सत्यमेव जयते में आज दलितो के उत्पीड़न की कहानी दिखाई गई, इसे सिरे से नकारा नहीं जा सकता, पर इनती बुराईओं के बाद भी इसी समाज में अच्छाई भी है जिसको सामने आना चाहिए।
बात बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डा. श्रीकृष्ण सिंह से शुरू करना चाहूंगा। श्रीबाबू (पुकारू नाम) ने 1961 में बिहार के देवघर मंदिर में दलितों के साथ मुख्यमंत्री होते हुए प्रवेश किया। भेदभाव और छूआछूत निश्चित ही निंदनीय है पर इसको तोड़ने के लिए भी बहुत लोगो ंने सराहनीय योगदान दिया है। बाबा साहेब अंबेदकर से लेकर अपने गांव तक यह नजारा मुझे दिख जाता है। बाबा साहेब के कार्टून को लेकर भले ही बबेला मचा हो पर उनको अंबेदकर बनाने मंे एक पंडित शिक्षक का ही हाथ रहा है।
मैं अपनी बात भी कहना चाहूंगा। लगन मांझी की पत्नी जिन्हें मै चाची कहता हूं आज भी जब तब कहते रहती है ‘‘अपन छतिया के दूध पिलैलियो हैं बेटा।’’ दरअसल किसी कारणवश टोना टोटका को लेकर मां ने जन्म के समय में ही मुझे इनके यहां बैना (उधार) दे दिया था और उनका ही दूध पी कर मैं इस दुनिया जीना सीखा। आज तक कर्ज है मेरे उपर।
फिर जब से होश संभाला तब से कभी छूआछूत को नहीं माना। बहुत सारी बातें है पर सहज है। इंटर के समय में बरबीघा में कुछ लोगांे से दोस्ती हुई जिसमें से नीरज, श्रीकांत, कारू, दीपक इत्यादि का नाम है। बाद के दिनों मे दोस्तों की जाति का पता चला। उसी में जाना कि श्रीकांत और दीपक चमार जाति का है, श्रीकांत बगल के गांव जगदीशपुर का रहने वाला। सबकुछ सहज। फिर सबके साथ कई बार धूमने टहलने गया। ककोलत झरना में स्नान के बाद सबने मिल कर खाना बनाया और एक ही थाली में श्रीकांत और मैं खाया। फिर श्रीकांत कें पिताजी का निधन हुआ। सब दोस्तों के साथ मुझे भी न्योता दिया। दोस्तों के साथ मैं श्रीकांत कें घर चला गया। श्राद्ध का भोज खाने। बरसात का दिन और धुप्प अंधेरिया में उसके गांव पहूंचा तो किसी को विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं भोज खाउंगा। किसी ने संकोचवश मुझे खाने के लिए नहीं कहा, पर मैं सहजतापुर्वक सबके साथ पंगत में बैठ गया और भोज खाया।
आज तक भी कहीं भी मन में यह बात नहीं उठती है। सिक्के के दो पहलू होते है, पर इसमें यह भी सच है कि एक पहलू में अंधेरा धना है और दूसरे पहलू में रौशनी कम। बात जब अंधकार की हो तो साथ साथ रौशनी की चर्चा भी हो जाए तो इसे ईमानदारी कहते है, वरना सदियो से यह मुददा राजनीति भेंट चढ़ती रही है और चढ़ती रहेगी।
हर सिकके के दो पहलू होते हैं।
जवाब देंहटाएंरविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसिक्के का दूसरा पहलू भी है..
जवाब देंहटाएंयह सच है।
यक़ीनन सिक्के के दो पहलू होते हैं.... अच्छाइयों को सामने लाने की कोशिश होनी चाहिए......
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा है ... केवल अँधेरे की बात कहना तो राजनीति है ... इमानदारी तो तब कही जायेगी जब दोनों पहलु की बात हो ...
जवाब देंहटाएंसच है
जवाब देंहटाएंचहु ओर अन्धकार नहीं है ..
परन्तु जिन पहलुओं पर रौशनी कार्यक्रंम में डाली गयी ,कदापि उसे समझना बेहद ज़रूरी है
सही कहा सिक्के के दो पहलू होते है..हमें दोनो पहलुओ को देखना चाहिए..सार्थक पोस्ट..मेरे ब्लाग में आने केलिए धन्यवाद..अरुण जी..
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