02 नवंबर 2022

सोशल मीडिया की आभासी दुनिया से आत्मीय संबंध तक । एक अनुभव

#आभासी दुनिया से #आत्मीय संबंध तक

सोशल मीडिया पर एक दशक बाद सबकुछ बदल गया है। #धार्मिक उन्माद का चरमोत्कर्ष,   जातीय गोलबंदी, #सायबर माफिया, झूठे समाचार, दूसरे को नीचा दिखाना, स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताना, वैभव दिखाना, लड़कियों को आकर्षित करना, विवाहेत्तर संबध की तलाश आदि इत्यादि का आज यह बड़ा मंच गया। 
एक दशक पहले, उस दौर के आभासी दुनिया के लोग आज आत्मीय है। वैचारिक मतभेद के बाद भी कभी किसी को नीचा नहीं दिखाया गया। ऐसे ही दो विचारधारा के लोग आज  #मित्रवत है। घूर दक्षिणपंथी विचारधारा के प्रबल समर्थक सुधांशु शेखर और आधा अधूरा वामपंथी विचारधारा के समर्थक अरुण साथी।
सुधांशु शेखर 7 साल से #ऑस्ट्रेलिया में है। वहां की नागरिकता ले ली है। एनआरआई बन गए। बीजा लेकर अपने घर आए हैं। पुराने गया जिला के कुर्था थाना के उत्तरामा गांव निवासी हैं। अब उनका गांव अरवल में। 
दक्षिणपंथी विचारधारा का इसलिए कि जब भी कभी नरेंद्र मोदी के विरुद्ध, हिंदुत्व के विरुद्ध अथवा सेकुलर से संबंधित पोस्ट किया इनके तीखे कमेंट मिले। कभी कभी फोन करके एक घंटा से अधिक समझाया।

हिंदू मुस्लिम को इनके द्वारा मुसलमानों की धार्मिक survival का सवाल बता कर अक्सर डरा कर चुप करा दिया जाता है। मुसलमानों का हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध, यहूदी किसी के साथ सामंजस्य नहीं करने का और दूसरे धर्म के लोगों को काफिर मानने का तर्क निरुत्तर कर देता है।
खैर, इससे अलग ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न से चलकर एक बार फिर अपनी धरती को देखने के लिए बिहार पहुंचे। पटना, बेगूसराय होते हुए मुझसे भी मिलने के लिए आए। तीन दिनों का सानिध्य रहा। अपने बरबीघा के आसपास जो भी जगह थी उसे देखने के लिए ले गया। छठ पूजा का वैभवी देखा और आध्यात्मिक जुड़ाव से भी अनुभव किया। 10 सालों के बाद बहुत कुछ बिहार में नहीं बदलने की बात भी कही । यह भी कहा कि बिजली की व्यवस्था दुरुस्त हो गई है। परंतु सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे हैं। हालांकि हम लोगों के लिए सड़क बेहतर है परंतु ऑस्ट्रेलिया के हिसाब से नहीं।
सबसे खास बात यह कि ऑस्ट्रेलिया में बसने के बाद भी उनमें तड़क-भड़क नहीं दिखा। यहां से दिल्ली जाने के बाद मेरे को तेरे को करने वालों के जैसा ऐंठन भी नहीं दिखा। आम चाल बोलचाल की भाषा हिंदी और मगही में बातचीत। साधारण खानपान के बीच उनको विदा कर दिया। आज सोशल मीडिया के वजह से आभासी दुनिया से निकलकर हम लोग आत्मीय संबंध में जुड़ गए हैं और मित्रवत है। बस बहुत है।

नोट: बिहार केसरी का जन्म भूमि, अमामा महाराज का किला भी दिखाया।

3 टिप्‍पणियां:

  1. मनोज उपाध्याय2 नवंबर 2022 को 10:03 am बजे

    ब्लॉग पढ़कर मन एकदम से गदगद हो गया अरुण भाई.....😊

    आपकी लेखनी की धार और संवेदनाएं इसी तरह कायम रहे.....👍👍

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  2. आत्मीय सम्बन्ध से जुड़ा यह आलेख बहुत अच्छा लगा। सच है वास्तविक दुनिया में जहाँ लोग अडोसी-पडोसी की खबर तक नहीं रखते वहां आभासी दुनिया में ऐसा मेल-मिलाप वाला कोई मिलता है तो मन को आत्मीय ख़ुशी मिलती है

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  3. आधा अधूरा वामपंथी :) कुछ तो है बाकी तो सब पंछी हो उड लिए

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