गांवों में अब हीरा-मोती बैलों का जोड़ा एक आध नजर आते हैं। खेती करने के पुराने तरीके बदल गए हैं। अब ट्रेक्टर से खेती होती है।
साथ ही, घान के पुराने बीज भी अब विलुप्त हो गए हैं।लकड़ी का हल, पालो अब नहीं बनते। खेत की पूजा के लिए होने वाला पर्व (हर्मोतर) अब नहीं होता।
पहिरोपा में किसान के घर खीर, पूरी और आलूदम अब नहीं बनता। और धान रोपती रोपनी अब गीत भी नहीं गाती...
बदलते ज़माने के साथ बहुत कुछ बदल गया है..
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