(सोंच रखा था, सोशल मीडिया पे दुख सांझा न करूँगा, पर रह न सका.)
सुराज दा! बच्चों से लेकर बड़ों तक, सभी के लिए उनका यही नाम था। राम नाम का टहल है, कासा, मलमल, पीतल है!! यही उनका मंत्र था। यह आवाज अब बभनबीघा गांव की गलियों में नहीं गूंजेगी।
अचानक से ग्यारह दिन पूर्व सांप के काटने से उनकी मौत हो गई। वे 70 वर्ष के थे। मैं उनको बचा नहीं सका। वह मेरे अभिभावक और धर्म पिता थे। 2 वर्ष की उम्र से ही पाल-पोस कर जवान किया। शरीर का एक एक रोवाँ उनका कर्जदार है। जवान होने तक, हर रात उनके साथ ही भोजन ग्रहण किया। अपने हिस्से का दूध डांट कर भी मुझे पिलाते रहे। निसंतान होते हुए भी इस बात का दुख उनको कभी नहीं हुआ
"बबलुवा हमर बेटा है।" जैसे मैं ही प्राण। सभी जगह डंके की चोट पर यही कहते रहे पर मैं पुत्र धर्म का निर्वाहन अंतिम समय में नहीं कर सका। इससे पहले ही वे कूच कर गए। फुआ तो खैर कुछ दिन सेवा करने का मौका भी दी, इन्होंने वह भी नहीं दिया।
पिंकू ने फोन किया। सुराज दा को सांप काट लिया। तत्काल गाड़ी लेकर पहुंचा। शेखपुरा मृगेंद्र बाबू के पास लेकर गया पर रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया।
एक फक्कड़ आदमी। सुबह से शाम तक घुमंतू। गांव में ही घूमते थे । इनके निधन की खबर सुनते ही सभी जाति के लोग दौड़े चले आए बुजुर्गों ने कहा कि गांव का एक खिलौना चला गया। हां, गांव का खिलौना ही थे। किसी ने व्यंग कर दिया तो उनको उसे तरह-तरह की गाली सुननी पड़ती थी पर जिसे यह गाली देते थे वह भी खुश हो जाता था। निश्चल भाव से। किसी को नहीं छोड़ते।
गौ सेवा में प्राण
"बेटा आज गईया खाना नै खा रहलै। लगो है मन खराब है। आज गईया कम दूध देलकै। अबरी हमर लक्ष्मी (गाय) के हरियरी नै नेमन हौ। बस गाय, गाय।"
एकाकी जीवन का एकमात्र सहारा। क्या सुराज बाबू क्या हाल-चाल ? यह कहते हुए गाय को जब भी पुकारते थे तो गाय भी सर उठा कर अपना जवाब देती। निःशब्द संवाद। वहीं समझते।
"कई बार कहा मेरे साथ रहिये। कहते, बेटा जबतक देह चलो हौ, चले दे। गईया के सेवा करे दे। गिर जैबौ त करीहें।" दो साल पहले जबरदस्ती पुरानी गाय को बेचकर दूसरी गाय खरीदने पर मुझे विवश कर दिया था।
पिछले एक- डेढ़ साल से परेशानियों से पीछा नहीं छूट रहा। ऐसे जैसे, सोना को छू लूं तो मिट्टी हो जाये। मां का निधन डेढ़ साल पहले हो गया। मेरे आंख मूंद कर विश्वास से बच्चे का जीवन तबाह हो जाना। फिर तीन माह पहले पिताजी का निधन हो जाना और अब अभिभावक तुल्य धर्म पिता का चला जाना। असह्य दुखदायी।
परंतु जीवन के पांच दशक की यात्रा में धैर्य का दामन नहीं छुटे यही सीखा है। "धीरज, धर्म, मित्र और नारी! आपद काल परखिए चारी!" ईश्वर शायद परख रहें हो।
डम डम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा।
कजरा मोहब्बत वाला, अंखियों में ऐसा डाला, सबसे फेवरेट गीत उनका था...बस जीवन यात्रा के प्रवाह में गुरु के संदेश से बगैर प्रतिरोध, बहते जाना है...सतत..
धैर्य रखें। ईश्वर के मन में क्या चल रहा है किसे पता है?
जवाब देंहटाएंuske alawa upay bhi kya hai
हटाएंजो ईश्वर को इच्छा
हटाएंमौत वो भी अचानक और सांप के काटने से | बहुत मार्मिक लेख जो मन भिगो गया | दिवागत पुण्यात्मा को सादर नमन | एक एक शब्द वेदना पगा है |एक फक्कड और गंवाई तबियत के आदमी को सच्ची श्रद्धांजली |
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