19 मई 2023

बागेश्वर सरकार : भीड़, अंधभक्ति और भारत

बागेश्वर सरकार : भीड़, अंधभक्ति और भारत

बागेश्वर सरकार अर्थात पंडित देवेंद्र शास्त्री बिहार से चार्टर प्लेन से उड़ गए । इस बीच भीड़ का उन्माद देख कई बार उन्होंने मंच से कहा बिहार के पागलों।

 बागेश्वर सरकार पर कुछ भी कहने से पहले निर्मल बाबा, चुम्मा बाबा, राम रहीम, रामपाल  इनको स्मरण कर लेना जरूरी है। हरी चटनी और दस के नोट के दम पर सर्व कल्याण की बातें करने वाले निर्मल बाबा के दरबार को शायद ही लोग भूले होंगे ।  क्या हश्र हुआ और क्या सच निकला ...? 

खैर, सबसे पहले यह बता दूँ की मै अनिश्वरवादी नहीं हुँ । धार्मिक कृत्यों में भाग लेता हुं । पर अंधविश्वास मे नहीं पड़ता। मेरे गुरु ओशो है। उन्होंने कहा, ईश्वर है। निश्चित है। पर जबतक, खुद महसूस न करना , मानना नहीं।


खैर, एक चुम्मा बाबा स्थानीय स्तर पर केवल यहां के लोग जानते हैं। बात 2007 की है। बरबीघा के फैजाबाद स्थित देवी मंदिर में एक चुम्मा बाबा आए। दावा,  गूंगा भी बोलने लगता। महिलाओं को संतान प्राप्ति की गारंटी देते। वहीं पर चुम्मा ले कर आशीर्वाद देते।

 उन दिनों में आज अखबार का प्रतिनिधि था। संभवतः इन चीजों को मै बगैर नजदीक से समझे, जाने नहीं मानता । वहां गया। भारी भीड़ । महिलाओं में उन्माद । एक युवक साधारण वेशभूषा में दो-तीन चेले लगे हुए।


 गूंगा को बुलवा देने की वही गारंटी देते। कुछ मूकबधिर भी लेकर लोग वहां आए थे। उनके भक्तों ने बताया कि कई गूंगे बोलते हैं। मैं भी गौर से देखने लगा। एक मूक-बधिर को कान में कुछ उन्होंने कहा फिर उसके चेहरे पर जोर से चाटा मारा । गूंगा ओ ओ  करने लगा। सभी जयकार करने लगे और नारा लगा कि गूंगा को बोल उठा।


मैं सतर्क। मैंने भीड़ को शांत होने की अपील की । फिर शांत लोगों के बीच गूंगा को बोलने के लिए कहा । वह नहीं बोल सका । बाबा से मैंने कहा कि गूंगा को बोलने के लिए कहिए।


 चुम्मा बाबा सकपका गया। भक्तों ने फिर कहा कि गूंगा बोलेगा । बाबा ने कई बार प्रयास किया। परंतु गूंगा नहीं बोल सका । मेरे पास उन दिनों निकोन  का एक डिजिटल कैमरा था । 5 मेगापिक्सल का। उसी में वीडियो भी बना रहा था। कई बार असफल होने के बाद बाबा को लेकर उसके चेले चुपके से वहां से भाग गए।

 यह सब देखकर वहां पर उपस्थित महिलाओं के द्वारा मुझे घेर लिया गया और खूब गाली दी गई । महिलाओं ने कहा कि मुझे चुम्मा लेते हैं। तुम को क्या दिक्कत। महिलाओं ने केवल मुझे पीटा नहीं, यही शुक्र था।


ऐसे कई अनुभव मुझे रहा है। जिसमें नजदीक से देखा है ।  लोग दीवाने हुए । मुझे भी कई बार बुलाया गया । परंतु मैं किसी भी इस तरह के आडंबर को नहीं मान सकता। बाद के दिनों में धीरे-धीरे ऐसे बाबा खत्म हो गए।


बात बागेश्वर बाबा के दरबार में पर्चा निकालने की कला का।  जब मन की बात पढ़ने की कला, विद्या में प्रकांड महिला ने इसे एक विद्या और ज्ञान बता दिया तो फिर आगे की बात खत्म होनी चाहिए। परंतु बात धर्म की है। खैर अभी उन्माद का दौर है। हमें धार्मिक कट्टरवाद सिखाया जा रहा है। कहा जाता है उनसे लड़ने के लिए जरूरी है।

 बागेश्वर सरकार ने इसी चीज को पकड़ लिया है। उन्मादी लोगों की नब्ज पकड़ ली है। इसीलिए हिंदू राष्ट्रवाद, माला और भाला इत्यादि बातें करते हैं।


 नाम हनुमंत कथा के आयोजन का होता है। परंतु हनुमंत कथा के नाम पर लगभग शून्य प्रस्तुति रहती है। फिर भी वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर जी ने बाबा के पैर दबाते भक्तों की तस्वीर देकर कहा है कि बाबा अहंकारी है।

 वही आचार्य किशोर कुणाल के साथ महावीर मंदिर में अपमानजनक व्यवहार से सभी लोग दुखी हैं। आचार्य किशोर कुणाल सच्चे मायने में संत पुरुष है । हालांकि वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ ओझा ने यह साफ किया कि गलतफहमी में यह सब हुआ।
फिर भी, संत की वाणी मधुर और व्यवहार सरल होनी चाहिए। बागेश्वर सरकार में इसका सर्वथा आभाव है। जरा भी गहराई नहीं है। रही बात राजनीत की, तो नेताओं को जहां भी वोट की उम्मीद हो वहां हुए कमर और सिर झुका देते हैं। 

बात भीड़ की भी होनी चाहिए तो आज से 10 साल पहले मेरे गांव में उस समय का झोलाछाप गायक कल्लू का आगमन हुआ था । मेरे गांव में इतनी भीड़ उमड़ पड़ी थी की कहना मुश्किल। सभी के घर के आगे दर्जनों बाइक ऐसे फेंके हुए थे जैसे कूड़ा कचरा।



भीड़ पर ओशो कहते है 


"मैं दुनिया में किसी तरह की भीड़ नहीं चाहता। वह चाहे धर्म के नाम पर इकट्ठी हुई हो, या देश के नाम पर, या वर्ग के नाम पर, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भीड़ उस रूप में एक कुरूप चीज है, और भीड़ ने दुनिया में बहुत बड़े-बड़े अपराध किए हैं, क्योंकि दुनिया में चेतना नहीं है। यह एक सामूहिक बेहोशी है।
 
चेतना तुम्हें निजता देती है--एकांत में देवदार वृक्ष का हवा के साथ नाचना, एकांत में बर्फ से ढंके पहाड़ के ऊंचे शिखर पर चमकता सूरज अपने पूर्ण वैभव और सुंदरता के साथ, अकेला सिंह और उसकी काफी सुंदर दहाड़ जो घाटियों में मीलों तक गूंजती चली जाती है।"

निरबैरी निहकांमता, साईं सेती नेह।
विषिया सूं न्यारा रहै, संतनि का अंग एह।।
 
#कबीर_दास ने #संत के लक्षण बताए है। उनके अनुसार वैर रहित होना, निष्काम भाव से ईश्वर से प्रेम और विषयों से विरक्ति, यही संतों के लक्षण हैं।

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