25 अप्रैल 2016

शराबबंदी का असर, बिहार में शांतिपूर्ण पंचायत चुनाव सम्पन्न

शराबबंदी का सार्थक असर,पंचायत चुनाव शांतिपूर्ण सम्पन्न।

रविवार को बरबीघा में पंचायत चुनाव शांति पूर्ण सम्पन्न हो गया। चिलचिलाती धूप में ख़बरों के लिए घूमना महज औपचारिकता रही, सभी जगह कतार में लगे वोटरों की तस्वीर...।

निश्चित ही यह लोकतंत्र के मजबूती की निशानी है। जनता जनार्दन की जय है। दबंग से दबंग भी वोट के लिए आम आदमी की चिरौरी करते रहे। गरीब से गरीब भी शान से वोट देकर घर आये।

कुछ जगहों पे शांतिपूर्ण मतहरण भी हुआ। बोगस वोटिंग हुयी, पर आपसी सहमति से ही।

यह सब हुआ और यह प्रशासन की सफलता है पर इसमें सबसे अहम् रोल शराब बंदी का रहा। झगडे की जड़ शराब होती है, जड़ ही काट दिया गया तो झगड़ा कहाँ?

मोरल:- अब जरी मनि तो कुछ न कुछ होब्बे करतै भाय जी, लप्पड़ थप्पड़, नुकछुप के दारूबाजी...ई सब होलै ही...तब कि कहो हो..राम राज है...औ राम राज में भी सीता के बनवास तो होल है कि नै...

01 अप्रैल 2016

मरने से पहले आवाज़ सुनो...!

बृद्धापेंशन ही लाचार बुजुर्गों का आसरा है। आठ माह बाद यह मिल रहा है पर जिनके पास आधार कार्ड या बैंक खाता नहीं उनको नहीं दिया जा रहा है। कर्मी दुत्कार कर भगा दे रहे हैं। जबकि यह नकद दिया जा रहा है।
सरकारी ऑफिस की व्यवस्था से सभी वाकिफ है। आधार कार्ड बनाने या बैंक खाता खुलबाने में कई बार दौड़ाया जाता है। जो एक कदम चल नहीं सकते वे कितनी बार दौड़ेंगे! पर लालफीताशाही है, जो फरमान सुना दिया सो सुना दिया... देखिये बेचारी टुन्नी महारानी को, आँख का रेटिना शायद ख़राब है सो आधार नहीं बनाया गया पर पेंशन के लिए तो आधार जरुरी है...? और देखिये, बंगाली मांझी को..बेचारे इतनी गर्मी में भी स्वेटर पहन कर आये...शिकायत करने कि पेंशन नहीं दिया जा रहा...स्वेटर के बारे में पूछा तो सहजता से कहा... "इहे एगो बस्तर है त की पहनियै!" यह आवाज़ किसी गरीब के मर जाने से पहले उठाई है...शायद सरकार तक आवाज पहुँच जाये...बहुत लोगों को शिकायत है कि मरने के बाद आवाज़ उठाई जाती है, जिन्दा रहते नहीं...बंधू , मर जाने के बाद आवाज़ सरकारें थोड़ी सी सुन लिया करती है...जीते जी तो...नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बन जाती है..