20 जुलाई 2012

कसौटी पर असफल... अंडरग्राउण्ड राहुल गांधी......


अरूण साथी
बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार हूं, राहुल गांधी का यह बयान बड़ा ही हास्यास्पद है। इससे पहले दर्जनों छोटी भूमिकाओं को निभाने में असफल रहे राहुल गांधी जब इस तरह का बयान देते है तो माथा ठोकने का मन करता है।
राहुल का यह कहना कि यह निर्णय पार्टी नेतृत्व और मनमोहन सिंह पर निर्भर है और भी बचकाना है। सबको पता है कि अभी तक पूरी तरह से असफल युपीए सरकार और अन्डरएचीवर पीएम के नेपथ्य में निर्देशक मां-बेटे ही रहे है।
पहली बार राहुल गांधी को देखने भर का मौका पिछले विधान सभा चुनाव में मिला जब अपने उम्मीदवार अशोक चौधरी के लिए चुनाव प्रचार लिए आए थे। भीषण गर्मी, हजारों की भीड़। भारी भरकम सुरक्षा व्यवस्था। कवरेज के लिए कई चैनलों का ओवी वैन। पैड न्यूज का जलबा। तभी अचानक आजतक का ओवी वैन बैरीकेटिंग के बगल में आकर खड़ी हो गई। रिर्पोटर मंच के नजदीक जाने का रास्ता तलाशने लगे। तभी तीन चार सुरक्षा अधिकारी उनकी ओर लपके, राहुल के आने में  अभी देर थी। अधिकारी रिर्पोटर पर बरस रहे थे-गिरफ्तार कर आतंकबादी धोषित कर देगें, क्या समझतो हो। बैन को पीछे ले जाओ। सभी हतप्रभ। मुझे लगा कि राहुल गांधी न होकर कोई आठवां अजूबा आने वाला हो।
फिर राहुल ने भाषण पढ़ा। भावशुन्य, उनके उम्मीदवार का  पराजय।
बिहार में लोकसभा हो या विधान सभा चुनाव जहां जहां राहुल गए, उम्मीदवार को मुंह की खानी पड़ी। 
एक असफल भूमिका।
फिर 2012 के युपी चुनाव में अपने लोकसभा सीट में अथक परिश्रम के बाद भी उम्मीदवार नही ंजिता सके।
एक असफल भूमिका।
जिस दलित कलावती के घर खाना खाने का नाटक-नौटंकी किए उसके घर को दबंगों ने ढाह-जला दिया, एक व्यक्तिगत परिवार के साथ न्याय-विकास संभव नहीं हो सका।
एक असफल भूमिका।
2009 में मंत्रीमंडल गठन में इनके ईशारे पर कई चहेतों को मंत्री पद मिला और राहुल की भूमिका को देश को नई दिशा देने बाला बताया गया, वही सरकार आज घोटालों का प्रर्याय बन कर रह गई।
एक असफल भूमिका।

जनलोकपाल बिल, अन्ना टीम, बाबा रामदेव और रामलीला मैदान। नेपथ्य में राहुल गांधी मुख्य भूमिका में थे, संसद में जनलोक पाल का खुला विरोध और अपरिपक्व भाषण, अन्ना की गिरफ्तारी, अनशनकारियों पर रात में हमला...
राहुल गांधी अंडरग्राउण्ड...
देश के सामने आतंकबाद, किसानों की आत्महत्या, छद्म धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक कट्टरवाद, आतंकियों को सम्मान जैसे मुद्दो पर.. 
राहुल गांधी अंडरग्राउण्ड....

यह राजनीति का वंशबाद नही ंतो और क्या है कि अनेकों बार कसौटी पर असफल रहे, ज्वलंत मुद्दों की समझ नहीं रखने वाले राहुल गांधी को बार बार नई भूमिका देने की बात होती..या फिर रसातल में जा रहे देश के लिए अंतिम कील की व्यवस्था हो रही है।

08 जुलाई 2012

सत्यमेव जयते का दलित उत्पीड़न! सिक्के का दूसरा पहलू भी है..


सत्यमेव जयते में आज दलितो के उत्पीड़न की कहानी दिखाई गई, इसे सिरे से नकारा नहीं जा सकता, पर इनती बुराईओं के बाद भी इसी समाज में अच्छाई भी है जिसको सामने आना चाहिए।

बात बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डा. श्रीकृष्ण सिंह से शुरू करना चाहूंगा। श्रीबाबू (पुकारू नाम) ने 1961 में बिहार के देवघर मंदिर में दलितों के साथ मुख्यमंत्री होते हुए प्रवेश किया। भेदभाव और छूआछूत निश्चित ही निंदनीय है पर इसको तोड़ने के लिए भी बहुत लोगो ंने सराहनीय योगदान दिया है। बाबा साहेब अंबेदकर से लेकर अपने गांव तक यह नजारा मुझे दिख जाता है। बाबा साहेब के कार्टून को लेकर भले ही बबेला मचा हो पर उनको अंबेदकर बनाने मंे एक पंडित शिक्षक का ही हाथ रहा है।

मैं अपनी बात भी कहना चाहूंगा। लगन मांझी की पत्नी जिन्हें मै चाची कहता हूं आज भी जब तब कहते रहती है ‘‘अपन छतिया के दूध पिलैलियो हैं बेटा।’’ दरअसल किसी कारणवश टोना टोटका को लेकर मां ने जन्म के समय में ही मुझे इनके यहां बैना (उधार) दे दिया था और उनका ही दूध पी कर मैं इस दुनिया जीना सीखा। आज तक कर्ज है मेरे उपर। 

फिर जब से होश संभाला तब से कभी छूआछूत को नहीं माना। बहुत सारी बातें है पर सहज है। इंटर के समय में बरबीघा में कुछ लोगांे से दोस्ती हुई जिसमें से नीरज, श्रीकांत, कारू, दीपक इत्यादि का नाम है। बाद के दिनों मे दोस्तों की जाति का पता चला। उसी में जाना कि श्रीकांत और दीपक चमार जाति का है, श्रीकांत बगल के गांव जगदीशपुर का रहने वाला। सबकुछ सहज। फिर सबके साथ कई बार धूमने टहलने गया। ककोलत झरना में स्नान के बाद सबने मिल कर खाना बनाया और एक ही थाली में श्रीकांत और मैं खाया। फिर श्रीकांत कें पिताजी का निधन हुआ। सब दोस्तों के साथ मुझे भी न्योता दिया। दोस्तों के साथ मैं श्रीकांत कें घर चला गया। श्राद्ध का भोज खाने। बरसात का दिन और धुप्प अंधेरिया में उसके गांव पहूंचा तो किसी को विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं भोज खाउंगा। किसी ने संकोचवश मुझे खाने के लिए नहीं कहा, पर मैं सहजतापुर्वक सबके साथ पंगत में बैठ गया और भोज खाया।

आज तक भी कहीं  भी मन में यह बात नहीं उठती है। सिक्के के दो पहलू होते है, पर इसमें यह भी सच है कि एक पहलू में अंधेरा धना है और दूसरे पहलू में रौशनी कम। बात जब अंधकार की हो तो साथ साथ रौशनी की चर्चा भी हो जाए तो इसे ईमानदारी कहते है, वरना सदियो से यह मुददा राजनीति भेंट चढ़ती रही है और चढ़ती रहेगी।