23 दिसंबर 2018

छुट्टा सांढ़...

( व्यंग्यात्मक रचना है दिल पे न लें)

तीन विकेट उखड़ते ही दो बातें हुई। एक, हूआ हूआ कर रहे सियारों का शोर ऐसे थम गया जैसे रंगा सियार का राजफाश हो गया हो। दूसरा, बच्चा क्लास से लगातार दादा जी और दादी जी की पैरवी से ग्रेस मार्क्स लेकर चौथा क्लास में लगातार चौथी बार फैल कर रहा पप्पू पास हो गया।

दोनों बातों के होते ही, फिर दो बातें हुई। एक, जैसे गांव देहात में एक लबनी धान होते ही डमरू दारू पीकर नितराने लगता है वैसे ही पप्पू की टीम नितराने लगी। दूसरी, गप्पू की टीम ऐसे ओलहन देते हुए अरझि परझि मारने लगी जैसे रामपुरवाली चाची भर ट्रक दहेज लाने वाली नई नवेली दुल्हिनिया को बात बात एक चौका में पीढ़ा नहीं देने के लिए ताना देती हो।

दोनों बातों के होते ही, फिर दो बातें हुई। एक फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप से आम आदमी ऐसे भाग खड़ा हुआ जैसे खेत में छुट्टा सांढ़ के आते ही गाय-गोरु सब साईड धर लेता है, चरने दो मन भर! जो बचेगा उसी को चरेंगे! और सांढ़ चरता कम है, खेत की फसल को बर्बाद ज्यादा करता है। जितना चरता है, जाने कैसे उससे ज्यादा गोबर करता है। गंध मचा देता है। बदबू फैला देता है।

दूसरी बात, फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप पे विजेता टीम ऐसे जश्न रूपी उधम मचाने लगी जैसे राजा जी की भैंस बियाने पे गांव भर जोरदार पार्टी में उधम होता है।

डीजे के फूल वॉल्यूम फूल अश्लील ही नहीं उससे दो कदम दोअर्थी भोजपुरी गाना और नर्तकी नृत्य, बम पटाखा और दोनाली से धड़ाम धड़ाम! जाम पे जाम। सब कुछ।

खैर ई सब के बीच अपने रामखेलाबन काका गांव के चौखंडी पर बक रहे थे।

"देख बौआ, शक्ति के संतुलन जरूरी हउ...उहे होलो..एकरा में अनपच काहे हो...तो सब जे एत्ते एत्ते काम गिना रहली हें से कन्ने हउ। अरे कजगा पर तो सब दिन अच्छा दिन रहबे कैल हें! धरतिया पर ने उतार मर्दे त जनियो..भाषण से कत्ते दिन पेट भरत...!"

(छुट्टा सांढ़ का मतलब समझ नहीं आया हो तो किसी बिहारी से पूछ लीजिएगा..ठीक है..)







12 दिसंबर 2018

भक्त नाराज है..मन की बात कहिये नहीं, मन की बात सुनिए..

बीजेपी के विरोध में पोस्ट करते थे तो जो भक्त मित्र तर्क कुतर्क के साथ लड़ाई झगड़े पे आ जाते थे आज वे नाराज है। वे सवर्ण समाज के मित्र है। चाय चौकड़ी से लेकर गांव के दालान तक वे मोदी जी के लिए झगड़ते थे पर साढ़े चार साल बाद वे हताश है।

एससी एसटी मुद्दे पे कांग्रेसी सियासी शतरंजी चाल में फंसी बीजेपी शाहबानो की ही तरह अपने पैर पे कुल्हाड़ी मार ली। वोट बैंक बड़ा भले न हो पर भोकल वोट बैंक को खोना भारी पर गया। रही सही कसर आरक्षण के मुद्दे पे अंदर अंदर हवा देकर विपक्ष ने आग जलाए रखी।

पॉइंट एक प्रतिशत से हार हुई है जबकि नोटा को डेढ प्रतिशत वोट मिला।

हार का कारण कई होते है। एक कारक कभी नहीं होता। पर उसी में मुख्य कारक है सवर्णों की नाराजगी। उधर दलितों में पैदा की गई बीजेपी विरोध को अध्यादेश के माध्यम से कम नहीं किया जा सका। सोशल मीडिया से लेकर गांव चौपाल तक। सवर्ण और दलित दोनों खुश है। दोनों को लगता है बीजेपी को हरा दिया। कांग्रेस को जिता दिया ऐसा कम सवर्ण  सोंचते है।

उधर व्यपारियों को जीएसटी और नोटबन्दी से जो परेशानी हुई उसका भी व्यापक असर है। ये कैडर वोटर थे। आज कमोवेश नाराज है। इसका कारण भी है। जीएसटी और नोटबन्दी ने इनकी कमर तोड़ दी है। आजतक परेशान है।

और इधर उज्जवज योजना, फ्री बिजली योजनाओं का झूठ भी है। कहा जाता है कि फ्री रसोई गैस और बिजली दी जा रही। यह पूरी तरह झूठ है। रसोई गैस और बिजली कनेक्शन फ्री नहीं इंस्टॉलमेंट पे दिया जा रहा। जो राशि एक मुश्त लेनी थी उसे सब्सिडी से काट लिया जाता है। बिजली बिल में हर माह जोड़ कर बसूली होती है।

किसानों की कमर तोड़ दी गयी। बातें बड़ी-बड़ी भले हो पर लाभ नहीं मिल रहा। फसल बीमा फैल है। लाभ नहीं मिल रहा। समर्थन मूल्य की घोषणा हवा हवाई। ऊपर से दलहन और तेलहन की कीमत विदेश के अनाज आयात करने से नीचे चली गयी। किसान को लागत से आधे दाम पे फसल बेचनी पड़ी। किसान प्याज फेंक रहे है।

जनधन का फूटा ढोल

जनधन योजना में खाता खोलने को बड़ी उपलब्धि बताई जाती है। यह फूटा ढोल है। ज्यादातर खाते बेकार हो गयी। इसके माध्यम से मिलने वाला जीवन बीमा का लाभ भी पैसे के अभाव में नहीं मिलता। महज 12 रुपये खाता में नहीं होने से जीवन बीमा का लाभ नहीं मिल पाता। सरकार क्या 12 रुपये प्रति व्यक्ति नहीं दे सकती ताकि सभी को बीमा का लाभ मिले!

बड़े मुद्दे भी है

हर साल रोजगार नहीं मिलना और पकौड़ा को रोजगार बताना बेरोजगार नौजवान के मुँह पे एक तमाचा था। वे हताश हो गए। कालाधन की वापसी नहीं। लोकपाल जैसे मुद्दे गौण होना। राफेल घोटाला पे पारदर्शी स्पष्टीकरण नहीं देना। मन की बात कहना, और मन कि बात नहीं सुनना कारण है।

पेट्रोल, डीजल की मंहगाई से भारी मार पड़ी है और इसे सरकार मजाक में उड़ा देती है।

एक बड़ा कारण राम मंदिर बनाने जैसे मुद्दे पे बीजेपी को घेर कर यह बताया जा की वादा नहीं निभाया, एक बड़ा कारण है। भक्त राम मंदिर मुद्दे पे बीजेपी द्वारा छल करने की बात सरेआम कहने लगे है।

हार के कारण कई है इसपे आत्ममंथन की जरूरत है और आत्ममंथन इस बात पे भी हो कि हार का कारण कई लोग अहंकार क्यों बता रहे...?

कई कारण है। सबसे बड़ा कारण एन्टी इनकंबेंसी भी हो सकता है। फिर भी 2019 में बहुत कठिन है डगर पनघट की।

06 दिसंबर 2018

अरे साला रिक्शा

अरे साला रिक्शा

नगर के जाम में रिक्शा के आगे अपनी बाइक लगा कर जाम लगाने के अपराधबोध से मुक्त युवक ने सीधा सीधा रिक्शा चालक को गाली देनी शुरू कर दी।

"अरे साला रिक्शा नै जना हउ रे, ले पीछे। मार के फाड़ देबौ!"

वह नौजवान दबंग दिखने का भरपूर कोशिश कर रहा था। बाइक पे नए फैशन का महाकाल स्टिकर चिपका हुआ था। रिक्शा वाला जैसे तैसे रिक्शा पीछे लिया।

नौजवान ने बाइक आगे बढ़ा ली। सामने एक स्कार्पियो गाड़ी था। जैसे ही गलत साईड बाइक सवार नौजवान स्कार्पियो के सामने गया उसपे सवार दबंग जैसा व्यक्ति भड़क गया।

"अरे मादर..., साला, काट के गाड़ देंगे। साला तुम्हीं लोग जैसे लफुआ कि गलती से यह जाम है। जैसे तैसे गाड़ी घुसा देता है।"

नौजवान चुपचाप बाइक साईड करने लगा और मैं सोंच रहा था कि इसे ही कहते है हम पर तुम, तुम पर खुदा।

04 दिसंबर 2018

गौ हत्या के नाम पे इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या भीड़ ने नहीं की, विचारधारा ने की है..

अरुण साथी

शहीद सुबोध सिंह इंस्पेक्टर के पुत्र ने हम सब से पूछा है कि "आज हिंदू मुस्लिम विवाद में मेरे पिता की मौत हुई है? कल किसकी होगी? यह भी बता दो यार.. क्या इसका जवाब है हम सब के पास?"

बुलंदशहर में गौ हत्या ने नाराज लोगों ने सुबोध सिंह इंस्पेक्टर सहित दो लोगों की हत्या कर दी। यह हत्या भीड़ का इंसाफ है परंतु इस हत्या से खून के छींटे उन सब के दामन पर हैं जो धर्म और भावनाओं की राजनीति करके ऐन केन प्रकारेण इस तरह की कोशिशों को तर्क वितर्क करके सही ठहराते हैं।

यह आग जो आग लगी है यह एक दिन की नहीं है। बरसों से इसे हवा दी जा रही है। जब भीड़ की हत्या में शामिल हत्यारों को हम फूल-माला देकर सम्मानित करते हैं। सोशल मीडिया पर उनके कसीदे गढ़े जाते हैं और धर्म का जिंदाबाद कहा जाता है तब यह उसी समय तय हो जाता है कि एक हत्यारे के साथ खड़ा होकर कहीं ना कहीं हम भी उस हत्या में शामिल है।

उत्तर प्रदेश में जो हत्या हुई है उसमें कम से कम उन लोगों को शोक व्यक्त करने का जरा भी अधिकार नहीं है जो धर्म की राजनीति को हवा देते हैं। ऐसा जब मैं कह रहा हूं तो इसका मतलब मेरा एक पक्ष से कतई नहीं है। जो लोग शरीयत के नाम पर चीजों को सही ठहराते हुए आंख मूंदकर किसी का विरोध करते हैं वैसे लोग भी इसी में शामिल हैं जो गौ हत्या के नाम पे आदमी की हत्या जैसे मामले में खामोश होकर या तर्क से सही ठहरा कर छाती चौड़ी करते हैं।

आज देश में बिलकुल ही खतरनाक स्थिति है और यह खतरनाक स्थिति केवल इसलिए नहीं है कि एक पक्ष के कट्टरपंथी हावी हैं और उनकी सरकार है। बल्कि इसलिए भी है कि दूसरे पक्ष के लोग केवल एक पक्ष को ही तुष्टीकरण करते रहे जिससे नाराजगी की वजह से दूसरा पक्ष आज भारतीय जनता पार्टी के साथ मजबूती से खड़ा है।

भारत के सेकुलरिज्म को दक्षिणपंथी से उतना खतरा नहीं है जितना सेकुलरिज्म के नाम पर एक पक्ष को समर्थन करने की राजनीत से है।

वोट बैंक के लिए जब हम एक पक्ष का समर्थन करते हैं तो दूसरा पक्ष भी ध्रुवीकरण होता है। आज इस वैश्वीकरण के युग में जब दुनिया मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दे रही हो

मेरा देश अमानवीयता की ओर तेजी से बढ़ रहा है। भले ही हम युवा पीढ़ी के डंके बजाते हो परंतु आज युवा पीढ़ी के मन में प्रगतिशीलता, विकासवाद और पोंगापंथी के खंडन की बात नहीं है बल्कि उनके माथे में धर्म का नशा है! उन्माद है! गुस्सा है! जहर है! विस्फोट है! विध्वंस है! सर्वनाश है!

इस आग को वोट के लिए जो भी हवा दे रहे हैं आज नहीं तो कल उनका भी घर चलेगा और जल भी गया है! उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में शहीद इंस्पेक्टर इसी के उदाहरण है। आगे और भी भयावह स्थिति होने वाली है।

सुबोध सिंह को मेरा नमन! सुबोध सिंह की हत्या केवल उस भीड़ ने नहीं की जो उस समय वहां थी बल्कि उसने की है जो उस भीड़ के साथ हमेशा से खड़ी है! हत्यारा होते समाज को मेरा धिक्कार है...

01 दिसंबर 2018

किसान आंदोलन! चोंचलेबाजी या होगा किसानों का भला

किसान आंदोलन सिर्फ चोंचलेबाजी या किसानों का होगा भला.

अरुण साथी

किसानों का मुद्दा फिर आज बीच बहस में है। दिल्ली की सड़कों पर रैलियां हैं और सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी विरोधी किसानों की रैली की तस्वीर के साथ साथ मीडिया को भी कोस रहे। बिकाऊ मीडिया पर रैली को नहीं दिखाने का आरोप है।

इसी क्रम में आज तक जैसे न्यूज़ चैनलों पर किसानों की रैली का कवरेज मैंने देखा। एक झलक यह भी देखा कि जब मीडिया के लोग वाइट लेने के लिए कैमरा आगे किया तो सूट-बूट में एक व्यक्ति पूरी तरह से अंग्रेजी झाड़ते हुए किसानों की समस्या पर बात कर रहे थे। तभी यह बात समझ गया की यह रैली पूरी तरह से प्रायोजित है।

दरअसल किसानों की स्थिति इसीलिए नहीं सुधरती क्योंकि किसान खुद अपनी समस्या को लेकर आगे नहीं आ रहे हैं।

कर्ज माफी समाधान नहीं

इसी तरह के प्रायोजित आंदोलनों की वजह से किसान को उनका हक नहीं मिल रहा। राजनीतिक लोग केवल किसानों की समस्याओं का समाधान किसानों की कर्ज माफी में देखते हैं। हालांकि कुछ लोग स्वामीनाथन रिपोर्ट को भी लागू करने की बात कह रहे हैं जिसमें यह कहा गया है कि लागत से डेढ़ गुना किसानों को मिलना चाहिए। किसानों की मूलभूत समस्या बहुत गंभीर है और गांव में किसान मजबूरी में ही खेती कर रहे।

बिहार और उत्तर प्रदेश के इलाकों में जो स्थिति है वह ज्यादा भयावह है। यदि किसी घर का लड़का हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, सूरत में जाकर कमाई नहीं करें तो उसे नोन रोटी पर भी आफत हो जाए।

कहने का मतलब यह कि किसान अब मजबूरी में ही खेती कर रहे हैं। किसानों की समस्या का समाधान कर्ज माफी मुझे दिखाई नहीं देता। कर्जमाफी केवल राजनीति का स्टंट है।

क्या है समाधान

किसानों की समस्याओं का समाधान सबसे सहज रूप में इस तरह से देखा जा सकता है कि किसानों के खेतों को सिंचाई के लिए मुफ्त में बिजली और पानी मिले। किसानों को खेतों में देने के लिए उर्वरक सस्ते दामों पर मिले। बिचौलिए उसको नहीं हड़प न ले।

किसानों को बीज के जंजाल में आज फंसा दिया गया है। खेती करना आज एक महंगा सौदा हो गया है। बीज की कीमत इतनी अधिक हो गई है कि कर्ज लेकर किसान बीज खरीदते हैं और खेतों में लगाते हैं और यदि मौसम ठीक नहीं रहा तो वह कर्ज में डूब जाते हैं।

पहले ऐसा नहीं होता था। पहले किसान अपने ही बीज से खेती करते थे कुछ इसी तरह के प्रयोग की जरूरत है।

दूसरी समस्या किसानों को फसल बेचने में होती है। सरकार सब्सिडी तो कुछ फसल पर देती है और सहकारिता वाले किसानों से धान भी खरीदते हैं परंतु यहां राजनीति का पंगा जबरदस्त है। किसानों से पैक्स वाले धान खरीदते हैं पर भ्रष्टाचार का आलम यह है कि 2 साल से कई किसानों को उसकी फसल का पैसा नहीं मिला।

आलम यह है कि किसान को पता भी नहीं होता और उनके नाम पर फसल बिक जाती है और पैसा पैक्स अध्यक्ष उठाकर मौज उड़ाता है।

एक और गंभीर समस्या किसानों के साथ यह भी देखने को मिलती है कि मजदूर नहीं होने से खेती एक बड़ी गंभीर विषय हो गई है। इसलिए भी लोग इस से मुंह मोड़ रहे। मजदूर अधिक पैसे की मांग करते हैं और किसान उतना देने में सक्षम नहीं होता।

मशीन अभी सब बेकार है

मजबूरन मशीन पर आश्रित होना पड़ता है परंतु इस वैज्ञानिक युग में जहां हम मंगल ग्रह पर जा रहे हैं और तरह तरह की तकनीक है परंतु खेती के सटीक उपयोग के लायक तकनीक आज भी नहीं है। जैसे धान अथवा गेहूं के फसल की कटाई का जो यंत्र है हार्वेस्टर वह पूरी तरह से बेकार और बकवास है।

हार्वेस्टर मशीन से धान की कटाई तो होती है परंतु उसका परली छोड़ दिया जाता है जो जलाने पे किसान मजबूर होते हैं और उनके मवेशी को चारा भी नहीं मिल पाता।

होना यह चाहिए था कि मवेशी का चारा भी बन जाता और धान भी निकल जाता। गेहूं में भी यही स्थिति है। फसल का बीज तो निकलता है परंतु उसके चारा बनाने का प्रक्रिया बहुत ही परेशानी वाला है।

इस यंत्र को ट्रैक्टर के साथ ऐसा बनाया जाना चाहिए था कि फसल से बीज भी निकल जाए और पशु का चारा भी बन जाए तो किसानों में खुशहाली होती।

सब्सिडी घोटाला

किसानों के यंत्र खरीदने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी अधिकारियों के जेल में चला जाता है। जो सामान बाजार में ₹100 में उपलब्ध है वहीं सब्सिडी पर ₹200 मूल्य का मिलता है और सरकार इस पर ₹100 की सब्सिडी देती है। यह सब्सिडी अधिकारियों के जेब में चला जाता है इसलिए किसान का इसमें कोई भला नहीं।

कहने का मतलब यह है कि राजनीतिक से किसान का कभी भला नहीं होगा और सब से बड़ी बात यह है कि किसान अपनी समस्या खुद है । चुनाव में कभी भी किसान किसान नहीं होते। किसान हिंदू-मुस्लिम में बांटते हैं। किसान जातियों में बांट दिए जाते हैं। जब तक किसान अपनी समस्या को लेकर खुद आगे नहीं बढ़ेगा तब तक किसानों का भला यह राजनीतिक दल कभी नहीं कर सकते।

जो रैलियों के माध्यम से अपनी रोटी सेकना चाहते हैं। आप भले ही नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए बहुत सारा भीड़ जुटा लीजिए पर इस भीड़ से ना तो किसान का कल्याण होगा और ना ही किसान के घर में खुशहाली आएगी धन्यवाद।

31 अक्तूबर 2018

मंदिर मस्जिद साथ साथ एकता दिवस पे बिशेष

#एकता_दिवस #मंदिर_मस्जिद साथ साथ

आज एकता दिवस है। मंदिर मस्जिद का मुद्दा फिर चुनाव आते ही चरम पे है। विकास, रोजगार, रोटी का मुद्दा गौण। इसके लिए केवल नेताओं को दोषी मानना गलत है। नेता तो व्यपारी है। जो माल सबसे अधिक बिकेगा वही माल दुकान में सजायेंगे।

पर पता नहीं गांव के लोगों को मंदिर मस्जिद मुद्दे के बारे में पता भी है या नहीं। यह तस्वीर बहुत कुछ कहती है। यह तस्वीर है शेखपुरा जिला के बरबीघा प्रखंड के डीह निजामत गांव की।

मंदिर और मजार दोनों साथ साथ हैं। मंदिर में भी पूजा होती है और मजार पर भी चादर चढ़ाई जाता है। मुसलमान अपने इबादत में रहते हैं और हिंदू अपनी पूजा में।

आज तक कभी किसी विवाद की बात सामने नहीं आयी।

यह अलग बात है कि सोशल मीडिया, न्यूज़ चैनल और राजनीतिज्ञों के द्वारा देश की एकता खतरे में बताई जाती है परंतु गांव के लोग देश की एकता की डोर मजबूती से थामे हुए है।

बाकी तो जो है से हैइये है।

खुदा एक है घर अलग अलग बसा लिए हमने!
कहीं मस्जिद, कहीं गिरजा, कहीं मंदिर बना लिए हमने!!

30 अक्तूबर 2018

मीटू

#मीटू
अरुण साथी

स्थान पटना का मौर्यालोक। एक राजस्थानी नवयौवना युवती फुटपाथ पे है। वह राजस्थानी श्रृंगार के गहने बेच रही है।

तभी एक पड़ोसी फुटपाथी कंमेंट करता है।

"लेने के बदले नगर निगम वाला कितना रुपैया दिया!"

युवती सुन कर भी अनसुना करते हुए भाव शून्य चेहरे को ऊपर करती है। उसकी आँखों में गहरे काले काजल थे। शायद वह दुनिया की बुरी नजर में तप कर ही जवान हुई है।

उसके नजर उठाते ही फुटपाथी दुकानदार बात पलट देता है।

"नहीं कह रहा था कि नगर निगम वाला कितना पैसा लिया दुकान लगाने का..!!"

आसपास के सभी फुटपथियों के चेहरे पे वासनायुक्त मुस्कान थी पर युवती भाव शून्य चेहरा लिए सबको टुकुर टुकुर निहारती रही!

मैं सोंचने लगा, काश इसके पास भी फेसबुक, ट्वीटर और व्हाट्सएप होता तो यह भी मीटू लिखती..😢

29 अक्तूबर 2018

विकास

विकास

प्रखंड में पंचायत प्रतिनिधियों की बैठक चल रही थी। जिले के आला अधिकारी मौजूद थे। पंचायती राज के सबसे निचले पायदान के प्रतिनिधि वार्ड सदस्य भी मौजूद थे।

आला अधिकारी वार्ड सदस्य को डरा-धमका रहे थे।

"विकास कार्य गुणवत्तापूर्ण करिए नहीं तो जेल चले जाइएगा। सारी जिम्मेदारी आपकी है।"

एक वार्ड सदस्य सच में डर गया। मायूस होकर बोला।

"सर, चार लाख के योजना में डेढ़ लाख तो साहेब अउ मुखिया जी कमिशने में चल जा हय, हमरा अर के तो दू पैसा बचबे करो हई। बढ़िया रोड कैसे बनत।"

सब टुकुर टुकुर एक दूसरे का मुँह देखने लगे।

26 अक्तूबर 2018

धौंस

#धौंस

अरुण साथी

पटना के मौर्या लोक में कुल्हड़ की चाय बेचते है दाढ़ी वाले बाबा। चाय प्रेमी होने की वजह से चला गया। कुछ भी पूछिये, हिंदी कम, अंग्रेजी ज्यादा बोलते है।

खैर, चाय ली और जैसे ही होठों से लगाया उसकी कड़क सोंधी खुशबू और स्वाद मन में घुलता चला गया। आह। एक कप और लिया।

इसी बीच बातचीत जारी रही। आधा अंग्रेजी आधा हिंदी। आरा से प्रत्येक दिन आते है। बक्सर में एसपी से लड़ गया। अपने जमाने के ग्रेजुएट है, इत्यादि।

तभी एक कार से बर्दीधारी सिपाही उतरा और चाय का आर्डर दिया। कार से अंकल अंकल कहके एक बच्ची उसे परेशान कर रही थी। शायद बॉडीगार्ड है। मुझे क्या।

वह भी चाय पीने लगा। जब पैसे देने की बारी आयी तो वह पहले तो आनाकानी किया पर जब बाबाजी ने मांग लिया तो दस का नोट बढ़ा दिया। बाबाजी ने तीन रुपये लौटा दिया।

वह एक दम से भड़क गया।

"साला एक कप चाय का सात रुपया! पूरे पटना में यह रेट नहीं है। तुम्हीं लोग लूटते हो साले। जब सियाही को नहीं छोड़ रहे तो पब्लिक का क्या करोगे।"

"लूटने का काम तो आपका है बाबूजी, हम लोग तो मेहनत मजदूरी करके कमाते खाते है।" बाबाजी ने दो टूक जबाब दिया।

सिपाही कुछ बोलता की तभी चाय पीने वाले सभी सिपाही पे टूट पड़े। "फ्री में चाय खोजते है।" सिपाही चुपके से खिसक लिया।

30 सितंबर 2018

"पति पत्नी और वो सह भौजाई पे चर्चा" एकल संगोष्ठी

"पति पत्नी और वो सह भौजाई पे चर्चा" एकल संगोष्ठी।

(अरुण साथी)

मिलॉर्ड ने जैसे ही इधर उधर मुँह मारने का लाइसेंस फ्री कर दिया वैसे ही अपने भाय जी के दिल में लड्डू फूटने लगा। वह भी कैडबरी टाइप। धड़ाम धड़ाम। आंख में आगे दर्जनों फेसबुक फ्रेंडनी का चिक्कन-चुप्पड़ चेहरा डांस करने लगा। भाय जी आंख बंद कर सपने में खो गए। कल जिसको इनबॉक्स में चैट किया वही सपने में छा गयी।

तभी भौजाई जी धमक गयी। आंख मूंदे, मुस्कुराते भाय जी को देख वे समझ गयी कि मिलॉर्ड के फैसले से कुछ ज्यादा ही खुश हो रहे हैं। बस क्या था। सुना दी।

"मिलॉर्ड का फैसला पढ़ लेला का जी। तनी बढ़िया से पढिया। साफ लिखल हो पत्नी का मालिक पति नै होबो हे। अब पत्नी के भी पावर हो।"

बस भाय जी के सपना चकनाचूर हो गया। दिल का लड्डू टूट गया। गुमसुम हो अखबार में एक एक अक्षर पढ़ने लगे। तभी भाय जी का नजर भौजाई जी के मोबाइल पे गया। उठा के फेसबुक, व्हाट्सएप चेक करने लगे। इनबॉक्स में बधाई मैसेज का भरमार। बधाई हो, पति की विस्तरी से स्त्री आज़ाद हो गयी। धारा 497 से आजादी मिली। उनके वही दोस्त-यार बधाई दिए हुए थे जिनकी बीबी को भाय जी ने बधाई दी थी।

भाय जी को अब भौजाई पे भरोसा नहीं रहा। बस क्या था। भाय जी फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप पे मिलॉर्ड के लिए मन का भड़ास खोल दिया। उंगली तोड़ दिया। सभ्यता संस्कृति का नाम ले ले के कोसने लगे। स्त्री व्यभिचारिणी हो जाएगी। मिलॉर्ड ने कुंठा में फैसला दे दिया। ये मिलॉर्ड कैसे बन गए, आदि, इत्यादि। और गज्जब तो यह हो गया कि कंमेंट में सभ्यता, संस्कृति के नाम पे मिलॉर्ड को गाली-गुत्ता करने वालों की कमी नहीं रही। पोस्ट हिट हो गया। पर ज्यादातर वही दोस्त थे जो भौजाई को इनबॉक्स में खुल्लम, खुल्ला प्यार करेंगे। हसबैंड से अब नहीं डरेंगे हम दोनों। लिख के बधाई दी थी।

आजकल भाय जी सदमे में है। कुछ बोल ही नहीं रहे। आपसे कुछ बोलेंगे तो बताईयेगा। वैसे सोंच रहे कि भौजाई की अध्यक्षता में "पति पत्नी और वो सह भौजाई पे चर्चा" एकल संगोष्ठी का आयोजन कर ही लें। का कहते है जी, ठीक रहेगा..न!!

28 सितंबर 2018

मर्दानगी पे चोट है सुप्रीम कोर्ट का विवाहेतर संबंध पे दिया गया फैसला।


विवाहेतर संबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जब यह फैसला दिया कि अब यह अपराध की श्रेणी में नहीं रहेगा तो एकबारगी पितृसत्तात्मक समाज में खलबली मच गई। जैसे यह उसकी मर्दानगी पे चोट हो। ज्यादा तर पुरुष, स्त्री को व्यभिचारिणी बता कर इसे प्रचारित करने लगे। कुछ महिलाएं भी पितृसत्तात्मक गुलामी की वजह से सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देने लगी।

क्या था धारा 497

158 साल पुराने धारा 497 स्त्री के अधिकारों का हनन करती थी। जिसने पत्नी को पति द्वारा अपनी जागीर समझे जाने का अधिकार था। मतलब कि पत्नी यदि स्वेच्छा से किसी गैर मर्द से संबंध रखती है तो पत्नी के पति को अधिकार था कि वह मुकदमा करे जिसमे संबंध रखने वाले गैरमर्द को पांच साल की सजा का प्रवधान था। जबकि पति यदि किसी गैर स्त्री से संबंध रखती है तो स्त्री (पत्नी) को कोई अधिकार नहीं दिया गया। पत्नी न तो अपने व्यभिचारी पति पे मुकदमा कर सकती है और न ही गैर स्त्री पे।इसमे स्त्री के अधिकार के हनन की बात साफ थी।

खैर। अब जरा हकीकत पे गौर करें। घरों ने चलने वाले टीवी सीरियल पे जब विवाहेत्तर संबंध को अतिआधुनिक रूप सज्जा के साथ पेश किया जाता है और घरों की महिलाएं उस सीरियल को देखने की दीवानगी रखती है तब यह महज एक मनोरंजन होता है। परंतु हम भूल जाते है कि सिनेमा, साहित्य समाज का आईना होता है। उसी आईने में हम अपनी तस्वीर देखकर मजे लेते है।

अब जरा इधर देखिये। जहां पाँच पुरुष बैठे नहीं कि स्त्री वहां चर्चा में आ ही जाती है। कौन किस स्त्री से फंसा हुआ है। किसकी स्त्री कितनी अधिक कामुक है। कौन सी स्त्री फेसबुक पे सेक्सी लग रही। किस स्त्री ने इन बॉक्स में चैट किया। आदि इत्यादि। और बहन, बेटी, पत्नी यदि रोजगार, नौकरी, राजनीति, सामाजिक कामों से घर से बाहर कदम रखी नहीं कि वह वेश्या हो जाती है। कामुक समाज उसके स्त्री के स्तित्व को खारिज कर उसके देह को नापने लगता है। झूठ सच के किस्से गढ़ दिए जाते है। और बुजुर्ग से बुजुर्ग लोग गांव की दालान पे बैठ के कौन स्त्री कहाँ मजे ले रही इसी तरह के कहानी में मशगूल देखे जाते है। यहां तक कि कौन कौन अपनी बहू की बांहों में आनंदातिरेक है। यह कहानी भी खूब चलती है।

स्त्री ही वेश्यावृत्ति करती है पुरुष को तो अधिकार है।

इसी तरह की मानसिकता समाज की है। अभी हाल में ही मेरे इलाके के एक गांव में एक युवती के अपने प्रेमी से कामरत वीडियो वायरल हो गया। आजतक के रिपोर्टर के माध्यम से यह जानकारी मिली तो खबर के पीछे लग गया। मामला सामने जो आया वह चौंकाने वाला था। स्वेच्छा से प्रेमी युगल ने कामरत वीडियो बनाई। युवती को ब्लैकमेल कर भोगने की नीयत से गांव के ही कुछ युवकों ने उसके प्रेमी को पकड़ कर खूब पीटा और उसके मोबाइल छीन कर उससे मेमोरी कार्ड निकाल लिया। जब युवती ने ब्लैकमेल होना स्वीकार नहीं किया तो गांव के युवकों ने ही वीडियो को वायरल कर दिया।

मजे की बात यह कि खबर की पड़ताल के दौरान पचास से साठ साल के बूढ़ों ने भी अपने मोबाइल में यह वीडियो होने अथवा किसी अन्य से देखने की बात कबूल की। यह समाज का स्याहपक्ष है।सच है। गंदगी है। कबतक हम इसपे पर्दा डाल के छुपा रखेंगे।

विवाहेतर संबंध की हकीकत

विवाहेतर संबंध के कई पक्ष आपको अपने आसपास मिल जाएंगे। कई मामलों में पुरुषों द्वारा अपनी पत्नी और परिवार को त्याग कर गैर की पत्नी के साथ रहने की बात सामने आती यही तो कई मामले में स्त्री के द्वारा पति को त्याग कर गैर पति के साथ रहने की।

मतलब, विवाहेतर संबंध एक स्वेच्छिक, शारीरीक और आत्मिक संबंध है। इसे सामाजिक मान्यता नहीं है। कह सकते है कि यह एक सामाजिक बुराई है। फिर इसका हल सामाजिक स्तर पे ही निकलेगा। हालांकि तलाक के मामले में कानून कारगर है।

खैर, सुप्रीम कोर्ट में बैठे लोग को आप चाहे जितना मूढ़ मति कह लीजिए पर वहां फैसला भावनाओं में नहीं लिया जाता वहां फैसले मानवीय मूल्यों के साथ साथ  समानता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और मौलिक अधिकारों के आधार पे होते है...।

बाकी तो सोशल मीडिया में ट्रायल भी होबे करते अउ सजा भी फांसी से कम नै! गन्हि महत्मा की जे जे!!