01 अप्रैल 2016

मरने से पहले आवाज़ सुनो...!

बृद्धापेंशन ही लाचार बुजुर्गों का आसरा है। आठ माह बाद यह मिल रहा है पर जिनके पास आधार कार्ड या बैंक खाता नहीं उनको नहीं दिया जा रहा है। कर्मी दुत्कार कर भगा दे रहे हैं। जबकि यह नकद दिया जा रहा है।
सरकारी ऑफिस की व्यवस्था से सभी वाकिफ है। आधार कार्ड बनाने या बैंक खाता खुलबाने में कई बार दौड़ाया जाता है। जो एक कदम चल नहीं सकते वे कितनी बार दौड़ेंगे! पर लालफीताशाही है, जो फरमान सुना दिया सो सुना दिया... देखिये बेचारी टुन्नी महारानी को, आँख का रेटिना शायद ख़राब है सो आधार नहीं बनाया गया पर पेंशन के लिए तो आधार जरुरी है...? और देखिये, बंगाली मांझी को..बेचारे इतनी गर्मी में भी स्वेटर पहन कर आये...शिकायत करने कि पेंशन नहीं दिया जा रहा...स्वेटर के बारे में पूछा तो सहजता से कहा... "इहे एगो बस्तर है त की पहनियै!" यह आवाज़ किसी गरीब के मर जाने से पहले उठाई है...शायद सरकार तक आवाज पहुँच जाये...बहुत लोगों को शिकायत है कि मरने के बाद आवाज़ उठाई जाती है, जिन्दा रहते नहीं...बंधू , मर जाने के बाद आवाज़ सरकारें थोड़ी सी सुन लिया करती है...जीते जी तो...नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बन जाती है..

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-04-2016) को "फर्ज और कर्ज" (चर्चा अंक-2300) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    मूर्ख दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सरकार, प्रगति और ई-गवर्नेंस " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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