10 अप्रैल 2011

मैं अन्ना हजारे के साथ खड़ा नहीं हो सका! जब मीडिया भ्रष्ट है तब कैसा विरोध?


अन्ना हजारे ने जबसे अनशन पर बैठने की घोषणा की थी तबसे लगातार मेरे मन में उनके साथ होने की बात उठती रही और मैं कभी अपने शहर में  ही अनशन करने अथवा कभी मशाल जुलूस निकालने की बात सोचता रहा पर ऐसा कर न सका। मन में बार बार एक ही सवाल उठता रहा और किसी एक कोने से यह आवाज आती रही कि पहले अपने भ्रष्टाचार को खत्म करो फिर अन्ना का साथ दो और मैं उस समय जब पूरा देश अन्ना के साथ खड़ा था, मैं खड़ा नहीं हो सका।

सबसे पहले मैं मीडिया  की बात करता हूं जिसके भ्रष्टाचार का मैं विरोध भी नहीं सकता।मीडिया से जुड़े रर्पोटरों का जो हाल है वह सभी जानते है। सबसे पहले जिस चैनल के लिए मैं रिर्पोटिंग करता हूं उसके भ्रष्टाचार की बात कर लूं। साधना न्यूज चैनल से जबसे जुड़ा हूं कभी भी एकरार के अनुसार प्रति खबर 450 रू. नहीं दिया गया। जो मन हुआ वह चेक बना कर भेज दिया जाता है कभी चार महिने पर पांच हजार तो कभी आठ हजार। जबकि प्रति माह पच्चीस से तीस खबर भेजता हूँ और वह चलती भी है। जब कभी भी इस संबंध में जानकारी चाही तो टाल माटोल वाला जबाब मिलता है। अब तो पिछले आठ माह से एक भी पैसा नहीं दिया गया जबकि चैनल के ग्रुप एडिटर एन के सिंह शशिरंजन के चैनल छोड़ने के बाद पटना में बैठक कर इस बात से अवगत हुए और आश्वासन दिया कि आगे से ऐसा नहीं होगा पर उनके आश्वासन के कई माह बीत गए। 

यह हाल बहुतों न्यूज चैनलों का है। मेरे साथ कई साथी चैनलों से जुडे़ जिसमें इंडिया न्यूज से राहुल कुमार, ताजा न्यूज, युएनआई से संजीत तिवारी, आर्यन न्यूज से शैलेन्द्र पाण्डेय, टीवी 99, न्यूज 24 से धर्मेन्द्र कुमार, न्यूज वन से फैजी का नाम शामिल है पर किसी को भी कभी नियमित और निर्धारित राशि नहीं मिलती। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है। 

और मैं रोज रोज रिर्पोटरों को बसूली करते देखता हूं और चुप रहता हूं आखिर यह भी तो भ्रष्टाचार ही है।

उसी तरह समाचार पत्रों की बात करू तो स्तरीय पत्रों के द्वारा संवाददाताओं को 10 रू. प्रति समाचार दिया जाता है जबकि एक समाचार के संकलन के लिए जाने आने में इससे अधिक का खर्चा हो जाता है। उस पर भी विज्ञापन का भारी दबाब। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है। लगता है जैसे संवाददाताओं को मीडिया हाउस के लोग अप्रत्यक्ष रूप से यह कह कर भेजते है कि जाओं और कमाओ।


मीडिया हाउस से पैसा नहीं मिलने पर किस तरह से लोग छटपटातें है इसे मैं रोज महसूस करता हूं। विकल्प क्या बचता है। विकल्प है न और कुछ लोग उसे चुन भी लिया है जिसके तहत किसी के मौत की खबर कवर करने के लिए जाने पर भी आने जाने का खर्चा पानी के रूप में नकदी मांगी जाती है। शर्म से गड़ जाता हूं जब घर में आग लगने से जहां दो लोगों की मौत हो जाती है और इसकी खबर मुखीया के द्वारा पत्रकारों को दी जाती है पर पत्रकार खर्चा पानी का इकरार करा लेता है और वहीं समाचार बनाने के बाद मुखीया की बाइट ली जाती है और मुखीया से खर्चा पानी भी।

रोज रोज विज्ञापन के लोभ में सचाई की आवाज नहीं बन पाता हूँ और झूठ को दबा देता हूं क्योकि ऐसा करने वाला विज्ञापन दाता है और यह काम कौन मिडीयावाज नहीं करता?

इससे इतर भी कई तरह के भ्रष्टाचार में मैं रोज रोज शामिल होता है जिसमें से कुछ यहां लिखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा हूं। 

तब भला कैसे अन्ना के साथ खड़ा हो पाता?

और कितने लोग है जो कह सके कि राजा की तरह मौका मिले तो अरबों को धोटाला नहीं करेगें।

ईशा की बात मेरे मन में हमेशा घूमती रही कि पहला पत्थर वही मारे जिसने कभी पाप नहीं किया?

हां एक बात अब आप लोग भी मत कह देना, तब छोड़ क्यों नहीं देते ,  क्योंकि इसका जबाब है मेरे पास। मैं भी नशेबाज हूं और जैसे लोग शराब और गुटखे पर हजारों खर्चतें है मैं इन सब चीजों का सेवन नहीं करता ओर वचत कर पत्रकारिता पर खर्चता हूं बाकि कहने को आप स्वतंत्र है।

17 टिप्‍पणियां:

  1. बात आपकी एकदम उचित है...
    फिर भी अन्ना के साथ पांच दिन बिताने के बाद मुझे यही महसूस हुआ कि मीडिया ने इस मुहिम के लिए जितनी तत्परता दिखाई शायद उम्मीद नहीं थी... रात में दो बजे तीन टी वी जर्नलिस्ट हमारे पास जंतर मंतर पर आ कर बैठ जाते हैं... कहते हैं अभी तक हम नौकरी के तहत यहाँ थे... बॉस के निर्देशन में ... अब छुट्टी हो गयी है अब अपने अंतरतम के निर्देशन में यहाँ आये हैं.... हमारे लाख कहने के बावजूद वो हमारे साथ ही बैठे रहे और सुबह चार बजे सोने गए... उन्होंने बताया कि जनता तो भ्रष्टाचार को बहुत कम जानती है... हम तो चौबीस घंटे इस व्यवस्था को ही कवर करते रहते हैं,... हम जनता से ज्यादा नजदीक से स्थिति को जानते हैं और ज्यादा दुखी भी हैं

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  2. वाह ! सत्य बोलने के लिए भी हिम्मत चाहिए. यह हिम्मत ही तो प्रेरणा है जो अब बहुत कम लोगों के पास है. मुग्ध हो गया मन आपके नशे पर. मेरी समझ से यह हाल केवल हिंदी पत्रकारिता जगत में होता होगा अंग्रेजी में शायद ना हो. आप भी तो अपनी जगह पर अन्ना हजारे की ही भूमिका निभा रहें हैं. आप जैसे जुझारू लोगों के दम पर ही इस देश में हिंदी का भला हो रहा है. हालत इतनी बुरी होगी इसका अंदाज़ा मुझे भी नहीं था. संघर्ष जारी रखिये यह तस्वीर भी एक दिन आप जैसे लोग बदल डालेंगे.

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  3. रोज रोज विज्ञापन के लोभ में सचाई की आवाज नहीं बन पाता हूँ और झूठ को दबा देता हूं क्योकि ऐसा करने वाला विज्ञापन दाता है और यह काम कौन मिडीयावाज नहीं करता?


    आपका यह पक्ष जानकर अच्छा लगा ...सच को यों कहना कहाँ आसान है....

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  4. बहुत अच्छा लिखा आपने बड़ी सहजता से सच्चाई स्वीकार कर ली इतनी हिम्मत अगर आधे लोगों में ही आ जाए तो देश सुधर जाएगा.

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  5. हिम्मत ही तो प्रेरणा है
    .........अच्‍छी प्रस्‍तुति..आभार।

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  6. स्वयं का अवलोकन ही सही दिशा निर्देशित करेगा ....कदम कदम पर भ्रष्टाचार है ...चलने पर पैर तो गंदे होंगे ही ...

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  7. बहुत बढिया मित्र । आपका तो उपनाम ही साथी है ..तो साथी बने रहें और हां ये तेवर बनाए रखिए यही तेवर भारत की तकदीर बदलेगा । मुझे मालूम है कि ये इतना आसान नहीं है खासकर जब इंसान खुद को स्थापित करने के लिए ही संघर्षरत हो इसलिए आप अन्ना के साथ नहीं बैठे तो क्या ..मगर लडाई आप भी वही लड रहे हैं जो अन्ना लड रहे हैं इसलिए आप स्वत: हमारे साथ हैं । बेशक मीडिया में भी सब कुछ दुरूस्त नहीं है इसलिए जब सोटे चलेंगे तो उस पर भी चलेंगे आप तैयार रहिए ..उनकी पीठ पर जमाने के लिए ..शुभकामनाएं दोस्त और आपकी बेबाकी को सलाम

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  8. bahut achha apni alochna karne bale bahut kam hai .media ke is uchstriye garbarjhale ke karan hi sarkar ya prasasan ke khilaf news jagah nahi pata hai.

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  9. इतना खुलापन !

    इतना साहस ? या, दुस्साहस ?

    पहले तो कभी किसी मिडिया पर्सन के द्वारा नहीं देखा !

    मिडिया पर्सन क्या,कोई भी अपने गले में नहीं झांकना चाहता.. झांकता भी है तो सरेआम नहीं स्वीकारता!

    क्या कहूँ, बधाई दूँ या अफ़सोस जाहिर करूं, किंकर्तव्यविमूढ़ हूँ.

    भ्रष्टाचार- मुर्दाबाद !

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  10. अच्छी पोस्ट .
    रामदेव जी की TRP कम जो हो गई है , मुददा ही ले उड़े हजारे ।
    अन्ना आंदोलन से किसी को कुछ मिला या नहीं परंतु मीडिया को एक बड़ा इवेंट और पत्रकारों को भागदौड़ की एक जायज़ वजह जरूर मिल गई और माल तो मिला ही।
    ऐसे आंदोलन और ऐसी कवरेज होती रहनी चाहिए समृद्धि की ओर बढ़ने के लिए ।

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  11. मीडिया की हालत बाद से बदतर हो रही है, हर कोई उपभोक्तावाद की दौड़ में एक-दुसरे से तेज़ दौड़ना चाहता है... आपकी बेबाकी के कायल हो गए हैं हम भी...

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  12. आदरणीय बंधुओ

    आभार

    मैंने अपनी दिल की व्यथा पोस्ट के माध्यम से उगल दी अच्छा या बुरा जो भी था। बहुत सी बातें है जो तकलीफ देती है। मुझे याद है जब मैं पहली बार आज अखबार से जुड़ा था तो प्रभात खबर के व्युरोचीफ वहीं थी और उन्होने आज अखबार के व्युरोचीफ को कहा कि क्यों किसी का जीवन बर्बाद कर रहें है। मुझे बहुत बुरा लगा था पर आज मैं भी यह सलाह लोगों को देता हंू।

    खौर इस सब बात से इतर एक सवाल यह भी है कि हमारी प्रवृति दुसरों की तरफ उंगली उठाने की ज्यादा है यही अन्ना के प्रकरण में हुआ। अन्ना ने जो किया वह अपने जगह है। अन्ना वह किया कि अब आदमी यह नहीं कह सकता कि वह अकेला क्या करेगा?

    सवाल है कि जिस भ्रष्टाचार को सभी कोश रहें है वह है क्या? क्या वह मुझमें कहीं है, यदि है तो भरसक प्रयास करना चाहिए कि वह दूर हो, जब अपना भ्रष्टाचार दूर कर देगें तो भ्रष्टाचार अपने आप खत्म हो जाएगा।

    विचारों का आदन प्रदान करने का शुक्रिया।

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  13. आपने खरी बात कही है लेकिन ठीक तरीक़ा यह है कि जिस हाल में भी आप हैं, उसी हाल में आप नेकी के लिए संघर्ष करने वालों का साथ दें। जहां आप आज़ाद हैं, उस हिस्से का भ्रष्टाचार तो आप तुरंत छोड़ दीजिए और जो व्यवस्थाजनित है, उसके लिए धैर्य के साथ इंतज़ार कीजिए। आप उसे बुरा समझते हैं और बुराई को बुराई समझने की चेतना आपमें बनी हुई है, बची हुई है। यह भी एक बड़ी दौलत है। मैं आपसे प्रभावित हुआ हूं और मालिक से आपकी बेहतरी के लिए दुआ करता हूं।

    जुल्म और लालच
    अल्लाह के रसूल (स.) ने फ़रमाया-
    ‘जुल्म से बचते रहो, क्योंकि जुल्म क़ियामत के दिन अंधेरे के रूप में ज़ाहिर होगा और लालच से भी बचते रहो, क्योंकि तुम से पहले के लोगों की बर्बादी लालच से हुई है। लालच की वजह ही से उन्होंने इन्सानों का खून बहाया और उनकी जिन चीज़ों को अल्लाह ने हराम किया था, उन्हें हलाल कर लिया।‘ -मुस्लिम

    http://vedkuran.blogspot.com/2011/04/save-youself.html

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  14. आपकी इमानदार आवाज़ ने बहुत प्रभावित किया है ।

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  15. अरूण भाई , पहला पत्थर वाली बात भुल जायें, एक और बात पेट के लिये किया गया काम चाहे वह डकैती और चोरी हीं क्यों न हो भ्रष्टाचार नही है । वह हक है जो छिन लिया गया है ,दिक्कत यह है कि व्यवस्था ने जो समझाया हम वही समझ गयें। व्यवस्था क्रांति नही चाहती , वह भय पैदा करती है । हम आप भय में जिते हैं , फ़र्क समझना पडेगा , स्विकार करना पडेगा , बोलना पडेगा । आज करोडो लेने वाला जेल में भी आंनद से है , सजा भी होगी तो ७ साल । एक २-३ लाख लूटनेवाले को पकडे जाने पर वही चोर , भ्रष्ट एसपी मार -मार कर खाल उधेड देगा । सजा होगी आजीवन । अरूण भाई अन्ना का अनशन मीडिया की देन थी । सच क्या है अभी किसी को नही पता । पुरा मुल्क टूजी, आदर्श, कामनवेल्थ, कालाधन के खिलाफ़ आक्रोशित था , कुछ सकारात्मक होने की संभावना थी , ठिक उसी वक्त मात्र एक नये कानून के लिये अनशन क्यों । जन आक्रोश को प्रजातांत्रिक तरीके से खत्म कर देने का यह एक पुराना तरीका है ।

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