27 जून 2010

भारत का प्रजातन्त्र पूजींपतियों के हाथ की कठपुतली।

जिस देश के प्रजातन्त्र  को दुनियाभर के लोग सराहते है उस लोकतन्त्र की दुर्गति की चर्चा करना चाहता हूं। दुर्गती इतनी की एक वारगी यदि गम्भीरता से सोंचे तो हमारा प्रजातन्त्र पूंजीतन्त्र मेें तब्दील हो गया है। इसके कई खतरनाक उदाहरण है, पर हाल के दिनों में मंहगाई को लेकर हायतौबा होने के बाद जिस तरह चीनी की मंहगाई पर केन्द्र सरकार के मन्त्री शरद पवार के कब्जे का खुलासा हुआ और इस पर अंकुश लगाने की बात पर सरकार को गिरा देने की धमकी प्रकरण, यह सबसे खतरनाक संकेत थे। इसके बाद केन्द्र सरकार की असंवेदनशीलता ही है कि डीजल, पेट्रल और रसोई गैस की कीमत में इजाफा कर दिया गया। यह बात इतनी हल्की नहीं जितनी ली जा रही है। आज भारतीय राजनीति दो ध्रुविय हो चुकी है और दोनों ध्रुवों का संचालन परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से पूंजीपतियों के हाथों में है। याद करता हूं तो लगता है जो भारतीया जनता पार्टी आज मंहगाई का रोना रो घड़ीयाली आंसू बहाते नहीं थकती उसके शासन काल में भी जनता प्याज के आंसू रोई है। और फिर विनिवेश नीति के तहत अपने चहेतों को 1200 करोड़ तक का पांच सितारा होटल 200 से 300 करोड़ में दे दिया गया। काफी हाय तौबा हुआ पर जो नीति निर्धारक पूंजीपतियों को लाभ पहूंचाना चाहते है उनको कौन रोकता है। यही हाल आज केन्द्र के कांग्रेसी सरकार की है।

हलांकि लालू यादव, रामविलास पासवान और मुलायम सिंह से लेकर मायावती कांग्रेस को मंहागाई बढ़ाने के लिए कोस रही है पर जनता को बेबकुफ बनाने में शातिर ये राजनीतिज्ञ शायद यह भूल जाते है कि अभी हाल ही में भाजपा कें द्वारा कट मोशन लाकर इनको कांग्रेसी हमाम में नंगा कर दिया गया। आखीर जब मंहगाई कें सवाल पर सरकार को गिराने की बात आई तो ये कथित सेकुलरवादी क्यों कांग्रेस के साथ चले गए। क्या कांग्रेसी मंहगाई की मार सिर्फ हिन्दू ही झेल रहें है।
बात साफ है कि नेताओं की पूरी की पूरी फौज पूंजीपतियों की कठपुतली है और सभी देश की अस्मीता को दाबं पर रख कर राजनीति करते है। 

सवाल यह भी है कि आज हमारे संसद भवन और विधान सभा में कितने प्रतिशत आम लोग चुन कर जाते है। अभी विधान सभा का चुनाव बिहार में होना है और इसके लिए एक से तीन करोड़ का बजट बनाया जा रहा है। मुद्दा यह कि जहां से देश के आम लोगों के लिए नीतियां बनती है वहां आम आदमी का प्रतिनिधी होता ही नहीं, तब पूंजीवाद हाबी होगा कि नहीं। अभी सम्पन्न हुए राज्य सभा कें चुनाव में कितने प्रतिशत लोग आम आदमी के हितों के रक्षक आए है यह देखने वाली बात है। कोई वियर किंग तो कोई अरबपति वकील।
यहां पर वाम दलों की चर्चा भी लाजिम है। सर्वहारा की बात करते हुए बुर्जुआ को कोसने वाली पार्टी ही जब बुर्जुआ पार्टी की गोद में बैठ गई तो उसके पास भी महज संप्रदायिकता के कोई आम आदमी का मुद्दा नहीं रह गया। रही सही कसर सिंगूर औ नन्दीग्राम में उसकें पाले हुए कामरेड गुण्डों ने पूरी करते हुए यह जता दिया कि बुर्जुआ से लड़ने वाली द्वन्दात्मक भौतिकवादी पार्टी भी बुर्जुआ हो गई। हां यह बात दिगर है कि तर्क जाल के सुनहरे ताने वाने में इसे भी उचित ठहराने वाले वामपन्थी नेता इस काम की ट्रेनिंग अपना राजनीतिक जीवन प्रारंभ करने के साथ ही लेते हुए अब माहिर हो चुकें है।
किसे नहीं पता कि जनता कें विकास का पैसा पूंजीपतियों के साथ कदम ताल मिला कर दौड़ने की कोशिश कर रहे अधिकारियों और नेताओं कें हाथों में चली जाती है।
कौन नहीं समझता कि राहुल गांधी भले ही दलितों के घरों में खाना खाने का स्वांग कर रहे हो पर आम आदमी का दर्द समझना उनके बस की बात नहीं।
कौन नहीं जनता कि मायावती और रामविलास पासवान भी भले ही राजनीति दलितों की करते हों पर पूंजी ने उन्हें भी अपने चंगुल में ले लिया है।

कौन नहीं जानता कि केन्द्र सरकार के मन्त्रियों पर इतनी राशि खर्च हो रही है जिसमें कटौती कर हम रसोई गौस की सब्सीडी दे सकते है।

कौन नहीं जानता कि जिस संसद में हम प्रति धंटा लाखों खर्च करते है उसी में मात्र दो तीन सांसद ही मौजूद होते है तब क्या उसमें कटौती कर जनता के विकास पर खर्च नही किया जा सकता।

यहां बात चौथेखंभे की भी कि जानी चाहिए। क्या आज चौथाखंभा मिडिया कहीं आम जन के साथ खड़ी दिखती है। टीआरपी बढ़ाने के लिए भले ही मिर्च-मसाला मिला कर समाचार बनाया जाता हो पर उसमें भी आम आदमी रॉ मिटिरियल ही है।
कुल मिला कर लब्बोलुबाब यह कि भले ही हम प्रजातन्त्र के पैरोकार होने का दंभ भरे पर पूजींवाद ने प्रजातन्त्र को अपने कब्जे में ले लिया है।

23 जून 2010

नेपाल में सबकुछ मिलता है पर मैं हिम्मत न जुटा सका!

गत दिनों नेपाल जाना हुआ वजह कुछ खास नहीं, थोड़ा धूम-फिर लूं बस। वैसे तो नेपाल की खुबसुरती से सभी वाकिफ है और मैं भी था, पर नेपाल की जमीं पर कदम रखते ही जिस बात का एहसास हुआ वह मेरे लिए चौंकाने वाली थी। अपने एक मित्र अभय कुमार के साथ जैसे ही जोगवनी रेलवे स्टेशन उतरकर विराटनगर प्रवेश किया तोे किसी प्रकार की जांच के बिना प्रवेश कर गया और जिस चीज पर पहली नज़र पड़ी वह थी वीयरवार की लंबी कतार और  अधिकतर दुकानों में महिला दुकानदार। मेरे मित्र सबसे पहले वियरवार का ही रूख किया। खैर हमलोग एक वीयरवार में बैठ गए, अभय ने अपने लिए वीयर मंगाया और मेरे लिए ठंढा, क्योंकि उसे पता है कि मैं वीयर नहीं पीता। वीयरवार के संचालक से जैसे ही मैेंने पूछा कि नेपाल में क्या-क्या है की उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान छा गई और कहा ``पहली बार आयो हो साहब´´ जब मैेने हां कहा तो उसने कहा ``नेपाल में सब कुछ मिलता है।´´ ``सब कुछ मिलता है´´ मैंने चौंकते हुए पूछा तो उसने नेपाली हिन्दी में कहा ``सब कुछ, मतलब सबकुछ।´´ मैं अभी तक दुकानदार के इशारों को नहीं समझ रहा था, तभी साथ ही बैठा एक युवक जो वीयर का मजा ले रहा था, खड़ी हिन्दी में कहा ``सर यहां लड़कियां और शराब छूट कर मिलती है, एक दम सस्ती, सब्जी के भाव। बगल के वीयरबार में ही यह व्यवस्था है और इण्डिया से लोग नेपाल इसीलिए आते है।´´ जब उस युवक से जान-पहचान  बढ़ाई तो उसने अपना नाम नरेन बताया और कहा कि वह बहुत दिन इण्डिया में रहा है। खैर वीयरवार से निकल कर जब हम लोग धरान जाने के लिए बस के बारे में पूछा तो नरेन ने कहा कि चलिए सर आपको मैं ले चलता हूं। नरेन के ऐसा कहने पर मैं तो सकपकाया पर मेरे मित्र ने हामी भर दी। और हम लोंग वीयर सहित ठंढ़ा एवं नमकीन के लिए 250 नेपाली रू. चुकाया, वहीं दुकानदार ने बताया कि आई सी का 100 का 160 एन सी मिलता है। आई सी मतलब इण्डियन करेंसी और एन. सी. मतलब नेपाली करेंसी।

 वहां से हम लोग नरेन के साथ बस अडडे की ओर चले तो नरेन ने कहा कि चलिए साहब आप लो जिस चीज के लिए आये है पहले वहीं ले चलते है। नरेन का मतलब वेश्यालय से था और हम लोग उसे बताने लगे कि हम लोग मात्र धूमने आये है तो उसने बहुत ही बेतक्कलूफ के साथ कहा कि छोड़िए साहब सभी लोग यही कहते है। अन्तत: बड़ी मुिश्कल से उससे यह कह कर पिण्ड छुड़ाया कि हम लोग लौटने के बाद उससे मिलेगें और उसका नंबर लिया ताकि उससे संपर्क कर सके और हम लोग धरान की बस पर सवार हो गए। विराट नगर से धरान के रास्ते कई मकानों के आगे सजी धजी महिलाऐं मिली और हमलोग स्वभावगत उसकी ओर देखने लगते थेे तभी थोड़ी दूर जाने के बाद जब चालक से जानना चाहा कि नेपाल में क्या खास है तो उसने भी कहा यहां सबकुछ मिलता है जी। हम लोग मुस्कुरा कर रह गए और जब बगल की सीट पर बैठे एक भारतीय जैसे बुजूर्ग से मैंने पूछा ये सभी लोग ऐसा क्यों कह रहे है तो उसने बताया कि नेपाल आने वाले ज्यादातर लोग लड़कियों के लिए ही नेपाल आते है और नेपाल का मुख्य धंधा ही वेश्यावृति है तो हमलोगों को आश्चर्य हुआ। नेपाल के विराट नगर से धरान तक का सफर वादियों से होकर चलता हुआ था। रास्ते में महिलाओं का काफिला पीठ पर लकड़ी का गठ्ठर  लिए बेपरवाह चली जा रही थी। किसी महिलाओं के सीने पर आंचल नहीं। घुठने तक लहंगा उठाऐ महिलाऐं अलमस्त चल रही थी।

 जब हम लोग धरान पहूंचे तो पहलीबार किसी विदेशी जीम पर होने का एहसास हुआ। मैं चूंकि गांव का रहने वाला हूं इसलिए कौतूहल भी हुआ। मिनी स्कर्ट और मिनी टॉप पहने सजी-धजी सुन्दर युवतियां और महिलाऐं सभी जगह अपना जलबा विखेर रही थी। कुछ साड़ी तो कुछ समीज-सलवार पहनेे महिलाऐं भी नज़र आ रही थी पर किसी ने आंचल या ओढनी के लिए कष्ट नहीं उठा रखी थी और हमलोग जिन नजारों को सिनेमा में देखते थे उसे जिवन्त देख देख प्रफुिल्लत भी हो रहे थे और झेंप भी रहे थे। जब मैंने एक बुजुर्ग, जो हाथ में सेविंग बॉक्स लिए जा रहे थे और इससे यह समझने मे मुझे देरी नहीं हुई की ये नाई है और चेहरा भी भारतीय है, तो उनसे काली मन्दिर जाने का रास्ता पूछा तो उन्होनों पक्की सड़क होकर जाने का रास्ता बताया साथ ही यह भी हिदायत दी की सामने वाले रास्ते से भी जा सकतें है पर रास्ते में गलत लोग रहते है।

 हमलोग गये तो पक्की सडक से काली मन्दिर और वहीं से उंचे पहाड़ों पर बादलों की अटखेलियों को कैमरे में कैद करते हुए जब लौटने लगे तो दूसरे रास्ते से होकर जाने का कौतुहल हुआ। जब हमलोग नीचे उतरने लगे तो थोड़ी दूर जाने के बाद नजारा कुछ यूं था। झाड़ियों के बीच जोड़े आलिंगनबद्ध जहां तहां आनन्द में डूबे हुए थे और बगल में एक आधा लड़की भी खड़ी नज़र आ जाती, जैसे की मेरा ही इन्तजार कर रही हो।

 इतनी सुगमता से उपलब्ध नारी सौन्दर्य का पान करने के लिए बरबस ही मन मचलने लगा और अन्दर ही अन्दर द्वन्द चलने लगा। हम दोनों मित्र एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। शायद पहल कौन करे यही द्वन्द थी और मैंने पूछ ही लिया -क्या अभय ने कहा ``हिम्मत हैंं।´´ इसी द्वन्द के साथ हम लोग अपने अपने हिम्मत को टटकोलते हुए सीढ़ियों के साथ साथ नीचे उतरते चले गए। द्वन्द भी अजीब अजीब आखिर तर्क तो सभी के लिए रास्ता बनाता है। एक मन कहे कि ``आज यह अरमान भी पूरा कर लो´´ पर एक मन रोकते हुए तर्क देता `अरमान पूरा कर भी लिया तो क्या आनन्द तो नहीं मिलेगी, बिना प्रेम के संसर्ग में आनन्द कहां, 

 और फिर भला इस पाप के बोझ के साथ क्या अपनी पत्नी का सामना कर पाउंगा, जिसने आन्नद के अतिरेक स्वर्ग में बार बार डुबोया हैर्षोर्षो और आखिर कर हम सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए भी नीचे नहीं गिरे। दोनों दोस्त एक दूसरे को हिम्मत नहीं जुटा सकने के आज भी कोस रहे है पर मेरा मन मुझे हिम्मत नहीं जुटाने के लिए धन्यवाद दे रहा है।

19 जून 2010

गुड़ खाकर गुलगुला से परहेज कर रहे है नीतीश कुमार

``राजनीति में कोई किसी का दोस्त नहीं होता´´ यह कहावत कई बार सुना है और कई बार इसे देखा भी है। बिहार के मेनोफेस्टो सीएम कहे जाने वाले प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह जब बेलगाम घोड़े की तरह सरपट दौड़ रहे थे तो उनके सामने बिहार सरकार के मन्त्री भी कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे और विधायकों को उनसे मिलने के लिए नाको चने चबाना पड़ता था तब आम लोगों की विशात ही क्या थी और फिर राजनीति के उपरोक्त कथन ने करवट बदली और मेनोफेस्टो सीएम जमीन पर गिर कर उसी तरह छटपटाने लगे जिसतरह पर कटे पंक्षी। आज बिहार के  मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने गुजरात सरकार की बाढ़ राहत राशि को लौटा कर सालों से चली आ रही राजग गठबंधन में पड़ी दरार के संकेत दे दिए। भाजपा के कद्दबार नेता और गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी के साथ हाथ में हाथ लिए नीतीश कुमार के विज्ञापन से नराज नीतीश कुमार बैखला कर पहले तो भाजपा नेताओं के भोज को केंसिल किया उसके बाद आज 5 करोड़ की राहत राशि को लौटा का भाजपा के नेताओं को यह साफ संकेत दे दिया उनकी खिचड़ी कुछ और ही पक रही है। हलांकि मेरी नज़र में नीतीश जी का यह कदम बेमानी है। नरेन्द्र मोदी भी जनता के द्वारा चुनी गई सरकार के प्रतिनिधि है और भाजपा कें माने हुए नेता भी और जब नीतीश कुमार भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार चला रहे है तो लोगों को यह पता है की नीतीश कुमार भाजपा के नीतियों का कमोवेश समर्थन करते है। पर नीतीश कुमार ने गुजरात सरकार की राशि को लौटा का यह जता दिया कि वे भाजपा के साथ तो है पर उनकी नीतियों का विरोध करते है। पर नीतीश कुमार का यह कदम गुड़ खाऐ और गुलगुला से परहेज की बात हो गई। जब भाजपा के साथ हमारी सरकार चल रही है तो उनके नेताओं का अपमान करना कदापि उचित नहीं है इससे बेहतर तो यही होता कि नीतीश कुमार गठबंधन को खत्म कर देते और जनता के बीच जा कर इसके लिए जनाधार मांगते। हलांकि नरेन्द्र मोदी कें मामले में मेरा मत कभी भी तथाकथित सेकुलरवादियों के साथ नहीं रहा। मैं वामपन्थ विचारधारा का समार्थक रहा हूं पर गोधरा काण्ड पर सभी की चुप्पी और गुजरात दंगे पर हंगामा में मुझे इस विचारधार से विमुख किया और आज भी जब कोई नरेन्द्र मोदी को कठधरे में खड़ा करता है तो हमे गोधरा की याद हो आती है और लगता है कि इस देश में हिन्दू होना जैसे कोई गुनाह है और कांग्रेस, राजद की राह चलते हुए नीतीश ने भी यही जताया है। हम अपने को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कें रूप में खुद को पेश करते है पर समानता मेरे विचारों में नहीं होती। मेरी नज़र में गोधरा और गुजरात दंगा दोनो गलत है  और दोनों की निन्दा उतनी ही तिब्रता से होनी चाहिए।
बात अगर बीजेपी की कि जाए तो उनकी हालत सबकुछ लुटा कर होश में आये तो क्या आये बाली हो गई। नीतीश कुमार जब पहली बार विकास पर निकले थे और उनके इस मुहिम में कही उपमुख्यमन्त्री या भाजपा कें नेता नज़र नहीं आये तभी भाजपा को यह समझ लेनी चाहिए थी नीतीश कुमार की मंशा अपनी छवि को इतना बड़ा कर लेने की है कि सभी उनके सामने बैने नज़र आए। नीतीश कुमार लगातार जनता में जाकर अपने विकास का िढढोरा पिटते रहे और शौचालय से लेकर गली-सड़क, पूल और भवन सभी का उदधाटन अपने ही करने लगे। उनके द्वारा एक नई परंपरा का जन्म दिया गया और वे पटना में बैठे बैठे भी रिमेट से पूल पुलिया का उदधाटन कर यह जताते रहे की बिहार में जो कुछ हो रहा वे सिर्फ और सिर्फ उनकी देन है और इस बीच एक बार फिर से फिलगुड में रहने वाले भाजपा के मन्त्री या तो नगद नारायण के फेरा में लगे रहे यह हाथ पर हाथ धर कर बैठे। इन सारे घटना चक्र में भाजपा के कार्यकत्र्ता उपेक्षित रहे और उन्हे लगने लगा की सरकार में उनकी पार्टी की नहीं चलती। अथक परिश्रम पर भी कई केन्द्र की सरकार से चूकी भाजपा को भी सत्ता में रहने का खुन लग गया और संध के द्वारा नीतीन गडकरी के हाथ में भाजपा की कमान सौंप तो दिया गया पर उन्हें पुरे देश की राजनीति समझते हुए बिहार की राजनीति को समझने में इतनी देर कर दी और नीतीश कुमार उनके सामने एक हौअआ की तरह खड़ा हो गए है कि उनके किसी भी नेताओं में उनके विरोध का साहस नहीं है। ( एक मात्र गिरीराज सिंह ने साहस तो दिखाया है पर इसके भी कारण कुछ और ही माने जा रहे है।)
अब नीतीश कुमार बिहार विधान सभा चुनाव से पहले ही भाजपा को आंख दिखा कर यह जताने की कोशिश कर रहे है कि  भाजपा यहां दोयम दर्जे की पार्टी है और वह अपनी औकात में रहे। हलांकि भाजपा के जनाधार और समर्थकों की बात की जाए तो इसको एक बडे तबके और विभिन्न जातियों का समर्थन प्रप्त है और जो भी हो नीतीश कुमार आज एक जातिवादि नेता के रूप में खड़े है और भाजपा के कार्यकत्ताओं में इस बात का रोष भी है कि उन्होने ने जिस सरकार को बनाने में अपना खून-पसीना बहाया वह सरकार उनकी नहीं है। बात चाहे जो हो पर नीतीश कुमार अपनी राह बड़ी चतुराता से बना रहे है और मुस्लिम वोट बौंक की राजनीति उनके द्वारा भी की जा रही है और यह उनके द्वारा कांग्रेस से हाथ मिलने की चर्चाओं को भी हावा देने वाला कदम है। अब गेन्द भाजपा कें पाले में है और देखना है कि स्वाभिमान की बात करने वाली भाजपा कितना स्वाभिमानी है और अपने खिसकते जनधार को वे क्या सन्देश देती है।

11 जून 2010

नौकरी का झांसा दे, लाखों लेकर चिकित्सक फरार

चिकित्सा कार्य  करने को भले ही समाज सेवा का कार्य माना जाता हो पर यहां के एक चिकित्सक ने नौकरी का झांसा देकर पच्चीस लाख ठग कर फरार हो गए। इस सम्बंध में प्राप्त समाचार के अनुसार बरबीघा अस्पताल रोड में विपिन सिंह के मकान में कुछ माह पूर्व डा. प्रेम कुमार नामक एक चिकित्सक ने अपनी निजी िक्लनिक खोली तथा मरीजों का ईलाज करने लगे। आने के तुरन्त बाद ही चिकित्सक के द्वारा मरीजो का ईलाज कम और नौजवानों को नौकरी लगाने का झांसा अधिक देने लगे और इसी झांसे में आकर कई युवाओं और उनके अभिभावकों ने प्रति सदस्य एक से डेढ़ लाख की राशि नौकरी के नाम पर दे दिया। माउर गांव निवासी बिहारी सिंह के पुत्र नीतीश कुमार ने बताया कि डाक्टर ने उसके पिता को इलाहाबाद रेलवे में अपने भाई के डीआरएम होने का झांसा दिया और इसी वजह से उसे पैसा दिया गया। बताया जाता है कि रविवार की रात चिकित्सक रातों रात अपना बोरिया बिस्तर लेकर फरार हो गया और जब लोग उसे ढुढते हुए उसके किराये के मकान में खोजने गए तो वहां  कुछ नहीं मिला। लोग बताते है कि चिकित्सक एक युवती के साथ रहते थे जिसे वे अपनी बहन बताते थे। लोगों ने चिकित्सक की मोटरसाईकिल को जब्त कर चिकित्सक को खोजने का काम कर रहे है। चिकित्सक के भाई को खोजने के लिए इलाहाबाद भी लोग हो आए पर वहां कुछ नहीं मिला और थक कर लोग आरा गए है जहां कथित रूप से डा. प्रेम कुमार अपना घर बताते थे। बात चाहे कुछ हो पर चिकित्सक के द्वारा नौकरी के नाम पर झांसा देकर ठगी करने के इस मामले में चिकित्सक समाज को भी शर्मशार करता है।

10 जून 2010

नरेगा- लाखों का घोटाला, मजदूरों में नहीं मिली कमाई का पैसा।

``दूध मुंहा बच्चबा के खेता में रखके मटिया काटो हलिय सर और तभीओं एक साल से पैसाबा नै मिल रहलै´´-सरबिला देवी जॉब कार्ड संख्या 1064, डाकघर पासबुक संख्या-50063320, राशि- 2000। `` सर पंजाब हरीयाणा जाते तो कुछ कमाई भी होती और परिवार भी चलता पर यहां तो कमाने के बाद भी मजदूरी मांगने के लिए डीम साहब से लेकर डीडी साहब तक गुहार लगा लिए कुछ नहीं मिला´´-अजूZन चौहान, जॉब कार्ड संख्या 1080, डाकघर पासबुक संख्या-50063329, राशि- 8000। ´´सरकार के काम काहे करबै सर, कमइला के  बाद भी मजदूरी नै मिलतै और भुखल रहे पड़तै तब की फायदा, ई नरेगा के पैसा मुखीया और ऑफिसर के पेट में ही जा है´´-जमीया देवी- जॉब कार्ड संख्या 973, डाकघर पासबुक संख्या-50063309, राशि- 10000 यह कुछ वानगी है बरबीघा प्रखण्ड कें जगदीशपुर पंचायत के फतेचक गांव में नरेगा की योजनाओं में मची लूट और बन्दरबांट की। इस गांव में सैकड़ों मजदूरों को उसकी कमाई गई मजदूरी का पैसा नहीं दिया जा रहा है और ग्रामीण बताते है कि रोजगार सेवक ने उनसे सादे कागज पर हस्ताक्षर करा कर रूपया निकाल लिया और डीम से शिकायत करने पर डकैती में परिवार को फंसाने की धमकी भी दी जा रही है। इस गांव में विभिन्न मजदूरों का लगभग एक लाख की राशि डाकघर से निकाल कर इनको पैसा नहीं दिया गया। और जब जिलाधिकारी से इसकी शिकायत इन्होने की तो उलटे डकैती में फंसाने की धमकी मिल रही है। अनियमितता का आलम यह कि जॉब कार्ड पर एक दिन की मजदूरी नहीं भरा गया और पासबुक से हजारों की निकासी है। अनियमिता का आलम यह कि निकासी फॉर्म पर मजदूरों का अंगूठा भी नहीं लगा और हजारों निकल गए। मजदूरों की सूची लंबी है जिसमें से कई को पासबुक और जॉब कार्ड भी नहीं दिया गया। यहा महज एक पंचायत की बात नहीं है बल्कि कमोवेश सभी पंचायतों की स्थिति यही है।
गांवो के विकास को लेकर चलाए जा रहे इस योजना को राहुल गांधी विकास का प्रर्याय मानते है पर किसका विकास हो रहा है समझा जा सकता है। नरेगा की योजनाओं पर हमेशा सवाल उठते रहे है और इस योजना में मची लूट में हिस्सेदारी को लेकर भी मारामारी होती रहती है पर कभी कोई बाड़ी कार्यवाई नहीं की जाती। हो भी कैसे नरेगा से जुड़े एक कर्मी की माने तो इस लूट में सभी का हिस्सा बराबर है।

09 जून 2010

क्षमा करेगेें प्रकाश झा जी, पर राजनीति आपकी सबसे कमजोर सिनेमा है.....

प्रकाश झा की बहुचर्चित सिनेमा राजनीति को बहुतों ने सराहा और रेटिंग देने  वालों ने पांच में से चार रेटिंग दी और जाल में फंस कर राजनीति देखने की उत्कंठा जागी पर मेरे कस्बाई जिले के सभी सिनेमाघरों की औकात नई सिनेमा लगाने की नहीं है इसलिए राजनीति देखने के लिए बगलगीर नालान्दा जिले के बिहारशरीफ जिसकी दूरी 30  किमी. है, जाकर सिनेमा देखने की योजना बनाई। एक तरफ राजनीति देखने की इच्छा और दूसरी तरफ भीषण गर्मी दोस्तों ने मोटरसाईकिल से जाने से इंकार कर दिया और तब एक दोस्त की स्कूल वाहन टाटा बिंगर से बिहार शरीफ राजनीति देखने के लिए गया पर निराश होकर लौटा। निराश इसलिए की राजनीति में वर्तमान राजनीति का घालमेल तो बहुत है पर सीधा सीधा महाभारत की कहानी को प्रकाश झा जैसे मंझे हुए निर्देशक उठा कर रख देगे,ं भरोसा नहीं हुआ। हमलोग पांच दोस्त सिनेमा देखने गये पर किसी ने इसे नहीं सराहा। कुन्ती की कहानी से आरम्भ राजनीति में कृष्ण-नाना पाटेकर, दुर्योधन-मनोज वाजपेई, कर्ण-अजय देवगन, और अजूZन -रणवीर कपूर की कहानी को इसतरह से घालमेल कर दिया गया कि मेरे जैसे दशZक भी घबड़ा  गये। कुन्ती और कर्ण का संबाद और धृत्राष्ट की विवशता और लालच सबकुछ महाभारत जैसा आन्त में तो मुझे प्रकाश झा जैसे अनुभवी निर्देशकी की बुद्धि पर उस समय तरस आ गया जब कर्ण और अजूZन के महाभारत के सबंाद को रख दिया गया। अजय देवगन अर्थाण कर्ण निहथ्था है और रणवीर कपूर अर्थात अजूZन कहता है कि नहथ्थे पर वाण नहीं सॉरी गोली कैसे चलाए तब कृष्ण बने नाना पाटेकर उन्हें समझाते है और कर्ण मारा जाता है।
पता नहीं प्रकाश झा ने बिहार की राजनीति से क्या सीखा पर वेवह नौजवानों को मुख्यमन्त्री कुर्सी पर बैठाने की राजनीति, बेवजह सुरज जैसे कुश्ती पहलवानों की बड़ा लीडर बनाने की राजनीति,वेवजह हत्या की राजनीति मुझे जरा भी पसन्द नही आई और कुल दोस्तों का सिनेमा देखने का खर्चा में से मेरा हिस्सा 129 बेकार चला गया।

03 जून 2010

नीतीश कुमार सबसे बड़े जातिवादी-पूर्व जदयू प्रदेश अध्यक्ष




शेखपुरा-बिहार
अरूण ``साथी´´
बिहार कें प्रथम मुख्यमन्त्री डा. श्रीकृष्ण सिंह के पैतृक आवास पर उनके पौत्र हीरा सिंह के द्वारा आयोजित किसान सम्मेलन की सफलता पर धन्यवाद ज्ञापन समारोह में बिहार की राजनीति के नए करबट लेने की सुगबुगाहट साफ दिखी। बिहार की राजनीतिक महौल में किसान पंचायत के बाद से आई शान्ति के बाद एक बार फिर से उबाल तब आ गया जब प्रदेश जदयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सह सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार पर सीधा प्रहार करते हुए उन्हें जातिवादी नेता करार देते हुए कहा कि जयदेव प्रसाद की जयन्ती समारोह में जिसने भरी मंच से नीतीश कुमार की उपस्थिति में सवणोZं को गाली देने का काम किया नीतीश कुमार ने उसे राज्य सभा का टिकट देकर यह साबित कर दिया कि बिहार की जनता को लालू प्रसाद के बाद नीतीश कुमार ने भी छला है। ललन सिंह ने उपेन्द्र कुशवाहा पर कटाक्ष करते हुए कहा की जो लोग समाज को तोड़ने की बात करते हुए राजनीत करते है उन्हीं लोगों को नीतीश कुमार ने प्राश्रय दिया साथ ही ललन सिंह ने ब्यूरोक्रेट रहे नीतीश कुमार के सचिव आर. सी. पी. सिंहा को भी राज्य सभा से टिकट दिए जाने पर कहा कि स्वजातिय लोगों को लाभ पहूंचाकर नीतीश कुमार लालू जी के साथ ही खड़े दिखते है। पत्रकार वार्ता में नीतीश कुमार और लालू यादव को लेकर ललन सिंह ने कहा कि बड़े भाई और छोटे भाई से अलग विकल्प विभान सभा चुनाव से पूर्व ही दिया जाएगा। कांग्रेस में जाने की बात पर ललन सिंह ने सीधा सीधा तो कुछ नहीं कहा पर इससे  इंंकार भी नहीं किया और कहा कि समय आने पर सब पता चल जाएगा। उन्होंने नीतीश कुमार से केन्द्र के पैसे से हो रहे विकास पर वाहवाही लूटने की बात कहते हुए कहा कि नीतीश कुमार से इस बात का जबाब मांग रहें की वे बताए की उनके द्वारा कहां विकास किया गया है। पत्रकार के द्वारा यह पूछे जाने पर की क्या वे फिर से समझौता कर नीतीश के साथ चले जाएगें और यह राजनीतिक कुटनीति के तहत किया जा रहा है, ललन सिंह ने कहा कि वे जिसके साथ  होते है, साथ होते है और नीतीश के साथ जाने का सवाल नहीं उठता। इस अवसर पर मौजूद राजद के नेता एवं पूर्व मन्त्री अखिलेश सिंह ने कहा कि लालू यादव को सत्ता से हटाने के लिए सवणोZं ने नीतीश का साथ दिया और नीतीश कुमार उससे भी धातक धोखेबाज निकले। श्री सिंह ने साफ कहा की सवणोZं का वोट लालू जी को नहीं मिलता था और आज भी लालू प्रसाद को नहीं मिलेगी वशर्तो वे कोई अलग रणनीति नहीं बनाते। समारोह में मौजूद सांसद एवं पूर्व मन्त्री दिग्यविजय सिंह ने नीतीश कुमार अवसरवादी राजनीति का धोतक बाताते हुए कहा कि एक बार नीतीश कुमार को वे अपनी जीत निर्दलीय  से सुनििश्चत कर दे चुके है और विधानसभा चुनाव में फिर से देगें।
बरबीघा के माउर गांव में आयोाजित समारोह में बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे जिसमें जिप सदस्या किरण देवी, पूर्व मुखीया जयराम सिंह, मुकेश सिंह, शिवप्रसाद सिंह, राजीव सिंह, चुनचुन मुखीया प्रमुख है।

02 जून 2010

``इप्टा´´ कें कलाकार गांवों में जगा रहे है महिला जागृति का अलख।

सरकार यदि सकारात्मक रूप से समाज में परिवर्तन का प्रयास करे और इसके लिए ईमानदारी से प्रयास कर योजनाओं का संचालन हो तो इसकी धमक भी दिखाई देने लगती है। ऐसा ही एक नजारा देखने को मिला शेखोपुरसराय प्रखण्ड कें अंबारी गांव में। चिलचिलाती धूप में यहां इप्टा कें कलाकारों कें  द्वारा महिलाओं के जगृति को लेकर नाटक का मंचन किया जा रहा है। मुख्यमन्त्री नारी सशक्तिकरण योजना के तहत इप्टा कें द्वारा चलाए जा रहे इस कार्यक्रम में इप्टा कें कलाकार ने रामायण और महाभारत काल के नारी चरित्रों का नाट्य मंचन करते हुए सीता की अग्निपरीक्षा, अहील्या के शाप और द्रोपदी के चीरहरण को नारी पर किया गया अपराध बताते हुए नारियों से जगृत होकर अपने उपर होने वाले अत्याचार का विरोध करने के लिए आगे आने का आह्वान किया। नाट्य मंचन में कलाकारों ने नारियों के साथ होने वाले बलात्कार की घटना के लिए भी नारी को ही समाज और परिवार के लिए दोषी ठहराने का चित्रण करते हुए इसे नारियों पर किया जाने वाला अत्याचार बताया बलात्कार की खबर पर मिडिया में भी मिर्च मशाला लगाकर परोसने का चित्रण भी कलाकरों ने बखुबी किया। कलाकारों ने अपने अभिनय से नाटक को जिवन्त करते हुए नारियों खामोशी को ही समाज कें द्वारा स्वीकार किए जाने की बात कही। महिलाओं के शरीर में सेक्स की तलाश और उसके उपर की जाने वाली छीटाकशी पर भी करारा व्यंग किया गया। इस अवसर पर इप्ट के पदाधिकारी एवं टीम लीडर अशोक कुमार पाठक ने जानकारी देते हुए बताया कि जिले के विभिन्न प्रखण्डों में यह जागरूकता  अभियान चलाया जाएगा। इस नाटक में मंचन में अवध, प्रेम, मनोज, अजूZन, कुमकुम, निधि एवं सानू प्रिया ने उत्कृष्ट अभिनय का प्रदशZन किया। समारोह में बाल विकास परियोजना पदाधिकारी रीता देवी के द्वारा सहयोग किया जा रहा था।


01 जून 2010

रसोई गैस सिलेण्डर के फटने से आठ लोग झुलसे।

थोड़ी सी लापरवाही जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है और ऐसा ही बरबीघा के फैजाबाद मोहल्ले में। यहां रसोई गैस के रिसाव पर ध्यान नहीं देने की वजह से गैस सिलेन्डर में आग लग गई तथा आग ने समूचे घर को अपने चपेट में ले लिया। मामला रामप्रवेश प्रसाद के घर में उस समय घटी जब उनके किरायेदार राजेश कुमार की पत्नी रसोई गैस पर खाना बनाने के लिए रसोई में गई और जैसे ही माचीस की तीली जलाई की रसोई घर के साथ साथ समुचे घर आग की चपेट में आ गया। घटना इतनी भयानक थी इस घटना में घर में रहने वाले सभी आठ लोग आग की चपेट में आ गए। इस घटना में सौरभ कुमार, प्रियंका कुमारी, राजेश कुमार, राजेश कुमार की पत्नी, गांधी प्रसाद एवं बडे पटेल बुरी तरह से झुलस गए। घटना के बाद मोहल्ले के लोगों ने आग पर काबू पाया तथा जले हुए लोगों के स्थानीय निजि चिकित्सालय में लोगों को भर्ती कराया जहां से तीन लोगों को पटना रेफर कर दिया गया है। चिकित्सक डा. के. एम. पी. सिंह के अनुसार तीन लोगों की हालत नाजुक बनी हुई है और ये लोग साठ प्रतिशत से अधिक जले हुए है। अन्य लोगों का ईलाज तत्परता से किया जा रहा है।
इस घटना कें प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि आग में चपेट में आने के बाद लोग घर से जलते हुए हालत में बाहर आ गए जिन्हे बाद में चिकित्सालयों मे भर्ती कराया गया है।