पोंगा-पंडित और पोथा सब बकबास है, इनको आग के हवाले करने के बाद ही स्वस्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है। अब देखिए, आज जितिया पर महिलाओं का उपवास है और इसके लिए परंपरागत तरीके से सुबह चार बजे महिलाऐं कुछ नास्ता करके चौबीस घंटे का उपवास करती थी पर इस बर पांेगा महराज का फरमान आ गया कि रविवार को शाम 8 बजे तक ही कुछ खा सकती है। भला बताइए 36 घंटा निर्जला उपवास?
जितिया, तीज, करमा, करवाचौथ, ऐ सारे के सारे औरतों की गुलाम मानसिकता का प्रतीक है।
मेरी समझ से यह पुरूषों के द्वारा महिलाओं को मानसीक रूप से गुलाम रखने का यह तरीका है। जितिया बेटा के लिए, तीज और करवा चौथ पति के लिए, करमा भाई के लिए, सारा उपवास पुरूषों के लिए? महिलाओं के लिए पुरूष कौन सा उपवास करते है?
हलांकि पुरूषों के द्वारा महिलाओं गुलाम की कई जंजीर भी पहनाई गई है जिसमें सिंदूर, मंगलसुत्र, चुड़ी आदि आदि....। पुरूष शादीशुदा होने पर कुछ क्यों नहीं पहनता? हद तो यह कि महिलाओं की मनसिकता इसको लेकर इतनी पवित्र है जितनी भगवान को लेकर...।
इस तरह के पर्व को लेकर पहले मां से झगड़ता था अब बीबी से झगड़ता हूं। हद हाल है। चौबीस चौबीस घंटे निर्जला उपवास। चलो यह तर्क भी ठीक है कि सेहत के लिहाज से उपवास ठीक होता है पर बिमार लोगों के लिए? चाहे प्राण क्यों न चली जाए, उपवास तो करनी ही है। एक साल से बीबी को डायबटीज है पर जब उपवास की बात आती है तो अड़ जाती है, सीधा, करेगें। हलांकि इस बार आज सुबह चार बजे लड़-झगड़ कर नास्ता तो करा दिया पर उपवास खत्म नहीं करा सका हूं..।
उपवास स्वास्थ की दृष्टि से ठीक है,माने या न माने ऐसी कोई बाध्यता नही है,,,ये उपवास महिलाए खुद ही अपने प्रेरणा से करती है,,,,गुलाम शब्द से सहमत नही हूँ,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
आभार, बात समझने की है, मैंने गुलाम मानसिकता की बात की है। और समाज का दबाब क्या कम है
हटाएंसार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमैं आपके साथ हूँ ... मगर क्या आपकी श्रीमती जी .. इसे ठीक कह रही हैं
जवाब देंहटाएंbaban babu--yahi to rona he....ki sath nahi degi...
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