22 मार्च 2016

जी लूँ जरा

जी लूँ जरा
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मन भर दुःख
दिए
और छटांक भर
ख़ुशी

पहाड़ सी
परेशानी दी
और
मुठ्ठी में रेत सी
हंसी...

अमावस की
रात सी
नफरत दी
और
जुगनू सा
टिमिर-टिमिर
प्रेम

परमपिता
टनों से राख तौलते है
और
रत्ती से सोना

रत्ती भर जो मिला
उस अमृत रस को
पी लूँ जरा
छटांक भर
ख़ुशी को
जी लूँ जरा
जी लूँ जरा

(अपने जीवन और अनुभव पे #साथी के दो शब्द)
22/03/2016

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2016) को "होली आयी है" (चर्चा अंक - 2290) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    रंगों के महापर्व होली की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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