कायं- कुचुर की आवाज से नींद खुल गई। काठगोदाम-हावड़ा रेलगाड़ी के निचले बर्थ पर सो रहा था। नींद खुलते ही बोगी में कई लोगों के सवार होने के आपाधापी और बर्थ पर सामान रखने को लेकर कायं- कुचुर था। नींद खुली तो आंख भी खुल गई। स्टेशन पर वाद्य यंत्र में लखनऊ में आपका स्वागत है की ध्वनि सुनाई दे गई। नवाबों का शहर पहुंच गया।
चादर चेहरे से हटाया। बोगी में एक बुर्का नसी
मोहतरमा अपने परिवार वालों के साथ प्रवेश कर चुकी थी और सामानों को रखने
को लेकर शोर-शराबे थे । आंखें खुली तो सामने मोहतरमा का ही चेहरा था। एक
बुर्का नसी
मोहतरमा सामने बर्थ पर सामान को रखने और यात्रा की तैयारी में थी। उसके
साथ दो किशोर उसके बच्चे थे । पति भी था। मोहतरमा के चेहरे पर नकाब नहीं
था। नजर पड़ते ही लखनऊ नवाबी की बातें याद आ गई। खूबसूरत आंखें । कजरारे-कजरारे। खूब गहरा काजल। होठों पर लाल टुह-टुह लिपस्टिक। गुलाब की पंखुड़ियों जैसे हल्का-हल्का गुलाबी गाल।
तीन-चार बड़े बड़े बैग उपरी बर्थ पर रखा जाने लगा। मोहतरमा को जब बर्थ की जानकारी हुई तो पता चला के ऊपर और बीच का सीट मिला है। सुनते ही मोहतरमा भड़क गई। पति की सिट्टी-पिट्टी गुम। कातर भाव से उसने पत्नी को देखा। वह गुस्से
में कहने लगी, एक काम भी ठीक से नहीं कर सकते ना। मेरे को मालूम था यही
होगा। नीचे का बर्थ लेना था। बीच का बर्थ ले लिया। पति के मुंह से आवाज
नहीं । वह केवल इशारे से सामान को रखने के लिए बच्चों को कह रहा था।
बड़े-बड़े
दो बैग को सबसे ऊपर वाले बर्थ पर रखा गया। फिर बीच के बर्थ पर सोने की
तैयारी होने लगी। आधी रात का समय। इसी बीच बैग से कंबल निकालने को लेकर चैन
खोलने के क्रम में वह उखड़ गया। मोहतरमा का गुस्सा सातवें आसमान पर। पति भीगी बिल्ली।
क्या लेकर जाउंगी मायके। यही टूटे हुए चैन का बैग। इतने दिनों तक तो जाने नहीं दिए। पांच साल बाद जा रही हूं। वह भी यह हाल है।
लखनऊ में काठगोदाम
ज्यादा देर तक रुकी है। खैर, कोरोना के बाद रेलवे के हालात बदले-बदले
से हैं। बगैर कंफर्म टिकट के यात्रा कोई नहीं कर सकता था तो बहुत भीड़ बोगियों में नहीं थी। हर बोगी में कुछ सीटें खाली थी। तभी अचानक रेलगाड़ी ने चलने की सूचना दे दी। पति बेचारा डब्बे से नीचे उतर कर खिड़की
पर आ गया। ठीक से जाना। इस बैग में यह रखा हुआ है। उस बैग में वह रखा हुआ
है। समझाते जा रहा था। मोहतरमा गुस्से में ही थे। रेल खुल गई। रेल के खुलते
ही दस से पंद्रह मिनट के बाद सोने की तैयारी के बीच मोहतरमा ने बुर्का
उतार दिया। गहरी सांस ली। ऐसे जैसे आजदी मिली हो। बालों को लहराया। उसमें अपनी उंगलियों को बड़े अंदाज से चलाया। हाथों में मेंहदी। हरी हरी डिजाइनदार चुड़ियां। कानों में बड़ा का झुमका। बन ठन कर।
गजब, वैसे तो महिलाओं के उम्र का अंदाजा मुश्किल है परंतु दसे
से चौदह साल के बच्चों के साथ आई मोहतरमा पैंतिस वर्ष की उम्र की लग रही
थी परंतु शारीरिक सौष्ठव ज्यादा ही खाते-पीते परिवार जैसा था। काफी वजनदार।
पर उतनी ही आकर्षक।
बुर्के के नीचे मोहतरमा का श्रृंगार
भी सामने आ गया। आधुनिक डिजाइनदार सलवार और समीज । उजला बग-बग समीज। नए
चलन का। पुराने जमाने के पुरुषों वाले खलता पजामा जैसा। ऊपर सलवार काले
रंग की और उस पर सफेद डिजाइन दार फूल पत्ते। मोहतरमा बेहद खूबसूरत लगने लगी। ऐसे जैसे मोर ने अपने पंख फैला दिया हो।
बरबस
मैं भी टुकुर-टुकुर देखने लगा। या यूं कहें कि खो गया। लखनऊ नवाबी के बारे
में तो सुन ही रखा था । पहली बार देख रहा था। शारीरिक वजन तो काफी था पर
बनावट आकर्षक। ऐसे जैसे कमर के आस-पास के हिस्से को काटकर कमर के ऊपर और
कमर के नीचे के हिस्से पर लगा, तराश दिया गया हो।
तीसरे दिन लगातार यात्रा से थका-थका था। इसी बीच मोहतरमा का बोगी में आना रूह अफजा जैसा। आंखों को ठंडक देती हुई। निहारता जा रहा था। जी भर के। अचानक पटना म्यूजियम में रखी यक्षिणी की प्रतिमा याद आ गई। बरबस । वही शारीरिक सौष्ठय। वही वक्षस्थल। अचानक मोहतरमा की नजर मुझ पर पड़ गई। झेंप गया। मोहतरमा बगल वाले अपने बर्थ पर। नींद खुल चुकी थी और नींद उड़ भी गई। खैर वर्थ
का लाइट बंद कर दिया गया। उसने चेहरे पर चादर तान ली। जबरन मैं भी।
सुबह
जल्दी ही बीच वाले बर्थ को गिरा दिया गया। वह सामने में बैठ गई। बगल में
बच्चे। रेल की बोगी अब बदल गई है। अब सभी के हाथों में मोबाइल। कोई भोजपूरी बजा रहा। तो कोई बांग्ला। उसके भी थेे। बच्चों के भी। वह टीवी सिरियल
देखने लगी। बच्चे गेम खेलने लगा। और मैं, कभी मोबाइल तो कभी उसे।
चोरी-चोरी। आदतन मैं किसी से बात नहीं करता। सो चुप था। कहां जाना
है। अचानक मैं चौंक गया। खुशी और
हड़बड़ाहट। पटना। आप। कलकत्ता। बस। तभी गेम खेल रहे मोहतरमा के बेटा से
बगल के बुजुर्ग यात्री ने
बातचीत शुरू की। पढ़ाई-लिखाई। आदि-इत्यादि। अंत में पूछा। पापा क्या करते है।
लड़का ने हाथ से काटने का ईशारा किया। मतलब । लड़के ने बिना झिझके कहा- कसाई है।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शुक्रवार 12 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
आभार
हटाएंबहुत रोचक तरीके से आपने संस्मरण लिखा है . सोच रही हूँ कि कसाई बीवी के आगे भीगी बिल्ली बन जाता क्या ?
जवाब देंहटाएंप्रणाम. कुछ मिलावट नहीं किया। जो देखा। जो सुना। लिख दिया। सच है
हटाएंबेहतरीन संस्मरण।
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंबढ़िया, रोचक संस्करण, भाई अरुण जी लखनऊ में भी हर तरह के लोग हैं..सादर अभिवादन एवम् शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंसादर अभिनंदन
हटाएंहर घर में बीबी शेरनी ही होती है,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संस्मरण..
जैसे देखी वैसी ही पढ़ी..
आभार..
सादर..
हृदय से आभार
जवाब देंहटाएंNice Post :-👉 Ladki Ka Number Whatsapp | Girl Mobile Number | Girls Mobile Number For Friendship
जवाब देंहटाएं1. होठों पर लाल टुह-टुह लिपस्टिक
जवाब देंहटाएं2. खूबसूरत आंखें कजरारे-कजरारे खूब गहरा काजल
3. गुलाब की पंखुड़ियों जैसे हल्का-हल्का गुलाबी गाल।
4. हाथों में मेंहदी हरी हरी डिजाइनदार चुड़ियां
5. कानों में बड़का झुमका
6. शारीरिक सौष्ठव काफ़ी वजनदार पर उतनी ही आकर्षक
7. उजला बग-बग समीज
8. शारीरिक वजन तो काफी था पर बनावट आकर्षक ऐसे जैसे कमर के आस-पास के हिस्से को काटकर कमर के ऊपर और कमर के नीचे के हिस्से पर लगा, तराश दिया गया हो
9. पटना म्यूजियम में रखी यक्षिणी की प्रतिमा की तरह वक्षस्थल
Result= बेहद खूबसूरत ऐसे जैसे मोर ने अपने पंख फैला दिया हो
वाह सर वाह .... शायद बहुत सारे लोग इस क्षण को जीने के बाद भी इतने रस का स्वाद नहीं ले पाते...जो आपके लेखनी द्वारा उकेरे गए दृश्य से मिले हैं।
🙏🙏🙏