मजबूत विपक्ष प्रधानमंत्री की
देश के सदन में संसद के मानसून सत्र में इस साल बिजली कुछ अधिक ही कड़क रही है। मतों की बारिश से जिस किसान को खुशी माननी चाहिए, वह चिंतित है। जैसे उम्मीद से बहुत ही कम बारिश हुई हो। वैसे में फसलों को बचाना अधिक परिश्रम का काम हो जाता है। खेत को जोतने, खर पतवार को निकोने। खाद देने और आरी (मेड़) में चूहे के द्वारा जगह-जगह किए गए छेद को दुरुस्त करने के बाद कम बारिश से निराशा होनी ही चाहिए। पर किसान तो प्रति वर्ष यही करता है। खेतों को स्वच्छ, सबल बनाने का काम गर्मी से ही शुरू करता है।
उधर, जिनके यहां बूंदाबांदी हुई वे नितरा रहे। नितराना स्वाभाविक ही है। रेगिस्तान में बूंदाबादी भी खुशी देती है। देहात में एक कहावत है,
एक लबनी धान होते ही मजदूर नितराने लगता है।
यह अच्छा ही है। पर बहुत अच्छा नहीं है। इसी नितराने ने राहुल गांधी ने हिंदुओं को हिंसक और नफरत फ़ैलाने वाला बता दिया। बाद में सुधार कर कहा, बीजेपी हिंदू नहीं है। आरएसएस हिंदू नहीं है।
राहुल गांधी ने यह सब अकस्मात नहीं कहा है। उनको पढ़ाया, रटाया गया है।
राहुल गांधी के इस कथन और प्रधानमंत्री के सदन में संबोधन में हंगामा। विपक्ष की राजनीति का हिस्सा है।
इस सब से विपक्षी खेमा आह्लाद से भर गया है। विपक्षी खेमा के क्रांतिकारी पत्रकार, बुद्धिजीवी, नेता, कार्यकर्ता, सभी की बांछे खिल गई है। प्रतिपक्ष के नेता राहुल के इस अक्रमकता से वे फूले नहीं समा रहे।
राहुल गांधी ने जिनके लिए यह सब किया। उनके पास संदेश पहुंच गया।
अब इसी बीच, अग्निवीर, नीट पर्चा लीक जैसे जनसरोकार की आवाज भी सदन में गूंजें। यह लोकतंत्र के लिए सुखद है। इस सबके बीच हिंदुओं को अपमानित करके अपने वोट बैंक को साधना, दुखद भी है। इसपर बहुत कुछ लिखने से फायदा नहीं है। अपने अपने खेमेबाजी के हिसाब से ही लोग पढ़ेंगे। पता है। तब भी।
जब प्रतिपक्ष के नेता सदन में ऐसा कह रहे थे , उसी समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से कहा की वे हिंदू है। यह धर्म हमें सेवा का भाव सीखता है।
अब, एक विचार तो कई के मन में उठा ही है। क्या 26/11 , 9/11, शर्ली हब्दो, कमलेश तिवारी, कन्हैया लाल जैसे हजारों उदाहरण के बाद भी उस समुदाय के लिए सदन में ऐसा बोलने का कोई साहस करेगा...?
सर तन से जुड़ा का फार्मूला आज विश्व की चुनौती है। पर जिस धरती से निकले हिंदुत्व को आज पूरी दुनिया में स्वीकारिता बढ़ी है। बासुधैब कुटुंबकम का मंत्र दुनिया ने स्वीकार किया है, वह अपने देश में तिरस्कार पा रहा। डेंगू, मलेरिया कहा जा रहा। यह सहिष्णुता भी इसी में है।
यह सब वोट बैंक की तुष्टिकरण के लिए हो रहा। यह सच है। ऐन केन प्रकारेन, सत्ता चाहिए। हलांकि हिन्दूओं में भी कुछ बददिमाग, कट्टरपंथी पनपने लगे है। पर समाज उसको तिरस्कृत कर रहा है।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह कार्यकाल चुनौतीपूर्ण है। यह संकेत साफ है। जनसरोकार के मुद्दे को नजरंदाज करने की पुरानी आदत अब छोड़नी होगी। यह तो तय है। इसके संकेत भी मिल रहे।
वहीं सदन में प्रधानमंत्री का यह कहना कि हिंदुओं के अपमान को बाल हठ नहीं मन सकते, सही ही है। उन्होंने सभी बिंदुओं पर मजबूती से बातों को रखा। वे अपने वोट बैंक को साध रहे। पर एक बात है कि देश के युवाओं के लिए अग्निवीर, सरकारी नौकरी एवं बड़ी समस्या है। इस अवाज को सुनना चाहिए। तर्क गढ़ कर झूठ को सच नहीं बताना चाहिए।
बेशर्मो को कोई फर्क नहीं पड़ना है | कुर्सी अलग देश अलग |
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