23 दिसंबर 2025

बांग्लादेश : सत्ता संरक्षित हत्या और भारत का आक्रोश

सोशल मीडिया खोलते ही दिल दहल उठता है।  बांग्लादेश में हिंदू होने की वजह से दीपू चंद्र दास को सरे आम जला के मार दिया गया। ऐसे वीडियो लगातार वायरल है। और रोम रोम सिहर जाता है। पर यह क्यों है..? कहां है ? कैसे है..? और किसके द्वारा है। यह सवाल जब सामने आता है तो सिहरन और बढ़ जाती है। 
21वीं सदी में प्रगतिशीलता का चरम माना गया था। किसे पता था, यह हमें कसाई के कबीलाई युग में लेकर चला जाएगा...! उसी युग में जहां एक कबीला, दूसरे कबीले वाले को मार कर खा जाते थे। 


आज वही हो रहा। कम से कम आज हम यह नहीं कह सकते कि आतंकवाद का धर्म नहीं होता...! अब हर कोई कहता है, आतंक बाद का धर्म से ही संबंध है। हां, हम समाज को जोड़ने वाली फैंटेसी बातें कहते है। कहना चाहिए... क्योंकि हर अच्छा आदमी समाज को जोड़ना चाहता है। 

पर आज, समाज में अच्छा से अच्छा आदमी भी अब समाज को तोड़ने में लगा है। वह भी धार्मिक कट्टरपंथ को आधार बना कर।

बांग्लादेश में शांति के लिए नोबेल पाए युनुस नामक व्यक्ति सत्ता के लिए इतना क्रूर होगा, किसने सोचा होगा...? उसे तो अच्छा आदमी कहा ही जा सकता था, अब नहीं..!


बांग्लादेश वही है जिसको आजादी के लिए हमारे पांच हजार लगभग सैनिक बलिदान दिए  थे। और हम जिससे लड़े, वह उसी से गले मिल गया। यह सिर्फ, धार्मिक आधार पर हुआ है। 

और अब तो, दुनिया में धार्मिक कट्टरता चरमोत्कर्ष पर है। अमेरिका के न्यूयार्क में अब एक धार्मिक कट्टरपंथी जोहरान ममदानी मेयर बन गया। और भारत में बैठे कट्टरपंथी उसे आदर्श रूप में स्थापित करने लगे। 

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में साजिद अकरम और नवीद अकरम नामक पिता पुत्र ने 15 जाने ले ली। 

दिल्ली में डॉ उमर ने खुद को ब्लास्ट कर उड़ा लिया और पंद्रह जाने ले ली। इसमें पूरा डॉक्टर गिरोह ही सक्रिय था।

अब इसमें एक गंभीर चिंतनीय बात यह भी है  एक धर्म के धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध दूसरे धर्म के धार्मिक कट्टरपंथी भी आवाज उठा रहे। आलोचना, धमकी दे रहे। आंदोलन हो रहा।

कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह, राशिद अल्वी इत्यादि ने भारत में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार, बुलडोजर की कार्रवाई और मोब लिंचिंग को बांग्लादेश में हिंसा से जोड़ दिया है। 

धार्मिक कट्टरपंथी चाहे किसी देश, किसी धर्म, किसी समाज में हो, इससे देश, समाज और व्यक्ति का ह्रास हो होना है। प्रगतिशील समाज इसे कभी स्वीकार नहीं करता और जिस समाज में से स्वीकार किया, वह पतन की ओर ही अग्रसर है। दुनिया भर में मुस्लिम देश इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं।

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