31 मई 2023

वोट का तुष्टीकरण, चोल साम्राज्य का सेंगोल, नया संसद भवन और ताबूत की कील

वोट का तुष्टीकरण, चोल साम्राज्य का सेंगोल, नया संसद भवन और ताबूत की कील


अरुण साथी 

ब्रिटिश सत्ता द्वारा 1927 में बनाए गए संसद भवन अब कल की बात हो गई। नए भारत में नया संसद भवन है। अत्याधुनिक सभ्यता, संस्कृति, शौर्य का प्रतीक के रूप में नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में विपक्ष का बहिष्कार कई सवाल खड़े कर गए परंतु देश में आलोचना की राजनीति और सहिष्णुता की परंपरा इस रूप में भी रेखांकित भी हुई। 
उद्घाटन समारोह में तमिलनाडु के अधीनम ब्राह्मणों के द्वारा मंत्रोच्चार के साथ प्रधानमंत्री के सेंगोल को स्थापित करने का मामला भी विवादों में घिर गया। पक्ष और विपक्ष अपने अपने तर्कों के साथ तर्क कुतर्क में लगी हुई है परंतु आधुनिक नए भारत में एक अति आधुनिक संसद भवन का निर्माण बहुत ही कम समय में और बेहद ही खूबसूरत करना अपने आप में उभरते भारत का प्रतीक है।


नए संसद भवन में कई बातें हैं परंतु उससे पहले लगभग 100 साल होने वाले संसद भवन की भी हो। अंग्रेजों ने उस संसद भवन को अपने हिसाब से बनाया। अति आधुनिक नए संसद भवन में सुरक्षा, समर्थ, सुविधा वैभव, सभ्यता सभी चीजों का ख्याल रखा गया है। ऐसे में सावरकर के जन्म जयंती के दिन इसका शुभारंभ करना और इसी के बहाने राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं करने को लेकर विवाद खड़ा करना , विपक्ष की एक कमजोर राजनीतिक चाल ही रही।

 


बात नए संसद भवन की यदि हो तो 65000 वर्ग मीटर में नई संसद लोकसभा, राज्यसभा, संवैधानिक हल, लाउंज, सेवा क्षेत्र एवं कई कार्यालयों को अपने में समेटे हुए हैं। 

नए संसद भवन में भारत की सभ्यता, संस्कृति, शौर्य को मजबूती से रेखांकित किया गया है। वास्तव में इतिहास में भारतीय शौर्य को निश्चित रूप से कहीं ना कहीं कमतर दर्शाया गया है। अब उसे पटल पर लाना मजबूत कदम ही है। राष्ट्रीय पुष्प कमल, राष्ट्रीय पक्षी मोर के साथ-साथ कई कलाकृतियां दीवारों को सुसज्जित कर रही हैं।


कुछ गंभीरता से अध्ययन करने पर कई बातें सामने हैं। संसद भवन के 6 प्रवेश द्वार हैं जिनके नाम ही भारतीयता का प्रतीक बनकर सामने आया है। गज द्वारा, अश्व द्वार, गरूर द्वार, हंस द्वार, मकर द्वार, शार्दुल द्वार नाम रखे गए हैं। नए भवन में तीन उत्सव मंडल हैं जिसमें चाणक्य, गार्गी, गांधी, पटेल, अंबेडकर, नालंदा एवं कोणार्क चक्की की विशाल पीतल की प्रतिमाएं लगाई गई है।

नए संसद भवन में संगीत दीर्घा भी बनाया गया है जिसमें भारतीय नृत्य, गायन, वाद्य की भारतीय परंपरा को दर्शाया गया है। आज के नकारात्मक सोशल और मेंस्ट्रीम मीडिया के दौर में कई सकारात्मक बातें या तो दवा दी जाती है या हाशिए पर ठकेल देते है।

 संगीत दीर्घा में खास बात है देश के प्रख्यात संगीतकार अथवा उनके परिवारों ने वाद्य यंत्र सहर्ष संगीत दीर्घा में रखने के लिए दान दिए हैं। इसमें उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई, पंडित रविशंकर का सितार, उत्साह अमजद अली खान का सरोद, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी, विद्वान एन रमानी की बांसुरी और पंडित शिवकुमार शर्मा का संतूर प्रमुख है।


वर्तमान समय में धर्म के आधार पर राजनीति को हवा देने का काम भले ही दोनों पक्ष कर रहा हो परंतु नए संसद भवन में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई और उस्ताद अमजद अली खान का सरोद भारत के मूल संवैधानिक आत्मा को और भी प्रखर कर रहा है।


विपक्ष के विवादों में सबसे चर्चित तमिलनाडु के चोल साम्राज्य का सेंगोल रहा है परंतु इसका अर्ध सत्य ही सोशल और में स्ट्रीम मीडिया पर आ सका । पूर्ण सत्य है कि 1947 में 14 अगस्त को लॉर्ड माउंटबेटन के द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल देकर सत्ता का हस्तांतरण किया।


 दुर्भाग्य से इसे प्रयागराज के संग्रहालय में रख दिया गया । इसे धर्म दंड भी कहा जाता है। सेंगोल सत्ता और न्याय के प्रतीक के रूप में सत्ता के हस्तांतरण को रेखांकित करता है। जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी रूप में सत्ता को स्वीकार किया तो फिर आज नए संसद भवन में इसे स्थापित करने की बात को लेकर विपक्ष का विवाद निश्चित रूप से आम जनमानस को निराश करता है।




चुकी सेंगोल तमिलनाडु में चोल साम्राज्य के प्रतीक के रूप में माना जाता है और उसका अपना महत्व है इसलिए इसे संसद भवन में पुनर्स्थापना के समारोह में तमिलनाडु के अधीनम ब्राह्मणों की उपस्थिति और मंत्रोचार को लोग भारत के संविधान पर प्रहार बता रहे हैं । वहीं इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो भारत के मजबूत ऐतिहासिक शौर्य और संस्कृति का पुनर्स्थापन ही कहा जा सकता है।

सोशल मीडिया पर अधीनम ब्राह्मणों के ब्राह्मणवाद की खूब चर्चा हुई। विपक्ष ने नफरत की राजनीति को खूब हवा दी है। परंतु प्रधानमंत्री को भी अपने धर्म को अपनी इच्छा से अपने जीवन में उतारने और उसका पालन करने का उतना ही अधिकार है जितना हर भारतीय को।

दुख की बात यह कि भारतीय संसद के नए भवन में प्रवेश के इस समारोह में सर्वधर्म प्रार्थना सभा का भी आयोजन हुआ जिसमें हिंदू , मुस्लिम , सिख , ईसाई के धर्मगुरु ने अपने-अपने मंत्र उच्चार से भारतीय संविधान को और मजबूती प्रदान की परंतु इन बातों की चर्चा गौण कर दी गई। आम जनमानस में संविधान खतरे में है , ऐसे प्रतीक गढ़ दिए गए हैं।


 भारत निश्चित रूप से दुनिया भर में एक उभरता हुआ देश बनकर सामने आया है। हाल ही में प्रधानमंत्री के विदेश दौरे के दौरान कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष के द्वारा पैर छूकर प्रणाम करना, गले मिलना, प्रोटोकॉल तोड़कर उन्हें लाने के लिए जाना, भारत के गौरव गाथा का प्रतीक है।


 परंतु भारत का विपक्ष अपरिपक्वता का परिचय देते हुए नए संसद भवन की तुलना ताबूत से कर दी और सत्ता में वापसी पर नए संसद भवन के बहिष्कार की बात भी कर दी ।

भारत का जनमानस निश्चित रूप से तुष्टीकरण की इस राजनीति को समझने लगा है। निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी भी अपने वोटरों के तुष्टीकरण के को लेकर कार्य करती हैं, ठीक वैसे ही जैसे विपक्ष अपने वोटरों के तुष्टीकरण का काम।

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना शुकवार 02 जून 2023 को साझा की गई है ,

    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  2. आभार
    विस्तृत जानकारी के लिए
    सादर

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  3. नए संसद भवन के बारे मेवकाओ जगह पढ़ा परंतु कुछ जानकारी आपके आलेख से ही मिली। बहुत सुंदर और जानकारी युक्त आलेख! नए संसद भवन की हम सभी को बहुत बधाई।

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  4. नये संसद भवन में सर्वधर्म प्रार्थना से लेकर संगीत दीर्घा , भारतीयता के प्रतीक एवं अन्य जैसे भारत की सभ्यता, संस्कृति, शौर्य को रेखांकित किया गया है। इससे बढ़कर और क्या हो सकता है । रही विपक्ष की तो ये जोड़-तोड़ वाद - विवाद तो चलते ही रहते है और रहेंगे हम आम नागरिकों के लिए ये मुद्दे की बातें नहीं रही।
    फिलहाल तो देशवासियों को नये संसद भवन कीबधाइयां।
    सामयिक एवं जानकारी युक्त ज्ञानवर्धक लेख ।

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  5. जी अरुण जी,स्वतंत्र भारत की अपनी नई संसद उसके अपने प्रतिभाशाली सामुहिक श्रमवीरों के कार्य कौशल का उत्तम नमूना है।पक्ष और विपक्ष के मुद्दे चलते रहेंगे,ये परम्परा सी बन गई है हर विपक्ष पक्ष को सदैव से ही नकारती आई है।अच्छी जानकारी दी आपने।कम से कम सन्गोल जैसे राज दंड को आम जनता जान पाई ये बहुत अच्छा लगा।निरंकुश शासक पर नौतिकता का ये दंड उनकी निरंकुशता पर अदृश्य प्रहार का प्रतीक है।कोई समझे ना समझे इसके मायने बड़े है।हार्दिक आभार आपका इस सार्थक लेख के लिए 🙏

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