28 जून 2018

हाय दैय्या!! भैयाजी बिहार से रूठ के दिल्ली भाग गए है..


सुशासन बाबू ने कितना दुखी किया है क्या कहें!! अब बोलिए कोई अपना बिहार छोड़कर चला जाएगा और आना ही नहीं चाहेगा तो दुख तो होगा ही! अपने भैया जी को ही देख लीजिए!! बिहार छोड़कर दिल्ली चले गए हैं। अब आने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। कहते हैं कि ड्राइ बिहार में आकर क्या करें। जहां जिंदगी में आनंद नहीं है वैसे क्षेत्र में क्या जीना।

भैया जी कहते हैं कि शास्त्रों के अनुसार जीवन आनंद, उत्साह, उमंग, तरंग में है और बिहार में इस पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह घोर अधार्मिक कार्य है।

भैया जी इससे बहुत दुखी है। वह बिहार आना ही नहीं चाह रहे। बहुत लोग समझा बुझा रहे कि बिहार आ जाओ पर भैया जी आध्यात्मिक ज्ञान देने लगते हैं। भैया जी कहते हैं कि शास्त्रों में भी कहा गया है कि जीवन को आनंद के साथ ही बिताना चाहिए। हंसता, खिलखिलाता जीवन ही सफल जीवन है। अब बिहार में ड्राय बिहार बना दिया गया है। न मय है न मयखाना, तो हंसता-खिलखिलाता, तरंग-उमंग कहां से बिहार में मिलेगा। इसलिए भैया जी बिहार नहीं आना चाहते। अब इनको कौन समझाए।देखिए कब बिहार आते हैं!!

वैसे मैंने कहा, भैया जी बिहार में मय तो उपलब्ध ही है। होम डिलीवरी। पर भैया जी कहते हैं कि मय की वजह से आनंद कहां आ पाता है पैसे भी खर्च होते हैं और आजीवन का आनंद ही नहीं आए तो क्या फायदा वैसे बिहार में रहने से।

मैंने कहा भैया जी आप के बगल में बाबा भोला का दर्शन स्थल भी तो आजकल बहुत प्रसिद्ध हो गया है। लोगों की धार्मिक भावना एकदम उमड़ पड़ी है। भोलेनाथ की जय जय लगातार करने के लिए पहुंच जाते हैं। दशकों तक जो कभी नहीं गए वह भी आजकल बाबा की नगरी में सेल्फी लेते देखे जाते हैं। कभी-कभी माता के दरबार में रजरप्पा पहुंच जाते हैं। आप क्यों उदास होते हैं। आ जाइए। व्यवस्था तो हर जगह होती है। भैया जी इतना सुनते ही भड़क गए। 5 घंटा 6 घंटा यात्रा करके पोरे पोरे दर्द करेगा कि आनंद आएगा! तुम भी एक दम मूर्ख के मूर्ख ही रह गए हो। मैंने भी कहा कि हां भैया जी आपकी बात में तो दम है।
ना मय है, ना मयखाना है। बिहार में आया कैसा जमाना है।।

21 जून 2018

योग यात्रा और जीवन

#Selfi on #Yoga #गाँव के #खेत से लाइव

साल, दो साल से #योग #ध्यान छूट गया। जीवन की आपाधापी में जब रोजी-रोटी, घर-परिवार, बाल-बच्चे की चिंता होने लगती है अपनी चिंता चूक ही जाती है। एन्ने देखो, ओनने अंधार, ओनने देखहो एन्ने अंधार। जीवन मे सबकुछ एक साथ कोई साधक ही साध सकता है या फिर सम्पन्नता प्राप्त व्यक्ति।

मुफ़लिसी के यात्री को हमेशा रोटी पहले दिखती है बाकी सब बाद में। खैर!!

योग से बस्ता स्कूल जीवन से ही रहा है। बभनबीघा हाई स्कूल में कामदेव सर करांची की छड़ी लेकर जबरदस्त योग करवाते थे। उस समय का सीखा योग जीवन भर याद है। बहुत दिन किया भी। बाद में आचार्य ओशो की पुस्तकों के सानिध्य से ध्यान का भी महत्व समझा। व्यक्तिगत अनुभव बहुत उत्साहित करने वाला रहा। योग और ध्यान नियमित रूप से कुछ दिन ही करने पे सकारात्मक परिणाम मिलने लगता है। कमर दर्द और सायनस की समस्या को योग से ही ठीक किया है। तनाव मुक्ति का रामबाण है योग।

योग वास्तव में अमृत है। बस हम नियमित करें। हालांकि अब योग राजनीतिक भी हो गया है। हिन्दू और मुसलमान हो गया है। सब राजनीतिक बातें है। योग सबके लिए है। इसे धर्म से बांधना मनुष्यता को कलंकित करना है।

खैर! विश्व योग दिवस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत की गौरव और गरिमा में जोड़ा गया एक सितारा है। व्यवसायिक ही सही बाबा रामदेव ने भी जन जन तक पहुंचाया है। सबसे बढ़कर। मेरे पुराने जिले मुंगेर के बिहार योग विद्यालय का योगदान अतुलनीय है। बस इनका योग आम लोगों की पहुंच में नहीं है।

देखते है आज से शुरू किया गया योग कितने दिनों तक नियमित रख पाता हूँ...

04 जून 2018

रामखेलावन चच्चा का वायरल टेस्ट

(व्यंग्य:अरुण साथी)

चच्चा रामखेलावन परेशान होकर पूछने लगे।
"आंय हो मर्दे ई वायरल की होबो हई!आझकल बुतरू सब बरोबर बोलो है!"

रामखेलावन चच्चा गांव के आदमी हैं। पुराने जमाने वाले। उनको क्या पता बेचारे को वायरल होना क्या है।

वायरल होना दरअसल नेक्स्ट जनरेशन का शब्द है। पता नहीं डिक्शनरी बनाने वालों ने इसे डिक्शनरी में स्थान दिया है या नहीं। दिया भी है तो इसकी परिभाषा क्या गढ़ी है। देख कर बताइएगा।

खैर, चच्चा रामखेलावन जब पूछ लिए कि वायरल होना क्या है तब मेरा भी माथा घूम गया। आप किसी बात को समझ भले ही लीजिए पर जब उसकी व्याख्या करने की बात आएगी तो माथा घूम ही जाएगा।

जैसे मेरी समझ में आज तक जीएसटी थोड़ा बहुत ही आया है। कोई पूछ ले तो बता नहीं सकता। ठीक वैसे ही जैसे वर्तमान प्रजा वत्सल राजा साहब के विकास पुत्रों के बारे में यदि कोई पूछ लें तो भक्तों का माथा भी चक्करघिन्नी हो जाता है। बस जबाब मिलेगा। सत्तर साल में विकास पैदा नहीं हुआ तो चार साल का बच्चा कहाँ दिखेगा। अभी पैदा हुआ है। पिता के आंचल में छुपा हुआ है। चलने लगेगा तो दिखेगा। कम से कम दस पंद्रह साल का हो तो जाने दीजिए।

सो। बेचारा चाचा को वायरल के बारे में समझाना पैदल हरिद्वार जाना बात बराबर। फिर भी माथा लगाया।

कहा, चाचा पहले के जमाने में गांव में एक मुहावरा हुआ करता था "जंगल में आग की तरह फैलना" आपने कभी देखा है जंगल में आग! जंगल में आग की तरफ फैलना! इसी मुहावरे का नेक्स्ट जनरेशन है वायरल होना! अपडेट वर्जन!

परिभाषा- जंगल में आग मुहावरे से खरबों गुना तेजी से जो फैले उसे ही  वायरल होना कहते है।

चाचा हमारा मुंह ताकने लगे। गजब! जंगल में आग की तरह फैल जाना और वायरल होना दोनों क्लोन हो गया। अच्छा दोनों सहोदर भाई जैसा। खैर एक ही बात में चाचा समझ गए और बोलने लगे

"मने कि गांव में जब कोय केकरो से फंसल रहो हल त उ बात जंगल में आग में तरह फैल जा हल! आ केकर माउग-बेटी केकरा से नैन मटक्का करो हो ई बात तो आऊ जल्दी लफुआ सब फैला दे हो। ई में जादे बात तो झुट्ठे सच्चे होबो हो। अउ एकरा में तो गंदे बात जादे फैलो हो..त ई मोबाइलबा वला वायरल भी गंदे गंदे वायरल होबो होतै!!"

चाचा एकदम्मे सही पकड़ लिए। उनको ई सब बात कभी अच्छा नहीं लगता। इसीलिए वे गांव के चौक चौराहा पे बैठना छोड़ दिए है। नेता मसुदन बाबू के दलान पर एकदम नहीं जाते। वहां भी बस सब गंदा गंदा झूठ सच उड़ाता रहता है। बोले " नेता के जे विरोधी होबो है ओकरा बदनाम करे ले एक से एक झूठ कथा कहो है!" आझ कल के बुतरू इस्मार्ट मोबाइल हाथ में ले के ही जलमो हे। टिपिर,टिपिर करो हे।

मैंने कहा चाचा "आपने सही पकड़ा है। जैसे कि अभी देखिए, जितने तेजी से निपाह वायरल नहीं हुआ उससे तेजी से उसके दुर्गुण, उसके फैलने के कारण और बचाव के फर्जी उपाय वायरल हो गया।

स्वाइन फ्लू हो या निपाह, यह सब कैसे वायरल होता है। सबके पीछे कभी कुत्ते, कभी मुर्गी, कभी सूअर तो कभी चमगादड़, मच्छर, कभी गधा, कभी बैल का हाथ होता है।

इसी तरह मोबाइल में जो वायरल होता है उसका भी संबंध इन्हीं प्रजाति के भाई-बंधुओं से है। अब ज्यादा क्या कहें। कम लिखना, ज्यादा समझना! यही तो समझदारी है अपने देश की! जे हिंन जे भारत..गन्हि महत्मा की जे..

01 जून 2018

आज भी है बंधुआ मजदूर

#बंधुआ_मजदूर #विदेसिया

विदेश गए मजदूर घर लौट रहे है। पलायन की कहानी यह तस्वीर कहती होगी। पढिये इसको को। यह पूरी की पूरी किताब है। कमाने के लिए पंजाब, गुजरात जाने वाले मजदूर विदेश अथवा देश जाना कहते है। सीजन ऑफ हो रहा है और मजदूर लौट रहे है।

आज भी मजदूर बिकते है। इसके कारोबार करने वाले मालामाल है। बोली लगती है। एडवांस देकर खरीद लिया जाता है। ज्यादातर मजदूरों की खरीद बिक्री करने वाले उनके अपने स्वजातीय है। करोड़ो का कारोबार है। मजदूर खून जला के कमाते है और कमीशन के रूप में उनके खून के सने कुछ पैसे इन कारोबारियों को मिलता है। इनको भी ठेकेदार कहते है या मेठ। मजदूर की बस्तियों में ये ठेकेदार अब फॉरच्यूनर गाड़ी से नजर आ जाएंगे..

खैर!
विकास बेटा तो झमाझम बुलेट ट्रेन पे चढ़ के स्मार्ट सिटी घूमिये रहिस है..अपुनका का है, मजे लीजिये हाइवे का। अउ राम राम जपिये..