20 जुलाई 2011

नवजात शिशु को कुंआ मे फ़ेंका, सांपों के बीच रहे शिशु को गांव वालों ने बचाया। जाको रखे सांइयां मार सके न कोई।

लावारीस शंकर 



यह सपने की तरह लगता है,मेरी कहानी के साथ ही साथ एक हकीकत चल रही थी और उस हकीकत को देख रूह कांप गया। बरबीधा के कुटैत गांव में जहां एक मां ने अपने बेटे को चालीस फिट गहरे कुंए में सांपों के बीच मरने के लिए फेंक दिया वहीं एक मां ने अपने बेटे को शौचालय में जा कर फेंक दिया जैसे की वह भी मल मुत्र की तरह त्याग्य हो?

कुएं के पास खड़े ग्रामीण जिन्होने बच्चे को बचाया।




इस तरह की घटनाऐं हमारी समाज में जब भी घटती है तो इसमें हम उस मां को कोसते है जिसने कुंती कर तरह अपने कोख से जन का बच्चे को फंेक देती है, सच भी है कि यह निंदनीय ही नहीं बल्कि उस मां के मनुष्य होने पर सवाल खड़ी करती है पर इस सब के बीच जब कथित समाज में वह कुंवांरी मां अपने बेटे के साथ आ बैठती तो हमारा कथित सभ्य समाज भी राक्षसी पराकाष्ठाओं को पार कर जाता?

ऐसा ही हुुआ, जिसने भी सुना उसका कलेजा मुंह को आ गया। एक नवजात बालक दुधमुंह और उसे चालीस फीट गहरे सुखे कुंऐं में फेंक दिया गया और चार चार सांप के बीच एक दुधमंुहा बच्चा रो रहा है। हे भगवान। यह लोमहर्षक और मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाला मंजर था बरबीघा के कुटौत गांव का। इस गांव में बकरी चराने के क्रम में बच्चांे ने कुंऐ में से बच्चे के रोने की आवाज सुनी और जब झांक कर देखा तो एक दुधमंुहा बच्चा कुंऐं में फेंका हुआ है और उसके इर्द-गिर्द तीन चार सांप लोट रहे है। जंगल में आग की तरह यह खबर गांव मंे फैल गई और घीरे घीरे लोग जमा होते गए। गांव वालों ने संवेदना दिखाई और कुंऐं में सीढ़ी लगा कर बच्चे को बचाया। यह सांपो के बीच से बच्चे को निकालने का साहस किया विपिन कुमार ने। फिर गांव के ही एक महिला संजु देवी ने इस बच्चे को अपना लिया। यह बेटा था। प्रत्यक्षदर्शीयों की माने तो सांप बच्चे की रक्षा कर रहा था और जब बच्चा रोने लगता था तब वह हलचल कर उसे बहलाने की कोशिश करता। जब कुंए से बच्चे को निकालने के लिए विपिन कुंए में प्रवेश किया तो सभी सांप अलग हट गया।

बच्चे को कुंए से निकाल कर डा. रामानन्दन प्रसाद के पास उसका ईलाज कराया जहां उसे खतरे से बाहर बताया गया। गांव के लोग सावन के महीने में सांपों के बीच रहे इस बच्चे को भगवान शंकर की कृपा मान रहा है और इसलिए इस बच्चे का नाम शंकर रख दिया गया है।


वहीं तैलिक बालिका स्कूल के शौचालय में एक नवजात बच्ची को फेंक दिया गया और जब छात्राऐं शौचालय गई तो नवजात पर नजर गई और फिर भीड़ जमा हुई पर उसे किसी ने नहीं बचाया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।

कुछ भी पर जहां एक तरफ एक मां ने अपनी कोख से जन्म देकर अपने ही बेटे को कुंए में मरने की नियत से फंेक दिया वहीं गांव के लोगों ने उसे बचा कर एक मां के आंचल में दे दिया है।
किसी शायर ने सच ही का है घर से मंदिर है बहुत दूर चलो यू कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।

8 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेरक आलेख! जाको राखे साँइया मार सके न कोय ...

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  2. यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना क्यों हुई इसके कारण भी खोजने की ज़रूरत है हम भी यही कहेंगे जाको राखे.....

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  3. अरुण भाई, वह भी इसी संसार और समाज की है जिसने उससे जन्म दिया, वह भी जो इसके जन्म का कारण था, वह भी जो इसकी मां को समाज में रहने नहीं देता इसलिए मां ने मरने के लिए फेक दिया और वह भी जो उसे उठा लाया, ... लेकिन इस पूरे वर्णन में जो हमारे समाज का नहीं था वह था, सांप, इस घटना के बारे में पढ़ने के बाद बाद तो मुझे अज्ञेय की कविता आज और उचित जान पड़ती है ... !

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  4. दुर्भाग्यपूर्ण स्तिथि समाज की
    जाको राखे साँइया मार सके न कोय ... बिलकुल सत्य है

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  5. Nice post.

    आप आएंगे तो आपको हम अपने नए कार्यक्रम ‘ब्लॉगर्स मीट वीकली‘ में शामिल करेंगे।
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  6. समाज उत्तरदायी है..जब तक वह अपनी सोच नही बदलेगा तब तक ऐसा होता रहेगा...

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