विनायक सेन को देशद्रोह की सजा होने के बाद रचित मेरी यह रचना आज असीम त्रिवेदी को समर्पित..
हौसला होता है, जब तक विनायक, असीम सरीखे लोग है मेरे देश का कोई बालबांका नहीं कर सकता...
राजद्रोह है
हक की बात करना।
राजद्रोह है
गरीबों की आवाज बनाना।
खामोश रहो अब
चुपचाप
जब कोई मर जाय भूख से
या पुलिस की गोली से
खामोश रहो।
अब दूर किसी झोपड़ी में
किसी के रोने की आवाज मत सुनना,
चुप रहो अब।
बर्दास्त नहीं होता
तो
मार दो जमीर को
कानों में डाल लो पिघला कर शीशा।
मत बोलो
राजा ने कैसे करोड़ों मुंह का निवाला कैसे छीना,
क्या किया कलमाड़ी ने।
मत बोला,
कैसे भूख से मरता है आदमी
और कैसे
गोदामों में सड़ती है अनाज।
मत बोलो,
अफजल और कसाब के बारे में।
और यह भी की
किसने मारा आजाद को।
वरना
असीम त्रिवेदी
विनायक सेन
और
सान्याल की तरह
तुम भी साबित हो जाओगे
राजद्रोही....
राजद्रोही।
पर एक बात है!
अब हम
आन शान सू
और लूयी जियाबाओ
को लेकर दूसरों की तरफ
उंगली नहीं उठा सकेगें।
chalo laut chalo 1947 se pahle,
जवाब देंहटाएंkyonki yeh sarkar bhi un angrejon ki pathanugami hae,
kewal wahi kaho aur karo juismen iski hami hae.
Good one! Waiting for your update on "Love Story"!
जवाब देंहटाएं