29 सितंबर 2023

ठाकुर का कुआं विवाद और वामपंथी विधायक का सहयोग

ठाकुर का कुआं विवाद और वामपंथी विधायक का सहयोग
3 दिन पूर्व आरा के तरारी से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी के दूसरी बार विधायक सुदामा प्रसाद मिलने पहुंचे। वे पार्टी के कार्यक्रम में आए हुए थे। इस बीच वे मिलने के लिए आए । तीन, चार घंटे का साथ रहा। उनका स्वागत सम्मान किया । नब्बे के दशक में छात्र संगठन आइसा के जिला अध्यक्ष होते हुए इनका सानिध्य मिला और वामपंथी के प्रति रुझान हुई।

उनकी सहजता, मृदु भाषी होना और इनका अपनापन किसी को भी कायल बना लेता है।

मैं और ग्रामीण मिथिलेश मिट्ठू उनके सानिध्य में कई साल जिले में रहकर वामपंथी को मजबूत करने का काम किया था । आज यह विधायक है। बहुत ही अभाव में जीवन जी कर विधायक बने हैं । परंतु बनने के बाद किसी तरह का अहंकार दिशा इन पर हावी नहीं हो सका। बातचीत के लंबे दौड़ के बाद हम लोग खाने के लिए मधुबन होटल के लिए जब निकले तो उन्होंने अपनी गाड़ी की अगली सीट पर मुझे बिठाया और खुद मिट्ठू की गाड़ी पर जाकर बैठ गए। इतना सहज..!!

यह बताते हैं कि  तीन चार लाख रुपये चंदा कर वे विधायक बन जाते हैं जो आज की राजनीति में मील का पत्थर है। ज्यादातर वामपंथी आज भी राजनीति में इसी तरह के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

खैर, आज बात राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद के ठाकुर का कुआं विवाद पर।

सामंतवादी प्रवृत्ति के लोगों ने निश्चित रूप से भेदभाव और छुआछूत रखा , परंतु अब इसका परिवर्तित रूप दूसरे तरह से भी सामने आने लगा है। वामपंथ का वर्ग संघर्ष की विचारधारा अब जातीय संघर्ष के रूप में है। जय भीम का नारा इस छुआछूत का विपरीतार्थक और उग्रवाद रूप में सामने आया है।

इस बीच ठाकुरों और ब्राह्मणों के बीच विवाद गहरा गया है और सोशल मीडिया पर कई जगह अपमानजनक बातें हो रही हैं । नेता इसे हवा दे रहे। इनमें अभी जेल से छुटकारा आए आनंद मोहन का नाम प्रमुखता से है। लालू प्रसाद यादव के राज्य में बिहार पीपुल्स पार्टी के माध्यम से इसी आनंद मोहन की स्वर्ण राजनीति का छलावा लोगों को आज भी याद है।

वैसे में सुदामा प्रसाद ने पिछली बैठकी में सहजतापूर्वक कई बातें बताई जिनका उल्लेख करना आज के समय में आवश्यक है क्योंकि समाज को बांटने वाले, समाज में सकारात्मक बातों को दबाकर नकारात्मक बातों को ही आगे रखते हैं।


अपनी बातचीत में सुदामा प्रसाद ने बताया कि बरबीघा में रहते हुए भूमिहारों के सानिध्य में रहकर उन्होंने वामपंथी का आंदोलन चलाया और कैसे-कैसे संघर्ष में लोगों का साथ मिला । मुझे तो याद नहीं था परंतु उन्होंने ही याद दिलाया कि पटना जब वह जाते थे तो हम लोग चंदा करके सौ– डेढ़ सौ रुपया उनको भाड़ा और रास्ते का खर्च देते थे। यह बात उन्हें आज भी याद है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि कटिहार के रेलवे प्लेटफार्म पर बुक स्टॉल चलने वाले सुधीर राय भी भूमिहार समाज के थे और उन्होंने वामपंथ की लड़ाई में उनके जबरदस्त साथ दिया जबकि वह आरएसएस और भाजपा से जुड़े हुए थे। अलग विचारधारा के होकर के भी वे उनसे प्रभावित थे और उनका आज भी उनसे पारिवारिक रिश्ता है । बताया कि जब भी वह कटिहार जाते थे या आते थे तो वह अपने जेब से कुछ पैसे देते थे यात्रा में टिकट वगैरा भी काटकर दे देते थे।

साथ ही बताया कि आईपीएफ के जमाने में जब वह संघर्ष कर रहे थे आरा में उस समय वह जेल से निकले तो एक बहुत ज्यादा परिचित नहीं न होकर भी एक व्यक्ति उनसे मिलने के लिए आए । वे किराए के छोटे से कमरे में पत्नी के साथ उस समय रह रहे थे। वह काफी आहत हुए और उन्होंने पूछा कि आपके पास घर नहीं है तो मैंने बताया कि मेरे पास घर के लिए जमीन नहीं है। इस पर वे राजपूत समाज के होते हुए भी अपना दो कट्ठा जमीन निशुल्क मेरे नाम कर दी।


आज के लिए यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि नेताओं के द्वारा नफरत की राजनीति सभी तरफ से चलती है। मोहब्बत की दुकान चलाने वाले लोग भी  साथ-साथ नफरत की दुकान चलाते हैं। सभी का मोहब्बत और नफरत अपने-अपने वोट बैंक के हिसाब से होता है। वैसे में समाज को बांटने का एक बार फिर से पूरा प्रयास बिहार में और तेजी से तेज हो गया है। बिहार में अति पिछड़ा को लेकर आगे बढ़े नीतीश कुमार की राजनीति अब अवसान पर है। उनकी राजनीति पर कब्जे की राजनीति तेजी से आगे बढ़ा है। देश की राजनीति में राहुल गांधी भी जातिगत जनगणना के पैरोकार बन गए। ऐसे समय में नफरत को मोहब्बत में बदलना बिल्कुल ही संभव नहीं , फिर भी सकारात्मक बातों को मंच मिलना चाहिए। लोगों को सच्चाई बतानी पड़ती है, बस इसीलिए।

27 सितंबर 2023

विश्व पर्यटन दिवस और बदहाल बिहार

 विश्व पर्यटन दिवस और बदहाल बिहार 


आज विश्व पर्यटन दिवस है । ऐसे में हम बिहार के लोगों को हमेशा से बाहर जाने पर शर्मिंदा होना पड़ता है। ऐसी बात नहीं की बिहार में पर्यटन की संभावना नहीं है परंतु बाहर के राज्यों की तुलना में हम पांच प्रतिशत ही पर्यटन का विकास कर सकें। इसके कई कारण हो सकते हैं परंतु एक सबसे बड़ा कारण राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। इसमें जाति और धर्म के नाम पर राजनीति कर वोट बटोर लेना पहली प्राथमिकता होती है, बाकी सब हासिये पर रह गया। इसके लिए किसी भी एक पार्टी को जिम्मेवार नहीं ठहरा सकते। क्योंकि भाजपा सहित सभी प्रर्याप्त समय तक यहां शासन की है।



राजगीर, सरकार की प्राथमिकता में रही है। जू सफारी, शीशा का पुल सहित कई योजनाओं को यहां दिया गया परंतु आज भी पर्यटन के मामले में उस स्तर का यहां कुछ भी नहीं है। सड़कों पर गंदगी, शौचालय में बदबू, पर्यटकों से दुर्व्यवहार यहां आम बात है। 



गया जी हो या वैशाली। सभी जगह यही स्थिति है । नवादा का ककोलत जैसा झरना दूसरे राज्यों में होता तो देश-विदेश से पर्यटक आते हैं परंतु यहां कुछ भी नहीं। अब जाकर कुछ शुरू हुआ है। बिहार का भीम बांध, श्रृंगी ऋषि, देव का सूर्य मंदिर, कैमूर का मुंडेश्वरी देवी मंदिर, गोपालबाद का भावे मंदिर, सासाराम का जल प्रपात। कई ऐसी जगह है जहां पर्यटन की संभावनाएं थीं परंतु बिहार में उसका विकास नहीं हो सका। पटना का पटन देवी मंदिर शक्तिपीठ होते हुए भी पर्यटन के क्षेत्र में उपेक्षित ही रह गया और यह सब निश्चित रूप से सरकार की प्राथमिकता में पर्यटन का नहीं होना ही प्रमुख कारक है। अभी सासाराम का जलप्रपात देखने का मौका मिला था । इतना खतरनाक चिकनापन वाली जगह की जरा सी लापरवाही में किसी की जान चली जा सकती है । और इतना खतरनाक के यहां बिहार में शराब बंदी के बाद भी सैकड़ो जगह पर आए हुए पर्यटक शराब के नशे में खुलेआम शराब पीते और मुर्गा बनने देखे गए। सुरक्षा के नाम पर शून्य व्यवस्था। सड़क में इतनी बदहाल की कई जगह गाड़ियां फस जा रही थी।

ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि दूसरे राज्यों में जो लोग भी जाते हैं बिहार से उन्हें यह कमी महसूस होती है। एक उदाहरण है मेघालय का यह एलिफेंटा जलप्रपात का नजार है। इसे देखकर आप आश्चर्यचकित होंगे । इतना साफ सुथरा । छोटी-छोटी चीजों का भी ध्यान रखा गया । शौचालय तक में साफ सफाई। हां एक बात यह भी है कि इसमें केवल सरकार के भरोसे सब कुछ नहीं हो सकता। आम लोग को भी सजग होना पड़ेगा । 


ऐसा इसलिए की मेघालय के एक जलप्रपात के पास चाय और स्नैक्स की दुकान पर जब हम लोग चाय पीने के लिए रुके तो एक मित्र ने स्नेक्स का उपयोग करने के बाद उसके रैपर को सड़क के किनारे फेंक दिया। दुकानदार दुकान से बाहर आकर उनसे दो बार निवेदन किया कि उसे उठाकर डस्टबिन में डालिए और डस्टबिन में डलवा दिया। यह होती है आम आदमी की संकल्प शक्ति।

25 सितंबर 2023

यात्रा वृतांत: कमरु-कामाख्या माता सती की शक्ती, दक्ष का दर्प और लोना चमारिन

 यात्रा वृतांत: कमरु-कामाख्या माता सती की शक्ती और दक्ष का दर्प



यात्रा वृतांत:-1

कमरु-कामाख्या।  बचपन से यह नाम सुना हुआ सा है। इस रूप में के यहां बड़े पहुंचे हुए तांत्रिक रहते हैं। आदमी को भेड़ बनाकर रख लिया जाता है। इसलिए यहां जाने का कौतुक मन में पहले से ही था। फिर साथियों ने जाने का मन बनाया तो मेरी भी सहमति बनी। एक माह पहले टिकट की बुकिंग हो गई। सापत्निक। पर दुर्भाग्य, जीवन के झंझाबातों के बीच बच्चों का कॉलेज में नामांकन उसी दिन निकल आया। रीना ने जाने से इनकार कर दिया । उदास मन से मित्र मंडली की बैठक बुलाकर अपने नहीं जाने का निर्णय सुना दिया। सभी उदास हो गए।


एक, दो मित्र भी नहीं जाने का बहाना बना दिया। इस बीच 19 नवंबर को यात्रा का शुभारंभ था। मित्रों की उदासी, यात्रा का अनुभव, थोड़ा तनाव से मुक्ति, इन सब कारकों को जोड़कर यात्रा का मन मचलने लगा। किसी तरह से बीच राह में किशनगंज में रात के 2:00 बजे तक मच्छरों के बीच रहकर रेलगाड़ी पकड़ी।



इस यात्रा का कमांडर भाई शांति भूषण मुकेश हमेशा की ही तरह थे। खजांची के रूप में रितेश भाई। हम लोग हमेशा की तरह एक जगह राशि जमा कर अमेरिकन सिस्टम से यात्रा पर निकलते हैं। कम खर्च, कम परेशानी। सुखद संजोग रहा की यात्रा दोपहर बाद कामाख्या तक पहुंच गई। वहां मंदिर के पास एक होटल में डेरा डाल दिया। होटल की व्यवस्था अच्छी नहीं निकली। हम लोग स्नान करके मंदिर में जाने का मन बना लिया।


सभी शाम मंदिर गए। भादो का महीना होने की वजह से बहुत कम भीड़ थी । अंदर पूजा का समय नहीं था। पूजा सुबह होनी थी। हम सब घूम घूम कर मंदिर का अवलोकन करने लगे। दिव्य और भव्य। अप्रतिम मंदिर। मंदिर परिसर केअंदर एक आध्यात्मिक अनुभूति मिली। संयोग से माता का प्रसाद का वितरण हो रहा था। हम सब ने उसे ग्रहण किया। माता के दरबार के पास ही बैठकर कुछ पल ध्यान भी लगाया।

इधर-उधर बिचड़ते और ध्यान लगाते कई तांत्रिक और साधु संत भी दिखाई दिए। इसी बीच कुछ चीज कौतुक का कारण बना । मंदिर में कबूतर और बकरे के बिचड़ने की प्रचुरता थी। रेलगाड़ी पर गया निवासी बड़े भाई अधिवक्ता मदन तिवारी मिले थे । उन्होंने मंदिर में बलि प्रथा को लेकर नकारात्मक बातें कही थी। मैं स्वयं माता के नाम पर जीव हत्या का आलोचक रहा हूं। कई मंदिरों में इसीलिए नहीं जाता ।

खैर, इस मंदिर में बकरे के बिचड़ने की जानकारी जुटा तो एक सकारात्मक बात सामने आई । आठवीं सदी के इस मंदिर में बलि की प्रधानता है। मंदिर के सामने, बाहर की ओर एक बड़ हॉल है। यहां बलि पड़ता है। यहां से गुजने पर वैसा ही गंध मिला जैसा की कसाई खाने से ।


स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां बलि की प्रधानता तो है पर यदि जीव हत्या नहीं करना चाहते हैं तो यहां विधिवत पूजा कर, जीव के गले में माला पहनकर उसे यहां छोड़ दीजिए। वह इधर-उधर खाना खाकर अपना जीवन गुजार लेगा। इसी बीच मंदिर की दीवारों पर कई पौराणिक कलाकृतियां दिखाई दी। मोबाइल में इस युग में चीजों को कैद करने की दीवानगी रहती ही है। तो हम सब ने भी यही किया। सब ने अपनी अपनी सेल्फी भी ली। ग्रुप फोटोग्राफी भी हुआ।


लौटने के बाद पेट पूजा की तैयारी में लग गए। मंदिर से निकलते ही दो साफ सुथरा शाकाहारी होटल दिखा।  हम सब शाकाहारी थे। वहां 70 से लेकर 135 रुपए की थाली भोजन मिला रहा था। हम सब ने मन पसंद भोजन किया।  फिर होटल में जाकर सो गए।



अगले दिन 4:00 बजे सुबह स्नान कर पूजा के लिए निकल गए। भीड़ अधिक नहीं थी। रजिस्ट्रेशन काउंटर पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया। एक पर्ची मिली। उसे लेकर लाइन में लग गए। हालांकि वीआईपी के लिए ₹500 देकर तत्काल पूजा की भी व्यवस्था थी परंतु हम लोग आम लोग थे, सो कतार में लग गए। इसी बीच लाइन वाले घेराबंदी में जगह-जगह कई कुत्ते प्रवेश कर गए। मंदिर परिसर में भी कुत्तों को विचारता देखा ही था। 

पूजा करने आए स्थानीय लोग भी थे । किसी ने कुत्तों को नहीं दुत्तकारा । मेरे लिए अजीब सा था। आमतौर पर कुत्ता को हम अछूत मानते हैं। देवघर की यात्रा यदि कुत्ता छू दे तो यात्रा को समाप्त मान लिया जाता है। यहां वह नहीं था। हालांकि सनातन धर्म में कुत्ता भगवान भैरव का सवारी माना जाता है। पूजनीय है । फिर भी उसे अछूत कई जगह मानते हैं परंतु यहां वह बात नहीं दिखा ।


कामरूप की लूना चमारिन की कथा भी यहां सुनने को मिली । वह इस्माइल योगी की शष्या थी। कहा जाता है कि शक्तिपीठ में वह योगिनी थी और तंत्र विद्या में सिद्धि प्राप्त था । यहां तंत्र विद्या के साधकों के द्वारा लोना चमारि के द्वारा स्थापित मंत्र का ही उच्चारण किया जाता है

गर्भ गृह में प्रवेश किया। गर्भ गृह  मंदिर के निचले भाग मेंहै। एक गुफा जैसा । बिल्कुल अंधेरे में । कांसा के एक बड़े दीपक में लौ जल रही थी।  गर्भ गृह  में एक अजीब सी अनुभूति हुई। जैसे कि मां  ने सिर पर आंचल रख दिया हो। गर्भ गृह की दीवारों पर भी कई पौराणिक चित्र बने हुए थे। हालांकि अंदर में मोबाइल का प्रयोग वर्जित था, सो तस्वीर कोई नहीं ले सका।

गर्भ गृह में माता की प्रतिमा नहीं थी। पौराणिक कथा अनुसार यहां सती के शव के साथ तांडव कर रहे शिव को शांत करने के लिए जब विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती के शव को टुकड़े-टुकड़े में खंडित किया तो यहां योनि का हिस्सा गिरने की बात कही जाती है।

मान्यता है कि ब्रह्मा के मानस पुत्र प्रजापति दक्ष का दर्प जब चरम पर था तो उसने माता शक्ति के शिव से विवाह को उपेक्षित किया। वहीं प्रजापति के द्वारा आयोजित यज्ञ में उसने देव, दानव सभी को आमंत्रित किया पर दर्प के चरम पर उसने अपने जामाता महादेव शिव और अपनी पुत्री को नहीं बुलाया। वे सती के शिव से विवाह करने से नाराज थे।  इसपर भी माता शक्ति सती अपने पिता के इसे आयोजन में चली गई। जहां शिव का अपमान किया गया। सती से पति का अपमान सहा नहीं गया। वही यज्ञ स्थल पर ही अपने को भस्म करना चाही। शिव क्रोधित हुए। दक्ष का शीश काट दिया गाय। वही दक्ष जो अमर था। ब्रह्मा पुत्र। वही शिव का तांडव शुरू हुआ। सती का शव कंधे पर रखे। फिर विष्णु ने शिव का क्रोध शांत करने सती के शव का खण्डन किया। 52 टुकड़ों में सती का शव धरती पर गिरा जहां आज शक्तिपीठ है।

बाद में देवताओं के अनुनय विनय के बाद दक्ष के शरीर को शिव ने एक बकरे का सिर लगा  दिया। दक्ष  के  बकरे  का  सिर  लगी  तस्वीर भी कामाख्या मंदिर के अंदर भाग में दीवारों पर लगी है। यह शायद हमारे अहंकार को चेतावनी ही है।


कामाख्या में सती के योनी का हिस्सा  गिरा। उसी की प्रतिकृति कि यहां पूजा होती है। जहां पर प्रतिकृति है वहां एक जलधारा बहती है। यह प्रवाह निरंतर है। साल में एक बार तीन दिनों के लिए यहां अंबुबाचि मेला लगता है । मंदिर के बगल में ही ब्रह्मपुत्र नदी है। कहा जाता है कि उस दौरान साल में एक बार जून में तीन दिनों के लिए मंदिर में पूजा बंद कर दिया जाता है। इस दिन कहा जाता है की माता रजस्वला होती हैं और मंदिर की जलधारा सहित ब्रह्मपुत्र नदी का जल भी लाल हो जाता है।

इस दौरान उपयोग किया गया कपड़ा यहां विशेष मंगलकारी माना जाता है और उसे श्रद्धालुओं को यहां के पंडा के द्वारा शुल्क लेकर दिया जाता है। कुल मिलाकर यहां के पांडा का भी व्यवहार काफी मानवीय रहा । अन्य जगहों पर पैसे छीन लेने या पैसे लेकर ही दर्शन और पूजन करने देने की अनुमति जैसी बात यहां नहीं देखी । गर्भ गृह में बहता जल को छूकर मैं भी आशीर्वाद लिया, आठ बजे बाहर आ गए।

11 सितंबर 2023

70 वर्ष की उम्र में पहला जन्मदिन मनाना...

70 वर्ष की उम्र में पहला जन्मदिन मनाया

अरुण साथी की कलम से

70 वर्ष की उम्र में पहला जन्मदिन मनाना सुनकर अटपटा लग सकता है। परंतु यह हकीकत है। दरअसल, बरबीघा के प्रख्यात चिकित्सक, सेवा निवृत सिविल सर्जन डॉक्टर कृष्ण मुरारी प्रसाद सिंह का पहला जन्मदिन सोमवार को धूमधाम से मनाया गया। जिले के ख्यातिलब्ध लोगों का जुटान हुआ। हैप्पी बर्थडे के धुन पर लोगों ने ठुमके भी लगाए और प्रेम के मधुर रस में डूबे व्यंजनों का आनंद भी उठाया।
दरअसल, पूर्व सिविल सर्जन डॉ कृष्ण मुरारी प्रसाद सिंह का यह पहला जन्मदिन था। आज से ठीक 1 साल पहले उनका किडनी प्रत्यारोपण किया गया था। जीवन और मौत से उन्होंने कई साल लड़ाई लड़ी । 
पहला जन्मदिन इस मायने में ही खास हो जाता है जब उनका किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हुआ था वह दौर कोराेना का था । उस दौर में ये शेखपुरा के सिविल सर्जन थे। वैसे में काम का दबाव झेलते हुए सप्ताह में दो-तीन दिन बिहार शरीफ में डायलिसिस करा कर अपनी जिम्मेवारियों का निर्वहन करते हुए अपने निजी चिकित्सालय का भी संचालन करना आम बात नहीं थी ।
कोरोना के उसे दौर में स्वस्थ आदमी भी घरों से निकलने से डरता था और ये डायलिसिस करा कर लगातार काम में जुटे रहे । नेकी का यह परिणाम रहा है कि इनका इस उम्र में भी किडनी प्रत्यारोपण सफल रहा। बड़ी संख्या में लोगों की दुआओं और प्रेम का ही यह परिणाम था। 

आज उदार हृदय से उन्होंने जन्म दिन पर लोगों से मिले। झूमते दिखे। वास्तव में थोड़ी भी ऊंचाई मिलने पर लोग सबसे पहले समाज से कटने लगता है। कई तरह के कुतर्क है। ऐसे में मुरारी बाबू का जबरन समाज में जुड़ना। धुलना मिलना। सामाजिक सरोकार में भागीदारी। आज के इस एकाकी दुनिया में प्रेरक है। हमे इनसे यह सीखना चाहिए। शतायु की हार्दिक शुभकामनाएं।

04 सितंबर 2023

मोदी विरोध का एजेंडा और आम आदमी की समझ

 मोदी विरोध का एजेंडा और आम आदमी की समझ 



तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के पुत्र मंत्री उदयगिरि स्टालिन का यह वक्तव्य की सनातन धर्म डेंगू , मलेरिया जैसा है। इसे खत्म कर देना चाहिए। चौंकाने वाली बात नहीं है। चौंकाने वाली बात यह होती है जब इस तरह का वक्तव्य दूसरे धर्म के लिए कोई कहता। हां इस समय निराशाजनक कई बातें हैं। देश में अभी कथित इंडिया गठबंधन सक्रिय है।   मुंबई की बैठक के तत्काल बाद स्टालिन का यह वक्तव्य आया और कांग्रेस नेता राहुल गांधी  जो मोहब्बत की दुकान चलाने की बात का दंभ भर रहे हैं , इसे हेट स्पीच की श्रेणी में नहीं रख सके।  दुखद स्थिति है कि नूपुर शर्मा के वक्तव्य को हेट स्पीच का कर हंगामा करने वाले कई यूट्यूब और पोर्टल के सूरमाओं ने भी इसे भी हेट स्पीच की श्रेणी में नहीं रखा। पहले लगता था कि यह सब स्वाभाविक है। पर अब लगता है कि नहीं, यह सब पुर्व-नियोजित रहता है।



देश में तेजी से बदल रही है। देश में संसद का यह सत्र मणिपुर हिंसा और स्त्री के वायरल वीडियो की भेंट चढ़ गया। चढ़ना चाहिए। लोकतंत्र तभी मजबूत है जब विपक्ष मजबूत होगा।

 
पर सवाल आम आदमी के मन में उठते है। मणिपुर में मोदी विरोधी खेमा की सक्रियता रही । पोर्टल, यूट्यूब और सोशल मीडिया के सूरमा खूब बहादुरी दिखाए। परंतु यह कम बताया गया कि मणिपुर इंफाल उच्च न्यायालय के द्वारा मैतेई को जनजाति का आरक्षण देने के आदेश से कैसे यह हिंसा भड़की । यह भी कम बताया गया कि जंगलों में कैसे बर्मा से भागे लोगों ने कब्जा किया है। कैसे वहां अफीम की खेती करके देश को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। यह भी नहीं बताया गया कि कैसे वहां नागा, मैतेई, कुकी,  सभी संगठनों के पास अपना अपना सेना जैसे गिरोह है।

एक मैतेई महिला के साथ दुराचार की खबर भी उस स्तर से नहीं दिखाई गई जैसे कूकी महिला के नग्न कर घुमाने की खबर। किसी भी हिंसा, महिला अत्याचार को सही नहीं ठहराया जा सकता । सभ्य समाज में तो कतई   नहीं होना चाहिए। परंतु केवल चयनित हिंसा, अपराध, महिला दुराचार के मामले को प्रचारित करना हम समझते हैं कि उन अपराधियों से भी ज्यादा नीचतापूर्ण कार्य करने जैसा है।


इतना ही नहीं इस सब के बीच हरियाणा के नुंह में शोभायात्रा के दौरान नियोजित तरीके से घेराबंदी और रास्ता रोककर युद्ध जैसी रणनीति अपनाते हुए हमला किया जाना, पुलिस और लोगों की मौत की खबर को भी औपचारिकता भर इन गिरोह के लोगों के द्वारा दिखाया गया।
सबके बीच राजस्थान में स्त्री के निर्वस्त्र करने की ताजा खबर भी गिरोह के लोगों ने कम नहीं दिखाया और सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश नहीं की। और ये वही लोग है जो गोदी मीडिया चिल्लाते है।

उधर, लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कुछ ऐसा करने की बात कही कि 1000 साल तक लोग याद रखें। इधर, संविधान और लोकतंत्र को खतरे में बताया जाने लगा। इस बीच अचानक पर संसद का विशेष सत्र को बुला लिया गया है। एक देश, एक चुनाव की सक्रियता बढ़ी है। चर्चा यह भी है कि एक देश, एक कानून का मुद्दा भी लाया जाएगा।

इस सबके बीच युवाओं की बेरोजगारी, सरकारी नौकरी में अवसर का कम होना, महंगाई, गरीब का और गरीब होना, अमीर का और अमीर होना ऐसे मुद्दे दबा दिए गए। ले-दे कर अडानी को घेरने की पूरी कोशिश हुई । ठीक वैसे ही फिर हो रही है, जैसे एक निजी कंपनी के द्वारा अमेरिका में यह कह  दिया गया कि अडानी कंपनी ने  बड़ी गड़बड़ी की और उस पर मोदी सरकार को घेर लिया गया। जबकि उस निजी कंपनी की विश्वसनीयता हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। सामान्य तौर पर वैश्विक स्थिति में कभी कोई भारत जैसे विकासशील देश की कंपनियों को अपने यहां सरवाइव करने नहीं देगा चाहेगा।

मुद्दे कई हैं। खैर ऐसे मुद्दे पर सरकार को नहीं न घेर कर टमाटर के लाल होने की खबर ऐसे चलाई गई जैसे अमृत की बूंद हो। देश का किसान और गांव का आदमी टीवी और नेताओं का बयान देख कर चौक रहा था। अभी टमाटर की खेती का समय नहीं है। ऐसे में आम आदमी टमाटर खाने की नहीं सोचता। विशेष आदमी की बात अलग है। ऐसे में 2000 किलोमीटर से फ्रीज वाहन से टमाटर लाकर ₹2 किलो की बिक्री भला कौन करता। इस सबमें चौंकाने वाली बात यह रही कि मोदी विरोध में किसान और किसान पुत्र भी टमाटर के मंंहगे होने पर रुदाली बन गए। कमाल की बात है कि जिस गोदी मीडिया को नेताओं के द्वारा गाली दिया जा रहा था और कहा जा रहा था कि उनकी खबरों को नहीं दिखाया जाता वही गोदी मीडिया ने मुंबई सहित गठबंधन के सभी बैठकों को लगातार कवर किया। कमाल की बात यह भी है कि युट्युब, पोर्टल वाले सूरमा मोदी को पानी पी पीकर गाली देते हैं और यह भी कहते हैं कि भारत में बोलने की आजादी नहीं है।


सवाल सत्तापक्ष से भी है। ₹700 रसोई गैस मंहगा कर के चुनाव के समय में ₹200 सस्ता करना ठीक वैसे ही लग रहा जैसे किसी स्त्री को निर्वस्त्र करके उसे एक गमछी उपहार में देना। युवाओं को नौकरी देने में पीछे होनाद्ध अग्निवीर के रूप में सैनिक भर्ती में अपना कैरियर तलाशने वाले युवाओं को अवसर हीन करना । ऐसे कई सवाल हैं।

 इन सवालों का जवाब बिहार सरकार ने हाल ही में केंद्र सरकार को दिया भी है। उन्हें पौने दो लाख शिक्षकों की बहाली सहित कई बहाली को तेजी से निष्पादित करना, केंद्र के लिए चुनौती दिया गया है। 


इस सब के बीच विपक्ष की एकता का फलाफल जो भी निकले। आम आदमी में विभिन्न राजनीतिक बयानों, गतिविधियों से देश का एक बड़ा वर्ग यह तो सोच ही रहा है कि यह सब एक वर्ग के तुष्टीकरण के लिए किया जा रहा है। इसके अनेकों कारण है। ताजा मामला बिहार में हिंदुओं की छुट्टी में कटौती, स्टालिन का बयान, हिंदू धर्म ग्रंथों को जलाने की तत्परता इत्यादि है। ऐसे में  गठबंधन कहां तक मोदी सरकार को गिराने में सफल होती है यह समय के गर्त में है परंतु आम आदमी की सोच में महागठबंधन की यही  छवि बनी है।