#आरक्षण और #सवर्ण
बीजेपी और जदयू की सरकार ने बिहार में प्राइबेट नौकरियों (आउटसोर्सिंग) में भी आरक्षण देकर एक बार फिर वोट बैंक का दांव खेल दिया है। सोशल मीडिया के भौकाल सवर्ण भक्त हक्का-बक्का है। पांच-सात हजार की नौकरी जैसे तैसे मिली अब उसपे भी आफत! उनको लगता है कि एक भी (ठाकुर जी को छोड़) सवर्ण नेता आवाज क्यों नहीं उठा रहा।
वे यह नहीं सोंचते कि सवर्ण समाज किसी को आज नेता ही नहीं मानता। फिर कोई क्यों आवाज उठाएगा। जिससे भी मिलिए कहेगा, इस समाज का नेता कौन है? नेता से मिलिए तो कहेगा सवर्ण किसको नेता मानता है? यह दुर्भाग्य उस समाज का है जिसने स्वामी सहजानंद सरस्वती, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, वीर कुंवर सिंह, डॉ श्री कृष्ण सिंह सरीखे महामानव दिए।
सवाल यही सबसे बड़ा है कि सवर्ण आज धोबी का पशु बन गया है। न घर का। न घाट का। चार जातियों का यह समाज चारो चार तरफ..और तो और सबसे ज्यादा डापोरशंख भूमिहार समाज। बजना ज्यादा, करना कम। चुनाव में भौकाल हो जाएगा। मुद्दे से हटकर भावनाओं को तरजीह देगा। जितना आदमी उतना नेता।
अंत मे जो समाज अपने हित की रक्षा नहीं कर सकता उसकी रक्षा भगवान भी नहीं करेंगे। निजी क्षेत्र में आरक्षण एक जहर है। जो इस समाज को दिया गया है। पहले से ही सरकारी आरक्षण की मार झेल रहा समाज मरेगा। बिकल्प नहीं बचने दिया जाएगा। कारण वही की समाज किसी को नेता नहीं मानेगा। हार्दिक पटेल सिर्फ गुजरात मे ही क्यों हुआ, बिहार में नहीं हो सकता..! कारण के लिए हमें सबसे पहले अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत है..हम सब के सब नेता है...दो एक लोग बोलेंगे। हम उपहास उड़ाएंगे।
बाकी तो सोशल मीडिया भड़ास निकाले के जगह हैइये हो, करते रहो भचर-भचर...जय #भौकाल...
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