31 दिसंबर 2015

चलो, अलविदा कहते हैं..!

चलो, अलविदा कहते हैं...!

जो बीत गयी उन बातों को,
अपनों से मिले कुछ घातों को,
बिन मौसम की बरसातों को,
कुतर्क भरी कुछ बातों को..।
चलो, अलविदा कहते हैं..!

संत बने असंतों को,
मठाधीश, महंथों को,
जनतंत्र के इस उपवन में,
विषबेल बने जयचंदों को..।
चलो, अलविदा कहते हैं...।

जो धर्म के नाम पे बाँट रहे,
खंड खंड कर घर-समाज,
जाति, जाति को छाँट रहे,
वैसे स्व-साधक, छल-छंदों को..।
चलो, अलविदा कहते हैं...!

अलविदा 2015 अलविदा..!

नए साल की हार्दिक शुभकामनायें..।

25 दिसंबर 2015

पापी कौन है?

भगवान् यीशु
एक प्रसंग है कि कुँवारी गर्भवती युवती को पापिन होने की सजा देते हुए समाज के लोग बीच चौराहे पे पत्थर मारने की सजा देते है ।

इसी बीच यीशु आते है और कहते है कि पहला पत्थर वही मारे जिसने कोई पाप न किया हो। यह सुन पहला पत्थर किसी ने नहीं मारा।
**
यीशु आज अगर यह बात कहते तो सभी एक साथ ही पहला पत्थर मार देते।

सोशल मीडिया इसका उदाहरण है। यहाँ हर कोई साधू ही है पर पता नहीं दुनिया में फिर चोर कौन है?
@अरुण साथी/बरबीघा/बिहार

21 दिसंबर 2015

अरुण जेटली के इस खबर को किसी मीडिया ने प्राथमिकता के तौर पे नहीं दिखाया। इसे दबा दिया गया। दुर्भाग्यपूर्ण।

अरुण जेटली के इस खबर को किसी मीडिया ने प्राथमिकता के तौर पे नहीं दिखाया। इसे दबा दिया गया। दुर्भाग्यपूर्ण।
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श्प्रिंटर 3000ए लैपटॉप 16000 रुण् रोज़ किराए परश्
बीबीसीए 20 दिसंबर 2015 कोए 17रू51 तक के समाचार
पूर्व क्रिकेटर और भाजपा सांसद कीर्ति आज़ाद ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर डीडीसीए के घोटालों का पर्दाफ़ाश करने का दावा किया हैण्
उन्होंने रविवार को मीडिया के सामने रखे एक वीडियो के ज़रिए बताया कि डीडीसीए ने 14 ऐसी कंपनियों को लाखों रुपए का भुगतान कियाए जिनका पता और जानकारी अधूरी थी या ग़लतण्
उन्होंने अपने वीडियो में बताया कि विकीलीक्स फ़ॉर इंडिया और सन स्टार अख़बार ने अपनी तहक़ीक़ात में एक प्रिंटर का किराया 3000 रुपए प्रतिदिन और लैपटॉप का किराया 16000 रुपए प्रतिदिन बताया हैण् इस पड़ताल का नाम उन्होंने श्ऑपरेशन डीडीसीएश् दिया हैण्
कीर्ति आज़ाद ने पत्रकारों के सामने चुटकी लेते हुए कहाए श्श्अगर किसी को भ्रष्टाचार में पीएचडी लेना है तो वो डीडीसीए जा सकता हैण्श्श्
प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उनके साथ भारतीय टीम के पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी भी मौजूद रहेण्
प्रेस कॉन्फ़्रेंस से ठीक पहले भाजपा सांसद कीर्ति आज़ाद पर उन्हीं की पार्टी ने हमला बोला था और कहा था कि शायद वह सोनिया गांधी से मिल गए हैंण् जिसके जवाब में कीर्ति आज़ाद ने कहा था कि जिस व्यक्ति ने ऐसा कहा है वह यह जान लें कि उनके पिता तो काफ़ी समय से कांग्रेस से जुड़े हुए थेण् इसके अलावा उन्होंने इशारा किया कि उन पर आरोप लगाने वालों के संबंध भी तो विरोधियों से अच्छे हैंण्
दिल्ली के पूर्व कप्तान और साल 1983 में विश्व कप क्रिकेट टूर्नामेंट के विजेता भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य रहे कीर्ति आज़ाद ने पिछले कुछ वर्षों से डीडीसीए के ख़िलाफ़ अपना अभियान चला रखा हैण् उनके अनुसार डीडीसीए या कहें कि फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम के पुनर्निर्माण में गंभीर वित्तीय गड़बड़ियां हुई हैंण्
उनका सबसे बड़ा विरोध इसे लेकर है कि उन्होंने समय रहते लगातार इसकी जानकारी तत्कालीन अध्यक्ष रहे अरुण जेटली को दीए पर उन्होंने इस पर कान नहीं दियाण्
यहां तक कि कीर्ति आज़ाद ने कई बार फ़िरोज़शाह कोटला के बाहर धरना तक दिया और उनका साथ देने वालों में भारत और दिल्ली टीम के पूर्व कप्तान रहे बिशन सिंह बेदीए मदन लालए मनिंदर सिंह और दूसरे खिलाड़ी भी शामिल रहेण् मीडिया में भी यह मामला लगातार छाया रहाण्
दरअसल साल 1996 में भारत में हुए विश्वकप क्रिकेट टूर्नामेंट के बाद से ही पुनर्निर्माण के नाम पर फ़िरोज़शाह कोटला मैदान में तोड़फोड़ चलती रहीण् आईपीएल के शुरू होने के बाद फ़िरोज़शाह कोटला के निर्माण में और भी तेज़ी आईण् और इसके बाद ही कीर्ति आज़ाद का विरोध और मुखर हुआण्
उनके अनुसार निर्माण करने वाली कंपनियों को एक से ज़्यादा बार भुगतान किया गयाण् उनके मुताबिक़ यहां तक कि एक ही पते और एक ही फ़ोन नंबर वाली कई कंपनियां थींए जिनसे डीडीसीए के पदाधिकारियों के निजी संबंध भी ज़ाहिर हुएण्
इसके अलावा उन्होंने जब प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने का फ़ैसला किया तो उससे पहले यह दावा भी किया कि इन कंपनियों के पास पैन कार्ड जैसी बुनियादी चीज़ें तक नहीं थींण्
उनका इल्ज़ाम यह भी है कि खिलाड़ियों के चयन में पैसों का लेनदेन किया जाता हैण् इसके अलावा डीडीसीए की बार में दो अक्टूबर के दिन शराब परोसी गईण् जो ग़ैरक़ानूनी थाण् बाद में इस बार को बंद कर दिया गया थाण्
कीर्ति आज़ाद जिन दिनों डीडीसीए के ख़िलाफ़ आरोपों की झड़ी लगा रहे थे उसके बाद डीडीसीए ने एक समिति भी बनाई थीए जो डीडीसीए में चल रहे कामकाजों को देख रही थीण् उसमें ख़ुद कीर्ति आज़ाद भी शामिल थे लेकिन बाद में यह कमेटी भंग कर दी गई थीण्
कीर्ति आज़ाद और उनसे जुड़े पूर्व क्रिकेटरों ने आरोप लगाया था कि उन्हें डीडीसीए के पदाधिकारी काम करना तो दूर स्टेडियम में भी घुसने नहीं दे रहे हैंण् उन दिनों यह मामला भी बेहद गर्माया थाण्
कीर्ति आज़ाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले कुछ पूर्व क्रिकेटर भी अरुण जेटली के समर्थन में आ गए हैंण् पूर्व टेस्ट खिलाड़ी वीरेंद्र सहवाग और दिल्ली के कप्तान गौतम गंभीर ने अरुण जेटली के समर्थन में एक के बाद एक कई ट्वीट किएण्

20 दिसंबर 2015

कहाँ है हिन्दू सेना वाले..?

मेरे गाँव में बाले मांझी की बृद्धा पत्नी का निधन ठंढ की वजह से हो गया और शवदाह ले पैसे नहीं होने की वजह से बाले मांझी पत्नी की शव के साथ अकेले अपने एक मात्र कमरे (झोपडी) में रहा। सामाजिक पहल से 24 घंटे बाद अंत्येष्टी
हो सकी।

इसी क्रम में मालूम हुआ कि मांझी समुदाय के लोग गरीबी की वजह से जब शवदाह करने में असमर्थ होते है तो शव को दफन कर देते है। खैर, सामाजिक पहल से दफ़न की प्रक्रिया रोक शवदाह किया गया। पर हाय, आमिर आदमी के शव को देवदार, चन्दन या आम की लकड़ी और धी से जलाया जाता है ताकि स्वर्ग मिले और मांझी परिवार के लोग जंगली लकड़ी और केरोसिन से शवदाह कर देते है वह भी बिना ब्राह्मण या डोमराज के। इसके बाद भी कोई कर्मकांड भी नहीं किया जायेगा...पता नहीं इनको मोक्ष कैसे मिलती होगी, हिन्दू सेना वाले कट्टरपंथी इसे क्यों नहीं देखते...
मैं तो हमेशा कहता हूँ, गरीब का कोई धर्म नहीं होता साहेब...

19 दिसंबर 2015

बाजार भाव से अधिक देकर पति खरीदा...

बाजार भाव से अधिक देकर पति खरीदा...

महात्मा जी गाँव के जागरूक मध्यम किसान थे। दस कोस तक खेती करने में उनका कोई जोड़ नहीं था। साथ ही बच्चों की पढ़ाई में उनकी लगन देख इलाके में लोग उनका उदाहरण देते। पेट काट कर उन्होंने अपने बेटा को शहर के सबसे बड़े स्कूल के होस्टल में रख कर पढ़ाया। बेटा डॉक्टर बना। जब शादी का समय आया तब जैसे उनके भाग्य ही खुल गए। उनके गाँव में मिनिस्टर से लेकर आईएएस तक, कौन नहीं आया!

गाँव की तरफ कोई भी बड़ी गाड़ी आती तो लोगबाग कहने लगते " महात्मा जी के किस्मत तो चरचराल है मर्दे। एक से एक बर्तुहार दुआरी लगो है। ऐसन किस्मत तो टेकरी महराज के ही होतई..? बर्तुहारी में एक हजार से अधिक लड़कियों का फोटो और बायोडाटा आया। कुछ को महात्मा जी ने रिजेक्ट कर दिया तो कुछ को उनकी पत्नी और बेटे ने। खैर, फाइनल एक मिनिस्टर की बेटी से हुआ। फाइनल कैसे हुआ, महात्मा जी को आज भी अचम्भो लग रहा है! मिनिस्टर साहब बर्तुहारी करने पहली बार आये। स्टील के कप में उनको केवल चाय दिया गया, कितना खर्च करते, रोज दो-चार बर्तुहार आ ही जाता? मिनिस्टर साहब ने चाय की कप को सहमते हुए होठों से ऐसे लगाया जैसे उनको पता है की कप में जहर मिला हुआ हो। उन्होंने चाय के कप को परे रख दिया। बात शुरू हुयी। " तब महात्मा जी, कितना लीजियेगा? मिनिस्टर साहब ने सपाट कहा..। महात्मा जी हिचकिचाये। सकपकाये...। कितना मांगे। उनके मुँह से निकला " जी पटना वाले आईएएस नरेश बाबू तो एक करोड़ दे रहला हें बाकी अपने के जे विचार..? मिनिस्टर साहब भी समझ गेला, यह सब बर्तुहारी के पैंतरा है। पिछले तीन साल से वे बर्तुहारी में परेशान है, अब और परेशान नहीं होना। उन्होंने झट से हामी भर दी, "दिया एक करोड़, ऊपर से एक मनचाहा गाड़ी भी.." दूसरे लोग जबतक चाय ख़त्म करते शादी पक्की हो गयी।

शादी हो गयी, इलाके भर में लोग अपने बेटों को इसी तरह का कर्मठ बनने का उलाहना देने लगे। दहेज़ के पैसे से महात्मा जी ने सबसे पहले गाँव में एक आलीशान घर बनाया। बियाह के बाद लड़की ससुराल आई। सबकुछ ठीक था। वह किसी से बोलती-बतियाती नहीं थी। दुल्हिन देखने जब गाँव की औरते आई तो दुल्हिन ने उनके सामने जाने से इंकार कर दिया। महात्मायन बहाना बनाती रही, "दुल्हिन के तबीयत ठीक नै हो।"

खैर, एक दिन दुल्हिन वाथरूम में फिसल के गिर गयी। घर में कोहराम। घटना के कुछ ही देर बीते होंगे की मिनिस्टर साहब चार गाड़ी से दनदनाल पुरे खानदान के साथ पहुँच गए। आते ही बरस पड़े।
"इसीलिए मुँहमांगी दहेज़ दिया था? बेटी को कष्ट हो? वाथरूम में कैसे गिर गयी? एक दाई नहीं रख सकते..? महात्मा जी अवाक..।

खैर, कुछ ही दिनों बाद दुल्हन अपने पति के साथ शहर चली गयी। इस बीच महात्मा जी की पत्नी का निधन हो गया। वो अकेले रह गए। उनका शरीर भी कमजोर हुआ। वो अपने बेटे के पास चले गए। उनको घर पे देखते ही घर में कोहराम मच गया। दुल्हिन घर पे किसी और की उपस्थिति बर्दास्त नहीं कर सकती। प्राइवेसी नहीं रहेगी। एक दिन चाय पे दुल्हिन ने दो टूक कह दिया " बाबू जी, आप हमारी प्राइवेसी में बाधक बन रहे है। बाजार भाव से अधिक देकर आपके बेटे को ख़रीदा है। महात्मा जी ने प्रतिकार किया " दुल्हिन शादी-वियाह तो भाग-सुभाग है, ईश्वर की मर्जी से होता है। इसपर दुल्हिन और भड़क गयी। " भाग्य कुछ नहीं होता, आपका बेटा डॉक्टर नहीं होता तो इससे मेरी शादी नहीं होती। फिर किसी राम, मोहन या श्याम से शादी हो जाती, पैसे से सबकुछ मिलता है...गाँव जाइए, खेती करिये...। महात्मा जी उम्मीद भरी निगाहों से बेटा की तरह देखा, उसने भी नजरें झुका ली..।

18 दिसंबर 2015

बिहार में पूर्ण शराब बंदी या छलावा

बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने अपने चुनावी अभियान में जब शराब बिक्री पर महिलाओं का प्रतिरोध देखा तो शराब बंदी का भरोसा दिया और नयी सरकार के गठन के बाद बिहार में 1 अप्रैल से पूर्ण शराब बंदी की घोषणा कर दी। इस घोषणा के बाद नीतीश कुमार की चौतरफा सराहना हुयी। बाद में जैसे जैसे दिन बीतते गए वैसे वैसे 5000 करोड़ के राजस्व का हिल्ला-हवाला दिया जाने लगा।

अब धीरे धीरे यह बात सामने आ रही है बिहार सरकार पूर्ण शराब बंदी नहीं लागु करेगी। इसकी जगह आंशिक शराब बंदी नीति लागु होगी। उत्पाद विभाग इसके लिए नीति बनाने में जुट गयी है।
1
हावी हुए शराब माफिया
बताया जाता है की बिहार में पूर्ण शराब बंदी लागु नहीं हो इसके लिए शराब माफिया काफी सक्रिय हो गए है। शराब माफिया इसके लिए नौकरशाह लॉबी को पकड़ लिया है। बिहार में नौकरशाह लॉबी काफी प्रभावशली माना जाता है। इसलिए ही अब बिहार में आंशिक शराब बंदी की रूप-रेखा तैयार कर उसकी जमीन बनायी जा रही है।

2
क्या है आंशिक शराब बंदी की नीति

नयी आंशिक शराब बंदी की नीति के तहत अब बिहार सरकार जिला मुख्यालय में स्वयं शराब बेचेगी। 15 दिसंबर को उत्पाद आयुक्त के पत्रांक 3826 के माध्यम से एक पात्र जारी कर दिया गया है की बिहार स्टेट बिवरेज कॉर्पोरेशन को विभागीय भूमि उपलब्ध करायी जाये जहाँ विभाग गोदाम और दुकान बना कर थोक और खुदरा शराब बेचेगी। हालाँकि यहाँ अभी सिर्फ विदेशी शराब की ही बिक्री की जायेगी और देशी शराब पे पूर्ण पाबन्दी लगा दी जायेगी।

3
सरकारी सुरक्षा गार्ड के संरक्षण में बिकेगी शराब

बिहार सरकार के नयी शराब बंदी नीति के तहत बिहार में जहाँ देशी शराब की बिक्री पर प्रतिबंध रहेगा वहीँ सरकार अपनी दुकान खोलकर शराब की बिक्री करेगी। शराब दुकान एवं गोदाम की सुरक्षा के लिए सरकार सुरक्षा गार्ड रखेगी जो शराब पी कर दुकान पे हंगामा करने वालों को रोकेंगे।

4
सफल नहीं होगी देशी शराब की बिक्री पे प्रतिबंध

बिहार सरकार भले ही देशी शराब पे प्रतिबंध लगा कर विदेशी शराब की स्वयं बिक्री करेगी पर इस प्रतिबंध को कतई सफल होने नहीं दिया जायेगा। इसका मुख्य कारण गाँव गाँव देशी शराब का अवैध निर्माण विभाग और पुलिस के संरक्षण में चलता है। एक साधारण थाना क्षेत्र में 300 से 500 तक अवैध शराब बनाने वालों की भट्ठियां है। इन भट्ठियों से पुलिस और उत्पाद विभाग को प्रति भठ्ठी 1000 से 1500 की मोटी कमाई होती है। इस वजह से लाख कोशिशों के बाद भी अवैध शराब बनाने के काले कारोबार को रोका नहीं जा सकेगा। यदि विदेशी और देशी शराब की बिक्री पे रोक लगती तो विदेशी शराब पीने वाले लगभग शराब से बंचित हो जाते या मोटी रकम चूका के शराब पीते और युवा वर्ग शराबी बनने से बच जाता।

5
क्या कहते है नीतीश कुमार

नीतीश कुमार कहते है की बिहार में शराब बंदी ही लागु की जायेगी। इसके लिए विभाग रणनीति बना रही है। बिहार की जनता को शराब से बर्बाद होने से रोकना होगा और महिलाओं की यही मांग भी थी, अब देखना होगा कि बिहार में पूर्ण शराब बंदी लागु होती है या यह एक छलावा के तौर पे सामने आता है जिसकी उम्मीद सर्वाधिक बताई जा रही है।

16 दिसंबर 2015

अपने जनाधार मजबूत करने में जुटी महागठबंधन की पार्टियां

बिहार चुनाव परिणाम के बाद विपक्षी पार्टियाँ जहाँ निराशा के दौर से उबर नहीं सकी है वहीँ सत्ताधारी पार्टियाँ अपने अपने जनाधार मजबूत करने में जुटी है। इस वजह से कोंग्रेस, राजद और जदयू लगातार लोकलुभावन वादे कर रही है। तीन पार्टीयों के इस होड़ की वजह से बिहार की जनता को भविष्य में कुछ अच्छी और जनोपयोगी योजनाएँ मिलने की उम्मीद बढ़ गयी है।

अपने जनाधार को लेकर सबसे तेज और सटीक फैसला बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने ली। उन्होंने बिहार में पूर्ण शराब बंदी की घोषणा कर दी। उनके इस फैसले ने बिहार में एकबारगी लोगो  में यह सन्देश दिया की बिहार सरकार काम करेगी। नीतीश कुमार हमेशा अपने चुनावी वादे "नीतीश निश्चय" को दुहरा रहे है जिससे यह सन्देश जा रहा है की वो अपने सभी चुनावी वादे पुरे करेंगे।

इसी तरह कांग्रेस भी कहीं से पीछे नजर नहीं आ रही है। खास कर प्रदेश अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी लगातर मीडिया के माधयम से लोगों को अपने कामों की जानकारी दे रहे है। उनके द्वारा युवाओं और छात्रों को लुभाने और नया बिहार बनाने की असीम संभावनाएं है। इस अवसर को समझते हुए वो काम कर रहे है। खास कर मैट्रिक परीक्षा में कदाचार रोकने की बात कह कर वो इसे चुनौती के रूप में लेने की बात कही। इसके बाद सीबीएसई के तर्ज पर सभी परीक्षार्थी को ईमेल पे एडमिट कार्ड भेजने की योजना भी इसी कड़ी का हिस्सा है। इसी के साथ आईटी सेक्टर के माध्यम से कंप्यूटर शिक्षा की बात कहकर उन्हों युवाओं को एक उम्मीद दी है।

वहीँ तेजप्रताप और तेजस्वी यादव भी लगातार जनसम्पर्क कर लोगों से तेजी जुड़ रहे है। तेजस्वी यादव निर्माण कार्य स्थल पे पहुँच कर अपने कार्यशैली से अवगत कराना चाहते है।

हालाँकि राजद नेताओं के कार्यशैली को लेकर दवा व्यवसायियों में एक भय का वातावरण भी बना है। इसमें कुछ सच तो कुछ अफवाह का भी योगदान है। दवा व्यपारी अंदर अंदर इस बात को हवा दे रहे है की दवा गोदामों मे छापेमारी दबाब बना कर मैनेज कराने की कोशिश है। हालाँकि इसका दूसरा पक्ष भी काफी मजबूत है जिसमे नकली और एक्सपायरी दवाओं पे अंकुश लगाना जरुरी बताया जा रहा है।

कुल मिला कर बिहार  की नयी सरकार में शामिल पार्टियां अपनी कार्यशैली और योजनाओं से जनता को प्रभावित करने की कोशिश कर रही। इसका मुख्य कारन गठबंधन पे भरोसा न करते हुए आज न कल इसके टूटने की संभावना को ही माना जा सकता है। खैर, इसी होड़ की वजह से यदि जनोपयोगी कार्य हो जाते है तो बिहार अपनी बदनामी से एक कदम ही सही, आगे तो बढ़ेगा।

14 दिसंबर 2015

दहेज़ लेकर खर्चने में कैसी शान?

आज कल शादियों का मौसम है। लकदक, तड़क भड़क, जगमग, झमाझम। शादी में खर्च करना ही औकात दर्शाने का माध्यम बन गया है। इस सब की वजह से शादी में दहेज़ की मांग बढ़ गयी है। अब बेरोजगारों की बोली भी पांच लाख लगती है।

बेटी का बाप, मजबूरन अपनी औकात से अधिक दहेज़ देते है। परिणाम स्वरूप मुफ़्त के पैसे की बर्बादी होना लाजिम है। दहेज़ के पैसे को अनाप शनाप खर्च कर दिया जाता। अब छोटी गाड़ियों की गिनती की जाती है और उसी में मोटी रकम लूटा दी जाती है। इसके बाद, बैंड, आर्केस्ट्रा, बार डांसर, टेंट, शामियाना आदि- इत्यादि।

हम दहेज़ लेकर जो अपनी शान दिखाते है उनकी सराहना करते है जबकि वो निंदा के पात्र है। हमें आलोचना करनी चाहिए। दहेज़ के पैसे से झूठी शान दिखाना कैसी सम्पन्नता है...?

11 दिसंबर 2015

देश सम्मान वापसी और बिहार में वोट वापसी का यूटर्न अभियान

देश सम्मान वापसी और बिहार में वोट वापसी का यूटर्न अभियान
अरुण साथी( व्यंग्य)
जमाना सोशल मीडिया का है। यहाँ लंपट, लफाड़, लफुए ऐसे मटरगस्ती करते है जैसे वे अपने भैया के ससुराल में हों और बाकि सब उनके भैया जी की साली या फिर अपने सबसे लंपट फ्रेंड की बारात में आये हों और उनके पास लंपटाई का राष्ट्रीय लायसेंस मिला हुआ हो। यूँ तो ऊपर ऊपर यही लगता है की सब कुछ अपने आप हो रहा है पर सच यह नहीं है। लंपट आर्मी को संचालित करने का रिमोट किसी न किसी के हाथ में है। इन लंपट आर्मी के हाथ में पाँच इंच का टैंक थमा दिया गया है जो उँगलियों के इशारे पे संचालित है और तो और पलक झपकने से पहले ही दुश्मन को धरासायी कर दिया जाता है। यह दीगर बात है कि यह रिमोट वामपंथी, दक्षिणपंथी, समाजवादी, पूंजीवादी नेता, अभिनेता, साहित्यकार किसी के भी हाथ में हो सकता है। ठीक वैसे ही जैसे कठपुतली उँगलियों के इशारे पे नाचती है पर वह भी समझती वही नाच रही है। जय जय जय हो।

लंपट आर्मी का शिकार कोई भी, कहीं भी और कभी भी हो सकता है। लंपट आर्मी में सबसे बड़ी जो खाशियत है वह यह कि इनमे प्रचुरता से सियार का गुण पाया जाता है। बल्कि उससे प्रभावी रूप से असरकारक। चौपाये सियार तो शाम ढलने पे हुआँ हुआँ करते है पर लंपट आर्मी चौबीस गुणा सात हुआँ हुआँ करते रहते है। लंपट आर्मी में एक और गुण चौपाये सियारों से बिशिष्ट होती है, यानि रंगे सियार के साथ भी हुआँ-हुआँ करना। खास बात यह कि ये अतिसाहिष्णु होते है। वानगी देखिये। कुछ माह पूर्व ये काला धन, सैनिकों के शहीद होने, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पे हुआँ- हुआँ ऐसे किये की बाकियों को अपनी राष्ट्रभक्ति का प्रमाण पत्र इनसे लिखबना पड़ा। कुछ को पाकिस्तान भी जाना पड़ा!

समय बदला, राजा भी बदल गए पर ब्यवस्था वहीँ की वहीँ रही। अचानक एक दिन सब जुमला कह दिया गया। रंगा सियार का रंग उतर गया। पर लंपट आर्मी अपनी भक्ति परम्परा को आंच नहीं आने दी। सहिष्णुता और अटूट आस्था के दम पे वो आज भी हुआँ-हुआँ कर रहे है।

इनका गुण वैम्पायर की तरह वायरल होता है। वैसे तो सबकुछ ठीक ही रहता है तबतक; जबतक आप हाँ में हाँ मिलाते रहें। कहीं न किया नहीं की तुरंत वहीँ के वहीँ किसी की भी माँ-बहन कर देंगे, आखिर लंपट आर्मी जो है।

देहात में एक कहावत बड़े बुजुर्ग कहते है "कौआ कान ले ले जाय, कुछ खबरे नै" । इसे समझाते हुए बुर्जुग कहते कि यदि कोई कहे की कौआ कान लेके भाग गया तो समझदार आदमी पहने अपना कान देखता है और बेवकूफ आदमी कौआ के पीछे दौड़ने लगता है। अब देखिये सोशल मीडिया पे कैसे सब कौआ के पीछे दौड़ लगा रहे है। मशलन दिल्ली के कार का मामला लीजिये। लोग अपनी कान देखे बिना केजरी पे पीछे लग गए। हालाँकि जब सर्वश्रेष्ठ संस्था के प्रमुख ने बताया कि हमें अपनी कान देखनी चाहिए, तब जाके लोग अपनी कान देख के लजा गए। वह वहीँ था! हाँ लंपट आर्मी नहीं लजाई।

अब हुआँ हुआँ कर सम्मान लौटने वाले भी लजाये है या नहीं, कह नहीं सकता। वैसे सर्वश्रेष्ठ संस्था के प्रमुख ने कह दिया की देश में असहिष्णुता कहीं नहीं है, बड़े बड़े देशों में छोटी छोटी गलतियां होती रहती है। पर लगता है लजाये नहीं हैं वरना फिर सम्मान वापसी अभियान चलता और हुआँ-हुआँ कर जिन्होंने सम्मान लौटाया वे वामांगी, वैचारिक, अतिविशिष्ट लोग लौटाए गए सम्मान को फिर फिर से वापस मांग लेते, साथ में कुछ नकद-नारायण भी दिलवा दिया जाता, है की नै...

वैसे बिहार में नयी सरकार आते ही दस साल तक शितनींद्र में रहे "हलुकबन्दर" सब उत्पात मचने लगे है। जहाँ तहाँ छीना-झपटी, मार-कुटाई हो रही है। उठाई अभियान भी चलने लगा। अब इससे परेशान बेचारे वोटर वोट वापसी का अधिकार मांग रहे है। भैया जान बचेगी तब जात-पात कर लेंगे, अभी वोट तो वापस कर दो।।।।।

01 दिसंबर 2015

मदरसों में यौन शोषण पर चुप्पी क्यों....?

केरल के मदरसों में यौन शोषण से जुड़ी अपनी बचपन की यादों को फेसबुक पर साक्षा करने वाली महिला पत्रकार वीपी राजीना को जान से मारने की धमकी दी गई है। असहिष्णुता का हंगामा करने वालों ने ही राजीना का फेसबुक एकाउंट को फेसबुक से शिकायत कर बंद करा दिया, क्या यह असहिष्णुता है? असहिष्णुता का आरोप लगाकर हंगामा करने वालों ने कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं किया है...! क्या मुस्लिम कट्टपंथियों का असहिष्णुता की छूट है..?
सेकूलर जैसा सौहार्द और भाई चारे का प्रतीक एक शब्द को साहित्यकारों, कलाकारों के द्वारा आज कोठे पर बैठा दिया गया है। देश की नाकारात्मक छवि बनाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। बहुत हद तक इसमें सफलता भी मिल रही है। इसकी वागनी सांसद मो0 सलीम का गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बयान को संसद में उठाना है जिसमें आउट लुक पत्रिका ने यह प्रकाशित किया कि राजनाथ सिंह ने कहा कि आठ सौ साल बाद देश में हिन्दू शासक लौटा है। बाद में पत्रिका ने माफी मांगी.. पर सांसद ने नहीं...कितनी सहिष्णुता है..? राजीना का साथ अमीर खान, शाहरूख खान या महान साहित्यकार क्यों नहीं देते...? 
उधर हरियाणा के एसपी संगीता कालीया को महज इसलिए तबादला कर दिया गया क्योंकि उसने एक बीजेपी के मंत्री अनील बीज को प्रत्युत्तर में जबाब दिया, सच का आइना दिखाया...प्रताडि़त करने का प्रतिवाद किया..। यह वही बीजेपी है और वही हरियाणा है जहां एक आइएएस अधिकारी अशोक खेमका को रावार्ड बाडा्र प्रकरण पर कांग्रेस सरकार के द्वारा प्रताडि़त किए जाने पर हंगामा किया गया था...! बहुत कुछ साफ है, आइने की तरह, बस हमने अपनी आंखों पर चश्मा पहन लिया है, जो किसी के समर्थक और विरोधी होने का है..
अल्ला जाने क्या होगा आगे..

12 नवंबर 2015

कुम्हार और ईश्वर

कुम्हार और ईश्वर 
**
मिट्टी गूंध
चाक पे चढ़ाया
उसे धुमाया
सधे हाथ से
अंदर से सहारा दे
बाहर से दबाया
कुम्हार ने दीया बनाया।।

फिर उसे 
आग में पकाया
और बाजार ले आया।।

वही दीया
कोई मज़ार पे
कोई मंदिर में
कोई चमार घर
कोई बाभन घर जला..
***
हे कुम्हार
कहीं तुम ईश्वर तो नहीं...

02 अक्तूबर 2015

गांधी को किसने मारा ?

गांधी को किसने मारा ?
***
गोरे अंग्रेजों के जाने के बाद
जिन्ना की जगह
पंडित जी हुए प्यारा ।
सोंचों गांधी को किसने मारा ?

***
सेकुलरिज्म के झंडाबदारों
बताओ
देश का प्रधान
मोमिन क्यूँ नहीं हुआ
और
डॉ कलाम जैसा भी क्यूँ हारा ?
सोंचों गांधी को किसने मारा ?
***
नौआखाली से लेकर
गोधरा,
गुजरात,
मुजफरनगर,
पानेसर,
दाभोलकर,
और कुलबर्गी तक
गोडसे हर बार हुंकारा ।
सोंचों गांधी को किसने मारा ?
***
रघुपति राघव
मुल्लों को लगा न प्यारा,
ईश्वर अल्ला
पंडित को हुआ न गंवारा
सोंचों गांधी को किसने मारा ?
***

न सत्य
न अहिंसा
न ही गांधीवादी
विचारधारा है ।
सच तो ये है कि
गांधी को हमने ही मारा है ।
गांधी को हमने ही मारा है ।।
------02/10/2015----
@अरुण साथी/बरबीघा/बिहार 9234449169

21 सितंबर 2015

असहिष्णु युवाओं का सोशल मीडिया पे आतंक और बिहार चुनाव में इसका इफेक्ट

असहिष्णु युवाओं का सोशल मीडिया पे आतंक और बिहार चुनाव में इसका इफेक्ट
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रवीश कुमार जैसे प्रखर और स्पष्टवादी पत्रकार को सोशलमीडिया से किनारा करना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुचलने की कुत्सित साजिश की एक वानगी भर है । एम् एम् कुलबर्गी, पनेसर और दाभोलकर की कटरपंथियों द्वारा हत्या इसी वानगी की चरमोत्कर्ष । सोशलमीडिया सामाजिक दायरे को प्रगाढ़ करने की दिशा में एक सशक्त औज़ार माना गया पर इसके साइड इफेक्ट बड़ी खतरनाक रूप से सामने आया है जो बिहार चुनाव में सोशलमीडिया पे हो रही आपसी गाली गलौज के रूप में देखा जा रहा है । एक सामाजिक बुराई के रूप में कट्टरपंथी अपनी वैमनष्यता की विचारधारा को सोशलमीडिया का इस्तेमाल कर विस्तार दे रहे है और राजनेता अपनी स्वार्थ सिद्धि का इसे एक हथियार बना लिया है ।


वर्तमान चुनाव  सोशनमिडिया के अनसोशल इफेक्ट से प्रभावित हो रहा है । इसका उपयोग विरोधियों को प्रायोजित तरीके से बदनाम करने, अपमानित करने और खामोश करने में किया जा रहा है । युवा इस कुत्सित प्रयास का सहज और कारगर हथियार है, जिसे भावनाओं के बाहुपाश में वीयर और शराब के सहारे किया जा रहा है या फिर वैचारिक ब्रेनवाश से भी ।

एक झूठ को हजार बार बोलो तो वह सच हो जाता है । हिटलर के इस कथन को नरेंद्र मोदी और अरबिंद केजरीवाल ने प्रायोगिक रूप से साबित किया । यदि नहीं, तो कालाधन, भ्रष्टाचार, जनलोकपाल और रोजगार के मुद्दे आज गौण न हो गए होते । 

इसी प्रयोग को बिहार में सभी नेता आजमा रहे है । नितीश कुमार के बिजली नहीं तो वोट नहीं का ऐलान गुम हो गया । अराजकता को वो शुतुरमुर्ग की तरह तूफान आने पे बालू में सर छुपा के देख रहे है । लालू जी का चारा घोटाला उनके लिए ग्राह्य हो गया । सुशील मोदी को पिछले दस साल का कुशासन नजर आने लगा जिसमें आठ साल लगभग साथ रहे । और तो और पप्पू यादव अचानक ईश्वरीय अवतार बन गए । उनका अपराधिक इतिहास स्वर्णाक्षरों से लिखा गया हो जौसे, चमकदमक में खो गया । प्रवचनकर्ता बन गए । मुलायम सिंह और ओवैसी देवदूत सरीखे जनता के हमदर्द बन बैठे है । कथित राष्ट्रद्रोही भाषा के प्रखर वक्ता और कानूनविद ओवैसी के बिहार आगमन पे बीजेपी समर्थकों और नेताओं के चमनिया मुस्कान देखते ही बन रहा है । 

वंशवाद को लेकर राहुल गांधी, लालू यादव को लज्जित करने वाले बीजेपी नेताओं के बेटे, बहु टिकट लेकर मचल रहे है । सीपी ठाकुर, अश्वनी चौबे कुछ नाम इसी श्रेणी के है । इनके बेटे विवेक ठाकुर और अनिल शाश्वत उम्मीदवार है । टीवी कैमरे पे भोकारपार के रोते रामविलास पासवान जी के दामाद को देख वंशवाद की निर्लज्जता की परकाष्ठा समझ सकते है । भाई, भतीजे, बेटे सहित लोजपा में रिश्तेदारों को ही टिकट दिया गया है । जिसे नहीं मिला वो रामा सिंह की तरह बागी हुए और जिसे मिला वो सांसद वीणा सिंह ( सूरजभान सिंह की पत्नी) की तरह रात भर में पलटी मार विरोध के लिए माफ़ी मांग ली । 

लालू यादव से किसी प्रकार की उम्मीद बेमानी है । रामकृपाल यादव सरीखे हनुमान के नहीं हुए तो किसी और के होंगे, नासमझी है । यदुवंशिवादी नारा लगा के यदि वंशवाद फल फूल रहा है तो इसे और जोर से लगा रहे है । 

मांझी जी, कुशवाहा जी सहित राजनीति के हमाम में सब नंगे है । सब एक दूसरे की लंगटई जानते है । पर नसमझ है, तो जनता ही है । सबकुछ आँखों देखी है । पर जैसे थ्रीडी का कोई आविष्कारी चश्मा जनता की आँखों पे चढ़ा दिया गया है । उसे सावन में अंधे हुए गधे की तरह सबकुछ हरा हरा दिखता है । जनता आँख से देखना छोड़, कान से देखने लगी है । तर्क-कुतर्क जाति-धर्म कान रूपी आँखे है ।

इस सब में सोशल मीडिया पे युवा ऐसे उलझ रहे है जैसे सालों की दुश्मनी है । हर छोटी छोटी बात का छिद्रानुवेशन किया जाता है । नतीजा, कस्बाई इलाकों में लोग फ़ेसबुक पे लिखने से बच रहे है । व्हाट्सएप्प के एडमिन ग्रुप को बंद कर रहे है । चुनावी समर जारी है । परिणाम आना बाकि है पर समाज (सोशलमीडिया रूपी भी) बाँट दिया जा रहा है । 

ऐसे में दुष्यंत कुमार की कविता प्रसंगीक है ।..

"आज सड़कों पे लिखे सैकड़ों नारे न देख ।
घर अँधेरा देख तुम, आकाश के तारे न देख ।।"

14 सितंबर 2015

स्कूल छोड़ नमाज पढ़ने जाते है बच्चे...!

स्कूल छोड़ नमाज पढ़ने जाते है बच्चे...!




(अरुण साथी) 



नमाज़ पढ़ने के लिए स्कूल को बंद कर दिया जाता है । यह पहली बार अनुभव हुआ । शेखपुरा(बिहार) के  रमजानपुर गांव में । जुमे के दिन नमाज के वक्त सभी बच्चे स्कूल से निकल गए । बच्चों से पूछा तो कहा की नमाज पढ़ने जा रहे है । बहुत तकलीफ हुयी । बाद में स्कूल गया तो देखा की सभी मुस्लिम शिक्षक भी नमाज पढ़ने चले गए और एक मात्र हिन्दू शिक्षक स्कूल में है । यानि स्कूल बंद हो गया । टिफिन के बाद फिर स्कूल नहीं खुला । मुस्लिम की अधिक आबादी इस गांव में है । हालांकि हिन्दू बच्चे भी पढ़ते है पर उनको भी छुट्टी मिल जाती है । 


वैसे तो उर्दू विद्यालय को शुक्रवार के दिन बंद ही रखा जाता है जो की गलत है पर हिन्दू विद्यालय ( बच्चों का दिया नाम) भी जुम्मे के दिन नमाज से पहले बंद हो जाते है । छोटे छोटे बच्चे, जिन्हें पढाई करनी चाहिए वो स्कूल छोड़ कर नमाज पढ़ने जाते है । किसी भी कौम के लिए यह सबसे दुखद बात है । शायद मुसलमानों में धार्मिक कट्टरता का एक बड़ा कारक भी यही है । बच्चों की पढाई को धर्म से अधिक महत्व देना चाहिए...आखिर भविष्य में उनको एक नयी दुनिया गढ़नी है । नया समाज बनाना है । यही कारण है की पढ़े लिखे लोग isis से जुड़ कर नरसंहार कर रहे है । क्रूरतम । और मरने वाले भी मुसलमान ही है । कल ही #Ndtv पे एक रिपोर्ट देखि, कैसे लोग अपने देश को छोड़ कर भाग रहे है और यूरोप के देश उन्हें शरण देने से मना कर रहे है ।  

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और समुन्द्र किनारे सीरिया के एक बच्चे का मिला शव किसे मार्मिक न कर गया होगा । रुला के रख दिया । युद्ध ग्रस्त सीरिया से इसके पिता पलायन कर रहे थे और नाव पलट गयी । पूरी दुनिया इस बच्चे की तस्वीर देख रोई है ।  

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और अपने यहाँ औरंगजेब रोड का नाम बदल के पूर्व राष्ट्रपति के नाम पे मो0 कलाम रोड किये जाने पे एतराज किया गया, धार्मिक कट्टरता चरम पे है । हमारे आदर्श कलाम होने चाहिए,जिन्होंने अपनी विद्वता से दुनिया में अपनी पहचान बनायीं न कि औरंगजेब, जिसकी क्रूरता अपनों को भी नहीं बख्सा... 

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हालांकि हिन्दू होने के नाते हिन्दू कट्टरपंथियों को मैं क्लीन चिट नहीं दे रहा । दोनों सामान है । जहर जहर है । हिन्दू और मुसलमान नहीं । 

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पर एक फर्क है, कई हिन्दू अपने धर्म के कट्टरता के खिलाफ आवाज बुलंद करते है और एम् एम् कुलबर्गी की तरह मारे जाते है पर मुस्लिमों में यह नगण्य है (शायद एक आध हों, जैसे तस्लीम नसरीन)  बल्कि कई जागरूक मित्र की उन्मादी पोस्ट मर्माहत कर जाती है ।  

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मेरा सिर्फ यह कहना है की शिक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं, बच्चों को बख्स दो । उसे स्वतंत्र करो । उसे समझने दो । मुक्त होने दो । और तब वह अपना धर्म स्वयं चुन लेगा...जो सेवा, करुणा और प्रेम का होगा.... 


(कृपया तार्किक तर्क दें, तथाकथित धार्मिक कट्टरपंथी मूढ़ों को यहाँ जहर उगलने कीजरुरत नहीं है)

12 सितंबर 2015

कौन शर्मिदा होगा...?


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यादवी पंचायत ने जिस परिवार को गाँव से तड़ीपार कर दिया वह महिला कल अपनी फरियाद लेकर आई और अपने आँचल से बांध रखे कुछ पैसे खबर छापने के लिए देनी लगी । मैं काठ रह गया । मामला मुसापुर,  बरबीघा, शेखपुरा, बिहार का है..


बारह-तेरह साल पत्रकारिता जीवन में ऐसा कई बार हुआ है पर हमेशा यह तेजतर्रार लोगों द्वारा किया जाता था । पहली बार एक पीड़ित आम ग्रामीण महिला द्वारा ऐसा किया था । शुरुआत के दिनों में ऐसा करने वालों पे गुस्सा करता था पर बाद में इस बात की समझ हुयी की ऐसा चलन आम है और इसको तोड़ने की जरुरत है ।

मैंने महिला को समझाया की आपकी खबर मैंने ही पहली बार प्रमुखता से प्रकाशित किया और मैं आपसे मिला तक नहीं था फिर क्यों आज पैसा दे रही है ?

दरअसल एक दौर था मेरे यहाँ जब बिना लिफाफा में पैसा रखे प्रेस विज्ञप्ति तक नहीं आती थी और बाकि बसूली तो खैर कहिये मत । अब शायद कामो बेश इसे ख़त्म करने में सफल रहा हूँ । कम से कम अब न्यूज़ को प्रकाशित करने अथवा रुकबाने के एवज में कोई मुझे पैसा देने का साहस तक नहीं जुटा पाता । और  जब  इसे ही न्यूज़ छप जाये तो कोई पैसा क्यूँ दे.. फिर भी कुछ आज भी है...पर कुछ ही..
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पूछने पर महिला बोली-"बौआ, जहां जहूँ पैसे मांगे हे । सोंचलुं ऐजो लगत । कैसु घर बसा दा ।
महिला के साथ उसकी सास (75 बर्ष) भी थी । बेटे के प्रेम प्रसंग मामले में यादवों ने दो माह पूर्व पंचायत लगा कर बढ़ई परिवार के सारे लोगों को गाँव निकाला दे दिया । उनके मवेशी पे कब्ज़ा कर लिया । घर लूट लिया । महिलाओं के साथ पंचायत में दुर्व्यवहार किया । अब दो माह बाद अन्य लोग गांव में जा बसे पर लड़का के परिवार को बसने नहीं दिया जा रहा है ।
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सुनीता देवी कहती है की उसके एक एकड़ खेत को भी दबंगों ने जोत लिया है । घान लगा दी है । जानवर को बेच दिया है । पुलिस भी उसे ही फटकार लगाती है । वह क्या करे । बेटा गलती किया तो जेल में है । कानून है सजा देगी ।
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समाज के हर क्षेत्र में गिरावट हुयी है । पत्रकारिता भी अछूत नहीं है । समाज के लोग ही यहाँ भी हैं । पर पत्रकारिता की गिरावट से समाज पे दूरगामी असर पड़ा है । जरूत है थोड़ी सी अपने अपने हिस्से की ईमानदारी को बचाये रखने की, इससे बड़ा बदलाव शायद ही हो, पर अँधेरी रात में जुगनू की झिलमिल भी राह दिखती है । एक उम्मीद जागती है । आपने  हिस्से की ईमानदारी बचा लूँ यही बहुत है ...