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हम मंगैलूं मोछ वाला, मोछ मुंडा काहे अईले रे । मार......चोट्टा, साला...पूरा गाँव हंसैलए रे....।
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इस भाड़ी को सुन, जाने क्यों मन में गुद्गुद्दी होने लगती है । बिहार में इन दिनों शादी ब्याह का मौसम है और महिलाओं द्वारा अपनी गीतों से भाड़ी के रूप में जम के गाली दी जा रही है । इन भाड़ियों में ग्राम जीवन का माधुर्य और मिठास होती है ।
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कई भाड़ी तो इतने अश्लील होते है कि आप शर्मा जाईयेगा...खुले आम गाली का यह चलन बिहार में तो है , बाकि जगहों का मैं नहीं जानता । गाँव में इस तरह की भाड़ी गाने के लिए खास गितहरी महिलाएं होती है ।
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बहुत दिनों से सोंच रहा था की आखिर इतने अश्लील गीत की यह कैसी परम्परा है ? पर आज जो मन ने तर्क दिया वह यह है की इस तरह खुले आम गाली देने पे भी कोई कुटुंब बुरा नहीं मानते, क्यों? सभी हंस के इसे टाल देते है ।
आम जीवन में भी यदि गाली के प्रति हमलोग इसी तरह का सहज भाव रखें तो जीवन के अमूल क्रांति घटित हो जाये । जीवन प्रेममय हो जाये ।।।।
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इसी तरह के कुछ सहज गीत
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लाबा न छिटहो दुलरैते भईया, बहिनी तोहरियो जी ।
अंगूठा ना छुअह् छिनारी के पूता, धानी तोहारियो जी ।।
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माई-बाप के चरन दूल्हा, कहियो न छूला जी ;
धानी के चरन छू के, कत्ते नितरैला जी ।।
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हम मंगैलूं मोछ वाला, मोछ मुंडा काहे अईले रे । मार......चोट्टा, साला...पूरा गाँव हंसैलए रे....।
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इस भाड़ी को सुन, जाने क्यों मन में गुद्गुद्दी होने लगती है । बिहार में इन दिनों शादी ब्याह का मौसम है और महिलाओं द्वारा अपनी गीतों से भाड़ी के रूप में जम के गाली दी जा रही है । इन भाड़ियों में ग्राम जीवन का माधुर्य और मिठास होती है ।
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कई भाड़ी तो इतने अश्लील होते है कि आप शर्मा जाईयेगा...खुले आम गाली का यह चलन बिहार में तो है , बाकि जगहों का मैं नहीं जानता । गाँव में इस तरह की भाड़ी गाने के लिए खास गितहरी महिलाएं होती है ।
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बहुत दिनों से सोंच रहा था की आखिर इतने अश्लील गीत की यह कैसी परम्परा है ? पर आज जो मन ने तर्क दिया वह यह है की इस तरह खुले आम गाली देने पे भी कोई कुटुंब बुरा नहीं मानते, क्यों? सभी हंस के इसे टाल देते है ।
आम जीवन में भी यदि गाली के प्रति हमलोग इसी तरह का सहज भाव रखें तो जीवन के अमूल क्रांति घटित हो जाये । जीवन प्रेममय हो जाये ।।।।
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इसी तरह के कुछ सहज गीत
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लाबा न छिटहो दुलरैते भईया, बहिनी तोहरियो जी ।
अंगूठा ना छुअह् छिनारी के पूता, धानी तोहारियो जी ।।
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माई-बाप के चरन दूल्हा, कहियो न छूला जी ;
धानी के चरन छू के, कत्ते नितरैला जी ।।
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