उच्चतम न्यायालय का क्रिमी लेयर, भारत बंद और अमीर गरीब का वर्ग संघर्ष
अरुण साथी, वरिष्ठ पत्रकार
वामपंथी पार्टियों का मूल सिद्धांत वर्ग संघर्ष का था। अब वह भी जाति संघर्ष में बदल गई। पर सामाजिक चेतना, दबे कुचले का उत्थान, निचले पायदान के गरीबों को अगली पंगत में खड़ा करना सभी जागरूक सामाजिक, राजनीति लोगों की महती जिम्मेवारी है।
खैर, सबसे पहले बुधवार को जो भारत बंद हुआ वह एससी, एसटी एक्ट में क्रिमीलेयर को लेकर ऊपरी तौर पर था, अंदर-अंदर अमीर हो चुके अनुसूचित जाति के लोगों ने यह बात फैलाई की उच्चतम न्यायालय और नरेंद्र मोदी के द्वारा आरक्षण खत्म करने की साजिश की जा रही है।
दूसरी बात अनुसूचित जाति के कई जातियां जो बहुत दयनीय हालत में है, इस भारत बंद में उनकी भागीदारी कम रही।
मेरे जिला में एकमात्र मुसहर जाति का नेता अशर्फी मांझी की माने तो इसमें मायावती और रामविलास पासवान के समर्थक जातियों के द्वारा ही मुख्य रूप से अपने गांव के आसपास पर जाम किया गया ।
केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने पटना के एक सम्मेलन में मंगलवार को ही बहुत ही साहसिक तरीके से उच्चतम न्यायालय के फैसले का समर्थन किया और राज्य सरकार से कोटा के अंदर कोटा की मांग कर दी।
साथ ही उन्होंने ऐलान कर दिया भारत बंद में गरीब दलित शामिल नहीं होंगे।
उन्होंने साफ कहा कि कोटा में गरीबों के लिए कोटा होना चाहिए। अमीर हो चुके दलित यह झूठ फैला रहे हैं कि आरक्षण खत्म होगा। यह वही अमीर दलित हैं , जो 95 प्रतिशत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट के वास्तविक फैसले पर जाने से पहले जमीन पर चलते हैं।
मैं गांव में रहता हूं । मेरे गांव में सौ घर मुसहर, पांच घर डोम के साथ-साथ , पासी रविदास इत्यादि रहते हैं । मेरे गांव के बगल के कई गांव में पासवान जातियों की बहुलता है।
मेरे गांव में मुसहर और डोम की पूरी की पूरी आबादी अशिक्षित है। मेरे गांव में एकमात्र रंजन मांझी की एक बेटी मैट्रिक पास करके आगे की पढ़ाई कर रही है।
अब कुछ बच्चे स्कूल जाने लगे हैं पर केवल चार-पांच महीने ही ये बच्चे स्कूल जाएंगे। उसके बाद सभी बच्चे अपने माता-पिता के साथ 6/8 महीने के लिए पंजाब, हरियाणा, त्रिपुरा के भट्ठा पर जाकर ईंट बनाने में माता-पिता की मदद करेंगे।
कई दलित जातियों ज्यादातर शिक्षित हैं। कई नौकरी कर रहे हैं। कई संपन्न हुए हैं।
मुसहर इत्यादि जातियां आज भी सरकारी जमीन पर मिट्टी की झोपड़ी में 10 लोगों का परिवार रहता है। राजनीतिक रूप से भी चेतन नहीं हैं।
मेरे पूरे जिले में मुसहर जाति से एकमात्र अशर्फी मांझी ही नेता है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वह क्या है। उच्चतम न्यायालय के सात सदस्य के बेंच ने 6 और 1 से अपने फैसले में एससी, एसटी को मिलने वाले आरक्षण में क्रिमीलेयर (अमीर) की पहचान कर उसके लिए कुछ कम आरक्षण और जो गरीब हैं, उसके लिए अधिक आरक्षण के प्रावधान किए जाने की बात कही है। ऐसा केंद्र सरकार को नहीं, राज्य सरकार को करने का अधिकार दिया गया है।
पिछड़े वर्ग और आर्थिक आधार पर जो ईडब्ल्यूएस को आरक्षण दिया गया है, उसमें भी क्रीमीलेयर की पहचान है।
भ्रम फैलाया गया कि आरक्षण खत्म किया जाएगा। दलित की एकता तोड़ने की साजिश है, आदि इत्यादि। और इस बात को हवा दे मोदी से खुन्नस खाए तथाकथित क्रांतिजीवी यूट्यूबर पत्रकारों ने।
एससी, एसटी एक्ट पर भी उच्चतम न्यायालय का एक फैसला आया। जिसमें कहा गया कि मुकदमा होने के पूर्व डीएसपी इसकी जांच करेंगे, इसमें कई केस झूठा हो रहा है। पर देश में भ्रम फैलाया गया कि मोदी सरकार एससी, एसटी एक्ट को खत्म कर रही है।
आंदोलन हुआ और दवाब में आकर मोदी सरकार ने कोर्ट के फैसले को रोक लगाकर देश का नुकसान कर दिया।
परिणाम भयावह है। जो पिछड़ी जाति, (यादव खास करके) इस एक्ट पर राजनीतिक कारणों से दलितों का समर्थन कर रही थी। आज 70 से 80 प्रतिशत वही पीड़ित है।
ताजा मामला देखिए । मुजफ्फरपुर में एक गरीब दलित नाबालिग के साथ दुष्कर्म और हत्या जैसा निंदनीय और दुखद कुकर्म हुआ। पुलिस ने आरोपी को पकड़ लिया। वह यादव जाति का था। औरंगाबाद का एक स्वघोषित बहुजन सेना का राष्ट्रीय अध्यक्ष गोल्डन दास अपने सैकड़ो समर्थकों के साथ आरोपी के गांव और घर पर धावा बोल दिया। लूटपाट की। मारपीट किया। तोड़फोड़ किया।
मतलब यह कि अभी भारत की राजनीति समानता के अधिकार से विमुख होकर असमानता को बढ़ावा दे रही है। वोट बैंक की राजनीतिक सर्वोपरि है। भोगना सभी समाज को पड़ेगा, बस।
सटीक
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