31 मई 2010

चीरफाड़ पर विनोद जी का आलेख पढ़ने के बाद मेरी टिप्पणी'........पत्रकार अधोषित रूप से इस बात का पालन कर रहे कि सरकार के खिलाफ खबर नहीं लगेगी।

आपने  जिस  बात की चर्चा की है उसमें बहुत सच्चाई है। और यहां बिहार मे रहकर मेरे जैस लोग रोज रोज इससे रूबरू हो रहे है। पत्रकार अधोषित रूप से इस बात का पालन कर रहे कि सरकार के खिलाफ खबर नहीं लगेगी। इससे सम्बंधित एक बाकाया मैं सुनाना चाहूंंगा। राष्ट्रीय सहारा की बैठक में जब एक पत्रकार बंधू ने संपादक श्री हरीश पाठक से यह पूछ लिया कि नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ जब खबर भेजते है तो वह क्यों नहीं छपती तो आदरणीय संपादक महोदय खामोश हो कर इस तरह बगले झांकने लगे जैसे किसी ने उनकी चोरी पकड़ ली हो  और जब इस बात पर फिर से जोर दिया गया तो झुंझला कर बोले के इसके लिए प्रबंधक से बात करीए।
हम और हमारे साथी इसके भुग्तभोगी है और जानते है कि सरकार के खिलाफ खबर नहीं छपनी है। एक और बाकया मैं बताना चाहूंगा। मैं बिहार के शेखपुरा जिले से रिपाZेटिंग का काम करता हूं और आज से एक साल पहले पशु हाट के विवाद को लेकर कांग्रेसी नेता सुरेश सिंह कें पशु हाट के लाइसेंस को रदद कर जदयू नेता एवं अनन्त सिंह के भाई त्रिशुलधारी सिंह ने पशु हाट को अपने आदमी के नाम कर ली। इस प्रकरण में पूरा जिला पुलिस जानवर को पकड़ कर नये पशु हाट पर ले गई और जिसने इसका विरोध किया उसपर मुकदमा किया गया तथा मारपीट हुई हम सभी ने इस खबर को लगातार कितनी बार भेजा पर एक बार भी प्रकाशित नहीं किया गया। शेखपुरा जिला के बरबीघा-शेखोपुरसराय सड़क के किनारे पत्थर का टुकड़ा देने तथा सफेद पटटी बनाने का ठीका एक जदयू के चहेते को दे दिया गया बिना किसी टेण्डर कें 12 लाख का ठेका। इस समाचार को सभी अखबारो में भेजा गया पर किसी ने इसे प्रकाशित नहीं किया।
जदयू के एक नेता जी है जिनके अनुसार अब हमलोगेां बेकार अकड़ते है अखबार को ही मैनेज कर लिया गया है।
हां अभी कल ही एक बहुत ही बुरी खबर आई है एसएमएस के जरीए। साधना न्यूज चैनल के लिए मैं काम करता हूं और  कल से पहले सरकार के खिलाफ खबर नहीं ली जाती थी पर आज सरकार के खिलाफ खबर भेजने के लिए आशुतोष सहाय जी का एसएमएस  आया है लगता है चैनल का सरकार के साथ सौदा नहीं पटा और पटाने को दबाब बनाया जाएगा। क्या क्या लिखे। आठ साल से ग्रामीण क्षेत्र से समाचार प्रेशण का काम कर रहा हूं पर आज लगता है कि यह सब बेकार कर रहा। पहले जन समस्याओं को लेकर लड़ता था, नेताओं की पोल खोलता था, डाक्टर अस्पताल में नहीं इसके लिए समाचार लगातार भेजता था पर आज यह सब करने को मन नहीं करता पता नहीं शायद अब मुझे भी लगने लगा है कि किसी से दुश्मनी मोल लेकर  क्या मिलेगा, फयादा क्या होगा। इसी उधेरबुन मे आज कल जी रहा हुं।

30 मई 2010

और आखिर कर वह औरतखोर मारा गया...

और आखिर कर वह औरतखोर मारा गया...

पता नहीं मरने वाले के लिए इस तरह के शब्द का प्रयोग करना चाहिए या नहीं, पर कर रहा हूं । शनिवार की सुहानी सुबह के बाद एक खबर ने जिन्दगी के विविध रंगों में से एक बार फिर से स्याह रंग से रूबरू कराया। सुबह सात बजे के बाद गांव में खबर आई कि सुबोध को किसी ने मार कर फेंक दिया। इस खबर के  बाद बहुत से लोग गांव से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोसरा गांव चल पड़े जहां सुबोध की लाश फेंकी हुई थी और इन लोगों में मैं भी शामील था। कोसरा जाने के बाद एक जिन्दगी के दर्दनाक पहलू से सामना हुआ। सुबोध कुमार की लाश कोसरा गांव में खंधे में फेंकी हुई थी और देखने वालों की भीड़ खेत में उमड़ पड़ी थी। कोसरा गांव सुबोध का ससुराल था और वह वहीं रहता था। घटनास्थल पर जाने से पहले गांव में ही लोगों ने अन्दाजा लगा लिया की औरत के चक्कर में जान गई होगी और वहां जाने पर यही निकला। बचपन में गांव के प्राथमिक विद्यालय में हम लेाग साथ ही पढ़े थे और आज उसकी लाश खेत में पड़ी हुई थी। उसकी हत्या बेरहमी से की गई थी तथा लाश को हत्या की जगह से लाकर खेत में फेंक दिया गया था। जूता-मौजा तथा पैंट-शर्ट लाश के ही बगल में ही रखा हुआ था और वहीं पर लोग चर्चा कर रहे थे की बगल के गांव में ही इसका एक शादीशुदा महिला के साथ अवैध सम्बंध था जिसकी वजह से इसकी हत्या हुई। सुबोध की पत्नी पुष्पा कुमारी भी रोते हुए किसी महिला के फोन आने की बात कह रही थी। सुबोध कुमार की उम्र पैन्तिस साल के आस रही होगी। उसकी शादी 1991 में हुई थी और उसने भी प्रेमविवाह किया था। सुबोध की मृत्यु पर घटनास्थल पर भी कई लोग अफसोस नहीं कर रहे थे तथा कह रहे थे ऐसा ही था जिसकी वजह से मारा गया। सुबोध के ससुर वहीं कह रहे थे कि बहुत मना करते थे कि दुसरी महिलाओं से सम्बंध नहीं रखिए पर नहीं मानते थे और पता नहीं क्या बात थी जहां जाते थे वहीं इनका अवैध सम्बंध बन जाता था और महिला के चक्कर में ये रात दिन लग जाते थे। सुबोध की हत्या भी विभत्स तरीके से की गई। संभावना के  अनुसार मौके पर पकड़े जाने की वजह से वहीं पहले इसकी जम कर पिटाई की गई  उसके बाद गला में रस्सी लगा कर हत्या कर दी गई। सुबोध में पिता और भाईयों ने उसे घर से भगा दिया था। इतनी उर्म में जबकि की वह तीन बच्चों के पिता भी बन गया कभी कोई काम नहीं किया और हमेशा औरतों के चक्कर में ही रहा। इसकी चर्चा भी भाई से लेकर ससुर तक करते रहे। सुबोध का संबध कई महिलाओं और लड़कियों से भी रहा और इसने कितने की जिन्दगी भी बबाZद की और आज जिस शरीर के भूख के लिए वह ऐसा करता रहा वह मिट्टी पर पड़ा मिट्टी बना हुआ है।

खौर हम लोग लाश को पुलिसिया कार्यवाई के बाद शेखपुरा से 100 कि0मी0 दूर मुुंगेर पोस्टमार्टम के लिए ले गए और इसके लिए पुलिस ने निजी स्तर पर ही वाहन की व्यवस्था करने की बात कही। सुबह एक कप चाय पी कर जो घर से निकला और एक दर्दनाक यात्रा में शामील हो गया। किसी तरह हम लोग मुंगेर पहूंंचे जहां पोस्टमार्टम की प्रक्रिया से पहली बार रूबरू हुआ। एक दर्दनाक और हृदयविदारक दृश्य। कलेजा मुंह में आने वाला नजारा। पर देखा की जिस पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पर अभियुक्त को फांसी होती है उसे एक मामूली सा डोम अंजाम देता है और पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर कहीं नज़र नहीं आए। मालूम हुआ की यही सर्वोसर्वा है। फिर प्रारंभ हुआ डोमराजा के  नखरे और पोस्टमार्टम कें लिए 1000 के नज़राना उन्होने अभिभावक से वसुल किया तब जाकर पोस्र्टमार्टम किया। पता नहंी क्या किया मैं वहां से उस वक्त हट गया क्योंकि मुझसे यह सब देखा नहीं जा रहा था।
उसके बाद फिर शव को गंगा किनारे ले जाकर दह-संस्कार किया गया और देखा की जिस जिन्दगी पर लोग कितने कितने गुमान करते है वह धुंआ धुंआ हो गया। एक तरफ जहां लाश जल रही थी वहीं दूसरी तरफ  लोग मरने वाले को कोश रहे थे तथा यह भी कह रहे थे कि आज नही न्तो कल यह मारा ही जाता और  अन्त में उसके  बड़े भाई ने बड़े ही बुरे शब्द कर प्रयोग करते हुए कहा कि इसको उस चीज का चस्का लग  गया था, चलो अच्छा ही हुआ, एक औरतखोर मारा गया। सुबोध के दस साल का बेटा ने अपने बाप को को मुखाग्नि दी। ससुर से भाई तक उसके द्वारा औरत के पिछले बुराए गए रूपये का हिसाब दे रहे थे तो  इस प्रकरण मे किस किस को फंसाना है इसकी बात कर रहे थे।
मैं तो  सारी बातों को चुप चाप सुनता रहा और देखता रहा धू धू करते लौ के साथ जलते हुए उस शरीर को जिसकी भूख के लिए न जाने सुबोध ने क्या क्या किया।
फिर देर रात शवदाह कें बाद हमलोगों ने गंगा स्नान किया (पवित्र होने के लिए कथित रूप से ऐसा करना जरूरी माना जाता है पर मैं तो बस स्नान करने की नियत से स्नान किया) और एक कप चाय के सहारे रात भर के थकादेने वाली यात्रा के बाद घर पहूंच गया।

28 मई 2010

जाति आधारित जनगनणा देश को तोडनें की साजिश है कांग्रेस इसका सुत्रधार.

जाति आधारित जनगनणा देश को तोडनें की साजिश है कांग्रेस इसका सुत्रधार. एक बात तो साफ़ है कि कांग्रेस की मुखिया सोनीया गांधी को इस देस से वैसा ही प्रेम है जैसा इस्ट इंडीया कंपनी को भारत से था. और फ़िर अपने देश में जयचंद तो हमेशा से रहे है.

जहां एक तरफ आज देश को जोड़ने की आवश्यकता है वहीं बांटने की यह राजनीति चाल चल कर कांग्रेस ने अंग्रेजो की पॉलिसी फूट डालों और शासन करो की पॉलिसी को ही आगे बढ़ाने का काम किया है। जाति आधारित जनगणना अंग्रेजो ने 1871 तब कराया था जब उसे लगा  कि भारतवासी एक हो रहे हैं और इसे बांटना जरूरी है और इसी का परिणाम रहा की आज पाकिस्तान का जन्म लाखों भाईयों की लाश पर हुआ पर भला किसी का न हो सका। यह बांटने की राजनीति नही न्तो और क्या हे कि कांग्रेस अफजल गुरू सरीखे संसद पर हमला करने वाले को फांसी की सजा होने के बाद फंसी इसलिए नहीं देती की देश के मुस्लमान नराज हो जाएगें। भला हो वैसे मुस्लमानों का जिन्हें एक बार भारत माता को बांटकर सन्तोष  नहीं हुआ। मुझे तो आज तक एक बात समझ में नहीं आती की कांग्रेस को वोट कौन लोग देते है। क्या कांग्रेस को वोट करने वाले भी उतने ही गुनहगार नहीं जितना की कांग्रेस। आज मंहगाई, आतंकवाद और नक्सलबाद की समस्या खड़ी और भारत के प्रधानमन्त्री राहुल के लिए अपनी गददी छोड़ने की बात कहते है जैसे प्रधानमन्त्री की कुर्सी न हुई कांग्रेसी की बपौती जददी हो। अब तो बेशर्मी की हद हो गई जब अफजल गुरू ने कह दिया की मुझे जल्दी से फांसी दो या बाहर करो। भैया उसे बाहर करने की बात पर ही विचार हो रहा होगा और इसके लिए  प्लेन हाइजेक करने से लेकर अन्य योजनाऐं भी बनाई जा रही होगी बस इन्तजार करिए सामने आने की। कांग्रेस की विदेश नीति कैसी है कि कनाडा जैसा देश आंख दिखाता है और पदाधिकारियों को बीजा देने से इंकार करते हुए कहता है कि यहां की सैनिक बर्बर है।
पर अब तो इस देश में चुल्लू भर पानी भी नहीं बची की डूब मरने की बात हो अब तो इटाईन धुन पर हम सभी नाचते रहेगे और हमारे देश का मुखीया कथक करेगा।

झमाझम बारिस

सुबह जैसे ही आंख खुली झमाझम बारिस ने मौसम खुशनुमा बना दिया. काले बदलों ने पूरे आकाश को अपने आगोश में ले लिया बिल्कुल अमावस्या की रात की तरह अंधेरा छा गया. प्यासी धरती खुशी से झूम गई. खेतों में पानी भर आया. किसान खेत की जुताई की तैयारी में जुट गये है. मैं भी धान के बिचरे लगाने वाले खेत की जुताई करबाने जा रहा हूं.

27 मई 2010

बीबीसी की खबर-भारत को बांटने की साजिश एक ब्रितानी अकादमिक रॉबर्ट ब्रेडनॉक ने कश्मीर में सर्वेक्षण किया है जिसके मुताबिक भारत प्रशासित कश्मीर घाटी में 74 से 95 फ़ीसदी लोग आज़ादी चाहते हैं जबकि हिंदू बहुल जम्मू इलाक़े में इसके पक्ष में केवल एक फ़ीसदी लोग हैं.


सर्वेक्षण में कहा गया है कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 44 फ़ीसदी लोग आज़ादी के पक्षधर हैं तो भारतीय प्रशासित कश्मीर में 43 फ़ीसदी लोग.
हालांकि डॉक्टर ब्रेडनॉक ने बीबीसी को बताया कि कश्मीर के किसी भी हिस्से में आज़ादी को लेकर बहुमत नज़र नहीं आया.
उनके मुताबिक ये स्पष्ट है कि अगर आज 1948-49 के संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के मुताबिक कश्मीर के भविष्य पर जनमतसंग्रह करवाया जाता है तो इससे मसले का हल निकलने के आसार कम ही हैं.
डॉक्टर ब्रेडनॉक ने भारत और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 3700 से ज़्यादा लोगों से बात की ताकि विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय पूछी जा सके.
उन्होंने कहा कि भारतीय प्रशासित कश्मीर में मत बहुत ज़्यादा बंटा हुआ था.
सर्वे के मुताबिक ज़्यादातर लोग विवाद का हल चाहते हैं हालांकि इसका कोई 'आसान' समाधान नहीं है.
सर्वे से जुड़े अन्य तथ्य इस तरह हैं-
दोनों ओर कश्मीर के लोग मानते हैं कि ये विवाद निजी स्तर पर उनके लिए अहम है.
    2. मानवाधिकार हनन संबंधी मामलों को लेकर भारतीय प्रशासित कश्मीर में 43 फ़ीसदी लोग चिंतित हैं जबकि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 19 फ़ीसदी.
    3. पाकिस्तानी खेमे में बेरोज़गारी को लेकर 66 प्रतिशत लोगों में चिंता है जबकि भारतीय खेमे में 87 फ़ीसदी लोगों में.
    4. पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 27 फ़ीसदी और भारत प्रशासित कश्मीर में 57 फ़ीसदी लोग मानते हैं कि शांति वार्ता सफल होगी.
    डॉक्टर ब्रेडनॉक का कहना है, "सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि ऐसा कोई एक हल या प्रस्ताव नहीं है जिसे समाधान के तौर पर पेश किया जा सके और जिसे ज़्यादातर लोगों का समर्थन मिले. पर ये सर्वेक्षण कुछ संकेत ज़रूर देता है कि भारत, पाकिस्तान और कश्मीरी प्रतिनिधियों को मिलकर राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढा़ना चाहिए."

    चोरी गए शिव-पार्वती की बहुमुल्य प्रतिमा का सुराग नहीं। शिव-पार्वती आलिंगवद्व मुद्रा में .

    जिले के  कोसरा गांव में बीते दिनों चोरी गई शिव-पार्वती की बहुमुल्य प्रतिमा का कोई सुराग नहीं मिल पाया और यह मामला भी पुलिस के  द्वारा ढ़ढ़े बस्ते में डाल दिया गया। पुराताित्वक महत्व की इस प्रतिमा को शोध का विषय माना जा रहा पर पुराताित्वक महत्व की इस प्रतिमा की सुरक्षा को लेकर प्रशासन के  द्वारा किसी प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी जिसकी वजह से गांव के लोगों ने प्रतिमा को एक पुराने मन्दिर में स्थापित कर दिया था। ज्ञातव्य हो कि शिव-पार्वती की यह प्रतिमा कोसरा गांव में खुदाई में 27 मई 2009  को मिली थी। पुराताित्वक महत्व के इस प्रतिमा की खास बात यह थी की इसमें शिव-पार्वती आलिंगवद्व मुद्रा में थे जिसमें शिव जी का हाथ पार्वती कें उरोज पर थी और इस तरह की कला को जानकार काफी ऐतिहासिक महत्व का बता रहे थे। खुदाई कें बाद प्रतिमा की सुरक्षा को लेकर लगातार ग्रामीणो के द्वारा लगातार बिहार सरकार को पत्र लिखा गया और पुरातत्व विभाग को खबर भी की गई पर किसी के द्वारा किसी ने कोई सुध नहीं ली और आखिर कर चोरो की इस पर नज़र पड़ी और वे मुर्ति चुरा ले गए। ग्रामीणों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि ऐतिहासिक महत्व के इस प्रतिमा के मामले को पुलिस रने ठंढ़े वस्ते में डाल दिया।
    बात दें कि कोसरा गांव में मुगल काल के मुगलों के जुल्म के कई प्रमाण है जहां मुगलों ने यहां कई प्रतिमा को विखण्डित कर तलाब में फेंक दिया। बताया जाता है यहां मान सिंह के किले की कहानी बुजुर्गो कें द्वारा कही जाती थी और आज भी तलाब की खुदाई में कई तरह के प्रतिमा की विखण्डित भाग मिलता है जिसे ग्रामीणा तलाब किनारे ही स्थापित कर देते है और महिला उसकी पूजा में लग जाती है।
    कुछ भी पर प्रशासनिक लापरवाही की वजह से पुराताित्वक महत्व की प्रतिमा आखिर कर चोरी हो गई।

    23 मई 2010

    वृद्धापेंशन लेने वालों को बनाया जा रहा है ठगी का िश्कार।


    आदमी की फितरत ही कुछ ऐसी है कि उसको जहां मौका मिलता है लोगों का गला काटने से बाज नहीं आता-यह जुमला भले ही आम बोल चाल की भाषा में प्रयोग की जाती हो पर यह देखने को मिल जाएगा बरबीघा उपडाकघर में। बरबीघा उपडाकघर में वृद्धों को ठगी का शिकार सरे आम बनाया जा रहा है। सरकार की वृद्धापेंशन योजना वैसे लोगोंं के लिए है जिन्हें किसी प्रकार को कोई सहारा नहीं होता है और तब जीवन यापन करने के लिए सरकार की सहायाता की जरूरत पड़ती है पर वैसे लोगों से पैसे ऐंठने में भी यहां के लोग बाज नहीं आ रहे है इसका नजारा है कि बरबीघा उपडाकघर में वृद्धापेंशन लेने वालों की भीड़ जहां सुबह से ही लगी रहती राशि निकालने वाले फार्म पान की दुकान से लेकर परचुन की दुकान में पांच रू. में बिक रही है साथ ही साथ भरने की सुविधा रहती है। इसे जागरूकता का ही अभाव कहा जा सकता है कि वृद्धापेंशन लेने वालों की भीड़ एक साथ डाकघर में उमड़ पड़ती है जिसे सम्भालने में भारी पेरशानी होती है। वृद्धापेंशन पाने वाला ज्यादातर लोग अशिक्षित होते है और इसी का लाभ उठाते है वहां के आस पास के दुकानदार अथवा दलाली का काम करने वाले लोग। इसके लिए उनका जरीया होता है फार्म बेचना तथा भरने के लिए नाम पर पर पांच से दस रू. बसूल करना। उस पर कुव्यवस्था का ही आलम है कि पेंशन लेने वालों की भारी भीड़ डाकघर में उमड़ पड़ी है। सरकार की यह योजना भले ही लाचारों की सहायाता के लिए है पर यह में कुछ असंवेदनशील लोग वृद्धों को अपनी ठगी का शिकार बना रहे है।

    22 मई 2010

    हत्यारे के पास यदि पैसा हो तो बिहार की पुलिस उसे आराम से घर जाने दे सकती हैं।

    शेखपुरा- हत्यारे के पास यदि पैसा हो, बिहार की पुलिस उसे आराम से घर जाने दे सकती हैं। ऐसा ही एक नजारा देखने को मिल रहा है जिले के मेहूस गांव में। मेहूस गांव में डीलर रामानन्द सिंह जब अपने साथियों के साथ गांव के चौपाल पर बैठे थे तभी एक टरक तेज गति से  आते हुए उनके मकान में धक्का मार दिया जिसका विरोध  जब डीलर रामान्नद ने जब इसका विरोध किया तो नशे मे धुत्त चालक ने रॉड से डीलर के सर पर बार कर दिया जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई। बाद में ग्रामीणों के सहयोग से जब चालक को पकड़ कर मेहूस थाना पुलिस के हवाले किया तो मेहूस पुलिस ने चालक को नज़राना लेकर फरार कर दिया। इस घटना से गुस्साए लोगों ने मेहूस थाना का घेराव किया तथा रोष जताते हुए थानाध्यक्ष पर कार्यवाई की मांग कर रहे है।

    19 मई 2010

    एचआईवी का संबंध चेचक के ख़ात्मे से? बी.बी.सी. की खबर.


    एचआईवी का संबंध चेचक के ख़ात्मे से? बी.बी.सी. की खबर.

    कुछ वैज्ञानिकों के मुताबिक विश्व में चेचक के ख़त्म होने से शायद एचआईवी संक्रमण और बढ़ा है.
    विशेषज्ञों का मानना है कि जो दवाई चेचक के ख़ात्मे के लिए इस्तेमाल की जाती थी वो एड्स वायरस के ख़िलाफ़ भी कुछ हद तक कारगर होती थी.
    अब जब चेचक की दवा नहीं दी जा रही तो एचआईवी फैल रहा है.
    अमरीकी जाँचकर्ताओं के अनुसार प्रयोगों से संकेत मिले हैं कि चेचक की दवा का प्रभाव इस बात पर पड़ता है कि एचआईवी का संक्रमण कितनी तेज़ी से हो रहा है.
    हालांकि बीएमसी इम्यूनोलॉजी में शोधकर्ताओं ने ये भी लिखा है कि ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि एचआईवी से लड़ने के लिए चेचक की दवा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
    वर्जिनिया की जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी के डॉक्टर रेमंड और उनके सहयोगी मानते हैं कि चेचक का ख़ात्मा होने के बाद से हाल के कुछ वर्षों में एचआईवी के तेज़ी से फैलने के कारणों का पता लगाया जा सकता है.
    एचआईवी संक्रमण
    50 से लेकर 70 के दशक तक आते-आते चेचक की दवा देनी बंद की जाने लगी थी क्योंकि ये बीमारी लगभग ख़त्म हो गई थी. लेकिन उसके बाद से एचआईवी संक्रमण तेज़ी से बढ़ा है.
    वैज्ञानिक ये जानने की कोशिश कर रहे हैं कि चेचक की दवा बंद होने और एचआईवी के तेज़ी से फैलने का आपस में संबंध है या नहीं.
    इसके लिए उन लोगों के व्हाइट बल्ड सेल देखे गए जिन्हें हाल ही में चेचक की दवा दी गई है और फिर इस पर नज़र रखी गई कि एचआईवी का उन पर क्या असर होता है.
    ऐसे लोगों में पाया गया कि एचआईवी उतनी तेज़ी से नहीं फैल रहा. यानी चेचक की दवा से एचआईवी फैलने की दर पाँच गुना कम हो गई.
    शोधकर्ताओं का कहना है कि ये कहना मुश्किल है कि क्या चेचक की दवा बंद होने से विश्व में एचआईवी संक्रमण तेज़ी आई या नहीं पर इस पर शोध करना ज़रूरी है.

      कन्या विवाह योजना की राशि के लिए करनी पर रही चिरौरी, बिना नज़राना लिए नहीं दी जा रही राशि

      कन्या विवाह योजना की राशि के लिए करनी पर रही चिरौरी, बिना नज़राना लिए नहीं दी जा रही राशि मुख्यमन्त्री कन्या विवाह योजना भले ही मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार की बहुप्रतिक्षित योजना हो पर यह योजना भी पदाधिकारियों की लापरवाही की भेंट चढ़ गई है और आलम यह है कि बिना नज़राने के इसकी राशि लाभुकों नहीं दी जा रही है। ऐसा ही एक मंजर देखने का आया जब बरबीघा प्रखण्ड में लगातार पांच दिनों से कन्या विवाह योजना की सौ से अधिक कन्याओं को राशि के लिए बुल तो लिया जाता है और नवविवाहित कन्याऐं राशि के लिए आ भी जाती है और दिन भर भुखी प्यासी चिलचिलाती धूप में राशि के लिए इन्तजार करती है और उन्हें शाम में बैरंग लौटा दिया जाता है। यह मंजर बरबीघा प्रखण्ड परिसर मे पिछले पांच दिनों से लौट रही है और उसकी फरीयाद सुनने वाला कोई नहीं है। इस संबध्ंा में जब प्रखण्ड विकास पदाधिकारी से बात की गई तो उन्होंने ने नाजीर के नहीं आने की बात कही तथा कहा कि सारा अधिकार उन्हीं के पास है जिसकी वजह से राशि का वितरण नहीं किया जा रहा है। इस सम्बंध में लाभुक रानी देवी ने बताया कि पिछले पांच दिनों से उसे कन्या विवाह योजना की राशि के लिए बुलाया जा रहा है और दिन भर बैठने के बाद उसे राशि नहीं दी जा रही है। कुछ नवविवाहितों ने बताया कि कुछ लोग उससे पहले पांच पांच सौ रूपया देने की बात कह रहे है तभी कन्या विवाह की राशि मिलेगी। बात चाहे जो भी हो पर 14 मई को लगे कन्या विवाह कैंप में चेक का वितरण नहीं किया गया और कन्या को बेवजह दौड़ाया जा रहा है जिसकी वजह से कई तरह की चर्चा हो रही है। इस सम्बंध में मौके पर मौजूद भाकपा नेता विरेन्द्र सिंह ने कहा कि प्रखण्ड में कई योजनाओं में नज़राने का बोल बाला तो पहले से था ही अब कन्याओं को भी नहीं बक्सा जा रहा है। उधर इस मामले में नपं अध्यक्ष विपिन चौधरी, बार्ड सदस्य उदय कुमार, मनोज कुमार सहित अन्य लोगों ने भी नारजगी जताते हुए कहा कि इस तरह की परेशानी होती रही तो वे लोग इसको लेकर अन्दोलन करेगें।

      18 मई 2010

      mother for mony

      चिलचिलाती धूप में नवजात शिशु को लेकर बैंक में प्रशूता लाभ की राशि लेने आई महिला. सरकार से मिलने वाली १४०० की राशि के लिये जच्च्की के तुरंत बाद महिलाओं को बैंक आकर पैसा निकालने में भारी परेशानी होती है. उसपर भी १४०० मे ४०० आशा लेती है और २०० चिकित्सक.

      14 मई 2010

      धार्मिक सौहार्द की मिशाल पेश करते हुए शिक्षकों ने बचाई अपने साथी की जान।

      सियाशतदां भले ही धर्म की दीवार खड़ी कर समाज को बांटने की लगातार कोशिश करते रहते है पर मनुष्य की संवेदना, बंधुत्व और सामाजिक सहयोग ने सियाशतदां को हमेशा परास्त किया है। ऐसी ही एक मिशाल कायम की शेखपुरा जिले तहत बरबीघा के शिक्षकों ने। शिक्षकों ने भाईचारे और धार्मीक सौहार्द की मिशाल पेश करते हुए सड़क दुर्धटना में गम्भीर रूप से जख्मी शिक्षक अशरफ हुसैन की जान बचाने के लिए एक लाख से अधिक की राशि इक्कठा कर ईलाज में खर्च किए। इतना ही सड़क दुर्धटना में गम्भीर रूप से जख्मी शिक्षक को ईलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया तथा अन्य मदद की। शिक्षक अशरफ हुसैन उर्फ मुन्नी लाल ंशेखपुरा के अहियापुरा मोहल्ले का रहने वाले थे तथा रोज की भान्ति बरबीघा स्थित डीएवी मध्य विद्यालय नियत समय पर पढ़ाने के लिए आ रहे थे कि बस से उतरने के क्रम में स्थानीय हटीया मोड़ पर एक अनियन्त्रित बेलोर ने पीछे से टक्कर मार दी जिसकी वजह से वे गम्भीर रूप से जख्मी हो गए। शिक्षकों के सहयोग से जब उन्हे बरबीधा अस्पताल लाया गया तो उनकी हालत और गम्भीर हो गई जिसे तत्काल चिकित्सको ने पटना ले जाने की सलाह दी। हुसौन के परिजनों की आर्थिक स्थित कमजोर थी तथा नियोजन पर नियुक्त शिक्षक होने की वजह से उनकी आमदनी भी अच्छी नहीं थी तब शिक्षको ने सहयोग कर तत्मकाल उन्हे पटना ले जाने में न सिर्फ मदद की बल्कि अन्य शिक्षको स ेचन्दा कर राशि इक्क्ठी की और अशरफ हुसैन का ईलाज पटना के प्रसिद्व निजि चिकित्सालय में कराया जिसकी वजह से आज हुसैन को नया जीवन मिला और वे घर वापस आ गए।

      शिक्षकों की माने तो हुसैन में एक स्वच्छ शिक्षक के सारे गुण मौजूद है तथा वे मृदुभाषी एवं सबसे साथ अच्छा व्यवहार करने वाले व्यक्ति है। हुसन समय पर विद्यालय आने वाले तथा कक्षा में समय पर पढ़ाने में ध्यान देते है।
      कुछ भी हो जहां आज एक एक रूपये की कीमत लोगों की जान से भी ज्यादा होने लगी है वहां शिक्षको ंने सहयोग कर एक लाख से अधिक की राशि इक्कठी कर न सिर्फ हुसैन की जान ही बचाई बल्कि समाज के सामने एक अनुठी मिशाल भी पेश
      की


      नितिन गडकारी का बयान अशोभनिय

      भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष नितिन गडकारी का बयान जिसमें उन्होने लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव को कुत्ता कहा नििश्चत ही अशोभनिय है खास कर जिस पद पर वे हैं वहां से इस तरह की टिप्पणी उन्हें नही करनी चाहिए। इस तरह की टिप्पणी के लिए पहले लालू प्रसाद यादव जाने जाते थे और उनको हमेशा से इसी तरह की टिप्पणी के लिए जाना जाता था जिसका परिणाम है कि लालू जी को आज कोई भी गंभीरता से नहीं लेता। भाजपा खुद को भारतीय संस्कृति की रक्षक पार्टी के रूप में पेश करती है तब भला उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष इस तरह के बयान देकर किस तरह की संस्कृति का नमूना पेश कर रहे है। गडकरी को लोग संध का चेहरा के रूप में भी जानते है पर संधी भी इस तरह गैर जिम्मेराना बयान दे सकते है यह गडकरी के रूप में सामने आया। गडकरी के इस वक्तव्य ने लालू यादव को बैठे बैठाए एक मुददा दे दिया जिसके सहारे लालू जी कई दिन अपनी डूब चुकी राजनीति को चमकाने का प्रयास करेगे। हलंाकि की गडकरी ने कट मोशन को लेकर लालू-मुलायम को उनका साथ नहीं दिए जाने को लेकर गुस्से में थे पर गडकरी को समझना चाहिए कि ये लोग कांग्रेस के साथ हमेशा रहें है और जनता भी इसको जानती है। मंहगाई को लेकर लालू-मुलायम भी उतने ही जिम्मेवार है जितना कांग्रेस आखिर पांच साल तक कांग्रेस को इन्हीं लोगों ने सत्ता में बनाए रखा इस बार भी कांग्रेस का ही साथ दिया। हलंाकि गडकरी ने इसके लिए माफी भी मांग ली है पर कहा भी गया है कि कमान से निकला तीर और मुंह से निकला बोली वापस नहीं आती, तो फिर अब देखिए लालू जी इसपर क्या लीला करते है।

      09 मई 2010

      नितिश कुमार की भडुआगिरी कर रही है बिहार की मिडिया,

      बिहार की मिडिया नितिश कुमार की भडुआगिरी करने में एक दूसरे को मात देने की होड़ में ंशामिल हो गए है और इसमें कौन एक नंबर पर होगा इसकी रेश हो रही है। यह बात आज और साबित हो गई जब लोग एक बजे के बाद बिहार की राजधानी पटना में हो रही किसान महापंचायत की खबर पाने के लिए चैनल बदलते रहे पर किसी चैनल ने इसे कवर करने का जहमत नहीं उठाया अभी समाचार पत्रों के संबध्ंा में कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह अभी प्रकाशित ही नहीं हुई है यह तो सुबह पता चलेगा कि नितिश कुमार को चुहा काटने पर फं्रट पेज पर जगह देने वाली प्रिट मिडिया लाखों लोगों की रौली को कितना कवरेज देती है। एक तरफ जहां लेाग रौली का समाचार पाने के लिए ललाइत रहे वहीं बेगूसराय में नितिश कुमार ने क्या छिका इसे जबरन सभी चैनल दिखाते रहे। नितिश की भड़ुआगिरि नही न्तो यह क्या है कि लगातार अखबार नितिश कुमार को लेकर संपादकिया लिख रहे है वहीं छोटी सी खबर को भी फ्रंट पेज मिल रही है जबकि आम आदमी के सरोकारी खबर को जगह ही नहीं मिलती। आज तो बिहारी मिडिया ने भड़ुआगिरी की सारी सीमाओं को लांध कर किसान महापंचायत जैसे लाखों लोगों के उबाल को जगह देना उचित नहीं समझा। यदि मिडिया का यही हाल रहा तो लोग इसे ही ठुकरा देगें।

      06 मई 2010

      कसाब को तुंरत स्पेशल कानून बना कर तुरन्त फांसी दो।

      कसाब को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद देश में जश्न का माहौल है। लोग खुश है कि एक खुनी दरिन्दें को उसके किए की सजा तो सुनाई गई। पर इस खुशी मे थोड़ा सा गम भी ंशामील तब हो जाता है जब सोंचता हूं कि यहां की राजनीति करने वाले लोग देश की कीमत पर ही राजनीति करते है। अफजल गुरू को आज तक फांसी पर लटकाया नहीं जाना यही बताता है। उधर आज से पहले ही गृहमन्त्री का बयान आ चुका है कि राष्ट्रपति कें पास पच्चास मामले अभी लंबित है फांसी के माफी के तो फिर कसाब कोे फांसी पर लटकाए जाने में कितनी देरी होगी। कसाब को किलींग मशीन की संज्ञा वकील उज्जल निकम ने दी जो बिल्कुल सही है। कसाब ने जितना जधन्य काम किया उसके लिए चार फांसी भी कम सजा है पर फिर यह सजा उसे तत्काल मिलनी चाहिए। इसके लिए यदि कोई स्पेशल कानून भी बनानी पड़े तो सरकार को पहल कर ऐसा करना चाहिए ताकि दुनिया को यह बताया जा सके कि जब भारत की अिस्मता, अखण्डता और सहिष्णुता के साथ कोई छेड़ छाड़ करेगा तो भारत भी ढृढ संकल्पित हो किसी हमले का मुंहतोड़ जबाब ही नहीं देता बल्कि दुश्मन की छक्के छुड़ा देता है।

      03 मई 2010

      कसाब को फांसी की सजा होनी चाहिए

      कसाब को फांसी की सजा होनी चाहिए



      पर क्या फांसी की सजा होने के बाद भी कांग्रेस की सरकार उसे फांसी पर लटकाएगी? या वोट बैंक की राजनीति के तहत मुसलमानों की नाराजगी के डर से कसाब को भी मेहमान बना कर तब तक रखा जाएगा जब तक कोई प्लेन का हायजेक करके कसाब को छोड़ने की मांग नहीं रखता? क्या मुसलमान भाई कसाब को फांसी दिए जाने से नराज हो जाएगें? कई सवाल है जो मन में कौंध रहा है पता नही इसका जबाब क्या होगा?