अरूण साथी
शुक्रवार, स्थान शेखुपरा जिले का बरबीघा नगर। पिछले 18 तारिख से बरबीघा थाना के ठीक सामने गेसिंग, जुआ का अड्डा खोल देने की सूचना मिली और 20 को जा कर जांच किया तो मामला सही पाया। फिर इसके बारे में जानकारी इक्कठी की तो पता चला कि उच्चाधिकारियों से 50000 प्रतिमाह में सेटिंग हुआ है। एसपी एक आइपीएस हैं पर उनके नाम पर उनका एक बोडीगार्ड रूपये का लेनदेन करता है जिससे जिले में भ्रष्टाचार की खुली छूट है।
खैर, एक दिन बाद पता चला कि मीडिया को भी मैनेज किया गया है, कितना में यह कह नहीं सकता क्योंकि मेरे पास मैनेज करने कोई नहीं आ सकता, कारण सर्वविदित है कि यहां जाओगे तो उलटा पड़ सकता है। कई बार इस चक्कर में पुर्व में हंगामा हुआ है।
खैर, 24 तारीख को सुबह प्लान बना कर गेसिंग के अड्डे पर धावा बोल दिया। साथ में कोई कैमरा मैन तो रख नहीं सकता क्योंकि कम्पनी अफोर्ड नहीं कर सकती तो हेल्प के लिए सहयोगी मुकेष कुमार को साथ ले चला। मन में डर भी लग रहा था कि जो लोग थाना के सामने गेसिंग खोल सकता है वह दबंग भी होगा पर चला गया। कैमरा खोलते ही संचालक और जुआ खेलने वाले भागने लगे। न्यूज धंटो बनाया। सारी बात उठाई। ऑफिस आ गया। दरोगा का बाइट लिया। एसपी को मोबाइल कर उसका वर्जन लिया, क्योंकि वह बाइट नहीं देती। पत्रकार के डर से ऐसे भागती है जैसे बिल्ली को देख कर चूहा।
न्यूज भेजना शुरू किया। तभी मेरे एक बुजुर्ग सहकर्मी आ धमके। उनके मोबाइल पर फोन आया जो दूसरे अखबार के रिपोर्टर थे। दोनों में बाहर जाकर वार्ता हुई। फिर उन्होने चर्चा चलाई इस बार बख्स दिजिए, मैनेज कर लिजिए, न्यूज भेज कर क्या मिलने वाला, अखबार या चैनल देता ही कितना है।
खैर, मैनेज तो नहीं किया पर इतने दिनों के बाद अब थकने सा लगा हूं ... ....भविष्य की सोंच कर..... ईमान भी डोलता है....देखें कब तक बचा पाता हूं..
शुक्रवार, स्थान शेखुपरा जिले का बरबीघा नगर। पिछले 18 तारिख से बरबीघा थाना के ठीक सामने गेसिंग, जुआ का अड्डा खोल देने की सूचना मिली और 20 को जा कर जांच किया तो मामला सही पाया। फिर इसके बारे में जानकारी इक्कठी की तो पता चला कि उच्चाधिकारियों से 50000 प्रतिमाह में सेटिंग हुआ है। एसपी एक आइपीएस हैं पर उनके नाम पर उनका एक बोडीगार्ड रूपये का लेनदेन करता है जिससे जिले में भ्रष्टाचार की खुली छूट है।
खैर, एक दिन बाद पता चला कि मीडिया को भी मैनेज किया गया है, कितना में यह कह नहीं सकता क्योंकि मेरे पास मैनेज करने कोई नहीं आ सकता, कारण सर्वविदित है कि यहां जाओगे तो उलटा पड़ सकता है। कई बार इस चक्कर में पुर्व में हंगामा हुआ है।
खैर, 24 तारीख को सुबह प्लान बना कर गेसिंग के अड्डे पर धावा बोल दिया। साथ में कोई कैमरा मैन तो रख नहीं सकता क्योंकि कम्पनी अफोर्ड नहीं कर सकती तो हेल्प के लिए सहयोगी मुकेष कुमार को साथ ले चला। मन में डर भी लग रहा था कि जो लोग थाना के सामने गेसिंग खोल सकता है वह दबंग भी होगा पर चला गया। कैमरा खोलते ही संचालक और जुआ खेलने वाले भागने लगे। न्यूज धंटो बनाया। सारी बात उठाई। ऑफिस आ गया। दरोगा का बाइट लिया। एसपी को मोबाइल कर उसका वर्जन लिया, क्योंकि वह बाइट नहीं देती। पत्रकार के डर से ऐसे भागती है जैसे बिल्ली को देख कर चूहा।
न्यूज भेजना शुरू किया। तभी मेरे एक बुजुर्ग सहकर्मी आ धमके। उनके मोबाइल पर फोन आया जो दूसरे अखबार के रिपोर्टर थे। दोनों में बाहर जाकर वार्ता हुई। फिर उन्होने चर्चा चलाई इस बार बख्स दिजिए, मैनेज कर लिजिए, न्यूज भेज कर क्या मिलने वाला, अखबार या चैनल देता ही कितना है।
खैर, मैनेज तो नहीं किया पर इतने दिनों के बाद अब थकने सा लगा हूं ... ....भविष्य की सोंच कर..... ईमान भी डोलता है....देखें कब तक बचा पाता हूं..
arun bhaiya i m proud of you..
जवाब देंहटाएंu r doing such a brillent job
this could show the way of people how we can remve our socity's poisions....
This was brave!!
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