20 नवंबर 2025

यह हमारा दुर्भाग्य है.. : हम दिनकर को भूल गए..

यह हमारा दुर्भाग्य है.. : हम दिनकर को भूल गए..

यह जो तस्वीर आप देख रहे। यह हमारा दुर्भाग्य है। हम बिहारी का। हम शेखपुरा जिला वासी का। यह जो बुलडोजर चल रहा है, यहां दिनकर जी का स्मारक रहना था। पर नहीं है। क्यों, से पहले कैसे...! 

दरअसल यह शेखपुरा जिला मुख्यालय का कटरा चौक है। यहां रजिस्ट्री ऑफिस था । 1934 से 1942 तक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर यहां रजिस्ट्रार की नौकरी करते थे। उस दरमियान कई कविताएं लिखीं। कहा जाता है कि हिमालय कविता की रचना इसी धरती से दिनकर जी ने की। पर हमारा दुर्भाग्य कि कई साल पहले जहां स्मारक बनना था उस स्थल को ध्वस्त कर शौचालय और सब्जी मंडी बना दिया गया। अब फिर उसे तोड़कर सब्जी मंडी सजाया जाएगा। आधी रात को बुलडोजर चला। यह ऐसी धरती है कि कोई एक आवाज तक नहीं उठाता। 

यह हमारे बौद्धिक शून्यता का प्रमाण बना। और यह बानगी है जातीय उद्वेग में अपनी विरासत को रौंदने का। 
और एक स्क्रीनशॉट संलग्न है। घुमक्कड़ वरिष्ठ पत्रकार पवन भैया का। वे चेकोस्लोवाकिया गए थे। वहां के प्रख्यात लेखक फ्रांज काफ्का के शहर प्राग गए। लेखक के स्मारक पर जाकर मत्था टेका। यह है अपने धरोहर का सम्मान। समाजवादी शिवकुमार जी ब्रिटेन में शेक्सपीयर के स्मारक पर जाकर अभिभूत हुए थे। और एक हम....

16 नवंबर 2025

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष: क्या हर आदमी बेईमान है...?

 राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष: क्या हर आदमी बेईमान है...?

जैसे यह मान लिया गया है कि हर अधिकारी, कर्मचारी, बेईमान है। हर आदमी बेईमान है। वैसे ही यह मान लिया गया है कि हर पत्रकार बेईमान है। 



सबसे पहले, यह सच नहीं है। सच यह है कि हम सब समाज का आईना है। तो जैसा समाज, वैसा हम..!

अब आते है। बड़ी बड़ी बातों के कुछ नहीं होता। हम सब एक दूसरे को चोर, बेईमान, भ्रष्ट बताने में लगे है। और हम सब चाहते है कि दूसरा आदमी ईमानदार हो..!

arun sathi

यह ठीक वैसा ही है, जैसा कि हर कोई चाहता है, दूसरे का बेटा भगत सिंह बने..!

यह ठीक उस कहानी की तरह है, जिसने राजा के कहने पर तालाब में एक एक लोटा दूध देने कोई यह सोच कर नहीं गया कि मेरे एक लोटा देने से क्या होगा। दूसरा तो देगा ही। और तालाब में किसी ने एक लोटा दूध नहीं दिया। 

और यह ठीक वैसा ही है जैसा आचार्य ओशो कहते है कि धार्मिक आयोजनों में प्रवचन कर्ता कभी यह नहीं कहते कि मैं संत हूं..! वे केवल यह कहते है कि तुम चोर हो। तुम बेईमान हो। तब हम स्वयं मान लेते है वे संत है।

यह बहुत साधारण सी बात। गांधी जी ने कहा है, जो बदलाव आप दूसरे में देखना चाहते है उसको शुरुआत स्वयं से करें....


पर हो क्या रहा है, हम बदलाव तो देखना चाहते है, पर दूसरे में। अपने लिए कोई मानक नहीं है। 

पंडित श्री राम शर्मा आचार्य ने कहा है, हम बदलेंगे, युग बदलेगा..! पर हम आज युग तो बदलना चाहते हैं पर हम नहीं बदल रहे।

पर क्या समाज इतना पतित है! हर कोई इतना पतित है! क्या यही सच है? क्योंकि आखिर में हमारा वास्तविक मूल्यांकन समाज ही करता है। समाज ही अंकेक्षक है। पर समाज...! यह तो विरोधाभाषी शब्द संरचना मात्र है। 

कई मामले में वास्तविक नायक को नायक मानता है...?

क्यों यह खलनायक को नायक मानने लगता है..?

क्योंकि समाज वाह्य चमक से प्रभावित होता है। और समाज चूंकि हमसे है तो समाज में भी दो धाराएं हमेशा रही है। सत्य और असत्य।

असत्य की धारा, असत्य के साथ। सत्य की धारा, सत्य के साथ बहती है। तब, यह कैसे तय हो की कौन सी धारा सत्य है, कौन सी असत्य..?

और सबसे बड़ी चुनौती, असत्य के धारा चीख चीख कर कहती है, मैं ही सत्य हूं...!

और सत्य की ताकत मौन प्रसार है। सत्य चीखता नहीं है। यह केवल आत्म स्वीकृति है। सत्य जिसके पास है वह, और सत्य से जो प्रभावित हुआ, वह। दोनों मौन है। 

तय हमे करना है। हमको इतना साहसी होना पड़ेगा..! यह बहुत छोटा प्रयास है। पहला प्रयास यह करें कि अच्छाई को प्रचारित करें। उसे फैलाएं..। वायरल करें। कहें कि वह, ईमानदार है। वह सत्य है। यह कैसे होगा। 

यह मानवीय बुद्धिमत्ता से संभव है। जब हम इससे प्रभावित हों तो यह संभव है। 

आज के समय में दुष्प्रचार भी यही हैं । हम आंख मूंद कर गंदगी को फैला देते है। वह चाहे फेक न्यूज हो अथवा फेक धारणा (मेरेटिव) । 

हमें चेक करना चाहिए। संतुष्ट होना चाहिए। और आज के समय में जब हमने हाथ में पूरी दुनिया है। हम आसानी से इसे चेक कर सकते है। थर्मामीटर लगा सकते है। 

और जब आप पाते है कि यह असत्य है। तो आप की जिम्मेवारी बड़ी हो जाती है। बड़ी इस लिए की अब आप उसका विरोध कर सकते है। पर यह सभी से संभव नहीं है। तब हम इतना जरूर करें कि असत्य के साथ खड़े नहीं हों...! 

यह तो सभी से संभव है। पर हम यह नहीं करते है। हम भीड़ का हिस्सा बन जाते है। और ओशो कहते है, भीड़ के पास अपना दिमाग नहीं होता। वह जुंबी है...! बस इतना ही। बाकी सब ठीक है।

05 नवंबर 2025

तो क्या देश के विरुद्ध साजिश कर रहे राहुल गांधी..?

तो क्या देश के विरुद्ध साजिश कर रहे राहुल गांधी

सेना में 10 प्रतिशत सवर्णों का दबदबा है। सारा धन उनको जाता है। सेना में उनका कंट्रोल है। नौकरशाही, न्यायपालिका सब जगह कब्जा है। राहुल गांधी का यह बौखलाहट में दिया गया बयान नहीं है। यह पढ़ाया हुआ, प्रायोजित बयान है। कहीं से डील जैसा लगता है। 

कांग्रेस देश को तोड़ने में लगी है। पहले बीजेपी यह आरोप लगाती है। अब इसको आम आदमी भी सही समझने लगा है। राहुल गांधी अक्सर यही करते है। 

मतदाता सूची पुनरीक्षण से लेकर, वोट चोरी, ईवीएम घोटाला, नागरिकता कानून, राम मंदिर, कश्मीर में 370,  किसान बिल, चीन से झड़प, पाक आतंकी अड्डे पर भारत का स्ट्राइक ऑपरेशन सिंदूर  सरीखे कई मुद्दे पर राहुल  अक्सर ऐसे बयान देते है जिससे आग भड़के। 

इतना ही नहीं राहुल ने नेपाल में जेन जी के आंदोलन के बाद। भारत के जेन जी को भी भड़काया। साफ तौर पर गृह युद्ध के लिए उकसाया। वह तो भला है देश का, सब समझता है। 

तब भी, राहुल गांधी का सेना का बयान ज्यादा खतरनाक है। यह तब है जब 60 साल तक कांग्रेस का शासन रहा। जो देना था दे देते। कौन रोके था। अब जब सत्ता नहीं है, तो भड़काऊ बयान देते रहना है। पर इसी का जबाव जनता देती है। बिहार चुनाव में भी  जनता जबाव देगी। देश प्रथम।