यह मंजर देखकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आदमियता सिसक उठेगी, मेरा भी कलेजा मूंह में आ गया पर बिहार पुलिस ने संवेदनहीनता की प्रकाष्ठा पार कर दी। बुद्धवार की शाम में खबर मिली की शेखपुरा जिले के बरबीघा थाना के कोल्हाड़ाबीघा गांव में नवविवाहिता की हत्या कर शव को गांव में ही जला दिया गया। सूचना पर वहां पहूंचा तो पता चला कि नालन्दा जिले के सरमेरा गांव निवासी अठठारह वर्षिय राजनन्दनी को उसके पति मोहन राम एवं अन्य परिजनों ने हत्या कर दी और गांव के बाहर खेत में शव को जला दिया गया।
(घर के आगे पुलिस का इंतजार करते पीड़ित परिजन)
पुलिस से बहुत विनती करने के बाद भी आरोपी युवक को पकड़ने और हत्या के सबूत जुटाने पुलिस गांव में नहीं पहूंची और हारकर लड़की के परिजन आरोपी युवक के घर पर दिन भर धरने पर बैठे रहे।
मैं जब वहां पहूंचा तो परिजनों ने सारी बात बताई और फिर जहां युवती के शव को जलाया गया उस जगह को दिखाने ले गए। वहां पहूंचा तो रोम रोम सिहर उठा। शव को जलाने के बाद उस खेत मे हल चला कर उसे जोत दिया गया पर जलने का अवशेष वहां बिखरे पड़े थे। जलाने में उपयोग किए गए लकड़ी और अन्य सामान भी वहीं थे। उसके बाद परिजनों ने दिखाया कि कैसे जलाने के बाद अवशेष छुपाने के लिए उसके राख को जगह जगह खेतों मे ले जाकर फेंका गया है।
खेतों में फेंके गए राख में जले होने के अवशेष साफ दिख रहे थे। कहीं मांस के लोथरे फेंके हुए थे तो कहीं हडडी..। कहीं राख में युवती के चूड़ी और उसकी पायल मिली तो कहीं उसकी बनारसी साड़ी, जिसे देख उसके पिता फफक पडे़......।
फिर परिजनों ने वह जगह भी दिखाई जहां अधजले शव को दफनाए जाने की संभावना थी। उसके बाद एक बार फिर पुलिस को फोन किया गया जिसमें स्पीकर आॅन कर हमें भी सुनाया गया जिसमें थाना प्रभारी ने साफ कहा कि ‘‘हमे और भी बहुत काम है जांच करने के बाद कार्यवाई होगी जहां जाना है जाओ..।’’
(जले हुए अवशेष दिखाते परिजन )
देर शाम पर परिजन लाश के जलाने के जगह पर मिले सबूतों की रक्षा करते रहे पर पुलिस नहीं पहूंची...और परिजन कहते रहे कि ‘‘सर मोटा पैसा ले लिया है सर पुलिस नहीं आएगी, हार कर ही आपके पास पहूंचा.... किसी तरह मेरी बेटी को इंसाफ दिला दिजिए....बड़ी दुलरी थी... अभी कम्पटीशन की तैयारी कर रही थी..सोंचा था नौकरी चाकरी हो जाएगी तो चिंता दूर हो जाएगी....बोलिए सर अभी तो शादी में ही पांच लाख खर्चा किया जिसका कर्जा अभी तक नहीं चुकाया है अब चार महीना बाद ही एक लाख कहां से देते...
मंजर ने मुझे बेचैन कर दिया, अजीब सी झटपटाहट और बेचैनी रात भर रही। आखिर हम इतने निर्मम क्यों है....? दहेज की खातिर लड़कियो को मार दिया जाता है या फिर मरने के लिए विवश कर दिया जाता है? आखिर क्यों लड़कियां ही आत्महत्या भी कर लेती है? कई सवाल मन को मथ रहे है पर जबाब नहीं मिल रहा है.....इस सबके मूल में दहेज ही है तो फिर दहेज की बलि बेदी पर चढ़ी बेटियों के खून के छींटे हम सब के दामन पर भी लगे हुए है...उफ..हत्यारा समाज...
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (17.10.2014) को "नारी-शक्ति" (चर्चा अंक-1769)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएं