सदियों से तुम्हें झुठे विश्वास बेचे गए हैं ---ओशो
मुझे तुम्हारी आंतरिक सत्ता के विकास पर कार्य करना होता है। दोनों एक ही प्रक्रिया के अंग हैं: कैसे तुम्हें एक समग्र व्यक्ति बनाया जाए, उस सारी निस्सारता को, जो तुम्हें समग्र बनने से रोक रही है, कैसे नष्ट किया जाए। यह तो नकारात्मक पहलू है और सकारात्मक पहलू है कि कैसे तुम्हें प्रज्ज्वलित किया जाए ध्यान से, मौन से, प्रेम से, आनंद से, शांति से। मेरी देशना का यह सकारात्मक पहलू है।
लोगों को सकारात्मक पहलू से तो कोई झंझट नहीं है। मैं लोगों को ध्यान, शांति, प्रेम, मौन सिखाता हुआ पूरे विश्व में घूमता रह सकता था और किसी ने भी मेरा विरोध न किया होता।
परंतु इस तरह से मैं किसी की कोई मदद नहीं कर सकता था, क्योंकि फिर उस व्यर्थ को कौन नष्ट करता? और व्यर्थ को पहले नष्ट किया जाना है, यही तो रुकावट है। यही तुम्हारा पूरा का पूरा संस्कार है। बचपन से ही झूठों के साथ तुम्हारा पालन-पोषण किया गया है, और उन्हें इतनी बार दोहराया गया है कि तुम भूल ही गए हो कि वे झूठ हैं।
विज्ञापन का कुल रहस्य इतना ही है बस दोहराए जाओ। रेडियो पर, टेलीविजन पर, फिल्मों में, समाचार-पत्रों में, दीवारों पर, हर जगह बस दोहराए जाओ।
पुराने समय में ऐसा सोचा जाता था कि जहाँ कहीं भी माँग होगी, पूर्ति अपने से हो जाएगी। अब, नियम यह नहीं है। अब नियम यह है कि यदि पूर्ति करने के लिए तुम्हारे पास कोई चीज है, माँग निर्मित करो। लोगों के मनों में कुछ शब्द बार-बार दोहराते चले जाओ ताकि वे भूल ही जाएँ कि वे इसे रेडियो पर, टेलीविजन पर, फिल्मों में, समाचार पत्रों में देख-सुन रहे हैं, और वे इस पर भरोसा प्रारंभ कर दें।
लगातार किसी वस्तु के बारे में सुनते-सुनते वे इसे खरीदना प्रारंभ कर देते हैं- साबुन, टूथपेस्ट, सिगरेट। इस तरह से तुम कोई भी चीज बेच सकते हो।
मैंने एक व्यक्ति के बारे में सुना है जिसे एक बड़ा सेल्समैन माना जाता था। उसकी कंपनी को उस पर बहुत गर्व था। कंपनी जमीन-जायदाद का व्यवसाय करती थी। जमीन का एक बड़ा-सा टुकड़ा उनके पास कई वर्षों से था। कंपनी ने बेचने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई भी उस जमीन को खरीदने में उत्सुक न था।
आखिरकार जमीन के मालिक ने उस सेल्समैन को बुलवाया और उससे वह जमीन बेचने के लिए कहा। सेल्समैन ने कहा, 'आप चिंता न करें,' और उसने वह जमीन बेच दी।
बेचने के पंद्रह दिन बाद ही बारिश प्रारंभ हुई और वह जमीन पंद्रह फीट पानी में डूब गई। इसी कारण से उस जमीन को खरीदने में कोई उत्सुक न था। सड़क से देखकर कोई भी समझ सकता था कि बारिश में उसका क्या हाल होगा। क्योंकि चारों ओर से जमीन इतनी नीची थी।
जिस आदमी ने उस जमीन को खरीदा था, वह बहुत गुस्से और क्रोध में आया और मालिक के ऑफिस में घुस गया और बोला, 'यह व्यापार है या लूट? कहाँ है तुम्हारा सेल्समैन?'
मालिक ने उससे पूछा, 'बात क्या है? हुआ क्या है?'
उसने कहा, हुआ क्या?' सेल्समैन ने जो जमीन मुझे बेची है वह अब पंद्रह फीट पानी में डूबी हुई है। वह तो एक बड़ी सारी झील-सी बन गई है। अब मैं उस जमीन का क्या करूँगा। या तो मैं उस आदमी को जान से मार डालूँगा, या फिर मेरा पैसा वापस करो।'
मालिक ने कहा, 'चिंता न करें। आप बैठ तो जाएँ।'
मालिक ने सेल्समैन को बुलवाया। सेल्समैन ने कहा, 'यह कोई समस्या नहीं। आप मेरे साथ आएँ। मैं इस समस्या को अभी सुलझा देता हूँ। आपको अपना पैसा चाहिए? आप अपना पैसा पंद्रह दिन में सूद सहित वापस ले लें। क्योंकि मेरे पास और भी अधिक दाम देने वाला खरीददार मौजूद है।'
उस आदमी ने कहा, 'क्या?'
सेल्समैन बोला, 'अब आप अपना मन न बदलें। आप सूद सहित अपना पैसा वापस ले लें और उस जमीन को भूल जाएँ। वह इतनी सुंदर जमीन है...आप बारिश के बाद उस जमीन में एक सुंदर मकान बना सकते हैं और जब बारिश दुबारा आए, आप ऐसा इंतजाम कर सकते हैं कि पानी वहाँ से बाहर न जाए। पूरे शहर में आपका अपनी ही तरह का अलग मकान होगा, झील महल। और जहाँ तक अभी की बात है, मैं आपको नावें दे देता हूँ। हम उन्हें ऐसे ही किसी मौके के लिए बचाए हुए थे।'
और उस सेल्समैन ने उस आदमी को दो नावें भी बेच दीं। मालिक वहीं खड़ा यह सारा दृश्य देख रहा था। वे नावें एकदम बेकार थीं- सालों वे वहीं पड़ी सड़ रही थीं।
जिस समय भी उनको पानी में उतारा जाता, उसी समय वे डूब जातीं। मालिक ने अपने सेल्समैन से कहा, 'तुम तो और अधिक मुसीबत खड़ी कर रहे हो।'
सेल्समैन बोला, 'आप चिंता न करें। यदि मैं उतनी बड़ी मुसीबत झेल सकता हूँ, तो मैं इन दो नावों से भी निपट सकता हूँ। तुम्हें तो बस आकांक्षा जगा देनी है- 'झील महल'। वह आदमी तो केवल एक मकान बनाने की सोच रहा था। तुमने उसकी इच्छा को, आकांक्षा को 'झील महल' में बदल दिया।
सेल्समैन ने कहा, 'जरा सोचिए, यदि आप 'झील महल' बनाना चाहें, पहले तो आपको एक झील बनानी पड़ेगी। और हम आपको बनी-बनाई तैयार झील दे रहे हैं, और उसका एक पैसा भी नहीं ले रहे हैं।'
सदियों से आदमी को विश्वास, सिद्धांत, मत बेचे गए हैं जोकि एकदम मिथ्या हैं, झूठे हैं, जो केवल तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं, तुम्हारे आलस्य का प्रमाण हैं। तुम करना कुछ चाहते नहीं, और पहुँचना स्वर्ग चाहते हो।
और ऐसे लोग हैं जो तुम्हें नक्शे, सरल विधियाँ देने को तैयार हैं, जितनी चाहो उतनी सरल विधि। बस परमात्मा का नाम लेते, दो-तीन मिनट उसे स्मरण करते सुबह उठ जाओ, इतना पर्याप्त है। कभी-कभी गंगा चले जाओ, वहाँ जाकर डुबकी लगा आओ ताकि तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएँ, तुम पवित्र हो जाओ। और सभी धर्मों ने ऐसी तरकीबें बना रखी हैं। काबा चले जाओ और सभी कुछ माफ कर दिया जाएगा।
मुसलमान गरीब लोग हैं और वे गरीब हैं अपने विश्वासों के कारण। वे धन को सूद पर लेने या देने के खिलाफ हैं। अब सारा व्यवसाय सूद पर ही निर्भर है, उन्हें गरीब रहना ही होगा। और उन्हें बताया गया है कि जीवन में कम से कम तुम्हें एक बार काबा अवश्य जाना चाहिए। काबा के पत्थर के चारों ओर सात चक्कर लगा लो, तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएँगे और सभी पुण्य बरस जाएँगे। इतना कर लेना पर्याप्त है। इतनी सरल और आसान विधियाँ!
पंडित-पुरोहित तुम्हें सरल विधियाँ बताते हैं क्योंकि तुम आलसी हो। सच तो यह है कि तुम अपने अंतस की खोज के लिए कुछ करना ही नहीं चाहते हो।
स्वर्ग कोई कहीं ऊपर बादलों में नहीं है। यह तुम्हारे भीतर है और इसके लिए तुम्हें गंगा या काबा या गिरनार जाने की जरूरत नहीं है। तुम्हें केवल 'स्वयं' तक पहुँचने की आवश्यकता है। परंतु कोई पंडित-पुरोहित या तथाकथित धर्म नहीं चाहते कि तुम स्वयं तक पहुँचो, क्योंकि जैसे ही तुम स्वयं की खोज पर निकलते हो, तुम सभी तथाकथित धर्मों- हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के बंधनों से बाहर आ जाते हो। उस सभी के बाहर आ जाते हो, जो मूढ़तापूर्ण और निरर्थक है। क्योंकि तुमने स्वयं का सत्य पा लिया होता है।
साभार : ओशो उपनिषद
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-08-2016) को "कल स्वतंत्रता दिवस है" (चर्चा अंक-2434) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'