22 मार्च 2016

जी लूँ जरा

जी लूँ जरा
*****
मन भर दुःख
दिए
और छटांक भर
ख़ुशी

पहाड़ सी
परेशानी दी
और
मुठ्ठी में रेत सी
हंसी...

अमावस की
रात सी
नफरत दी
और
जुगनू सा
टिमिर-टिमिर
प्रेम

परमपिता
टनों से राख तौलते है
और
रत्ती से सोना

रत्ती भर जो मिला
उस अमृत रस को
पी लूँ जरा
छटांक भर
ख़ुशी को
जी लूँ जरा
जी लूँ जरा

(अपने जीवन और अनुभव पे #साथी के दो शब्द)
22/03/2016

21 मार्च 2016

आँख वाले अंधों और कान वाले बहरों की जमात है सोशल मीडिया

आँख वाले अंधों और कान वाले बहरों की जमात है सोशल मीडिया

अमिताभ बच्चन को लेकर सोशल मीडिया में यह दुष्प्रचार वायरल हो गया कि उन्होंने 4 करोड़ लेकर बंगाल के इडेन गार्डन में भारत पाक मैच के दौरान राष्ट्र गान गाया।

बंगाल क्रिकेट के प्रमुख सौरभ गांगुली ने इसका खंडन करते हुए बताया की बिग बी ने अपनी जेब से 30 लाख खर्च कर मैच देखने आए। फ्लाइट, होटल, सारे खर्च खुद किये, फिर उनको बदनाम कैसे कर दिया गया?

दरअसल, सोशल मीडिया अब आँख और कान वाले अंधों-बहरों की जमात भर रह गयी है। यहाँ सहजता से जितनी झूठ फैलाई जा सकती है वह किसी और तरीके से सम्भव नहीं है। यहाँ हम झूठ को झूठ जान कर भी नजरअंदाज कर जाते है।

इस खतरनाक प्रबृति को रोकने के लिए हमें इसी का सहारा लेना होगा। देहाती कहावत है कि साँप के जहर का ईलाज साँप के जहर से ही होता है। अब हमें अपनी आँख, कान के साथ साथ स्वविवेक के दरवाजे खुले रखकर सोशल मीडिया का उपयोग करना चाहिए। अपने विवेक का साथ लेकर इंटरनेट पे सभी सवालों का जबाब खोजना चाहिए, फिर कुछ बोलना चाहिए..

हालाँकि, घोरे की टूटी टांग वाली धमकुच्चड़ में हम खुले आँख वाले अंधे है, सबकुछ सुनकर भी बहरा बन जाते है। भगवान् मालिक..

19 मार्च 2016

रास रंग

गांव से परम्परागत होली की परम्परा अब बिलुप्त हो रही है। फागुन का महीना आते ही पहले गांव की चौपाल पे होली गाने वालों की टीम बैठती थी और रंग जमता था।

उसी पुरानी परम्परा को सहेजने के लिए व्हाट्सएप्प ग्रुप बरबीघा चौपाल ने होली मिलन समारोह का आयोजन किया। इसमें 70 बर्ष से अधिक के बुजुर्ग होली का गायन किया।

समारोह का उद्घाटन शेखपुरा जिलाधिकारी डॉ चंद्रशेखर सिंह ने किया।

साथ ही समारोह में वरीय संगीत साधकों को जिन्होंने संगीत की सेवा की सम्मानित किया गया।

वहीँ गांव के होलैया टीम को ढोलक देकर पुराने होली को बचाने के लिए प्रेरित किया गया।

16 मार्च 2016

गाँव की गलियों में भी खो गया फागुन

गाँव की गलियों में भी खो गया फागुन
***
फागुन का महीना बसंत का महीना है। उत्सव, आनंद, उमंग का महीना है पर अब फागुन अपने आनंद को खोकर रो रहा है। बसंत की ख़ुशी पे शराब, असामाजिकता और स्वार्थ हावी हो गया है। अब तो शराबी के डर से लोग होली के दिन भी घर से निकलना पसंद नहीं करते।

गांव के चौपाल पे जहाँ पूरा फागुन महीना होली की परम्परागत गीत गांव के लोग गाते थे वहां आज सन्नाटा है। कुछ साल पहले जब सूरज अपनी लालिमा बिखेर कर अपने शयनकक्ष में जाने के संकेत देते थे तो गांव के लोग ढोलक की थाप के साथ अपने जागने और जिन्दा होने का संकेत देते थे।

दालान पे बैठकी सज जाती थी और राधा-कृष्ण के प्रेम रस से डूबी होली जब ढोलक की थाप और झाल की झंकार पे  बजती तो ऐसा लगता मनो बसंत के मौसम में हर गांव वृंदावन हो। हर वाला राधा और हर नर मोहन..।

जलबा कैसे के भरू यमुना गहरी, जलबा कैसे के...ठार भरू नन्दलाल ली निरखे...निहुर भरू भींगे चुनरी.../

एक नींद सोबे दे बलमुआ, अंखिया भइले लाल...

यह सब अब सुनने को नहीं मिलता। दरअसल, संगीत को आध्यात्म से जोड़ दिया गया था क्योंकि आध्यात्म वही जो मन शून्य कर दें। मन के विचार, कुविचार खो जाये। होली गायन हो या कोई और संगीत, हमारा मन जब उसमे रमता है तो मन शून्य हो जाता है और हम आध्यात्म के शिखर पे होते है।

शराब ने गांव के आध्यात्मिक संगीत को बिलुप्त कर दिया। फागुन में पूरा महीना होली और चैत में चैतावर अब नहीं बजता। शायद इसी लिए हम अब अधिक असहिष्णु, अधिक असामाजिक, अधिक स्वार्थी हो गए है..


08 मार्च 2016

चरित्रहीन ( महिला दिवस पे विशेष)



चरित्रहीन
(अरुण साथी)
घर की चौखट लाँघ
जैसे ही कोई स्त्री
सड़क पर निकलती है
और चलने लगती है
कदमताल मिला
पुरुषों के,
वैसे ही वह
चरित्रहीन हो जाती है....!

जैसे ही कोई स्त्री
अपने अधिकार
की आवाज़ उठाती है,
वह चरित्रहीन हो जाती है....!

जैसे ही कोई विधवा
रंगीन वस्त्र पहन
मुस्कुराती है,
वह चरित्रहीन हो जाती है....!

जैसे ही कोई स्त्री
नोंच लिए गए
जिस्म का जख्म दिखाती है,
बलात्कारी नहीं,
वही चरित्रहीन हो जाती है.....!

जैसे ही कोई बेटी
अपने सपनों को
पंख लगाती है,
वह चरित्रहीन हो जाती है....!

जैसे ही
एक बेटी
हंसती-मुस्कुराती है,
खुशियाँ लुटाती है,
बोलती-बतियाती है,
वह चरित्रहीन हो जाती है....!

हम बाजार में
जिस्म खरीद कर,
जिस्म की भूख मिटाते है,

वह,
जिस्म बेच कर
पेट की भूख मिटाती है,
तब भी,
केवल एक स्त्री ही
चरित्रहीन क्यूँ कही जाती है...?
***
शायद इसलिए कि
द्रोपदी, पांचाली हो जाती है
और गर्भवती सीता बनवास
चली जाती है
फिर भी 
हम धर्मराज
और मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं......


(महिला दिवस पर विशेष- 08/03/16) 

04 मार्च 2016

वामपंथी नेता कन्हैया के नाम एक खुला पत्र उर्फ़ भारत तेरे टुकड़े होंगें की मंशा पे मौन क्यों?

वामपंथी नेता कन्हैया के नाम एक खुला पत्र उर्फ़ भारत तेरे टुकड़े होंगें की मंशा पे मौन क्यों?
****
कन्हैया,
सबसे पहले तो आपको बहुत बहुत बधाई। आपके अंदर भविष्य के नेता की एक उम्मीद सबको दिखी। खास कर आपके लंबे भाषण को सुन कर। गुरुवार की रात उस भाषण को मेरी ही तरह समूचे देश ने सांसे रोक कर सुनी। आपने वाकई बहुत ही ओजस्वी भाषण दिया। देते भी क्यों नहीं, आखिर आप देश की राजनीति का सबसे प्रखर अड्डा जेनयू के छात्र संघ के अध्यक्ष जो है। देश का हर वह नागरिक जो न मोदी भक्त है और न ही वामपंथी, न कॉंग्रेसी, बड़ी उम्मीद से आपके उस प्रखर वक्ता की तरह के सम्बोधन को सुनता है।

आपके अक्षरशः सम्बोधन से वैसे लोग सहमत है, होना ही चाहिए। आखिर देश की राजनीति को मोदी जी और संधियों द्वारा कट्टरपंथ की ओर ढकेल दिया जो गया है! आपने सही कहा कि मोदी एंड पार्टी द्वारा मंहगाई, गरीबी, समानता और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए नए नए मुद्दे गढ़ दिया जाता है।
***
आपने यह भी सही कहा की छात्रों की आवाज को दबाया नहीं जा सकता, जितना दबाओगे उतना प्रतिकार होगा।

पर भाई कन्हैया,
मैं देर रात तक जाग कर उन राजनैतिक मुद्दे पे आपके विचार जानने के लोए ऑंखें फाड़ कर टीवी से चिपका नहीं रहा, बल्कि मुझे उम्मीद थी की आप कम से कम यह तो कहेंगे ही कि

""भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाहल्लाह, इंशाहल्लाह"" के नारों का आपने कभी समर्थन नहीं किया, देश की संसद पे हमले का दोषी करार अफ़जल को शहीद बताने वाले बरसी समारोह में आपकी सहभागिता नहीं थी। हर घर से अफ़जल निकलेगा का नारा आपने नहीं लगाया।

और यह भी की भारत के टुकड़े होने की देशद्रोही मंशा रखने वाला देश द्रोही है और आप उनके साथ नहीं है।

पर कामरेड कन्हैया,
माफ़ करना, आपने ऐसा नहीं कहा....? मेरे जैसे वाम धारा के लोगों को इसी बात से भारी तकलीफ है। कन्हैया, बता देना चाहता हूँ कि मैं मोदी भक्त नहीं हूँ, मोदी का आलोचक रहा हूँ और भक्तों से गालियां मैंने भी खायी है। इसलिए मेरी बातों को किसी भक्त या संघी की आवाज कहके ख़ारिज मत कर देना क्योंकि एक अकेले जेनयू विवाद से मेरे अंदर का वामपक्ष शर्मिंदा हो रहा है। सेकुलर होने का मेरा दावा शर्मिंदा हो रहा है।

हे कामरेड कन्हैया, हो सके तो मेरे इस बात का जबाब देना कि

क्या दक्षिणपंथ का विरोध करने के लिए आतंकवाद का समर्थन करना जरुरी है।

आखिर अपने बिहार के गांव में एक देहाती कहावत तो बड़ी प्रचलित है ही
" मौनम् स्वीकार लक्षणम्" । मैंने भी आपके पड़ोस के एक गांव में रहता हूँ, और मैं भी वामपंथी छात्र संगठन अईसा का जिलाध्यक्ष रह चूका हूँ। मेरे प्रश्नों का शायद आप जबाब देंगे।

मेरा पता है।
अरुण साथी, ग्राम-शेरपर, पोस्ट-बरबीघा, जिला-शेखपुरा (बिहार)
9234449169
sathi66@gmail.com

03 मार्च 2016

देश पे हजारों कन्हैया कुर्बान

देश पे हजारों कन्हैया कुर्बान
***
कन्हैया की जमानत पे जश्न मनाने वाले शायद जस्टिस की टिपण्णी से शर्मिंदा हों..

कन्हैया मामले में हाई कोर्ट की जस्टिस प्रतिभा रानी ने जो टिपण्णी की है उसमे कई गंभीर बातें है, उन्होंने कहा-

"यदि कोई अंग सड़ जाता है तो उसका इलाज किया जाता है। एंटीबायटिक दिया जाता है। यदि इससे भी ठीक नहीं होता तो सड़े हुए अंग को काट दिया जाता है।"

***
साथ ही जस्टिस ने कहा-

"जेएनयू जैसे सुरक्षित कैंपस में अफज़ल गुरु और मक़बूल भट्ट के नाम पर नारे लगाने वाले ऐसा इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि हमारे देश के जवान सियाचिन और कच्छ के रण मुश्किल हालात में देश की रक्षा कर रहे हैं। नारे लगाने वाले उन जगहों पर 1 घंटा भी खड़े नहीं रह सकते। ऐसे नारे उन जवानों का अपमान हैं जो खुद शहीद होकर हमारी रक्षा करते हैं। ये अपमान है उन परिवारों का, जिनके अपने कफ़न में लिपटे घर वापस लौटते हैं।"

हाई कोर्ट ने ये भी लिखा है, "जेएनयू प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिए कि संसद हमले के दोषी अफज़ल गुरु की शहादत दिवस जैसे कार्यक्रम भविष्य में न हों। याचिकाकर्ता एक पढ़ने वाला छात्र है और हम उम्मीद करते है कि उसने जेल में बिताये वक़्त के दौरान जो कुछ जेएनयू में हुआ उस पर चिंतन किया होगा। कोर्ट ये भी उम्मीद करता है कि जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष होने के नाते कन्हैया ये सुनिश्चित करेगा की जेएनयू में दोबारा देश विरोधी गतिविधियां नहीं होंगी।"

एक जस्टिस की यह टिपण्णी उन नेताओं के मुंह पे तमाचा है परोक्ष रूप आतंक का समर्थन कर रहे है।

शर्म आनी चाहिए उन नेताओं को जो
"भारत तेरे टुकड़े होंगे कहने वालों के साथ वोट की खातिर या मोदी विरोध में नाम पे इंशाअल्लाह, इंशाहल्लाह कह रहे है।"

देश के बचेगा तो लाखों कन्हैया मिलेंगे।

01 मार्च 2016

किसान के मन की बात

किसान के मन की बात

(अरुण साथी, जर्नलिस्ट, बरबीघा, बिहार)

साहेब,
जाने सब दिल्ली में की हो-हल्ला करो हका, समझे में नै आबो हे! यहाँ गरिबका के घर एक साँझ चुल्हा उपासे रहो हे।

अभी सुनो हूँ की बजट-बजट खेलल गेल हें, जेकरा में किसानों खातिर कोय गेम हल। पता नै साहेब, की हल, की नै हल। मुदा हमनी किसनमन के त कुछो नै मिले हे। गरिबका आदमी गरीबे रह गेल।

साहेब,
लंबा-लंबा भाषण तो जब से होश आल हें, सुनिए रहलूं हें! कुछ होल तो आझ तक नहिये हे? उर्वरक के कालाबाजारी नहिये रुकल, खेत में पटवन के साधन नै हे। एक सेर चाउर उपजाबे में नीचू दिया पसीना चू जा हे औ बाजार में जा हूँ त एक सेर चाउर में एक पाकिट निमको नै आबो हे!

साहेब,
हमर खेत में जब टमाटर, पियाज, बैगन रहे हे त ओक्कर कोय मोल नै हे, बकि उहे व्यपारी से हाथ में जा हे तो ऊ सोना हो जा हे, काहे साहेब?

साहेब,
हम्मर खेती आझो भगवान् भरोसे हे, पानी पड़त त ठीक नै त ठनठन गोपाल! अब तो मौसम भी किसनमे से रभसे से, जब मन तब बरसात और जब मन तब गर्मी..! इस सब की है, समझ नै आबे हे।

साहेब,
हम्मर अरके गांव, जवार अब खाली हो गेल हें। जेकरा जरी लूर-बुद्ध होल उहे दिल्ली, पंजाब, सूरत कमाबे ले भाग जा हे, औ आबे हे त चकाचक। हमनी गांव वाला ओकर मुंह टुक्कूर-टुक्कूर बन्दर मखते ताको हूँ! सोंच में पड़ जाहूं कि रात-दिन बैल नियर खटला पर भी देह पर पाव भर मांस नै जमे हे औ परदेश में जाके सब कैसे लाटसाहब बन जाहे!

साहेब,
गांव में कभी-कभार मीटिंग लगे हे तब किसान के बड़की बड़की योजना सुनाबल जाहे, लगे हे जैसे कौनो दोसर दुनिया के बात हे। काहे से की जब ऑफिस में जा हूँ तब उहाँ गरिबका के कुछ नै मिले हे, बाबू साहेब लोग दुत्कार के भगा दे हका! जिनखर खेती से मतलब नै उनखरे किसान सम्मान मिले हे! किसान बाला कर्जा, इन्सुरेंस, सुखाड़ राहत, बीज अनुदान, जाने कत्ते चीज हे किसान खातिर, पर कहाँ साहेब, सब बाबू लोग अपन हाथी नियर पेट पे में सपोर ले हका!

साहेब, टीवी खोलूं हूँ त डर लगे हे, लगे हे जैसे देश जर रहल हें! कहिनो अखलख, कहिनो रोहित बोमिल, कहिनो जेएनयू....? बाप रे बाप, सब जैसे बौरा गेल हें... केकरो अपन धरती माय से मतलबे नै हे! रहत हल तब ई सब बांटे बाला बात कैसे होत हल?
साहेब, हमनी के जे समझ में आबो हो ऊ इहे हो की तों सब आपस में एक्के हा, और सब मिलके घोर-मठ्ठा कर देला हें! सब अप्पन अप्पन वोट के फेरा में धरती माय के करेज काटे में लगल हका बकि हमरा सब के खातिर तो आझो धरती माय, अप्पन माय से बढ़ के हे.....माय तो जनम देलखिन बकि धरती माय परतिपाल करो हका....
साहेब,
कैसू करके धरती माय के बचा ला साहेब, कैसू करले बचा ला....😢