोहब्बत बाला, अंखियों में ऐसा डाला’’, ‘‘डमडम डिगा डिगा’’। और फूल वैल्युम में ‘‘मीना ओ मीना.. दे दे प्यार दे प्यार दे प्यार दे रे’’ जब बजता तो प्रियतम रीना का गुस्सा सातबें आसमान पर होता....बाबा बनो ही।

और जब प्रियतम गुस्से में होती या नाराज होती तो रेडियो उसे मनाता ‘‘ तुम रूठा न करो, मेरी जान, मेरी जान निकल जाती है...।’’

जब मैं गुस्से में होता या नाराज होता तो रेडियो प्रियतम तक मेरे दिल की बात इस तरह पहूंचाता ‘‘तेरी गलियों में न रखेगें कदम आज के बाद....’’ या फिर ‘‘चांदी की दिवार न तोड़ी प्यार भरा दिल तोड़ दिया।’’

और निराश के उस क्षण में जब जीवन का होना न होने जैसा लगा तो रेडियो ने आहिस्ते से मां की तरह लोरियां सुनाई....‘‘तुमको चलना होगा, तुमको चलना होगा...,’’ ‘‘ रूक जाना नहीं तुम कहीं हार के, ओ राही ओ राही’’ ‘‘तुमसे नाराज नहीं जिन्दगी हैरान हूँ मैं’’

और जिन्दगी के उस मोड़ पर जब प्रेम या कैरियर का चुनाव करना था तो रेडियो का गीत ‘‘दिल उसे दो जो जान दे दे’’ का  अन्तरा ‘‘ जो सोंचते रहोगे तो काम न चलेगा, जो बढ़ते चलोगे तो रास्ता मिलेगा’’ ने प्रेम के चुनाव का साहस दिया।

आज भले ही हाई टेक जमाना है पर रेडियो को पिछड़ने के लिए छोड़ दिया गया है। मोबाईल में आज भी रेडियो एफएम ही बजती है पर वह भी सिर्फ महानगरों में, ग्रामीण ईलाकों में रेडियो मोबाइल पर नहीं बज पाता, इससे मैं खासा दुखी रहता हूँ। स्मार्ट मोबाइल के लिए भी कोई बढ़िया ऐप्स नहीं है। और बाजार में बिकने वाला रेडियो भी ठीक से फ्रिक्येन्सी नहीं पकड़ता।

हलांकि मैं आज भी अपनी सुबह की शुरूआत रेडियो के साथ ही करता हूँ और डीटीएच पर रेडियो लगा कर सुबह पांच बजे जगने के साथ ही नौ बजे तक घर से निकलने तक सुनता हूँ पर फिर भी मिस कर रहा हूँ..बहुत, दिल से..

3 टिप्‍पणियां:

  1. टीवी के ज़माने में भी कुछ साल पहले तक बीबीसी सुनना आज के खबरिया चैनलों से ज्यादा मुफ़ीद था.

    नई पोस्ट : फूलों के रंग से

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  2. आपकी इस प्रस्तुति को आज की विशेष बुलेटिन - भारत कोकिला से हिन्दी ब्लॉग कोकिला तक में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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