21 जून 2020

योग, तस्वीर और धोखा

अरूण साथी (व्यंग्यात्मक रचना)
 
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर मैं धोखे का शिकार हो गया। दरअसल मैंने एक मित्र को अपनी तस्वीर खींचने के लिए तैयार किया। वह तस्वीर कपालभाति, अनुलोम विलोम योग करते हुए खींचनी थी। परंतु धोखेबाज मित्र ने पीठ में छुरा भोंक दिया। मोबाइल चालू रखा और तस्वीर नहीं खींची। इसलिए बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर मेरी कोई तस्वीर सोशल मीडिया पर नहीं जा सकी। सोंचा था कम से कम योग दिवस पर तो योग करने तस्वीर डाल दूंगा, साल भर आराम ही आराम।
 

वैसे सोशल मीडिया पर आज योग करने वालों के तस्वीरों की भरमार है। इस बात से यह प्रमाणित होता है कि आज सभी को धोखा नहीं हुआ। एक दिन पहले ही इसकी तैयारी की गई है। अच्छी तस्वीर उतारने वाले किसी खास को बुलाया गया। जैसे तैसे तस्वीर खींच गई। फिर उसे सोशल मीडिया पर डाला गया। खूब कॉमेंट्स मिले। कंपलीमेंट्स मिले। धन्य धन्य हुए।

 उधर इसी तरह के कंपलीमेंट्स कई सालों से सफल विश्व नीति को लेकर साहेब को भी मिल रही थे। जहां जाते, उनके नाम के जयकारे लगने लगते हैं। उनके अनुयायी (भक्त नहीं लिख सकता, लोग सांढ की तरह भड़क जाते है) छाती ठोक कर विश्व नीति के सफल होने के गाल बजाते रहे।अब धोखा हो गया तो भी गाल बजा रहे है। अपना गाल है। बजाते रहिए।


धोखा तो किसी के साथ हो सकता है। जैसे हिंदी-चीनी, भाई-भाई का जब नारा लगा था उसमें भी पंडित जी धोखा खा गए थे। आज भी जिंग झिंग से गले मिले। झुला झूले। साहेब ने चरखा भी चलवाया। शांति पाठ करवाया। शांति का संदेश दिया। भला वे कहां मानने वाले थे। वे आदतन धोखेबाज  हैं। धोखा दे दिया। दिया तो दिया। हम लेने वाले कहां थे। मानेगें ही नहीं। गाल बजाने लगे। पप्पु-पप्पु चिल्लाने लगे। अरे सवाल पूछते हो। खबरदार जो सवाल किया। सवाल करना मना है। राजा जी के राज में। चुपचाप सुनो। 
 
कार्टून: कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के ट्विटर से साभार

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