राजा जी के आँसू घड़ियाली आँसू नहीं हो सकते...?
भयानक कोरोना महामारी में राजा जी ने टीवी पर आँसू क्या बहाए जैसे पक्ष - विपक्ष में सैलाब आ गया। राजा जी का आँसू बहाना सभी भक्ति समाचार प्रसारण माध्यमों में सुर्खियों में रहा । ठीक उसी तरह जैसे राजा जी का तितलियों से अठखेलियां करना और मोर के संग मनुहार करना सुर्खियों में रहा।
गांव के चौपाल में इसी की चर्चा हो रही थी। रामखेलाबन काका कहने लगे। विदेशी हाथों में खेलता विपक्ष अब मर्यादाहीन हो गया है। एक राजा के आँसू को घड़ियाली आँसू कहना निंदनीय है। तभी बटोरन बोला, कैसे गलत है। हो सकता हो सही ही हो। कौन जाने। कोई थर्मामीटर है क्या..? वैसे भी राजा जी का घड़ियाल से बचपन का नाता रहा है। हो सकता हो तभी सीख लिया है...!
इसी चर्चा पर एक दिन राजा जी ने अपने दरबारी बीरबल से पूछ लिया, बताओ; क्या मेरे आंसू घड़ियाली आंसू थे ..? बीरबल तो हाजिर जवाब था। बोल दिया। बिल्कुल नहीं हुजूर! आप के आंसू घड़ियाली आंसू नहीं है! बल्कि घड़ियाल के आंसू , आप के आंसू होते हैं।
महाराज, बीरबल बोलता गया। भला बताइए जिस बेटे को माँ गंगा ने बुलाया हो और उसी राजा के राज में, उसी मां की गोद में आदमी की अनगिनत लाशें तैरती मिले तो उस पतीत पावनी माँ के दर्द से कौन बेदर्द न रो दे...!
महाराज आदमी एक संवेदनशील प्राणी है। वह कितना भी कठोर क्यों ना हो आत्मग्लानि तो उसे भी होती ही है। सुना है ऑक्सीजन के बगैर पटपटा कर मुर्गी की तरह आदमी मर गए ! भला बताइए कौन नहीं रोएगा!
व्यंग्यात्मक आलोचना
जवाब देंहटाएंव्यंग्यात्मक लेखक के रूप में आपकी लेखनी बहुत ही उम्दा होता है
महाराज के घड़ियाली आंसू
कुछ कुछ लिख देते है बस, मन की बात
हटाएंआँसू... घड़ियाल के या घड़ियाली!
जवाब देंहटाएंप्रकृति के समक्ष सभी असहाय महसूस करते हैं।
बिल्कुल सही, स्वीकार करना ही साहस है
हटाएं👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏