डूबते हुए को पहले नमन
अरुण साथी
भारतीय संस्कृति, सभ्यता और संस्कार की यही पहचान है और इसी पहचान का उद्घोष है आस्था का महापर्व छठ के अवसर पर डूबते हुए सूरज को सबसे पहले नमन करना। भारतीय संस्कृति की झलक इतिहास में झांकने से भी नजर आएगी जब इतिहास पुरुष दबे कुचले और कमजोरों की मदद करने के लिए सबसे पहले आगे आते हैं।
यह हमारा संस्कार है और इसी उद्घोष के साथ छठ पर्व पर हम सबसे पहले डूबते हुए सूरज को अर्घ देते हैं। साथ ही साथ उसी समय हम यह भी संदेश देते हैं कि जो डूब रहा है उसका भी उदय होगा। आज संध्या अगर कोई गिर पड़ा है, कोई डूब रहा है तो कल सुबह वह फिर उठेगा फिर उसका उदय होगा और फिर हम जिसका उसको भी नमन करते हैं। हम उस को नमन करते हैं जो डूबने के बाद आज सुबह फिर से निकल पड़ा है अपनी अनंत यात्रा पर। उस यात्रा पर भी जिसमें कल डूब जाना भी सुनिश्चित है। यह उस की यात्रा का भी संदेश है कि जैसे ही हम उगते हैं तो धीरे-धीरे प्रयास करते हुए हम संसार में अपनी रौशनी बिखेर दें। वह संसार हमारा लघु भी हो सकता है और बृहत भी हो सकता है। एक सूरज जो आसमान पर छा कर पूरे ब्रम्हांड को रैशन करता है तो दूसरा सूर्य हम भी बन सकते हैं और अपने आसपास लघुता में ही सही थोड़ी सी रौशनी बिखेर सकते हैं।
हालांकि उसी सूर्य की तरह शाम होने की भी सुनिश्चितता है परंतु उसी शाम की तरह फिर से सुबह होने की सुनिश्चितता लिए हम चलते रहें और दुनिया में रौशनी बिखेरते रहे। आस्था के इस महापर्व छठ का एक मौलिक संदेश है।
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