26 अक्तूबर 2020

लालू यादव का भूत और बिहार का भविष्य


अरुण साथी

बिहार चुनाव में जनता में निरुत्साह है। कार्यकर्ता और नेता भी कई जगह ठिसुआल। जातपात का घात जगजाहिर है पर प्रतिघात भी संभावित। बात निरुत्साह की। कारण जो हो पर सच यही। एक कारण बदलाव की संभावना पर  विकल्पहीनता। दूसरा नीतीश कुमार से गुस्सा। तीसरा तेजस्वी से संशय, डर। यही सब। शायद। 

खास बात यह कि अब लालू प्रसाद का भूत चुनाव में असरदार नहीं दिख रहा। यही बिहार के चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता है। तेजस्वी और चिराग की सभा में जनसैलाब के भी अलग संकेत दिख रहे हैं। इस चुनाव में युवाओं की नई फौज भी है।

बात यदि मुद्दों की करें तो बेरोजगारी, रेलवे निजीकरण, पिछले सालों में कम जॉब देने इत्यादि मुद्दों को लेकर कंपटीशन की तैयारी करने वाले तथा नौकरी की उम्मीद में फॉर्म भरने वाले युवाओं में गुस्सा है। यह असरदार भी हो सकता है। नियोजित शिक्षकों और अन्य कर्मियों की नाराजगी भी सरकार से जबरदस्त है। शिक्षक बहाली में जिस तरह से पंचायतों में गोल गोल घुमाने और सो दो सो जगह आवेदन देने का नियम सरकार ने बनाया उसे भी युवा काफी गुस्से में है। हालांकि रोजगार मतलब स्वरोजगार भी बताया जा रहा, पर विकल्प नहीं। पलायन बढ़ गया। कोरोना में पैदल घर आना और क्वारंटाईन सेंटर की कुव्यवस्था। राहत राशि का बंदरबाट। शराबबंदी की असफलता। गांव गांव तस्करों का नया गिरोह तैयार होना।  सरकार के विरोध में जा सकता है। 

सरकार के पक्ष में शुरुआत के 5 सालों के कार्यकाल में किए गए सड़क, पानी, बिजली, अपराध पे लगाम इत्यादि उपलब्धि प्रमुखता से है। अस्पतालों की व्यवस्था में सुधार पहले कार्यकाल के वनिस्पत तीसरे कार्यकाल में कुछ ज्यादा नहीं रहा। भवन बने परंतु या तो डॉक्टर की कमी रही या डॉक्टर की ड्यूटी पर नहीं होना रहा। सब असफलता है।

नलजल, नाली गली, कुशल युवा से प्रशिक्षण, महिला आरक्षण सकारात्मक है।  जाति अपराधियों का बर्चस्व। जातीय नरसंहारों का दौर, नक्सलियों का आतंक, जर्जर सड़कें, अपहरण उद्योग, गायब बिजली, बदहाल अस्पताल, बहुत लोग इसे आज भी नहीं भूले हैं।

राजनीति बरगलाने की नीति को ही कहते हैं। पिछला वर्ष स्लोगन था झांसे में नहीं आएंगे परंतु इस बार सभी के स्लोगन बदल गए हैं। जैसे कि लालू प्रसाद यादव पिछले सभाओं में बाहुबली अनंत सिंह को लेकर सभी मंचों से हकड रहे थे। बैकवर्ड-फारवर्ड कर दिए। आज वही अनंत सिंह उनकी पार्टी से उम्मीदवार है। पिछली चुनाव में नीतीश जी लालू जी से साथ चुनाव में थे, सरकार बनी, इस चुनाव वही लालू प्रसाद फिर से खलनायक हो गए। पिछले चुनाव में सभी जगह लालू प्रसाद दिखाई देते थे। इस बार पार्टी के चुनावी पोस्टर से भी गायब है। पिछले चुनाव में अगड़ा पिछड़ा में विभेद की बात होती थी इस चुनाव में तेजस्वी यादव सवर्ण को साथ लेकर चलने की बात सभी मंच से कर रहे हैं। हालांकि टिकट नहीं ही दिया। (खास के भूमिहार को)। पिछले चुनाव में कोई सेंधमारी नहीं थी। इस बार जदयू के खजाने में लोजपा की सेंधमारी है। पिछले चुनाव में गठबंधन क्लियर कट था। इस बार गठबंधन में गांठ है। भाजपा-लोजपा, लोजपा-भाजपा, यह स्लोगन जमकर चल रहा है। सवर्ण के बीच बहस में तेजस्वी है। दो लोग जंगल राज कहता है तो एक उसे बीती बात। अतिपिछड़ा वोट बैंक नीतीश जी का आधार। 


लोकतंत्र में सब कुछ संभावित होता है। निश्चित कुछ भी नहीं है। बिहार के चुनाव में विपक्ष ने कन्हैया कुमार का जानबूझकर इस्तेमाल नहीं किया। अगर किया जाता तो और बेहतर होता। चिराग पासवान, तेजस्वी यादव युवा विकल्प बिहार में दिखने लगे बाकी सब चुनाव के बाद दिखेगा। आशुतोष, पुष्पम प्रिया बिहार की राजनीति में नवांकुर है। समय लगेगा। हल्का हल्का ही सही। भय और संशय के बीच इस बात बिहार में जातीय विभेद का गांठ खुल रहा है। बाकी सब चुनाव परिणाम तय करेगा।

19 अक्तूबर 2020

राम नाम का टहल है, कासा, मलमल, पीतल है!! गांव के खिलौने का स्वर्ग चला जाना..


(सोंच रखा था, सोशल मीडिया पे दुख सांझा न करूँगा, पर रह न सका.)

सुराज दा! बच्चों से लेकर बड़ों तक, सभी के लिए उनका यही नाम था। राम नाम का टहल है, कासा, मलमल, पीतल है!! यही उनका मंत्र था। यह आवाज अब बभनबीघा गांव की गलियों में नहीं गूंजेगी।


अचानक से ग्यारह दिन पूर्व सांप के काटने से उनकी मौत हो गई। वे 70 वर्ष के थे। मैं उनको बचा नहीं सका। वह मेरे अभिभावक और धर्म पिता थे। 2 वर्ष की उम्र से ही पाल-पोस कर जवान किया। शरीर का एक एक रोवाँ उनका कर्जदार है। जवान होने तक, हर रात उनके साथ ही भोजन ग्रहण किया। अपने हिस्से का दूध डांट कर भी मुझे पिलाते रहे। निसंतान होते हुए भी इस बात का दुख उनको कभी नहीं हुआ 

"बबलुवा हमर बेटा है।" जैसे मैं ही प्राण। सभी जगह डंके की चोट पर यही कहते रहे पर मैं पुत्र धर्म का निर्वाहन अंतिम समय में नहीं कर सका।  इससे पहले ही वे कूच कर गए। फुआ तो खैर कुछ दिन सेवा करने का मौका भी दी, इन्होंने वह भी नहीं दिया। 

पिंकू ने फोन किया। सुराज दा को सांप काट लिया। तत्काल गाड़ी लेकर पहुंचा। शेखपुरा मृगेंद्र बाबू के पास लेकर गया पर रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया।

एक फक्कड़ आदमी। सुबह से शाम तक घुमंतू। गांव में ही घूमते थे । इनके निधन की खबर सुनते ही सभी जाति के लोग दौड़े चले आए  बुजुर्गों ने कहा कि गांव का एक खिलौना चला गया। हां, गांव का खिलौना ही थे।  किसी ने व्यंग कर दिया तो उनको उसे तरह-तरह की गाली सुननी पड़ती थी पर जिसे यह गाली देते थे वह भी खुश हो जाता था। निश्चल भाव से। किसी को नहीं छोड़ते।

गौ सेवा में प्राण

"बेटा आज गईया खाना नै खा रहलै। लगो है मन खराब है। आज गईया कम दूध देलकै। अबरी हमर लक्ष्मी (गाय) के हरियरी नै नेमन हौ। बस गाय, गाय।"

एकाकी जीवन का एकमात्र सहारा। क्या सुराज बाबू क्या हाल-चाल ? यह कहते हुए गाय को जब भी पुकारते थे तो गाय भी सर उठा कर अपना जवाब देती। निःशब्द संवाद। वहीं समझते। 

"कई बार कहा मेरे साथ रहिये। कहते, बेटा जबतक देह चलो हौ, चले दे। गईया के सेवा करे दे। गिर जैबौ त करीहें।" दो साल पहले जबरदस्ती पुरानी गाय को बेचकर दूसरी गाय खरीदने पर मुझे विवश कर दिया था।


पिछले एक- डेढ़ साल से परेशानियों से पीछा नहीं छूट रहा। ऐसे जैसे, सोना को छू लूं तो मिट्टी हो जाये। मां का निधन डेढ़ साल पहले हो गया। मेरे आंख मूंद कर विश्वास से बच्चे का जीवन तबाह हो जाना। फिर तीन माह पहले पिताजी का निधन हो जाना और अब अभिभावक तुल्य धर्म पिता का चला जाना।  असह्य दुखदायी।

परंतु जीवन के पांच दशक की यात्रा में धैर्य का दामन नहीं छुटे यही सीखा है। "धीरज, धर्म, मित्र और नारी! आपद काल परखिए चारी!" ईश्वर शायद परख रहें हो। 

डम डम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा।
कजरा मोहब्बत वाला, अंखियों में ऐसा डाला, सबसे फेवरेट गीत उनका था...बस जीवन यात्रा के प्रवाह में गुरु के संदेश से बगैर प्रतिरोध, बहते जाना है...सतत..