26 फ़रवरी 2014

माँ बनना ,,,


माँ  बनना 
जिंदगी देकर 
जिंदगी देना है...

देह सुख से
देह के सृजन तक
पल पल
माँ बनने का सुख
लील लेती है
प्रसव की असाह्य वेदना..

और कभी कभी 
गर्भ नाल से रिस रिस कर
पला हुआ जीवन
लील लेता है 
एक माँ को भी....

प्रसव के दौरान एक मां की दुखद मृत्यु  के बाद उपजी पीड़ा को शब्दों में बांधा है। चिकित्सक की लापरवाही अस्पताल में एक साल पुर्व ही विवाह बंधन में बंधी पिंकी की मौत हो गई। उसकी उम्र अभी मात्र 22 साल हुई थी। कुछ धंटे की ही उसकी बेटी के सर से मां का साया उठ गया। वहीं शव से लिपट कर पिंकी की मां रो रही है तब भला भावनाओं को मैं भी नहीं रोक सका और शब्दों को बांध दिया है...




23 फ़रवरी 2014

सूरज और मैं

रोज रोज मद्धिम सा
लाल-पीला
हर घर, हर देह पर
पड़ती है धूप.....

सुबह में शीतल
दोपहर में गर्म
और शाम में फिर शीतल...

और फिर रात्री विश्राम
जिसमें होता है अंधेरे का साम्राज्य
और फिर सूरज निकलता है
यह जीवन चक्र
और मैं
जाने क्ंयू
अपनापा सा लगता है
कुछ कुछ...

18 फ़रवरी 2014

वेटर...

वह भी हंसता-मुस्कुरात है!
चंचल और वाचाल है वह
गाता-गुनगुनाता है
सब छोटू कहते है...

सड़ा-बजबजाता पैर,
जला हुआ देह और
मरा हुआ बचपन
कोई नहीं देखता...
सब छोटू कहते है....

जाने सिलौट-पेन्सुट का क्या हुआ?
जाने गुल्ली-डंडा कहां होगा?
जाने बैर-अमरूद किसीने तोडे होगें?
जाने ओरहा कौन बनाता होगा?

उसे अपना भी नाम याद नहीं
मां जाने क्या पुकारती थी...

पर जबसे वह वेटर हुआ है
वह भी खुद को छोटू ही कहता है?

17 फ़रवरी 2014

जद्दोज़हद



सुदूर गावों में दो वक्त की रोटी वमुश्किल मिलती है। इसी रोटी की खातिर बांस, फूस और मिट्टी से दुकान बनाती एक महिला।
और मेरे चाँद शब्द......

जिंदगी तुम हो तो क्या तुम हो।
जी कर तुझे, तेरी औकात बताते है हम।।

सिर्फ महलों में तेरा बसेरा नहीं।
झोपड़ियों में भी तुझे खींच लाते है हम।।

14 फ़रवरी 2014

अच्छा लगता है...(वेलेन्टाइन स्पेशल)

यूँ ही बिना वज़ह हसरतों का मचलना।
यूँ ही बिना वज़ह गुलों का खिलना।।
अच्छा लगता है।

यूँ ही खुशबू की तरह बिखरना।
यूँ ही झरनों की तरह गिरना।
अच्छा लगता है।

यूँ ही भौरें की तरह मचलना।
यूँ ही परवाने की तरह जलना।
अच्छा लगता है।

यूँ ही आहें भरना।
यूँ ही रात भर जगना।
अच्छा लगता है।

यूँ ही किसी के ख्वाबों में खोना।
यूँ ही किसी की आगोश में होना।
अच्छा लगता है।

यूँ ही किसी का दर्द सहना।
यूँ ही किसी का बनना।
अच्छा लगता है।

यूँ ही किसी पे मरना।
यूँ ही किसी से प्यार करना।
अच्छा लगता है।

13 फ़रवरी 2014

रेडियो, आई रियली मिस यू.. ..आज विश्व रेडियो दिवस है....

आज रेडियो को बहुत लोग मिस कर रहे होगें.....मैं भी कर रहा हूं....विविध भारती पे भूले बिसरे गीत...,पटना रेडियो का मुखिया जी का चौपाल....., साढ़े सात बजे प्रदेशिक समाचार सुनने के लिए गांव के दालान पर बुजुर्गो की बैठकी और फिर समाचारों पर बहस....मां का रेडियो पर लोकगीत कार्यक्रम में शारदा सिन्हा जैसे कलाकारों से कजरी, चौता का सुनना......और फिर बीबीसी हिन्दी पर समाचार सुनने वाले गांव के बौद्विक और जागरूक लोगों में शामील होना....सबकुछ बहुत मिस कर रहा हूँ। और बिनाका गीत माला... ओह ओह अमीन शयानी की दिलकश आवाज....रियली मिस....यार..और क्रिकेट की कॉमेंट्री...आज कहाँ वाह बात ...

और मिस कर रहा हूँ घर की खिड़की पर रेडियो बजा कर अपनी प्रेमिका तक अपने दिल की बात को पहूंचाना। जाने क्यों रेडियो से मेरा अपनापा था और वह मेरे दिल की बात समझ कर ही बजा करती। जब प्रेम के ईजहार का मन होता तो गीत बजता....‘‘हमे तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते, मगर जी नहीं सकता तुम्हारे बिना....’’।

और रोमांटिक मूड में  ‘‘कजरा मोहब्बत बाला, अंखियों में ऐसा डाला’’, ‘‘डमडम डिगा डिगा’’। और फूल वैल्युम में ‘‘मीना ओ मीना.. दे दे प्यार दे प्यार दे प्यार दे रे’’ जब बजता तो प्रियतम रीना का गुस्सा सातबें आसमान पर होता....बाबा बनो ही।

और जब प्रियतम गुस्से में होती या नाराज होती तो रेडियो उसे मनाता ‘‘ तुम रूठा न करो, मेरी जान, मेरी जान निकल जाती है...।’’

जब मैं गुस्से में होता या नाराज होता तो रेडियो प्रियतम तक मेरे दिल की बात इस तरह पहूंचाता ‘‘तेरी गलियों में न रखेगें कदम आज के बाद....’’ या फिर ‘‘चांदी की दिवार न तोड़ी प्यार भरा दिल तोड़ दिया।’’

और निराश के उस क्षण में जब जीवन का होना न होने जैसा लगा तो रेडियो ने आहिस्ते से मां की तरह लोरियां सुनाई....‘‘तुमको चलना होगा, तुमको चलना होगा...,’’ ‘‘ रूक जाना नहीं तुम कहीं हार के, ओ राही ओ राही’’ ‘‘तुमसे नाराज नहीं जिन्दगी हैरान हूँ मैं’’

और जिन्दगी के उस मोड़ पर जब प्रेम या कैरियर का चुनाव करना था तो रेडियो का गीत ‘‘दिल उसे दो जो जान दे दे’’ का  अन्तरा ‘‘ जो सोंचते रहोगे तो काम न चलेगा, जो बढ़ते चलोगे तो रास्ता मिलेगा’’ ने प्रेम के चुनाव का साहस दिया।

आज भले ही हाई टेक जमाना है पर रेडियो को पिछड़ने के लिए छोड़ दिया गया है। मोबाईल में आज भी रेडियो एफएम ही बजती है पर वह भी सिर्फ महानगरों में, ग्रामीण ईलाकों में रेडियो मोबाइल पर नहीं बज पाता, इससे मैं खासा दुखी रहता हूँ। स्मार्ट मोबाइल के लिए भी कोई बढ़िया ऐप्स नहीं है। और बाजार में बिकने वाला रेडियो भी ठीक से फ्रिक्येन्सी नहीं पकड़ता।

हलांकि मैं आज भी अपनी सुबह की शुरूआत रेडियो के साथ ही करता हूँ और डीटीएच पर रेडियो लगा कर सुबह पांच बजे जगने के साथ ही नौ बजे तक घर से निकलने तक सुनता हूँ पर फिर भी मिस कर रहा हूँ..बहुत, दिल से..

12 फ़रवरी 2014

जमींदार बिहार पुलिस:-

जमींदार बिहार पुलिस:-(थाना- बरबीघा, जिला- शेखपुरा) बिहार पुलिस भले ही पीपुल फ्रेंडली होने का दावा करे पर पुलिस का सच सामने है। यहाँ अपनी बेटी की हत्या का FIR कराने आये अनील यादव रैयत की तरह जमीन पे बैठे है जबकि कमल सिंह दरोगा जमींदार की तरह। बगल में खाली कुर्सी भी गबाह है इसका...










08 फ़रवरी 2014

सच्चा धर्म



झूमना, नाचना, गाना, उन्मुक्त हो जाना यही सच्चा धर्म है। आज यह नजारा मेरे यहां तेउस गांव के साई महोत्सव में देखने को मिली। शोभा यात्रा में महिलाऐं उन्मुक्त होकर झूम रही थी जैसे सबकुछ त्याग दिया हो....साई के लिए.. ओम साईं..




02 फ़रवरी 2014

उदास क्यूं हूं मैं..

जानकर भी
सुख/दुख
उदय/अस्त
जय/पराजय
मैं उदास हो जाता हूं..

पूछता हूं
खुद से ही
उदास क्यों हूं मैं?
देता हूं जबाब खुद को ही
आदमी हूं
देवता तो नहीं....