समाज के सम्मान का असल हकदार कौन..?
यह एक सामाजिक मुद्दा है। हालांकि पहले से तय है कि समाज एक विरोधाभाषी शब्द है। व्यवहार और सिद्धांत में अंतर है।
कई बार इसका व्यक्तिगत अनुभव किया। जैसे, कुछ दिन पहले ऑनलाइन सामग्री आपूर्ति करने वाले एक लड़के ने गांव में घर के पास आकर सामग्री देने से असमर्थता जाहिर किया। बोला मोड़ पर आकर ले लीजिए..!
मैंने पूछा, क्यों..?
उसने कहा, उधर कई लोग परिचित है..!
मैंने सामग्री जाकर लिया। लड़का हेलमेट लगाए था।
मैंने पूछा, चोरी करते हो , डकैत हो, ठगी करते हो या शराब बेचते हो..?
वह, चौंका, नहीं सर..!
मैंने कहा, तब फिर शर्म कैसा..! ऐसा करने वाले तो शर्मिंदा नहीं होते। तुम तो मेहनत करके कमा रहे हो।
खैर, इस तरह से कई बार अनुभव हुआ। इसका प्रमुख कारक समाज ही है। समाज का को छोटा और बड़ा तय करने का मापदंड ही गलत बना दिया।
जो गरीब मेहनत मजदूरी करे उसे कम और जो ठगबनीजी करे उसे अधिक सम्मान देता है।
जो सफाईकर्मी गंदगी साफ करे, वह अछूत हो गया..! जो मजदूर घर बनाए वह हिकारत पाए ! जो किसान पेट भरे वह अपमान सहे! जो गौ पालक श्वेत क्रांति में अगुवा बन दूध पहुंचाए उसके लिए सम्मान नहीं। जो सुबह उठ पसीना बहा घर में अखबार, सब्जी पहुंचाए उसे सम्मान नहीं ..! जो रिक्शा चलाए वह हिकारत पाए..! चाय बेचना छोटा काम है..?
चाय बेचने से याद आया, लखीसराय के रामपुर गांव होकर पहले अपने ननिहाल रामचंद्रपुर पैदल जाता था। रामपुर चौक पर एक चाय दुकानदार थे। शायद भूमिहार..! वह शीशा के गिलास में चाय तो देते थे पर गिलास ग्राहक को ही धोने के लिए कहते थे...! जिससे उनका घर पले, वह काम भी छोटा...!
आज भी गांव में दूध बेचना निम्न कार्य माना जाता। लोग ओल्हन देते है,
दूध बेचते दिन जा हो.. तोर की औकात..!
मेरे गांव को बैगन बेचबा (बैगन की खेती की वजह से) कह के निम्न बताया जाता है..! नतीजा किसान सब्जी उपजाते तो है, बेचने बाजार नहीं जाते..!
और,
जो ठगबनीजी करे, शराब माफिया, लूट, खसोट कर धन अर्जित करे वह सम्मानित।
जो वास्तविक प्रेम में पड़े, वह पापी और
जो चारित्रिक रूप से हीनता करे वह सम्मानित..! जैसे नवादा में एक दुष्कर्मी ने एक भव्य मंदिर बना दिया तो वह समाज में सम्मानित हो गया..! जय जय हो रही..!
जैसे, जीवन भर शोषण, दमन करने वाला अंत समय में थोड़ा दान पुण्य करे, कोई मंदिर बना दे, तो सद्कर्मी..!
जब कहीं रस्ते में जाम लगे तो एक रिक्शा वाला और कार वाला दोनों समान गलती करे पर सब रिक्शा वाला को गाली देना शुरू करेंगे। कार वाला रिक्शा चालक को डांट देगा। बाइक वाला साइकिल चालक को दुत्कार देगा...?
लगता होगा कि ऐसी चीजे मन में कहां से उठती है...! थोड़ी सी संवेदना है, बस ।
जैसे , अभी शादियों में लड़कियां वेटर, स्वागत इत्यादि का काम करती है। उसको लेकर लोग गलत नजरिया रखते है। पर मैं सोचता हूं.. आज के समय में जब oyo का चलन है। कस्बे के होटलों में भी घंटे के हिसाब से पैसे की कमाई हो रही, वैसे में ये लड़कियां कितनी साहसिक है जो सर उठा कर वेटर बनी हुई है...!
असल सम्मान तो इसे मिलना चाहिए...है कि नहीं...
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