धर्म
(सच्ची घटना पे आधारित लघु कथा)
अरुण साथी
हमलोग चार-पांच साथी एक स्कूल में बैठे हुए थे तभी तीन बुजुर्ग गेरुआ वस्त्र पहने, कांधे पर एक धार्मिक संस्था का थैला लटकाए, हाथों में कुछ पत्र-पत्रिकाएं लिए हुए पहुंचे और स्कूल के निदेशक से बात करने लगे। उन्होंने अपनी धार्मिक संस्था के बारे में खूब प्रशंसा की। साथ ही में बताया कि अब वे सेवानिवृत्त हो गए हैं और अपना जीवन धर्म के नाम समर्पित कर दिया है।
वे महाशय बोलते ही जा रहे थे! बोलते ही जा रहे थे! सभी लोग चुपचाप थे। बोलने के क्रम में उन्होंने बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद गांव में उनके द्वारा एक हनुमान जी का मंदिर बनाया गया है उसमें सुबह-शाम पूजा और भगवत कथा करते हैं। साथ धार्मिक संस्था के द्वारा आयोजित यज्ञ के लिए उन्होंने चंदे की रसीद भी बढ़ा दी और मनमाफिक चंदा भी लिया।
खैर, इसी बीच वहां बैठा आर्यन उनको एकटक देख रहा था। फिर अचानक उनको टोका,
"सर आप तो चौधरी जी है ना? चौधरी सर! एसपी हुआ करते थे।"
वे खुश हो गए।
"हां, मैं ही हूँ। श्याम लाल चौधरी।"
"अच्छा सर, आप मुझको नहीं पहचाने। मैं 10 साल पहले आपसे मिला था। मेरे बाबूजी की हत्या हो गई थी। हत्यारे को पकड़ने के लिए कर्ज लेकर आपको आपको पच्चास हजार दिया था। आपने उल्टा अनुसंधान रिपोर्ट में सभी को अपराध से मुक्त कर दिया था।उसके बाद सभी अपराधियों ने मेरे घर पर कब्जा कर मुझको गांव से भगा दिया सर।"
चौधरी जी का मुँह देखने लायक था। काटो तो खून नहीं। सब लोग टुकुर टुकुर उनका मुंह देखने लगे।
यही तो धर्म है आज का।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-04-2019) को "जगह-जगह मतदान" (चर्चा अंक-3310) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/04/2019 की बुलेटिन, " विश्व धरोहर दिवस 2019 - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआज के तथाकथित धर्माधिकारियों का कटु सत्य... सटीक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंसही पकड़े है ,सत्य यही है
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