राजनीति अच्छे लोगों के लिए नहीं है और यह आम चलन है पर ओशो रजनीश ने कहा कि जब तक अच्छे लोग राजनीति के सम्बंध में ऐसी विचारधारा रखेंगें बुरे लोग राजनीति में आतें रहेंगें। पत्रकारिये अभिरूची की वजह से राजनीति और राजनीतिज्ञों से बास्ता रहा है और राजनीति के बदलते मायने भी देखने को मिलता रहता है। पर कभी कभी मन पत्रकारिता से उपर उठकर भी सोंचने पर मजबूर करता है और मन उदिग्न हो जाता है। वर्तमान बिहार विधानसभा चुनाव सर पर है और लोकतंात्रिक राजनीति पार्टी का अलोकतन्त्र का नाटक रोज देखने को मिल रहा है। टिकट पाने वालों की लंबी फेहरिस्त सभी पार्टी में है और यह एक गम्भीर मुद्दा है। गम्भीर मुद्दा इस लिए की आज पार्टी कार्यकत्र्ता से किनारा कर बाहुबल और धनबल के साथ साथ जातीये समीकरण के हिसाब किताब से सत्ता की कुर्सी को साधने में लगे है और इसी फेर मे आज तक कौन सी पार्टी किसे टिकट देगी फाइनल नहीं हो सका है।
खैर यह तो राजनीति है, होता है पर आज मन खिन्न हे इस बात के लिए की बिहार के सत्ता के सर्वोसर्वा नीतीश कुमार के साथ राजनीति का कदम ताल करने वाले एक अख्खड़ समाजबादी नेता को मरते हुए देख रहा हूं। कभी जार्ज फर्नाडीस के साथ राजनीति करने वाले और समाजवादी कपीलदेव सिंह के आदशोZ को आत्मसात करने वाले शिवकुमार वर्तमान राजनीति में पिछड़ रहें है। अख्खड़ इसलिए कि शिवकुमार बेलाग लपेट किसी को भी मुंह पर ही सच कह जातें है वह चाहे पत्रकार हो या नेता या अधिकारी और उनकी इस बात को आज के समय का समाज बुराई के रूप में देख रहा है। तीस साल से बिहार के प्रथम मुख्यमन्त्री का गृहक्षेत्र बरबीघा विधानसभा सुरक्षित था और इसलिए शिवकुमार को कम लोग जानते है।
राजनीति में 1974 के आन्दोलन में सक्रिय भुमिका निभाने वाले शिवकुमार 26 माह तक मीसा के तहत जेल में रहे और तत्कालिन सरकार से माफी नहीं मांगी। आज मोकामा के बाहुबली विधायक अनन्त सिंह के भाई त्रिशुलधारी सिंह की गिनती पांच साल की राजनीति में अरबपतियों की जाती है जबकि शिवकुमार को मोबाइल रिचार्ज कराने के सोंचना पड़ता है। त्रिशुलधारी सिंह राजनीतिक जीवन एक किसान से बुथ लूट कर मुखीया बन कर प्रारंभ हुआ और कांग्रेस की राजनीति से कदम ताल करते हुए आज जदयू में है। यहां से सांसद रहे ललन सिंह का बरदहस्त इनपर रहा पर आज ललन सिंह के साथ नहीं है। इनके द्वारा आज जदयू के टिकट के दाबे किए जा रहें है नहीं तो निर्दलिय लड़ने की तैयारी हो रही है।
बिडंबना यह कि सर गणेश दत्त के नाती और मुज्जफरपुर निवासी मुन्ना साही ने बरबीघा विधानसभा से अपनी दाबेदारी करते हुए नीतीश कुमार के इशारे पर यहां जदयू कार्यालय खोल कर अपनी उम्मीदवारी धोसित कर दी।
अन्तिमदम तक संधर्ष का आदी जदयू नेता और अख्खड़ समाजबादी शिवकुुमार को इस बार पार्टी के टिकट की उम्मीद थी। 1974 से यहां की लोगों की सेवा उनकी राजनीति का आधार रहा है। गरीबों के हमदर्द के रूप में इनकी पहचान है और इन्हें नीतीश कुमार की मित्रता पर भरोसा भी है पर चुनाव के नजदीक आते ही इनका साहस भी डोलने लगा है। कभी हार नहीं मानने की प्रेरणा हममें से कई लोग इसी आदमी से सीखते है। शिवकुमार ने कांग्रसी सांसद राजो सिंह से जमकर लड़ाई लड़ी और गरीबों को उनका हक दिलाया। तब भी वह आदमी निराश नहीं हुआ। मित्र रहे सांसद ललन सिंह को जीताने में मदद करने के बाद वे इनको पराजीत करने की राजनीति की।
आज जबकि शिवकुमार को जदयू की टिकट मिलने भर को लोग उनकी जीत के रूप में देख रहें है मुन्नासाही की दवेदारी ने उन्हें हिला कर रख दिया है और हमलोग जैसे हजारों लोग जो एक सच्चा आदमी और अख्खड़ समाजबादी को मरने देना नहीं चाहता दुखी है।
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