26 दिसंबर 2016

हाजमे की दवाई क्यों नहीं लेते...

आज कल सोशल मीडिया पे अजीब-गजीब प्राणी विचरण करने लगे है। कुछ तो जैसे दूसरी दुनिया के एलियन हो! कुछ जूलियन असांजे और जग्गा जासूस! कुछ की तो प्रजाति का पता उनके मूँह खोलने से होता है और कुछ की प्रजाति तब सामने आती है जब उनका हाजमा खराब हो जाता है। हद तो यह कि खराब हाजमे की वजह से उनकी दुर्गन्ध सोशल मीडिया पे फ़ैल जाती है। दुर्गन्ध की वजह से कुछ तो आँख पे कपड़ा रख के निकल लेते है और कुछ तो वहीँ उल्टी कर देते है। 

खैर, जहाँ तक दुर्गन्ध फ़ैलाने की बात है तो यह भी एक बीमारी है। अब देखिये, आप कहीं महफ़िल में बैठे है और कोई गंध छोड़ देता है! परेशानी यह नहीं है कि वह दुर्गन्ध फैला रहा है। परेशानी यह है कि उनको कब्ज की बीमारी है और वे दवाई भी नहीं लेना पसंद करते है। या उनको कोई शुभचिंतक कब्ज हर, कायम चूर्ण, पेट सफा गिफ्ट नहीं करता। खैर, लोगों का क्या है, नाक पे रुमाल रखकर निकल लेंगे, भाई बाद में यह बीमारी गंभीर और लाइलाज हो जायेगी तब क्या करोगे...।

उधर देखिये, एक बीमारी और है। हाजमा ख़राब होने की। इसी धरती पे कुछ प्राणी है जिनको धी नहीं पचता! अब इसमें उनकी क्या गलती है, घी की गंध से भी वे दुर्गन्ध छोड़ने लगते है। यदि घी खा लें तो वे छेर के रख देते है। इससे दिक्कत कुछ भी नहीं है। बस यह दुर्गन्ध सोशल मीडिया पे फ़ैल जाती है और उल्टी हो जाता है।

अरे हाँ, कुछ प्रजाति ऐसे भी है जिनको उजाला पसंद नहीं है। उजाला मने नील टिनोपाल नहीं, रौशनी। मने की उनको अँधेरे में ही दिखता है। दीया जला नहीं कि वे अंधे हो जाते है। उनको तकलीफ होती है। स्वभाविक है वे दीया का विरोधी होंगे।

प्रजाति से याद आया, आस्तीन का सांप भी एक प्रजाति ही है। और असांजे से याद आया, भाई चेहरा छुपा के थूक काहे फेंकते हैं अपने शहर में अब कौन कोई दादा या छोटे सरदार है जो आपको डर लगता है। बहादुरी ही दिखानी है तो सामने से आईये...बाकी आपकी महानता, विद्वता आदि पे किसी को शक नहीं है...!

खैर, बीमारी है तो उसका ईलाज भी होगा ही। है ही। कब्ज, हाजमा ख़राब, रतौंधी..सबका ईलाज संभव है। भाई विज्ञान तरक्की भले कर गया हो पर आपके बीमारी का ईलाज तो केवल बाबा जी के पास ही है। देशी योगा। बाबा जी बता रहे थे, कुत्तसान, उलूकासन योग इसमें बहुत प्रभावी है।

हाँ, यदि नमोमोनिया या केजरिमोनिया नामक बीमारी है तो इसका इलाज अभी तक ईजाद नहीं हुआ है। बाबा राम देवता को इसमें बहुत स्कोप नजर आ रहा है, उनके चेले चपाटी इसके लिए शोध कर रहे है, कोई न कोई जड़ी-बूटी या आसान खोज ही लेंगे। इसके मरीज बहुत हैं, सो मुनाफा भी बहुत होगा। वैसे कुत्तभुकबा आसान इस तरह की बीमारी में कुछ फायदा करता है, ऐसा रामखेलाबन काका कह रहे थे। आजमा के देखिये, शायद असर हो जाये...तब तक दुर्गन्ध फैलाते रहिये...और बाकी लोग नाक पे रुमाल रखके निकल लेंगे...जय हो
(Twitter @arunsathi , facebook arun.sathi )

21 दिसंबर 2016

सौ में सौ बेईमान, फिर भी मैं महान!!

नोटबंदी के बाद पता नहीं क्यों अचानक कामरेड छोटन सिंह गांव के चौक चौराहे पे भाषण देते घूम रहे है "एक मच्छर, आदमी को हिजड़ा बना देता है, सौ में सौ बेईमान फिर भी मैं महान!! मेरा देश महान!!" अब इन बातों का अर्थ आपको समझ नहीं आती तो आप टीवी चैनल खोलकर देखिये, या संसद का शीतकालीन सत्र देखिये, या सोशल मीडिया पे आईये, मेरे जैसे इत्ते ईमानदार मिलेंगे की आपको सौ के आगे की गिनती का अविष्कार करना होगा।

खदेरन चाचा पूछ ही लिए "आयं हो सौ में सौ बेईमान तो ईमानदार के है?" सौ में सौ बेईमान, मने की जब हम इसे लिख रहे होते है या आप पढ़ रहे होते है तब हमें पता है कि हमने कहाँ बेईमानी की है पर उपदेश पेलना है,सो देखिये, पेल रहे हैं।

कहते है कि अबतक जितने नोटों ने जन्म लिया था लगभग सबके सब ने बेचारे बैंक पहुँच कर सरेंडर कर दिए है फिर भी बाहर अभी बहुत से नोट गिरफ्तार हो रहे है, क्या समझे, नहीं समझे न! समझियेगा कैसे, यही तो खेल है। जा के पूछिये गांव के पार्लियामेंट में भाषण देते रामखेलाबन काका से, कहेंगे "दुर मरदे, ई बैंकबा में सब नकली रुपैया जमा हो गेलई औ असली अभी बाहरे है।, नोटबंदी गरीब ले हल, लाइन लगा देलक! बड़का डकैत तो सब नया नोट ट्रक से ले जाके घर में रख लेलक।

नोटबंदी और कालाधन का आध्यात्मिक पहलु भी है। अध्यात्म में भक्त और भगवान् होते है, बाकि संसार तो माया है! माया मने वही बहनजी, दीदी, दादा, नेताजी, युवराज अदि इत्यादि..। इनके पेट में मरोड़ के बाद आम आदमी का करेजा चौड़ा हुआ था पर युवराज और प्रधान जी में मुलाकात के बाद राजनीतिक पार्टी को मिली हैवी डिकॉउंट ने सब पोल खोल दिया। खेलाबन काका कहते है " पब्लिक है सब जानती है, अब जाके भक्त और गैर भक्त सभी को समझ आया कि सदन क्यों नहीं चलाया गया या चलने नहीं दिया गया!"

आध्यात्मिक पक्ष समझिये, दो चक्की के बीच गरीब आदमी पीस रहा है। प्रधान जी की सिंहगर्जन है कि नोटबंदी गरीब की भलाई में है। विपक्ष एक जुट होकर हुआ हुआ करते हुए नोटबंदी को गरीब विरोधी बता रहे है। अब कबीर दास ने तो पहले ही कह दिया था "दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।" बाकई बैंक की लाइन में लगे गरीब आदमी से पूछिए तो कहेंगे "कष्ट है पर देश के लिए सह लेंगे।" बिलकुल उसी तरह जैसे बच्चे को जन्म देने से पूर्व महिला दर्द सहती है!! लो जी, आपको कुछ साबुत नहीं मिलेगा। सब पिस-पास के एक कर दिया गया है। होना भी एक ही था। आखिर जब भी कोई चीज बहुत बारीकी से पिस दी जाती है तो सब एक सा हो जाता है।

नोटबंदी को भी बहुत बारीक़ से पीस दिया गया है। आम आदमी के पास ऐसी चलनी नहीं की गेहूं और घास-फूस के पिसे हुए आटे से अलग कर सके! सो मजे लीजिये, बिहारी लिट्टी का। गर्मी बहुत है भाय। नोटबंदी की चटनी के साथ टेस्टी लगेगा।
बाकि कामरेड छोटन सिंह को बिना श्रोता के गाने दीजिये:-

चुनाव में  करतो नेता करोड़ हे खर्च,
नोट के बदले वोट, जनता के हे मर्ज,
पार्टी के पैसा के हिसाब देबे में हे दर्द,
जनता की अंटी से पैसा खींचना हे फर्ज,

कालाधन वाला ही सब अब बनल है राजा,
जनता बाजाहो कालाधन औ नोटबंदी वाला बाजा!!




18 दिसंबर 2016

मुंहझौंस पत्थरा से चूर देबौ, बम मार देबौ

मुंहझौंस पत्थरा से चूर देबौ, बम मार देबौ..

शराब बनाने वाली महिलाओं का यह गुस्सा पुलिस द्वारा आयोजित संवाद कार्यक्रम में देखने को मिला। शराब बनाने वाले लोगों को कड़े कानून के प्रति जागरूक करने और शराब नहीं बनाने के लिए प्रेरित करने के लिए पुलिस यह अभियान चला रही है। इसका आयोजन बरबीघा नगर के नारायणपुर मोहल्ले में किया गया था। इसमें पुलिस, प्रशासन, मीडिया और जागरूक लोग जुटे थे। बड़ी संख्या में चुलौआ शराब बनाने वाली जुटी थी। महिलाएं कुछ समझने को तैयार नहीं थी। वे समझाने गए लोगों से उलझ गयी। पुलिस को धमकी तक दे दी।
संवाद सुनिये..थानाध्यक्ष नवीन कुमार और महिलाओं की।

"किसी को बख्शा नहीं जायेगा, आज न कल सबको पकड़ना है। छापेमारी जारी रहेगी।"

" तो ईंट पत्थर से चूर देंगे!!"

"पुलिस भी बचाव में गोली चला सकती है।"

"हम भी बम मार देंगे।"

मैंने समझाते हुए कहा कि शराब की बजह से लोगों की मौत हो जाती है तो महिलाओं का जबाब था "जो शराब नहीं पीते उनकी मौत कैसे हो जाती है?

सबलोग हक्का बक्का रह गए...