पांच वर्ष का भतीजा गोलू जो अपने मामा के पास गया हुआ था की तबीयत खराब होने की वजह से फरीदाबाद जाना हुआ। एक सप्ताह लगभग रहा पर वहां मेरा जी नहीं लगा। या यूं कहें की शहर की रंगीनियों ने मेरा मन नहीं लुभाया या यूं कहें की लगातार क्लिनिक में रहते हुए ही मन ऐसा हो गया, पता नहीं क्यूं पर मन नहीं रमा और फिर 1 जनवरी को ही वहां से भाग आया। एक उदासी और एक खालीपन सा कुछ रहा लगातार। हां जमकर सैंडबीच, बर्गर और कॉफी का मजा लिया।
पर जो हो कुछ अच्छा भी हुआ। जैसे की अकस्मात इमरजेंसी होने की वजह से पहली बार हवाई जहाज से यात्रा करनी पड़ी और एक अलग दुनिया देखने को मिली। असमानता की एक उंची खाई। और फिर फेसबुक दोस्त मनीष कुमार (फरीदाबाद) ने इस आभासी दुनिया की दोस्ती का भास कराया और अस्पताल से लेकर हर जगह मुझे एक अपनापन दिया, लगा ही नहीं की हम दोनों नीजी दोस्त नहीं है। और फिर हरियाणा की महिलाओं की एक सबसे खास बात तो मुझे बहुत अच्छी लगी वह उनका अपने सेहत का ख्याल रखना। सभी महिलाऐं जुती और मौजे पहने दिखी, ग्रामीण भी, मन प्रसन्न हो गया। अपने यहां हो जैसे जुती घर में भी तो ठंढ में महिलाऐं नहीं पहनती और बीबी से रोज किच किच हो जाती है स्वेटर क्यों नहीं पहना, मफलर तो बांधो, पर असर नहीं, खैर 1 जनवरी को दिल्ली धुमने के प्रस्ताव को ठुकरा कर नव वर्ष रेलगाड़ी और औटो मे ंकाटी और अब अपने घर पहूंच गया। भतीजे की भी अस्पताल से छुटटी हो गई।
वहां के बाजार मे धुमते हुए चंद शब्द चुरा कविता की शक्ल दे दी, सोंचा आपके साथ सांझा कर लूं..
बेवजह
भीड़ है
आपाधापी है
कुछ खरीददार
कुछ दुकानदार
कुछ डेढ़ रूपया हरेकमाल की
सोंच रखतें हैं
कुछ मोल भाव कर
सोंचते है
मिल जाए सब कुछ सस्ते में,
कुछ हर कीमत पर बचा लेतें हैं!
कुछ बेकीमत बेच देते घरवार..
यही तो है साथी जिंदगी का बाजार..
achha hua aap ghar chale gaye or 1 january ka jadoo aap par nahin chala..... asise virle hee hote hai arun ji... aap se na milne ka gam ko is post mein valeen kar raha haoon..
जवाब देंहटाएंP.S. gr koi dikkat thi to fone kar ke faridabad bula sakte the... ameen ... kee hamara bhatija theek hai.
Nice .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिवयक्ति.....
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