आज जब भारत "आत्मनिर्भर भारत" की बात करता है, तो यह विचार राष्ट्रीय स्वाभिमान, तकनीकी स्वतंत्रता और आर्थिक मजबूती का प्रतीक बन जाता है। परंतु जब हम धरातल पर उतरकर देखें, तो पाते हैं कि हमारी आत्मनिर्भरता की राह में कई ठोस और गहरे अवरोध हैं। इनमें सबसे प्रमुख अवरोध है – अमेरिका पर हमारी तकनीकी और आर्थिक निर्भरता।
तकनीकी प्रभुत्व: विकल्पों की कमी
सबसे पहला और ठोस तर्क यह है कि आज भी माइक्रोसॉफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम का कोई व्यवहारिक विकल्प विश्वस्तर पर मौजूद नहीं है। चाहे सरकारी कार्यालय हों, शिक्षण संस्थान हों या निजी क्षेत्र, विंडोज़ आधारित सिस्टम हर जगह उपयोग में लाए जा रहे हैं। इसका कोई देसी या गैर-अमेरिकी विकल्प बड़े पैमाने पर न तो मौजूद है और न ही अपनाया गया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि तकनीकी आधारभूत ढांचे पर अमेरिका का मजबूत नियंत्रण है।
गूगल के सर्च इंजन की बात करें, तो वहां भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। आज गूगल के सामने जो भी विकल्प उपलब्ध हैं—जैसे कि बिंग, याहू या डकडकगो—वे सभी अमेरिका से ही संचालित होते हैं। इसका अर्थ है कि वैश्विक डिजिटल सूचना पर नियंत्रण अमेरिका के ही हाथ में है। भारत में कोई देसी सर्च इंजन आज भी उस स्तर की पहुंच, डेटा संग्रहण या परिणाम देने की क्षमता नहीं रखता।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: भारत की शुरुआत
AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) को भारत भविष्य की तकनीक मानता है और इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता भी दी जा रही है, परन्तु सच्चाई यह है कि इस क्षेत्र में भारत अभी ककहरा ही सीख रहा है। भारत में AI आधारित नवाचार जरूर हो रहे हैं, परंतु बुनियादी रिसर्च, प्रोसेसिंग पावर, डाटा एनालिटिक्स, और एल्गोरिदमिक नियंत्रण अब भी अमेरिका और चीन जैसे देशों के हाथों में केंद्रित है।
कृषि पर भी शिकंजा
इस चर्चा में एक गंभीर पक्ष अक्सर छूट जाता है—भारत के कृषि क्षेत्र पर भी अमेरिका की पकड़ धीरे-धीरे मजबूत हो रही है। कई बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियाँ, जैसे मोनसैंटो (अब बायर के अंतर्गत), भारतीय किसानों को निर्भर बना रही हैं ऐसे बीजों पर जिन्हें हर साल नए सिरे से खरीदना पड़ता है। यह आत्मनिर्भरता के ठीक विपरीत है। यदि बीज पर ही नियंत्रण बाहरी शक्तियों के पास हो जाए तो खाद्य सुरक्षा तक खतरे में पड़ सकती है।
आर्थिक नियंत्रण: नागपाश जैसी स्थिति
भारत की अर्थव्यवस्था पर अमेरिका की पकड़ उस नागपाश की तरह है जिससे छूट पाना बेहद कठिन होता जा रहा है। वैश्विक पूंजी, डॉलर आधारित व्यापार व्यवस्था, IMF और वर्ल्ड बैंक जैसे वित्तीय संस्थानों की शर्तें—इन सभी ने भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों को अमेरिका के आर्थिक प्रभाव में जकड़ लिया है।
समाधान की ओर: क्या हम चीन से सीख सकते हैं?
जब हम आत्मनिर्भरता की बात करते हैं, तो एक सवाल अक्सर उभर कर आता है: क्या समाधान है? एक संभावित समाधान चीन की रणनीति में नज़र आता है। चीन ने विदेशी इंटरनेट कंपनियों को अपने देश से बाहर किया और उसके स्थान पर अपने देशी विकल्प—जैसे बाइदू, वीचैट, अलीबाबा—विकसित किए। इन कदमों ने चीन को डिजिटल अर्थव्यवस्था में न केवल आत्मनिर्भर बनाया बल्कि एक वैश्विक शक्ति भी बना दिया।
भारत भी इसी दिशा में प्रयास कर सकता है। इंटरनेट मीडिया, सर्च इंजन, सोशल नेटवर्किंग, ईमेल सेवाएं—इन सभी के देसी विकल्प तैयार किए जा सकते हैं, बशर्ते इसके लिए सरकार, उद्योग और शिक्षा जगत मिलकर एक समन्वित और दूरदर्शी नीति बनाएं।
सुन्दर
जवाब देंहटाएं