मन की भड़ास
(अरुण साथी)
मन एकदम्मे कछमछा रहा है। कई बार लिखा और मिटा दिया। राजनीति और धर्म पे नहीं लिखने का सोंच रखा है। बेकार में तनाव हो जाता है।
खैर! दलित एक्ट, पूण्य प्रसून, मुज़्ज़फरपुर बालिका गृह, एनआरसी आसाम!! देश में अकबकाट जैसा लगता है। सोशल मीडिया गंभीर विषयों के विमर्श का मंच नहीं रहा। यहाँ बस "गाय का सिंग बैल में अउ बैल का सिंग गाय में" (गौ रक्षा दल के लिए माफी यह एक देहाती कहावत है, समझ न आये तो किसी बिहारी से पूछ लियो) किया जाता है। फिर भी मन नहीं मान रहा। चुप रहना ग्लानि जैसी लग रही।
सो भड़ास निकाल रहा हूँ।
पहले दलित कानून एक्ट की बात। मेरे हिसाब से सुप्रीम कोर्ट ने झूठे हरिजन एक्ट लगाकर निर्दोष को फंसाने के सर्वाधिक मामले सामने आने पे हरिजन एक्ट में महज एक संशोधन किया कि डीएसपी रैंक के अधिकारी केस में पहले जांच करे फिर गिरफ्तारी हो। यह न्यायसंगत बात है। हरिजनों को प्रताड़ित करने की बात सौ फीसदी सच है पर यह भी सच है कि हरिजन एक्ट से प्रताड़ित गैर दलित लाखों लाख लोग मिल जाएंगे।
हमारी न्याय व्यवस्था का मूलाधार है कि किसी निर्दोष को सजा न मिले, भले सौ दोषी छूट जाए। फिर!
अब गंभीरता से देखिये। सुप्रीमकोर्ट के इस न्याय संगत फैसले को राहुल गैंग, जिग्नेश, हार्दिक, भीम आर्मी जैसे सत्ता और कुर्सी के लिए खून के प्यासे लोग नरेंद्र मोदी को घेर लिया। ईसाई मिशनरियों द्वारा प्रायोजित भारत बंद (जिसका प्रमाण भारत बंद के समय के मेरे पोस्ट में मिल जाएगा) इस आग में बारूद डाल दिया। माहौल बना, केंद्र सरकार दलित विरोधी।
अब नरेंद्र मोदी के सामने साँप छुछुन्दर का हाल। "निंगले तो अंधा उगले तो कोढ़ी।" एक बड़े वोट बैंक के खिसकने का डर। मामला पलटा और सुप्रीमकोर्ट के फैसले को शाहबानों केस की तरह ही पलटने का निर्णय लिया गया। यानी निगल लिए और अंधा होना स्वीकार किया। कोढ़ी होने से बच गए।
अब जोर का झटका उनको लगा जो अंधभक्ति ने लीन यह मान बैठे थे कि नरेंद्र मोदी वोटबैंक की परवाह नहीं करते! जो लोग सोशल मीडिया पे भोकल थे वे अब भोकार पार के रो रहे। चुनौत दे रहे। हरा देने की बात कह रहे! उधर राजसत्ता को पता है कि इनके पास विकल्प नहीं है। चुनाव आते आते मंदिर मस्जिद ऐसा होगा कि सब भूल जाइए!!
पूण्य की बात
पूण्य प्रसून बाजपेयी जी को एबीपी से हटाए जाने पे जो लोग रो रहे उनके लिए एक बात, क्या आपको नहीं पता कि मीडिया हाउस पूंजीपति मीडिया मर्डोक का व्यवसाय है! जब व्यवसाय है तो अपना हित सर्वोपरि! सभी का अपना एजेंडा है। देश हित की बात बेमानी।
अब ब्रजेश ठाकुर
ब्रजेश ठाकुर नर पिशाच है। सब यही कह रहे! पर क्या कानून व्यवस्था के वे अधिकारी जिनके जिम्मे इनपे लगाम लगाने की जिम्मेदारी थी वे ज्यादा गुनाहगार नहीं! और तेजस्वी यादव जैसे विरोधी जो सरकार को घेरते हुए ठाकुर के जाति पे सवाल खड़ा कर अपना आधार वोट मजबूत करते है वे कैसे इसे नजरअंदाज कर जाते है कि इसे उद्भेदन करने में ठाकुर के जाति के भी पत्रकार शामिल है, फिर..
एनआरसी असम
आप चाहे जितनी राजनीति करें पर यह सच है कि बड़ी संख्या में बांग्लादेश से घुसपैठ कर लोग आसाम, बंगाल, बिहार में वोटर बन हमारी हकमारी कर रहे। वे भी आज वोटबैंक है। अब राहुल और दीदी सरीखे लोग देश हित को ताक पे रख वोट हित साधने में जुट गए है। जो हमारी सभ्यता, संस्कृति और समाज के दुश्मन हो उन्हें हम कैसे अपने घर रहने दें!! हाँ अगर भारतीय है तो अभी मौका है। सुधार का। प्रमाण दीजिये। अन्याय नहीं होना चाहिए।
बस!! भड़ास निकल गया। उल्टी करने से हल्का हो जाता है। गडमड है। होगा ही। भड़ास है। किसी पार्टी की विचारधारा नहीं... बाकी तो जो हे सो हइये हे..😢😢
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