नशा मुक्त बिहार होगा, अकल्पनीय था ! पर नीतीश जी ने अपने जिद्द से इसे सच कर दिया। अब 21 जनवरी को विश्व के मानचित्र पे नशा मुक्त बिहार की तस्वीर चमकेगी। सेटेलाइट मानव श्रृंखला की तस्वीर खींचेगी। मानव श्रृंखला की यह तस्वीर नशा मुक्त बिहार का होगा। अब इस तस्वीर में हमारी भी एक तस्वीर हो, हमें इसके लिए आगे आना चाहिए।
नशा और बिहार का अनुनाश्रय सम्बन्ध था। गली-गली शराब बिकती थी। शाम ढलते ही रास्ते और सड़कों पे शराबियों का कब्ज़ा होता था। गांव और मोहल्लों में भद्दी-भद्दी गालियों की आवाज हुंकारते थे। मार-कुटाई से पत्नियों की चीत्कार और बच्चों का कारुणिक क्रन्दन आदमी को आदमियत पे अफ़सोस जाहिर करने पे मजबूर करता था। गरीब और ख़ास कर दलित-मजदूर अपनी कमाई का सारा हिस्सा शराब खाने में दे आते थे। घर के चूल्हे रोटी और भात के बगैर उदास रहते थे। बच्चों का भविष्य शराब की मादक उन्माद में डूब कर दम तोड़ देता था।
पर्व के मायने बदल गए। परंपरा और संस्कृति पे शराब ने कुठराघात किया। बात सरस्वती पूजनोत्सव से शुरू करें तो युवा वर्ग शराब में डूब कर विद्या की देवी का अपमानित और कलंकित करते जरा नहीं झिझकते। सरस्वती प्रतिमा बिसर्जन जुलूस में बेटियों की दुपट्टे खींच लिए जाते और माँ शारदे बेबस होकर देखती रहती। होली की संस्कृति बदल गयी। शराबियों का साम्राज्य सड़कों पे होता। गांव-गांव इसका कुठाराघात हुआ। शहर और गांव के लोग होली में घरों में दुबकने लगे। गांवों में ढोलक, झाल और मंजीरे की आवाज थाम गयी। मनभावन और चुटीले होली गीत की जगह भद्दी भद्दी गालियां गुंजित होने लगी। दशहरा, दिवाली सभी के मायने बदल गए। उत्सव का अर्थ शराब था।
बारात जैसे परम्परा विलुप्तावस्था में पहुँच गयी। लड़ाई-झगड़े के डर से दो दिन तक बाराती के रहने की परंपरा ख़त्म हुयी। सभ्य या कहे सीधे-साधे लोग बारात जाने से परहेज करने लगे। यह कुरीति गांव-गांव पहुंची तो दस और बारह साल के बच्चे शराब खाने में देखे जाने लगे।
और सबसे अधिक शराब के नशे में सड़क हादसे आम हो गयी थी। शराबी या खुद मारते, या किसी और को मार देते।
अब यह सब बदल गया। पूर्णतः ऐसा कहना अतिशयोक्ति होगी। जितना बदला यह ही अकल्पनीय था। सड़क हादसे थम गए। गालियों का शोर शराबा रुक गया। सड़कों पे उपद्रव थम गया। सबसे निचले तबके के मजदूर दो पैसा कमा कर घर लौटने लगे। खामोश चूल्हे मुस्कुराकर धुआँ उगलने लगे। बच्चे स्कूल देख लिए। बारात शांति पूर्वक दरबाजे लगने लगे। सम्पन्न हुए नवबर्ष पे शराबबंदी की पहली राहत भरी तस्वीर दिखी। कितना कुछ बदल गया। सबकुछ कैसे बदल सकता है।
इन सब के साथ ही यह भी सच है कि कुछ युवा शहर और गांव तक में शराब की तस्करी करने लगे। जैसा की स्वाभाविक है। पुलिस और प्रशासन तक हिस्सा बंटता है। पैसे वालों को घर पे शराब पहुँच जाती है। कुछ पकड़े भी जाते है। जो भी हो पर शराब आज बिहार में जघन्य अपराध है। जैसे हत्या, बलात्कार, चोरी अपराध होने की वजह से नहीं रुका वैसे ही शराब भी नहीं रुकेगा। अपराधी अपराध करेंगे। पकडे जाने पे जेल जायेंगे। अब यह हमें तय करना है कि हम असामाजिक और अपराधी के साथ खड़ें होंगे या एक सभ्य, सुसंस्कृत समाज निर्माण में गिलहरी की तरह सहभागी बनेंगे। जय बिहार।
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