30 जनवरी 2016

गोडसे का रक्तबीज

गोडसे रक्तबीज
***
जरुरी नहीं कि
भगवान सबको
सम्मति ही दें!

जरुरी नहीं
सबकी
विचारधारा
धार्मिकता
जातियता
सामान हो..

वैचारिक विभेद
प्रजातंत्र है
मानवीय है...

अमानवीय है
मतभेदों को
मारने की मंशा रखना 
या कि
मार ही देना..

गोडसे का रक्तबीज
कहीं मुझमें भी तो नहीं..
खोजो, पकड़ो, सोंचो..

(कोर्ट में हँसते गोडसे की तस्वीर देखकर)

27 जनवरी 2016

सड़क बुहारती भंगी स्त्री

सड़क बुहारती
भंगी स्त्री
बहुत अच्छी लगती है

उसकी ललाट पे सजी
बड़ी-बड़ी चमकीली बिंदी

उसके कानों में झूलते
बड़े-बड़े स्वर्ण झुमके

गलों में इठलाता
स्वर्ण माला
कमर पे करघनी

चमेली की तेल से चुपड़े
गुच्छेदार गुन्धें
फुदने लगे बाल

बड़े-बड़े छापे वाले
फूलदार साड़ी
उससे मैच करती
चोली कट ब्लाउज

बहुत अच्छी लगती है
उसकी अधरों पे
सदा-सर्वदा
बसती मुस्कान
उसकी शक्ति स्वरुपा
भुजाएं
हृष्ट-पुष्ट कमर
सुधड़-सुडौल बक्ष

और
सबसे अच्छी लगती है
उसका स्वाबलंबन ..



21 जनवरी 2016

रोहित वेमुला; एक आत्महत्या और कई सवाल...?

रोहित वेमुला; एक आत्महत्या और कई सवाल...?
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे छात्र नेता रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली और अपने पीछे कई अनुत्तरित सवाल छोड़ गया। इन्हीं सवालों के बीच उसे दलित छात्र होने को लेकर देश भर में राजनीति गर्मा गयी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी हैदराबाद पहुँच कर इस आग को हवा देने की कोशिश की, मायावती, केजरीवाल, लालू यादव समेत देश के तमाम दलों ने दलित छात्र में आत्महत्या पे प्रधानमंत्री से जबाब मांगते हुए पत्र लिख कर कार्यवाई की बात करने वाले मंत्रियों से इफ्तिफा की मांग की है।
दलित नहीं है वेमुला?
मीडिया में इस सवाल को आहिस्ते से किनारे कर दिया गया है। कई मीडिया रिपोर्ट बताते है की रोहित दलित नहीं है, ओबीसी है। रोहित का दाखिला सामान्य कोटे से हुआ है। कुछ का कहना है की उसके पिता ओबीसी और माँ दलित है। इस सवाल को दरकिनार क्यों और कैसे किया गया, सबसे बड़ा सवाल यही है। सोशल मीडिया पे कुछ लोग पूछ रहे हैं कि रोहित दलित नहीं होता तो क्या इतना हंगामा होता..? एक सवाल यह भी है।
यूनिवर्सिटी से नहीं सिर्फ होस्टल से निकाला?
यह भी एक बड़ा सवाल है जिसे मुख्य मीडिया ने दरकिनार कर दिया और राहुल को यूनिवर्सिटी से निकले जाने की खबर प्लांट होती रही। वीसी अप्पा राव का कहना है की छात्र नेता राहुल को यूनिवर्सिटी से नहीं निकाला गया, बल्कि उसे होस्टल से निकाला गया और प्रशासनिक भवन में आने से प्रतिबंधित किया गया। 

छात्र संगठनों का टकराव और हाई कोर्ट का हस्तक्षेप
दरअसल इस पुरे मामले में आई खबरों के टुकड़े जोड़ने पर जो तथ्य निकल कर आती है वह यह भी है यह मामला बीजेपी के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् और रोहित वेमुला का छात्र संगठन अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन के आपसी विवाद से भी जुड़ा है। अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन को परोक्ष रूप से हैदराबाद से सांसद ओबैसी का समर्थन था। 
दरअसल एवीबीपी के छात्र नेता की पिटाई और जानलेवा हमला का आरोप रोहित और उसके साथियों पे लगा और इसका मुकदमा हाई कोर्ट ने चला। वीसी अप्पा राव कहते है कि हाई कोर्ट ने इस मामले में कार्यवाई का जबाब माँगा की तो रोहित समेत कैम्पस में राजनीति करने वाले पांच अन्य उसके साथियों को सिर्फ होस्टल से निकाल कर कार्यवाई होने की बात सूचित कर दी। इस सबसे बड़े सवाल को भी गौण कर दिया गया!

दलित बनाम नहीं है मामला, बीजेपी
इस मामले में बीजेपी शासित केंद्र सरकार के दो मंत्री छात्र आंदोलन में निशाने पे है। एक स्थानीय सांसद बंडारू दत्तात्रेय और दूसरे स्मृति ईरानी। दोनों पे आरोप है कि उन्होंने विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर कार्यवाई की बात कही। दत्तात्रेय के पत्र में इस बात का जिक्र है राष्ट्र विरोधी गतिविधि करने वाले छात्रों पे कार्यवाई होनी चाहिए। इसी को लेकर बबाल हो रहा है। दत्तात्रेय का कहना है कि उन्होंने रूटीन में इस कार्य को तब किया जब एक छात्र संगठन ने आवेदन देकर शिकायत की। यही तथ्य रखती हुयी ईरानी कहती है कि यह दलित बनाम अदर्स का मामला नहीं है। ईरानी प्रेस के सामने सरे तथ्य रखे। पर एक बड़ा सवाल यह भी कि क्यों छात्रों कि लड़ाई में केंद्र सरकार का हस्तक्षेप हुआ, यह विवाद छात्र संगठन का था तो पत्र क्यों लिखा गया..?

शहीद याकूब मेनन और बीफ पार्टी
दरअसल रोहित का संगठन अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन मुम्बई बम ब्लास्ट में याकूब मेनन को फंसी दिए जाने का विरोध कर रहा था। उसने इसके विरोध में कई आंदोलन किये। कहा जाता है कि पीछे से ओबैसी का सह भी था। उसने अपने होस्टल का नाम याकूब मेनन मेमोरियल रख दिया। वही बीफ विवाद पे कथित तैर पे उसने विश्वविद्यालय में बीफ पार्टी भी रखी। इन्ही विवादों में एवीबीपी छात्र संगठन से विवाद हुआ। मारपीट हुयी। इन्ही कारणों से रोहित की गतिविधियों को राष्ट्र विरोधी बताया जा रहा है। इस मुख्य मुद्दे को भी गौण कर दिया गया और बहस का मुद्दा बनने नहीं दिया गया।

दलित बनाम गौर दलित से बड़ा है मामला
रोहित प्रकरण को दलित बनाम गैर दलित बना कर मेन स्ट्रीम मीडिया और राजनितिक दलों ने लड़ाई को कमजोर किया! यह पूरा मामला दो विचारधारा के टकराव का है। दक्षिणपंथी और वामपंथी (या सेकुलरवाद)। लड़ाई इसी बात की है और यह एक बड़े आयाम पे लड़ी जानी थी पर रोहित ने आत्महत्या कर और इसे दलित बनाम बना कर छोटा कर दिया गया। हमें समझना होगा की देश के धर्मनिरपेक्ष छवि को खंडित होने नहीं दिया जायेगा और देश का मानस धर्मनिरपेक्ष है। पर हाँ, इसका मतलब यह भी नहीं कि हम राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हो जाये। या वैसे ताकतों के हाथों में खेलने लगें जो देश को तोडना चाहते है। छद्म धर्मनिरपेक्ष भी उतना ही खतरनाक है, जितना धर्मान्धता।

08 जनवरी 2016

बेटी की विदाई

आज एक नवजात कन्या का फेंक हुआ शव मिला और ह्रदय कारुणिक क्रंदन करने लगा..बेटी को कौन मार रहा है? क्या वह माँ-बाप और डॉक्टर मर रहे या दहेज़ लोभी हमारा समाज मार रहा है..हमें सोंचना होगा...? (अरुण साथी, रिपोर्टर, बरबीघा, बिहार)

द्रवित होकर निकले चंद शब्द..

बेटी की विदाई
***

बेटी तुम मत आना
इस दुनिया में!
यहाँ सिर्फ तुम्हरी
मूर्ति की पूजा होती है..

क्या करोगी आ कर?
दहेज़ के लिए मार दी
जाओगी,
या फिर
निर्भया की तरह
रौंद दिया जायेगा
तुम्हारा अस्तित्व...

यहाँ मैं ही हत्यारा हूँ
और मैं ही हत्या का
आलोचक भी..

मैं ही बताऊंगा
एक बेटी को मारना
महापाप है,
ऐसे लोग समाज के
अभिशाप है..
और मैं ही दहेज़
लेकर शान दिखाऊंगा,
मैं ही शान में शामिल हो
तुम्हारे लहू से सने,
तुम्हारे मांस-लोथड़े से बने
पकवान खाऊंगा..

यहाँ
हत्यारा भी मैं हूँ
और
न्यायाधीश भी मैं ही..

मत आना बेटी तुम
मत आना...

बिहार के सुपर सीएम लालू प्रसाद यादव


बिहार की राजनीती में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की सक्रियता  ने बिहार की सियासी तापमान बढ़ा दी है। सबसे अधिक सियासी पारा लालू प्रसाद यादव के द्वारा बिहार के सबसे प्रमुख अस्पताल इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान का औचक निरिक्षण किये जाने के बाद बढ़ गया है। अस्पताल के निरिक्षण के बाद विरोधी दलों ने हमला बोल दिया है। बीजेपी नेता सुशील मोदी के सवाल पूछते हुए कहा कि लालू यादव किस हैसियत से सरकारी अस्पताल का निरिक्षण किया। इसका जबाब दे। इससे साफ होता है की बिहार की सत्ता वही चला रहे है। लालू प्रसाद एक सजायाफ्ता है और वो ऐसा करके क्या सन्देश दे रहे है इसका जबाब नितीश कुमार को देना चाहिए।

उधर लालू यादव ने जबाब देते हुए कहा की वो एक निजी अस्पताल में अपने एक मित्र को देखने गए थे और लौटते हुए आईजीआईएम्एस चले गए और मरीजों का हालचाल जाना। इसमें कोई बुराई नहीं है।
वहीँ स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव में कहा की उनके पिता अस्पताल देखने गए इसमें कोई बुराई नहीं है।

उधर हेल्थ विभाग में चल रहे हलचल में  दवा दुकानों में छापेमारी को लेकर भी तरह तरह की चर्चाएं है। ड्रग्स विभाग के द्वारा दवा दुकानों और गोदामों में लगातार छापेमारी की जा रही है। सरकार इसके पीछे अवैध दवा की बिक्री पे रोक को लेकर ऐसा करने की बात कह रही है पर दवा व्यपारियों में अंदर ही अंदर इस बात को लेकर चर्चा काफी गर्म है की इसी बहाने उगाही का काम किया जा रहा है।

जिस तरह पटना के कुछ बड़े दवा व्यपारियो के यहाँ छापे पड़े और चौबीस घंटे तक एक एक चीज को खंघाला गया उससे इस बात को बल भी मिलता है। बताया जाता है की एक व्यपारी के गोदम में जब कुछ नहीं मिला तो एक्सपायरी भेजने के लिए रखी गयी दवा को ही आधार बना कर मुकदमा कर दिया गया।

इस तरह की छापेमारी पटना के साथ साथ सभी जिलों के किया जा रहा है। उगाही की बात कितनी सच और कितनी झूठ है यह तो लेने वाले और देने वाले ही जानते होंगे पर आम चर्चा इसी की हो रही है की नयी सरकार व्यपारियों को इसलिए तंग कर रही है कि वे उसके वोटर नहीं है। नवादा सहित कई जिलों में राजद नेता इस मामले को मैनेज कर रहे है जिससे इस चर्चा को बल भी मिलता है।

खैर, लालू प्रसाद के बढे गतिविधि सिर्फ विरोधियो  के ही नहीं अपनों के भी माथे पे बल ला दिए और लालू प्रसाद के जानकर बताते है को इसी रास्ते लालू प्रसाद बिहार पे अपनी पुराणी पकड़ मजबूत करना चाहते है। अब देखना होगा की नितीश कुमार से इतर लालू प्रसाद के सुपर सीएम होने के दावों  को भी हवा निकल रही है।

06 जनवरी 2016

यमलोक में लोकतंत्र

यमलोक में लोकतंत्र

भूलोक पे लोकतंत्र की वैश्विक सफलता को देखते हुए देवलोक ने भी इसे अपनाने का निर्णय लिया। प्रयोग के तैर पे यमलोक में इसे लागू कर दिया गया। चित्रगुप्त और यमदेव परेशान! मृत्युलोक से आने वालों का स्वर्ग या नरक लोकतान्त्रिक तरीके से डिसाइड होने लगा। इसका कुप्रभाव आम आदमी पे पड़ा। गरीब की हकमारी होने लगी। पूण्य का योग उसे स्वर्ग का हक़दार बता रहा पर यममत उसके विरुद्ध।  नेता टाइप आत्मा यममत को तिकड़म से अपने पक्ष में करके स्वर्ग सरक लेते।

शनै शनै यमलोक में चुनाव का समय आ गया। यमराज के सिंघासन ले कब्ज़ा करने बड़े बड़े भूप सब सामने आये। लूट-मार करने वाला, दंगा-फसाद करनेवाला, आतंकवादी और तानाशाह, सभी रेस में लग गए। स्वर्ग और नरक के संयुक्त सम्मलेन में जार्ज पुश नमक एक आत्मा ने अपनी प्रबल दावेदारी पेश करते हुए रासायनिक हथियार के बहाने कई देशों के विनाश की अपनी उपलब्धि गिनाई। फिर दादेन ने यमराज पद के खुद को सरबश्रेठ बताते हुए मानवीय नरसंहार की अपनी क्षमता का वर्णन किया। इस रेस में कई धर्माचार्य शामिल होते हुए अपनी मधुरवाणी से धार्मिक उन्माद फैला कर कराये गए दंगे का सजीव चित्रण किया। फिर किसी ने इसके लिए सबसे उपयुक्त नाम स्वघोषित खलीफा का सुनाया जो धर्म ले नाम पे नरकपिचास से भी ज्यादा क्रूर मौत धरती पे दे रहा है।

फिर आर्यवर्त नामक देश के नेताओं को जब यमराज बनने के इस सुअवसर का पता लगा तब कई असमय ही निकल लिए। नेताओं ने कहा की लोकतान्त्रिक तरीके से प्राणहरण कला में वे प्रांगत है। उन्होंने धर्म, जाति, क्षेत्रवाद सरीखे कई प्राणघातक हथियारों का वर्णन सौदाहरण प्रस्तुत किया।

और अंत में उन्होंने कूटनीतिक प्रहार का प्रयोग करते हुए एलान किया की यदि वो यमराज बने तो जाति के आधार पे आरक्षण लागू कर देंगे। जाति की बहुलता स्वर्ग का आधार होगा, पूण्य नहीं।

इसी बीच यमराज मृत्युलोक से सत्यवान नामक एक युवक का प्राण हरने निकल गए। प्राण हर कर निकल रहे थे कि उसकी पत्नी सावित्री उनके पैरों में लटक गयी। चित्रगुप्त की सलाह से यमराज ने लोकतान्त्रिक नुस्खा अपनाया। कहा " बालिके, मैं जनता हूँ तुम्हारा पति सदाचारी, सत्कर्मी और सत्यवादी है। मैं इसके प्राण लौटा दूंगा पर इसके लिए तुम्हें अपने देश के संसद में सर्वानुमति प्रस्ताव पास करवाना होगा।" इतना कहते हुए यमराज मंद मंद मुस्कुराते हुए चले गए...

02 जनवरी 2016

स्वयं को नया करें-ओशो


आचार्य रजनीश "ओशो" कहते है, दिन तो रोज ही नया होता है लेकिन रोज नया दिन नहीं देख पाने के कारण हम बर्ष में कभी कभी दिन को नया देखने की कोशिश करते है। यह स्वयं को देखा देने की तरकीबों में से एक तरकीब है।

जिसका पूरा बर्ष पुराना हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है। नया मन जिसके पास हो उसका कोई दिन पुराना नहीं हो सकता है। नया मन हमारे पास नहीं है तो हम चीजों को नया करते है। जबतक जो नहीं मिला, नया होता है। मिलते ही पुराना हो जाता है।

जो स्वयं को नया कर लेता है उसके लिए कोई चीज पुरानी होती ही नहीं। भौतिकवादी चीजों को नया करता है और अध्यात्मवादी स्वयं को नया करता है।