25 जुलाई 2018

मॉब लिंचिंग

मॉब लिंचिंग
(अरुण साथी)

हत्यारा वही नहीं
जिसने पत्थरों से
कूच कूच कर
मार दिया
आदमी को

हत्यारा वह भी है
जिसने बहते लहू
को चंदन बनाया
माथे पे लाल
टीका लगाया

हत्यारा वह भी है
जिसने रक्त सज्जित
महिषासुर को
फूल-माला पहनाई
गले लगाया

हत्यारा वह भी है
जिसने काफिरों की
हत्या पे मुस्कुरा कर
खामोशी ओढ़ ली
और स्वधर्मी हत्या पे
चीखा-चिल्लाया
आंसू बहाया
मानवता की हत्या बताया

तथाकथित छद्म
सभ्य समाज में
हम सब हत्यारे
मिल जुल कर रहते है
अपने अपने धर्म के
हत्यारे को सही कहते है

आओ आओ
हमसब हत्यारे
मानवता की
हत्या का
जश्न करते है

हम तुम्हारी
तुम हमारी
हत्याओं को
गलत कहते है

24 जुलाई 2018

दलित और गरीबी

भूख की तस्वीर

(शादी समारोह से बचा हुआ खाना लेकर आते बच्चे..)

जय भीम का नारा देकर दलितों की राजनीति करने वाले वैसे लोग जो मर्सिडीज-बेंज का मेंटेन करते हैं और करोड़ों-अरबों में खेलते हैं उनके लिए यह तस्वीर चुल्लू भर पानी में डूब मरने की है। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने आरक्षण का प्रावधान इनके लिए किया था। यह बच्चे शादी समारोह में बचे हुए खाने के लिए लेकर अपने घर जा रहे हैं।

सभ्य समाज के माथे पर भी यह एक कलंक है परंतु सबसे अधिक बड़ा कलंक उनके माथे पर है जो बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के दिए आरक्षण के आधार पर आज बुलंदी पर हैं परंतु इनका हकमारी कर रहे हैं।

आरक्षण का असली हकदार यही लोग हैं। सबसे अधिक दलितों में गरीबी मुसहर जाति में ही है परंतु आरक्षण की मलाई खाने वाले बड़े बड़े करोड़पति दलित नेता, दलित अफसर और अन्य तरह के लोग आरक्षण को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। आरक्षण की बात हुई नहीं कि उनकी तलवारें निकल जाती है। सब अपने स्वार्थ की लड़ाई लड़ रहे हैं। गरीब की भलाई की लड़ाई कोई नहीं लड़ने के लिए तैयार हैं।

यह तस्वीर कलंक तो हमारे समाज के माथे पर भी है जो शादी-समारोह और अन्य समारोह में लाखों खर्च कर देते हैं और अनाज को बर्बाद करते हैं।

कहीं भूख की बेहिसाब जिल्लत है तो कहीं शान ओ शौकत की बेहिसाब दौलत है। असमानता की खाई बहुत बड़ी है परंतु अपने देश में आज समानता की बातें कहां होती है। बातें तो गाय, मंदिर-मस्जिद की हो रही है। भूख और रोटी हाशिए पर है! दोषी हम हैं दूसरा कोई नहीं...

आरक्षण गरीब को मिलना चाहिए जाति को नहीं। बाबा साहब ने शायद यही सपना देखा होगा परंतु वोट बैंक की राजनीति में आज गरीबी का कोई महत्व नहीं, महत्वपूर्ण वोट बैंक है।

इन सब परिस्थितियों के लिए हम किसी एक नेता को जिम्मेवार तो नहीं ठहरा सकते परंतु वर्तमान में जो केंद्र की सरकार है उनके लिए एक शब्द विरोध में लिखना भी जहमत मोल लेना है। इसलिए कौन आफत मोल लेगा, पता नहीं कौन पीट-पाट देगा!! देशद्रोही कहके!!

जय भीम!! जय भारत!!

18 जुलाई 2018

हलाला बनाम बलात्कार

हलाला बनाम बलात्कार
(अरुण साथी)

पिता समान ससुर से
सेक्स की बात को
मजहब के आड़ में
हलाला बता
सही ठहराते हो

हो शैतान
और तुम
मुल्ले-मौलवी
कहलाते हो

और
हलाला रूपी बलात्कार
का विरोध करने
वाली एक महिला से
भी डर जाते हो

हद तो यह कि उसे
शरीया का हवाला देकर
सड़े हुए अपने
धर्म से निकालने का
फतवा सुनाते हो

और तो और
इन शैतानों के साथ
देने वाले
खामोश रहकर जो
मुस्कुराते हो
तुम भी क्यों
जरा नहीं लजाते हो..

17 जुलाई 2018

अग्निवेश

#अग्निवेश
(अरुण साथी)







सत्तर साल के बूढ़े
प्रजातंत्र की
पगड़ी छीनी
भगवा कुर्ता फाड़ा
धोती फाड़ी
नंगा किया
और जमीन पे पटक
बूटों तले रौंद दिया

खून से सने
हिटलरी बूट का रंग
भी भगवा ही है
टहटह भगवा..

और उधर
उसी हिटलरी बूट
को पहन कर
कई लोग
अपने अपने घरों से
निकल कर
अट्टहास करने लगे..

हा हा हा...
हा हा हा...




03 जुलाई 2018

आधा दर्जन से अधिक किशोर कैदी शेखपुरा के ऑब्जरवेशन होम से फरार! बिहार का पहला किशोर कैदी गृह है शेखपुरा में..

शेखपुरा।

शेखपुरा के मटोखर दह में बिहार राज्य का एकमात्र और पहला ऑब्जरवेशन होम (पैलेस ऑफ सेफ्टी) से आधा दर्जन से अधिक किशोर  कैदी के फरार होने की सूचना है। इस सूचना के मिलते ही जिला प्रशासन सकते में आ गई है। प्रशासन से जुड़े एसडीपीओ अमित रंजन, अनुमंडलाधिकारी राकेश कुमार, बाल सुधार पदाधिकारी सहित बड़ी संख्या में पदाधिकारी ऑब्जरवेशन होम पहुंच गए हैं।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस ऑब्जरवेशन होम से रात्रि में आधा दर्जन से अधिक बच्चे फरार हो गए हैं। सूत्र बताते हैं कि फरार होने वाले बच्चों की संख्या 9 है परंतु इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो रही। मौके पर पहुंचे अधिकारी बच्चे किस तरह फरार हो गए इसकी छानबीन कर रहे हैं। इस ऑब्जरवेशन होम में बिहार राज्य के कई जिलों से कोर्ट के द्वारा चिन्हित कर आपराधिक किशोर युवकों को भेजा जाता है।

18 वर्ष से कम के किशोर कैदी को इस ऑब्जरवेशन में रखा जाता है जिनके ऊपर आपराधिक मुकदमे चल रहे होते है। किशोर कैदियों के फरार होने पर जिला प्रशासन काफी सकते में है और हलचल मच गई है। अधिकारी मामले की छानबीन में जुटे हुए हैं अभी तक फरार होने से संबंधित साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं।

02 जुलाई 2018

डरना होगा!! जमीन के नीचे पानी नहीं है। आम आदमी, किसान परेशान है..डेंजरस जोन में है हम..


शेखपुरा।

डरना होगा! वाटर लेवल 15 से 30 फीट तक नीचे चला गया है। चापाकल 90% तक फैल हो गया है। खेती के लिए बोरिंग से पानी नहीं निकल रहा। किसान 10 फीट 20 फीट गड्ढा करके भी मोटर लगा रहे हैं पर बोरिंग से पानी निकलने का नाम नहीं ले रहा। यह डरावनी तस्वीर बिहार के शेखपुरा जिला की है। इसके आसपास के पूरे इलाके की यही स्थिति है। पिछले चार-छह वर्षों से जम के बारिश नहीं हुई है। एक सप्ताह का झपसा देखना युग होगा।

तालाब भर कर बन गया पार्क

गांव से लेकर नगर तक के तालाब को भरकर कहीं पार्क बना दिया गया है तो कहीं उसे भरकर उसका नामों निशान मिटा दिया गया है। नहरों पर नगर में नाला बना दिया गया है। वृक्षों का नामो निशान मिट गया है। पहाड़ भी ध्वस्त हो गया है। पर्यावरण का असंतुलन सबसे पहले पानी की मार लेकर ही आया है। पानी का जलस्तर बहुत नीचे चला गया है।

नहीं गिर रहा धान का बिचड़ा

किसान त्राहिमाम कर रहे हैं। धान का बिचड़ा मृगशिरा नक्षत्र में ही गिराया जाता था। आद्रा नक्षत्र खत्म होने वाला है पर अभी तक धान का बिचड़ा किसान गिराने में असमर्थ है। थोड़ी बहुत बारिश हुई है जिससे खेतों में बस नमी मात्र है। बिना बोरिंग से पानी निकले धानका बिचड़ा नहीं गिर सकता। किसान माथा ठोक रहे हैं पर यह गंभीर स्थिति यह आने वाले विकट स्थिति को दर्शा रहा है।

जन चेतना सबसे जरूरी

इसके लिए जन चेतना सबसे जरूरी है। परंतु हम आम आदमी तब तक सतर्क नहीं होते जब तक हमें भय पैदा नहीं होता और भय पैदा करने के लिए सबसे पहले सरकार को आगे आना होगा। कानून का डंडा चलाना होगा। जैसे भी हो इस भयावह स्थिति से निपटने के लिए कुछ ना कुछ तो करना होगा। यह डरावनी स्थिति बहुत डरावनी है।

बूंद-बूंद पानी बचाने की बात

कुछ लोग पानी बर्बाद नहीं करने की बात करते हैं। बूंद-बूंद पानी बचाने की बात करते हैं परंतु हमारी चेतना इतनी गहरी नहीं है कि हम बूंद-बूंद पानी बचा सके। सरकारी वाटर सप्लाई का पानी हम सड़कों पर खुलेआम बहते हुए देखते हैं। सबसे गहरी बात यह है कि वाटर हारवेस्टिंग अभी तक हमने नहीं सीखी है। वाटर हारवेस्टिंग से ही पानी का जलस्तर बढ़ सकता था परंतु ना तो गांव घर में गड्ढे हैं जहां पानी अटके ना ही शहरों में क्या होगा पता नहीं।

पुरखे ही हमसे ज्यादा आधुनिक, दूरदर्शी और वैज्ञानिक थे।

भले ही हम बात करते हो आज आधुनिक और वैज्ञानिक युग की परंतु हमारे पुरखे ही हमसे ज्यादा आधुनिक, दूरदर्शी और वैज्ञानिक थे। गांव में बड़े बड़े तालाब, खेत खन्धों में बड़े-बड़े अहरे पहले प्राथमिकता में थी अब वे खत्म हो गए। सरकारी अमले इसको गंभीरता से नहीं लेते। जिनका दायित्व है वैसे अधिकारी सूचना मिलने पर भी आंखें मूंद कर रखते हैं। भयावह स्थिति बहुत ही खतरनाक!!