24 मार्च 2024

भोगा हुआ दर्द और टॉपर बेटी की छलकी आंखें

यह तस्वीर बेटी की है। वह अपने माता पिता को माला पहनाई। क्यों, पढ़िए..! पढ़िए बेटी के चेहरे की खुशी। पढ़िए माता पिता के आंखों में झलकते आंसू...!
 बेटी..! तथाकथित प्रगतिशील समाज के  आंतरिक आवरण पितृ सत्ता में आज भी बेटी अस्वीकार। तृष्कृत। दोयम दर्जा पर। भेदभाव की शिकार है। फिर भी बेटी का साहस पहाड़ जैसा होता है। धैर्य हिमालय के समतुल्य। ऐसी ही एक बेटी है प्रिया। बिहार इंटर परीक्षा में कॉमर्स राज्य टॉपर बनी। महत्वपूर्ण यह उतना नहीं। जितना बेटी का बेटी होने जैसा रहा। 

बरबीघा के गोलापार किराना दुकान चलाने वाले महेश छापड़िया और अर्चना को दो बेटियों ही है। समाज बेटा नहीं होने पर आज भी ऐसे लोगों को निर्वंश का ताना देता है। खैर, इनकी छोटी बेटी ने माता पिता का सीना गर्व से चौड़ा कर दी।

टॉपर बेटी की माता पिता के हाथ में पुष्प की माला देकर हम लोग समाचार की  तस्वीर और विजुअल के लिए बेटी को पहनाने के लिए दी तो प्रिया ने इसे अस्वीकार किया। कहा,  

"नहीं! माता पिता मुझे क्यों माला पहनाएंगे ? इनका संघर्ष और समर्पण इतना बड़ा है कि माला तो मुझे इनको पहनानी चाहिए...!" और भावुक होकर उसने लगभग माला छीन कर माता पिता के गले में डाल दी। बेटी की आंखें डबडबा गई। माता पिता की आंखों में समंदर उमड़ घुमड़ उठा। 

शायद बेटी से मिली इस खुशी के साथ बेटा नहीं होने के सामाजिक पाप के दंश को वे उसी समंदर में डुबोए रखना चाहते हो ! सतह पर दर्द को उतराना समाज को पसंद नहीं। समाज का खोखलापन समंदर की गहराई में ही पसंद किया जाता है। किनारे पर नहीं। समाज गंदगी को ढक कर रखना स्वीकार करता है। गले लगाता है। सतह पर नहीं। भोगा हुआ दर्द जब साक्षात होता है तो टीस होती है। और हां , वह समाज आपसे से ही है। हमसे ही है। बस

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