Arun Sathi |
जीवन के हर क्षेत्र में दीया बनने की जरूरत है। वह चाहे समाज हो शासन-प्रशासन हो या सीधा-सीधा कहे तो न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और चौथा खंभा भी । ऐसी भी बात नहीं है कि वर्तमान और भूत काल में दीया लोग नहीं बने हैं। खुद जले हैं और प्रकाश फैलाया है। बस हमारे समाज की यह प्रवृत्ति रही है कि वह अच्छाई की चर्चा गाैण कर, बुराई की चर्चा में स्वाद लेता है।
आदरणीय कुलदीप नैयर का एक आलेख सेमिनार से उद्धृत कर रहा हूं। उन्होंने कहा था कि पत्रकार को कभी डीएम, एसपी, जज नहीं समझना चाहिए। दूसरी बात उन्होंने कही थी कि पत्रकार का पेशा नहीं है । यह राष्ट्र और समाज निर्माण की भागीदारी का मंच है। जिम्मेवारी है। पेशा यदि करना हो तो इसके लिए समाज के कई क्षेत्र खाली हैं। वही करना चाहिए।
दुर्भाग्य से इस एक दशक में अचानक से सब कुछ बदल गया है। कर लो दुनिया मुट्ठी में जब यह स्लोगन रिलायंस ने दिया उस समय किसी ने नहीं सोचा होगा कि सच में एक मोबाइल पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर लेगा।
हम में से कई साथी उसी दौर के पत्रकारिता कर रहे हैं जब कार्यालय, अस्पताल और चाय की दुकानों से खबरें ढूंढनी पड़ती थी। आज व्हाट्सएप पर खबरें चलकर हमारे पास आ जाती है। इस वजह से यह बहुत मुश्किल दौर है। इसी वजह से फेक न्यूज़ का दौर भी है। इसी वजह से पत्रकार का सम्मान और गरिमा में चौतरफा गिरावट है। न्यूज़ चैनल के ब्रेकिंग न्यूज़ की आपाधापी से निकलकर अब मोजो का युग है। मोबाइल जर्नलिस्ट। खबर कहीं बनी, हर कोई मोबाइल में उसे कैद कर अपने चहेते लोगों को भेजता है । सोशल मीडिया पर लगाता है । वहां से खबरें प्रसारित हो जाती है।
फिर शुरू हो जाता है पीपली लाइव फिल्म जैसा नजारा। ठीक पीपली लाइव फिल्म में जो होता है वह आज होते हुए आप देख सकते हैं। वह चाहे पटना में ग्रेजुएट चाय वाली का मामला हो, हरनौत का सोनू हो अथवा नवादा में छह लोगों के आत्महत्या के बाद लाशों पर गिद्धों के मोबाइल लेकर मंडराने का, यही सब कुछ देखने को मिल रहा है।
हम सोशल मीडिया के जिस दौर में जी रहे हैं वहां निंदक नियरे राखिए अथवा नहीं, दूर से भी निंदक आपकी निंदा करेंगे । अभी हाल ही में एक बारात में कुछ लोग गए हुए थे। बहुत अच्छी व्यवस्था थी। खूब मिठाई खिलाया गया। गांव के एक बुजुर्ग जो अक्सर चुगली करने में माहिर होते हैं उनसे जब पूछा कि कैसी व्यवस्था है। उम्मीद थी कि वह कहेंगे कि बहुत शानदार परंतु उन्होंने उस पूरी व्यवस्था में भी कमी खोज ली और कहा कि सब कुछ तो ठीक था परंतु रसगुल्ला बहुत अधिक मीठा था।
मोबाइल जर्नलिज्म के इस दौरान सोशल मीडिया पर खबरों का पोस्टमार्टम भी होने लगा है। अब यदि किसी बाहुबली, दबंग अथवा गैंगस्टर के विरोध में खबरें चलती हैं तो सोशल मीडिया पर उसका पोस्टमार्टम उसके गिरोह के सदस्य सक्रिय होकर करते हैं। कभी कभी तो ऐसा लगने लगता है जैसे सही में सही खबर को उठाकर गलती कर दिया गया हो। सोशल मीडिया पर कम उम्र के लड़कों के हावी होने का ही नतीजा है कि यदि कोई पिस्तौल के साथ अपनी तस्वीर और वीडियो लगाता है तो सभी लोग वाह-वाह करने लगते हैं । मुझे लगता है कि यदि कोई यह भी लिख दे कि वह किसी की हत्या आज कर दिया तो कई लोग उसकी तारीफ कर देंगे आज हम इसी दौर में जी रहे।
परंतु इस दौर में से हमें अच्छी चीजें निकालनी होगी । उदाहरण खुद बनना होगा। तभी समाज में बदलाव होगा। जैसे पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने कहा है कि हम बदलेंगे युग बदलेगा । हालांकि आज हमारी मानसिकता है कि युग बदल जाए परंतु हम नहीं बदले।
बहुत अच्छी सामयिक चिंतन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक लेख।
जवाब देंहटाएंचिंतन परक।
kuşadası
जवाब देंहटाएंadıyaman
van
tuzla
maltepe
1E805
kuşadası
जवाब देंहटाएंadıyaman
van
tuzla
maltepe
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