30 जुलाई 2024

बड़हिया के श्रीधर ओझा ने माता वैष्णो देवी और माता बाला त्रिपुर सुंदरी की स्थापना की

 बड़हिया के श्रीधर ओझा ने माता वैष्णो देवी और माता बाला त्रिपुर सुंदरी की स्थापना की


(यात्रा वृतांत- बिहार को जानो भाग -5)

बिहारी अस्मिता, कला, संस्कृति, सौंदर्य, अध्यात्म, सब कुछ  को धीरे धीरे किनारे लगाया गया है। जातिवाद के विषबेल से अपनी कमाई साधने वालों ने इसकी सबसे अधिक नकारात्मक छवि गढ़ी। राजगीर, गया, नवादा का ककोलत, सासाराम, कैमूर, वैशाली, सीतामढ़ी, चंपारण इत्यादि कई ऐसे स्थान है जो ठीक से गढ़े जाते तो बिहार एक धार्मिक और पर्यटक स्थल होता।



ऐसा ही एक स्थल है लखीसराय का बड़हिया। जहां कई सौ साल पहले  एक आध्यात्मिक संत   श्री धर ओझा जी ने जन्म लिया । श्रीधर ओझा, जिन्होंने माता वैष्णो देवी की स्थापना की। वे जम्मू कश्मीर में तपस्या किए। वे बड़हिया के मूल निवासी थे। 


उन्होंने ही बड़हिया में माता बाला त्रिपुर सुंदरी की स्थापना की। आज यह पूर्वांचल का एक प्रमुख माता का जाग्रत मंगला पीठ है। इसे ग्रामीणों के सहयोग से दिव्य और भव्य रूप से संचालित किया जा रहा।

इस मंदिर की एक खास बात यह भी लगी की माता के मंदिर में पुजारी भी नारी शक्ती होती है। सुबह-शाम को छोड़कर,  दिन भर महिला पुजारी श्रद्धालूओं की मदद करती है। पूजा कराती है।  पुजारी महिलाएं ब्राह्मण व  सवर्ण  नहीं,  बल्कि  अन्य  जातियों  की  होती है।  


रविवार को साथियों के साथ यहां जाना हुआ। मेरे यहां से टाल-टाल होकर यह आज महज 35 किलोमीटर पर यह स्थित है। यह संभव हुआ है नीतीश कुमार की सरकार और  मुंगेर सांसद ललन सिंह के सदप्रयास से। हरोहर नदी दो-दो पुल बना दिए। कभी बरसात में यहां के लोग घरों से नहीं निकलते थे। 


आज उस गांव में सड़क, बिजली, सब है। गांव में बड़े बड़े, भव्य मकान बन रहे। पहले लोग पैसा होते ही गांव से पलायन करते थे। खैर, बड़हिया के आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया तक पहुंचने वाले ग्रामीण सौरभ जी, पत्रकार मित्र  कमलेश जी का सानिध्य मिला। आदर भाव भी मिला। आह्लाद मिला।  माता का दर्शन भी किए। फोटो सेशन भी हुआ। 



04 जुलाई 2024

मजबूत विपक्ष प्रधानमंत्री की बड़ी चुनौती

 मजबूत विपक्ष प्रधानमंत्री की बड़ी चुनौती 


देश के सदन में संसद के मानसून सत्र में इस साल बिजली कुछ अधिक ही कड़क रही है। मतों की बारिश से जिस किसान को खुशी माननी चाहिए, वह चिंतित है। जैसे उम्मीद से बहुत ही कम बारिश हुई हो। वैसे में फसलों को बचाना अधिक परिश्रम का काम हो जाता है। खेत को जोतने, खर पतवार को निकोने। खाद देने और आरी (मेड़) में चूहे के द्वारा जगह-जगह किए गए छेद को दुरुस्त करने के बाद कम बारिश से निराशा होनी ही चाहिए। पर किसान तो प्रति वर्ष यही करता है। खेतों को स्वच्छ, सबल बनाने का काम गर्मी से ही शुरू करता है। 


उधर, जिनके यहां बूंदाबांदी हुई वे नितरा रहे। नितराना स्वाभाविक ही है। रेगिस्तान में बूंदाबादी भी खुशी देती है। देहात में एक कहावत है, 

एक लबनी धान होते ही मजदूर नितराने लगता है। 

यह अच्छा ही है। पर बहुत अच्छा नहीं है। इसी नितराने ने राहुल गांधी ने हिंदुओं को हिंसक और नफरत फ़ैलाने वाला बता दिया। बाद में सुधार कर कहा, बीजेपी हिंदू नहीं है। आरएसएस हिंदू नहीं है।

राहुल गांधी ने यह सब अकस्मात नहीं कहा है। उनको पढ़ाया, रटाया गया है। 

राहुल गांधी के इस कथन और प्रधानमंत्री के सदन में संबोधन में हंगामा। विपक्ष की राजनीति का हिस्सा है।

इस सब से विपक्षी खेमा आह्लाद से भर गया है। विपक्षी खेमा के क्रांतिकारी पत्रकार, बुद्धिजीवी, नेता, कार्यकर्ता, सभी की बांछे खिल गई है। प्रतिपक्ष के नेता राहुल के इस अक्रमकता से वे फूले नहीं समा रहे। 

राहुल गांधी ने जिनके लिए यह सब किया। उनके पास संदेश पहुंच गया। 


अब इसी बीच, अग्निवीर, नीट पर्चा लीक जैसे जनसरोकार की आवाज भी सदन में गूंजें। यह लोकतंत्र के लिए सुखद है। इस सबके बीच हिंदुओं को अपमानित करके अपने वोट बैंक को साधना, दुखद भी है। इसपर बहुत कुछ लिखने से फायदा नहीं है। अपने अपने खेमेबाजी के हिसाब से ही लोग पढ़ेंगे। पता है। तब भी। 

जब प्रतिपक्ष के नेता सदन में ऐसा कह रहे थे , उसी समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से कहा की वे हिंदू है। यह धर्म हमें सेवा का भाव सीखता है।

अब, एक विचार तो कई के मन में उठा ही है। क्या 26/11 , 9/11, शर्ली हब्दो, कमलेश तिवारी, कन्हैया लाल जैसे हजारों उदाहरण के बाद भी उस समुदाय के लिए सदन में ऐसा बोलने का कोई साहस करेगा...?


सर तन से जुड़ा का फार्मूला आज विश्व की चुनौती है। पर जिस धरती से निकले हिंदुत्व को आज पूरी दुनिया में स्वीकारिता बढ़ी है। बासुधैब कुटुंबकम का मंत्र दुनिया ने स्वीकार किया है, वह अपने देश में तिरस्कार पा रहा। डेंगू, मलेरिया कहा जा रहा। यह सहिष्णुता भी इसी में है।

यह सब वोट बैंक की तुष्टिकरण के लिए हो रहा। यह सच है। ऐन केन प्रकारेन, सत्ता चाहिए। हलांकि हिन्दूओं में भी कुछ बददिमाग, कट्टरपंथी पनपने लगे है। पर समाज उसको तिरस्कृत कर रहा है। 

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह कार्यकाल चुनौतीपूर्ण है। यह संकेत साफ है। जनसरोकार के मुद्दे को नजरंदाज करने की पुरानी आदत अब छोड़नी होगी। यह तो तय है। इसके संकेत भी मिल रहे।

वहीं सदन में प्रधानमंत्री का यह कहना कि हिंदुओं के अपमान को बाल हठ नहीं मन सकते, सही ही है। उन्होंने सभी बिंदुओं पर मजबूती से बातों को रखा। वे अपने वोट बैंक को साध रहे। पर एक बात है कि देश के युवाओं के लिए अग्निवीर, सरकारी नौकरी एवं बड़ी समस्या है। इस अवाज को सुनना चाहिए। तर्क गढ़ कर झूठ को सच नहीं बताना चाहिए।